घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 का परिचय

Shadab Salim

27 Feb 2021 4:07 AM GMT

  • घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 का परिचय

    इस आलेख के अंतर्गत भारत की महिलाओं के विरुद्ध होने वाले बुरे व्यवहार और आचरण के विरुद्ध भारत की संसद द्वारा बनाए गए घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम 2005 का सामान्य परिचय प्रस्तुत किया जा रहा है।

    भारत की स्वतंत्रता के बाद से महिलाओं की आर्थिक सामाजिक और राजनीतिक स्थिति में निरंतर प्रगति हुई है। स्वतंत्रता के पूर्व भी महिलाओं के प्रति समाज के दमनकारी दृष्टिकोण प्रभावी रहा है। स्वतंत्रता के बाद भारत के संविधान निर्माताओं ने महिलाओं के प्रति समाज के दमनकारी दृष्टिकोण की समाप्ति के लिए प्रयास किए। भारत के संविधान का निर्माण इस प्रकार किया गया है कि वहां लिंग के आधार पर किसी प्रकार का विभेद नहीं किया गया।

    भारत के नागरिकों को एक सामान्य भाव बोध में केवल नागरिक माना गया है। वहां स्त्री और पुरुष कोई भेद नहीं है। भारत का विधान स्त्री और पुरुष शब्द के संबंध में किसी प्रकार का कोई भेद नहीं करता है। सामान्य रूप से केवल नागरिक शब्द इस्तेमाल किया गया। भारत के संविधान के कुछ मूल अधिकार गैर नागरिकों को भी प्राप्त है।

    मानव अधिकारों पर आधारित संविधान के होते हुए भी भारत राज्य क्षेत्र के भीतर महिलाओं के विरुद्ध समाज का दृष्टिकोण कोई बहुत हद तक नहीं बदला था। कार्यस्थल से लेकर घरों तक महिलाओं के विरुद्ध हिंसा और बुरा आचरण निरंतर जारी था और जारी है।

    महिलाओं के संरक्षण की नितांत आवश्यकता थी। कोई ऐसा कानून आवश्यक था जो महिलाओं के अधिकारों की संरक्षा की घोषणा स्पष्ट रूप से करता हो।

    संपूर्ण विश्व में जनसंख्या का आधा भाग महिलाओं का है। भारत के संबंध में भी यही सकते की आधी आबादी महिलाओं की है। प्राचीन भारत में महिलाओं और पुरुषों में लिंग के आधार पर भेदभाव नहीं था मध्यकालीन भारत में महिलाओं की स्थिति में पतन हुआ और महिलाओं को हाशिए पर धकेल दिया तथा समाज में महिलाओं के महत्व को नकारा जाने लगा।

    स्वतंत्रता प्राप्ति के उपरांत संविधान निर्माताओं ने प्राचीन भारतीय परंपरा को पुनर्जीवित करने के प्रयास किए हैं। भारतीय संविधान की प्रस्तावना मूलभूत अधिकार मूलभूत दायित्व तथा राज्य के नीति निर्देशक तत्वों में समानता एवं महिलाओं को सम्मान प्रदान करने की अवधारणा को अंगीकार किया।

    भारतीय संविधान में महिलाओं के साथ लैंगिक विभेद न करने की बात करते हुए उनके साथ समानता का व्यवहार किया जाना सुनिश्चित किया है। महिलाओं के पक्ष में सकारात्मक विभेद न करने की बात भी की है।

    संविधान द्वारा राज्य को निर्देशित करते हुए कहा गया है कि राज्य महिलाओं के पक्ष में सकारात्मक हितकारी कदम उठाएं। राज्य विकास नीतियां योजनाएं क्षेत्र में महिलाओं की प्रगति सुनिश्चित करें परिपूर्ण होना चाहिए।

    घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005

    महिलाओं के संरक्षण से संबंधित अनेक विधियां अस्तित्व में आई है परंतु इन सब विधियों में घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम 2005 सर्वोच्च स्थान रखता है क्योंकि इस अधिनियम में महिलाओं से संबंधित उन सभी समस्याओं का समावेश कर दिया गया था जिनके समय-समय पर लाक्षणिक इलाज किए जा रहे थे तथा एक ही कानून के माध्यम से महिलाओं के अनेकों अधिकारों को सुरक्षित किया गया है। इसलिए घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम 2005 की महत्वपूर्णता को नकारा नहीं जा सकता है।

    घरेलू हिंसा द्वारा महिलाओं को प्रताड़ित करने वाले कार्यों को मूलभूत अधिकारों तथा महिलाओं के मानव अधिकारों का उल्लंघन करने वाला माना गया है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 21 के प्रावधान के प्रतिकूल होने के साथ ही ऐसे कामों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी महिलाओं के मानवाधिकारों के उल्लंघन के रूप में देखा गया।

    भारतीय संविधान के भाग 4 राज्य के नीति निदेशक तत्व अनुच्छेद 51 द्वारा अपेक्षित है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर किए गए समझौतों को लागू करने का प्रयास पक्षकार राष्ट्र को करना चाहिए। इसी प्रकार संविधान के भाग- 4 अनुच्छेद 51(ए) (य) (क) में वर्णन है कि महिलाओं के प्रति अपमानकारक नीतियों का त्याग करना चाहिए।

    महिलाओं के साथ घरेलू सीमा में होने वाले हिंसा पूर्ण कार्यों पर प्रभावी नियंत्रण लगाने हेतु सर्वप्रथम घरेलू हिंसा 2002 में लाया गया। अंतरराष्ट्रीय संघ द्वारा भारतीय संविधान में अंतर प्रावधानों को ध्यान में रखकर किया गया। बार-बार होने वाली कोई घरेलू हिंसा, वैवाहिक घर में समान अधिकार के साथ निवास करने का अधिकार भी महिलाओं के पक्ष में सुरक्षित नहीं था।

    महिला घरेलू हिंसा की शिकायत करती है तो उसे निवास के अधिकार से वंचित होने की संभावना बनी रहती है अर्थात शिकायत करें तो उसे घर से निकाल दिया जाता है। परामर्श लेने की बाध्यता थी।

    केवल पंजीकृत महिला संगठनों को ही अधिकार था की महिलाओं की सहायता कर सकें। इस देश में त्रिस्तरीय सुरक्षा अधिकारी न्यायालय तथा शिकायतकर्ता की उपस्थिति को प्रभावी मानते हुए इसमें अनेक संशोधन करने के उपरांत नवीन प्रमुख 2005 का अधिनियम पारित किया गया।

    इस अधिनियम का व्यापक अर्थ है तथा घरेलू सीमा में महिलाओं के प्रति हिंसा के निषेध हेतु इसे अधिनियमित किया गया ताकि विवाहित या अविवाहित को समान रूप से हिंसा से संरक्षण प्रदान किया जा सके।

    जब भी घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 के संबंध में चर्चा होती है तो एक सामान्य भाव में केवल वैवाहिक स्त्रियों का ही ध्यान आता है जिनके साथ ससुराल में कोई हिंसा की जा रही है परंतु घरेलू हिंसा अधिनियम केवल विवाहित स्त्रियों तक ही सीमित नहीं है अपितु इस अधिनियम का विस्तार हर एक महिला तक है और इस अधिनियम के प्रावधान उस महिला के उस घर के लोगों के लिए हैं जो एक कुटुंब के रूप में साथ में रह रहे हैं।

    विवाहित महिलाओं के साथ उनके पति व पति के रिश्तेदार या नाते तारों द्वारा क्रूरता के मामलों पर निषेध हेतु 1983 में भारतीय दंड सहिंता की धारा 498 (ए) जोड़ी गई परंतु घरेलू हिंसा की घटनाओं के निवारण हेतु सिविल कानून की कमी महसूस की जा रही थी इसकी पूर्ति हेतु घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 लोकसभा द्वारा 24 अगस्त 2005 को पारित किया गया।

    राज्यसभा द्वारा इसे 29 अगस्त 2005 को पारित किया गया। राष्ट्रपति द्वारा 13 सितंबर 2005 को सहमति प्रदान की है। 26 अक्टूबर 2006 से संपूर्ण भारत पर प्रभावी हो गया। जम्मू कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम के पहले इस कानून का प्रभाव जम्मू कश्मीर राज्य पर नहीं था परंतु अब इस कानून का प्रभाव जम्मू कश्मीर राज्य पर भी है।

    भारतीय दंड संहिता की धारा 498 (ए) केवल आपराधिक मामलों में प्रयोज्य होती है परंतु घरेलू हिंसा अधिनियम की यह विशेषता है आपराधिक और सिविल दोनों प्रकार के मामलों में लागू होता है, दोनों प्रकार के अधिकारों का संरक्षण भी करता है।

    घरेलू हिंसा का अर्थ

    इस अधिनियम का नाम घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम रखा गया है। सर्वप्रथम यह विचार आता है कि घरेलू हिंसा का अर्थ क्या है! घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 की धारा 2 (छ) में कहा गया है कि घरेलू हिंसा का वही अर्थ होगा जो इसे धारा 3 में प्रदान किया गया है।

    इस अधिनियम के अध्याय 2 में धारा 3 में घरेलू हिंसा को परिभाषित किया गया है और घरेलू हिंसा की परिभाषा को अत्यंत विस्तारपूर्वक परिभाषित किया गया है।

    इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिए प्रत्यार्थी वह वयस्क पुरुष है जिसके विरुद्ध घरेलू हिंसा का आरोप है, का कोई भी कृत्य, लोप या कार्यकरण या आचरण घरेलू हिंसा गठित करेगा यदि वह-

    व्यथित व्यक्ति के स्वास्थ्य की सुरक्षा के जीवन या अंग या कल्याण को नुकसान पहुंचाता है, क्षतिग्रस्त करता है, खतरा पहुंचाता है, या ऐसा करने का प्रयास करता है उसमें सम्मिलित है, शारीरिक दुरुपयोग, यौन दुरुपयोग, मौखिक और भावनात्मक दुरुपयोग तथा आर्थिक दुरुपयोग व्यथित व्यक्ति को उसे या उसके नातेदार वाले किसी अन्य व्यक्ति को किसी दहेज या अन्य संपत्ति या बहुमूल्य प्रतिभूति के लिए विधि विरुद्ध मांग की पूर्ति करने के लिए परपीडित करने के आशय से तंग करता है नुकसान पहुंचाता है क्षतिग्रस्त करता है या खतरा पहुंचाता है।

    इस अधिनियम की धारा 3 (ए) और धारा 3 (बी) का सम्मिलित प्रभाव यह है कि घरेलू सीमा में निवास करने वाली प्रत्येक महिला चाहे विवाहित महिला हो या अन्य कोई महिला यदि धारा 3(ए) और 3(बी) में वर्णित काल से प्रभावित होती है तो वह व्यथित व्यक्ति की श्रेणी में आकर कार्य विशेष को घरेलू हिंसा मानकर अधिनियम के अंतर्गत प्रत्यार्थी के विरुद्ध कार्यवाही कर सकती है।

    खंड ए और खंड बी में वर्णित किसी भी आचरण द्वारा व्यथित व्यक्ति को या उसके नातेदारी वाले किसी व्यक्ति को धमकी देने का प्रभाव रखता है।

    व्यथित व्यक्ति को अन्यथा क्षतिग्रस्त करता है या नुकसानी कारित करता है चाहे शारीरिक हो या मानसिक।

    अधिनियम की धारा 3 में प्रदत स्पष्टीकरण एक के माध्यम से धारा 3 (ए) में प्रयुक्त शब्दों को-

    शारीरिक दुरुपयोग, यौन दुरुपयोग, मौखिक और भावनात्मक दुरुपयोग तथा आर्थिक दुरुपयोग के संबंध में समझा जाता है अर्थात इस अधिनियम के अंतर्गत महिलाओं के संबंध में इन चारों प्रकार के दुरुपयोग को घरेलू हिंसा माना गया है।

    शारीरिक दुरुपयोग

    ऐसा कोई भी काम या आचरण जो ऐसी व्यथित व्यक्ति के जीवन अंग या स्वास्थ्य को शारीरिक दर्द कारित करता हो नुकसान पहुंचाता हो या खतरा कारित करता है, आपराधिक अभित्रास देना और आपराधिक बल का प्रयोग करना इसमें शामिल है। अर्थात किसी स्त्री के साथ मारपीट करना और उसे जान से मारने की धमकियां देना शारीरिक दुरुपयोग के अंतर्गत आता है।

    यौन दुरुपयोग

    यौन प्रकृति का कोई भी कार्य या लोप महिला की गरिमा का दुरुपयोग करता है, महिलाओं को अपमानित करता है या उसका उपहास करता है या हंसी उड़ाता है यौन दुरुपयोग में सम्मिलित है।

    मौखिक और भावनात्मक दुरुपयोग

    स्त्री का अपमान हंसी उड़ाना तिरस्कार करना गाली देना और विशेषकर संतान या पुत्र न होने के आधार पर अपमानित करना या उपहास करना।

    किसी भी व्यक्ति जिससे व्यथित व्यक्ति हितबद्ध है को शारीरिक दर्द पहुंचाने की धमकी देना व्यथित व्यक्ति का मौखिक एवं भावनात्मक दुरुपयोग कहलाएगा यदि प्रत्यार्थी द्वारा उपरोक्त कार्य किए जाते हैं तो ऐसे कार्य धारा 3 में दी गई परिभाषा के अंतर्गत घरेलू हिंसा माने जाएंगे।

    आर्थिक दुरुपयोग

    कोई भी जा सभी आर्थिक स्त्रोत जिसका व्यथित व्यक्ति विधि प्रथा के अधीन हकदार है चाहे न्यायालय के आदेश के अधीन संदाय हो या अन्यथा जो व्यथित व्यक्ति आवश्यकता होने के कारण अपेक्षित करता है से वंचित करना आर्थिक दुरुपयोग में सम्मिलित है पर इसका यह अर्थ नहीं है कि यह व्यथित व्यक्ति और उसकी संतानों यदि कोई है कि कुटुंबी ग्रह की आवश्यकताओं स्त्रीधन व्यथित व्यक्ति द्वारा अलग-अलग यह संयुक्त रूप से स्वामित्व अधीन संपत्ति और सम्मिलित कुटुंब ग्रह से संबंधित किराया और भरण पोषण तक ही सीमित है।

    स्पष्टीकरण दो के माध्यम से कहा गया है कि घरेलू हिंसा का अपराध घटित हुआ है या नहीं इस प्रश्न के निर्धारण हेतु प्रकरण के सभी तथ्यों और परिस्थितियों को विचारण से लिया जाएगा। प्रत्यार्थी के कोई भी कार्य कृति कार्य लोप या आचरण धारा 3 के अधीन घरेलू हिंसा का अपराध घटित करते हैं या नहीं धारा तीन में परिभाषित कार्यों तथा प्रकरण के समस्त तथ्यों और परिस्थितियों का गहनता से विचार के पश्चात ही नियत किया जाएगा।

    घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत इस प्रकार घरेलू हिंसा के अत्यंत परिभाषा प्रस्तुत की गई है और महिलाओं से संबंधित ऐसे सभी कार्यों को इस परिभाषा के अंतर्गत सम्मिलित कर दिया गया है जिनके माध्यम से महिलाओं का शोषण किया जाता है।

    इस अधिनियम के अंतर्गत महिलाओं से तात्पर्य केवल शादीशुदा महिलाएं नहीं ही नहीं है अपितु वे सभी महिलाएं हैं जो एक कुटुंब में रह रही हैं। उनके साथ ऐसी घरेलू हिंसा उनके पिता पति भाई किसी भी पुरुष द्वारा की जा सकती है।

    बाद के प्रकरणों में भारत के उच्चतम न्यायालय ने लिव-इन में साथ में रह रहे प्रेमी जोड़ों को भी घरेलू हिंसा अधिनियम के अंतर्गत माना है क्योंकि इस प्रकार के प्रेमी जोड़े प्रेम पूर्वक साथ में रहते हैं। इनके बीच महिला को पुरुष द्वारा किसी प्रकार से पीड़ित किया गया तो उसे भी घरेलू हिंसा माना जा सकता है।

    घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत दी गई कुछ विशेष शब्दों की परिभाषाएं

    इस आलेख के अंतर्गत घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम 2005 के अंतर्गत दिए गए कुछ विशेष शब्दों की परिभाषाओं का उल्लेख किया जा रहा है तथा साधारण भावबोध में इन परिभाषों को समझाने का प्रयास किया जा रहा-

    व्यथित व्यक्ति

    अधिनियम की धारा 2 (क) व्यथित व्यक्ति की परिभाषा प्रस्तुत करती है। इस परिभाषा के अनुसार कोई भी स्त्री जो प्रत्यार्थी के साथ घरेलू संबंध रखती है या रखती रही है पूर्व प्रत्याशी द्वारा घरेलू हिंसा के उसके साथ किसी भी कृत्य को करने का अभिकथन करती है व्यथित व्यक्ति कहलाती है। अर्थात इस अधिनियम के अंतर्गत व्यथित व्यक्ति वह महिला है जो एक घर के अंदर परिवार के रूप में सदस्यों के साथ रह रही है।

    घरेलू नातेदारी

    अधिनियम की धारा 2(च) के अनुसार ऐसे दो व्यक्तियों के मध्य नातेदारी घरेलू नातेदारी होती है जो किसी भी समय बिंदु पर साथ रह रहे हो या कौटुंबिक गृह में रह रहे हो जब वह समररक्तता का विवाह या विवाह जैसे संबंधों से या दत्तक ग्रहण से संबंधित हैं या ऐसे परिवार जन या नातेदार हैं जो संयुक्त परिवार कुटुंब के रुप में साथ रहने वाले सब परिवार के सदस्य हैं।

    धारा 2 (च) के अनुसार दो व्यक्तियों के मध्य घरेलू नातेदारी की अवधारणा निम्नलिखित परिस्थितियों में की जाएगी-

    दो व्यक्ति के मध्य संबंध जो कि,

    समररक्तता, विवाह या विवाह जैसे संबंध या दत्तक ग्रहण या परिवार के साथ रहने वाले कुटुंबी है सदस्य के कारण है और वह किसी भी समय बिंदु पर साथ रह रहे हो या साझी गृहस्थी में निवास किए हो।

    घरेलू नातेदारी की इतनी विस्तृत परिभाषा है जिसके अंतर्गत किसी महिला के साथ में पारिवारिक संबंध में साथ रहने वाला कोई भी नाता आ जाता है। इसके अंतर्गत पिता और पुत्री के बीच का नाता भी है।

    यदि पिता और पुत्री साथ रह रहे हैं तो इसे घरेलू नातेदारी मानी जाएगी तथा पिता किसी प्रकार का हिंसात्मक व्यवहार करता है तब भी घरेलू हिंसा अधिनियम इस मामले में प्रयोज्य हो जाएगा।

    दहेज

    दहेज हमारे समाज की कलंकित प्रथा रही है जिसके प्रतिषेध के प्रयास निरंतर किए जाते रहे हैं। घरेलू हिंसा अधिनियम के अंतर्गत भी दहेज के प्रतिबंध के प्रयास किए गए हैं।

    इस अधिनियम के अंतर्गत दहेज की परिभाषा धारा 2 (ज) के अंतर्गत दी गई है जिसके अनुसार-

    घरेलू हिंसा अधिनियम के अंतर्गत दहेज का वही अर्थ होगा जो इसे दहेज प्रतिषेध अधिनियम 1961 की धारा (2)में प्रदान किया गया है। उस परिभाषा के अनुसार दहेज से तात्पर्य-

    विवाह के एक पक्ष द्वारा दूसरे पक्ष के लिए।

    विवाह के किसी पक्ष के माता-पिता या अन्य व्यक्ति द्वारा विवाह के दूसरे पक्ष से किसी अन्य व्यक्ति के लिए।

    विवाह करने के संबंध में विवाह के समय या उसके पूर्व या पश्चात किसी भी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष दी जाने वाली दी जाने के लिए प्रत्यक्ष प्रतिज्ञा की गई किसी संपत्ति या मूल्यवान प्रतिभूति से है किंतु इसमें उन व्यक्तियों की दशा में मेहर सम्मिलित नहीं होगा जिन पर मुस्लिम व्यक्तिगत विधि शरीयत लागू होता है।

    प्रत्यार्थी

    घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम 2005 की धारा 2 (थ) के अनुसार प्रत्यार्थी वह वयस्क पुरुष है जो व्यथित व्यक्ति के साथ धारा 2 (च) का में वर्णित घरेलू नातेदारी में रहा है या घरेलू नाता रखता है जिसके विरुद्ध व्यथित व्यक्ति द्वारा इस अधिनियम के प्रावधानों के अधीन अनुतोष की मांग की जा चुकी है।

    इसके अलावा व्यथित पत्नियां विवाह की प्रकृति नातेदारी में रहने वाली स्त्री भी पति या पुरुष भागीदार के नातेदारों के विरुद्ध कोई शिकायत इस उद्देश्य से प्रस्तुत कर सकेगी कि उसे इस अधिनियम के अंतर्गत अनुतोष प्रदान किया जाए।

    ऐसे आवेदक को भी व्यथित व्यक्ति मान कर जिसने आवेदन किया गया है उसे प्रार्थी माना जाएगा। अर्थात किसी महिला के ससुराल पक्ष की महिलाएं भी इस अधिनियम के अंतर्गत प्रत्यार्थी हो सकती हैं।

    साझी गृहस्थी

    साझी गृहस्थी से आशय ऐसे कौटुंबिक घर जिसमें व्यथित व्यक्ति घरेलू नातेदारी में या अकेला प्रत्यार्थी के साथ रहता है या किसी भी प्रक्रम में रह चुका है।

    ऐसा कौटुंबिक घर जो कि व्यथित व्यक्ति एवं प्रत्यार्थी दोनों पर संयुक्त स्वामित्व या किराएदारी में धारित की गई हो।

    व्यथित व्यक्ति अथवा प्रत्यार्थी में से किसी द्वारा ऐसी ग्रह संपत्ति या स्वामी या किराएदार की भांति धारित की गई हो तथा जिस के संबंध में दोनों को संयुक्त रूप से अप्रत्यक्ष रूप से स्वामित्व या हित प्राप्त हो।

    इसमें ऐसा कौटुंबिक घर शामिल है जो संयुक्त कुटुंब से संबंध रखता हो जिसका प्रत्यार्थी एक सदस्य है।

    इस संदर्भ में साझी गृहस्थी में प्रत्यार्थी या व्यथित व्यक्ति का अधिकार स्वत्व या हित होना कोई प्रभाव नहीं डालता है।

    घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 का अध्ययन करने से यह बात स्पष्ट हो जाती है कि कोई भी महिला जो किसी की नाते के अंतर्गत किसी घर में रह रही है उसके प्रति घर के सदस्यों द्वारा किसी प्रकार की कोई हिंसा की जाती है या उसके प्रति किसी प्रकार का बुरा आचरण किया जाता है ऐसी स्थिति में उस महिला को संरक्षण प्राप्त होता है।

    इस अधिनियम के अंतर्गत केवल विवाहित स्त्रियों को ही संरक्षण नहीं है अपितु हर प्रकार की हर आयु की स्त्री को अपने घर में संरक्षण प्रदान किया गया है। इस अधिनियम का उद्देश्य महिलाओं को उनके घर में सुरक्षा देना है अर्थात भारतीय परिक्षेपमें महिलाएं उनके घर में भी सुरक्षित नहीं है।

    घर में भी उनके प्रति किसी न किसी प्रकार से हिंसा होती रहती है। इस अधिनियम के माध्यम से घर के लोगों द्वारा की जाने वाली हिंसा को प्रतिषेध करने का प्रयास किया गया है।

    संरक्षण अधिकारी की नियुक्ति

    राज्य सरकार प्रत्येक जिले में ऐसी संख्या में संरक्षण अधिकारी नियुक्त करेगी जैसा वह आवश्यक समझे। नियुक्ति अधिसूचना जारी करके ऐसी नियुक्ति की जाएगी ऐसे क्षेत्रों की सूचना अधिसूचना के माध्यम से दी जाएगी जिसके भीतर संरक्षण अधिकारी इस अधिनियम के अधीन उसको प्रदत शक्तियों का अनुप्रयोग करेगा और कर्तव्यों का निर्वाहन करेगा।

    ऐसे संरक्षण अधिकारी की नियुक्ति अधिनियम की धारा 8 के अंतर्गत की जाएगी। संरक्षण अधिकारी यथासंभव महिलाएं होंगी और ऐसी योजनाएं और अनुभव जैसा कि तय किया जाए धारण करेंगे। संरक्षण अधिकारी और उसके अधीनस्थ अधिकारी की सेवा के निबंधन एवं शर्तें ऐसी होंगी जैसी सरकार विहित करें।

    घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 की धारा 5 में ऐसे पुलिस अधिकारी, संरक्षण अधिकारी, सेवा प्रदाता और मजिस्ट्रेट के कर्तव्यों का वर्णन है जो-

    घरेलू हिंसा की शिकायत प्राप्त कर चुका है।

    अन्यथा घरेलू हिंसा की घटना वाले स्थान पर उपस्थित हैं।

    जब घरेलू हिंसा की घटना कि उसे रिपोर्ट की जाए।

    तब उसके कर्तव्य होंगे कि वह व्यथित व्यक्ति को सूचित करना कि उसे निम्नलिखित में से एक या एक से अधिक आदेश के रूप में अनुतोष प्राप्त करने के लिए आवेदन करने का अधिकार है।

    इस अधिनियम के अधीन संरक्षण का आदेश।

    मौद्रिक अनुतोष के लिए आदेश।

    अभिरक्षा आदेश।

    निवास आदेश।

    प्रतिकर का आदेश।

    इस अधिनियम के अंतर्गत केवल पुलिस अधिकारी को ही सभी क्षेत्र अधिकार नहीं दिए गए हैं अपितु इस अधिनियम के अंतर्गत पुलिस अधिकारी संरक्षण अधिकारी सेवा प्रदाता और मजिस्ट्रेट इन सभी को कर्तव्य अधिरोपित किए गए है।

    इस आलेख के अंतर्गत घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम 2005 का एक सामान्य परिचय प्रस्तुत किया गया है। अगले आलेख के अंतर्गत इस अधिनियम के अंतर्गत दिए जाने वाले आदेशों तथा उनसे संबंधित प्रक्रिया का उल्लेख किया जाएगा जिन आदेशों को व्यथित महिला के आवेदन पर प्रत्यार्थी के विरुद्ध दिया जाता है।

    Next Story