अंतरराष्ट्रीय संधि और उल्लंघन के प्रभाव: International Law
Himanshu Mishra
13 May 2025 3:13 PM IST

अंतरराष्ट्रीय संधियाँ (Treaties) देशों के बीच विश्वास और सहयोग की नींव होती हैं। जब देश अपनी संधि के नियमों (Rules) और शर्तों (Conditions) का पालन करते हैं, तो विश्व में स्थिरता (Stability) और शांति (Peace) बनी रहती है। लेकिन यदि कोई राज्य (State) अपनी संधि का उल्लंघन (Violation) करता है, तो इससे कानूनी (Legal), राजनीतिक (Political) और आर्थिक (Economic) समस्याएँ पैदा होती हैं।
इस लेख में हम सरल हिंदी में समझेंगे कि संधि क्या होती है, संधि उल्लंघन क्यों होता है, और अंतरराष्ट्रीय कानून (International Law) के तहत इसके क्या प्रभाव होते हैं। (Introduction)
अंतरराष्ट्रीय संधि क्या है (What Is an International Treaty)
अंतरराष्ट्रीय संधि एक लिखित समझौता (Agreement) होता है जिसे दो या अधिक राज्य आपस में करते हैं। इसे कभी-कभी कन्वेंशन (Convention), प्रोटोकॉल (Protocol) या एग्रीमेंट (Agreement) भी कहा जाता है।
संधि के माध्यम से राज्य एक-दूसरे के साथ व्यापार (Trade), मानवाधिकार (Human Rights), पर्यावरण संरक्षण (Environmental Protection), और सुरक्षा (Security) जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर नियम और जिम्मेदारियाँ तय करते हैं। जब एक राज्य संधि पर हस्ताक्षर (Signature) करता है और फिर उसे स्वीकृति (Ratification) देता है, तो वह देश कानूनी रूप से उस संधि का पालन करने का वचन देता है। (Treaty)
संधियाँ कैसे बनती हैं (How Treaties Are Made)
संधि बनाने की प्रक्रिया में पहले राज्यों की बातचीत (Negotiation) होती है। इस दौरान वे संधि के हर शब्द (Text) और शर्त पर चर्चा करते हैं। जब सभी समझौते पर सहमत हो जाते हैं, तो संधि पर हस्ताक्षर किए जाते हैं। हस्ताक्षर का अर्थ है कि देश संधि को देखकर अपनी सरकार या संसद (Parliament) में स्वीकृति प्रक्रिया (Domestic Approval) शुरू करेगा।
संसद में बहस और मतदान के बाद यदि संधि को मंजूरी मिलती है, तो वह देश औपचारिक रूप से संधि को रैटिफाई (Ratify) कर देता है। रैटिफिकेशन के बाद संधि लागू (Enter into Force) हो जाती है। (Ratification)
“पैक्टा सन्त सर्वान्दा” सिद्धांत (Principle of Pacta Sunt Servanda)
अंतरराष्ट्रीय कानून का मूल सिद्धांत है कि संधियाँ निभाई जानी चाहिए। इसे लैटिन भाषा में “पैक्टा सन्त सर्वान्दा” कहते हैं, जिसका मतलब है “संधियाँ निभाई जानी चाहिए।” इस सिद्धांत के तहत, एक बार जब कोई राज्य संधि का पक्ष बन जाता है, तो उसे पूरी ईमानदारी (Good Faith) से अपने वादे पूरा करने होते हैं।
यदि किसी कारणवश वह देश अपनी जिम्मेदारी नहीं निभा सकता, तो उसे अन्य पक्षों (Other Parties) से बात करके संधि में बदलाव (Amendment) या अस्थायी रूप से निलंबन (Suspension) का औपचारिक सहमति लेना चाहिए। (Pacta Sunt Servanda)
संधि उल्लंघन के प्रकार (Types of Treaty Violations)
राज्य कई तरीकों से संधि का उल्लंघन कर सकता है। पहला है पूर्ण अभाव (Outright Non-performance), जहाँ देश अपनी संधि की शर्तों का बिलकुल पालन नहीं करता। दूसरा है आंशिक कार्यान्वयन (Partial Performance), जहाँ कुछ शर्तें पूरी करता है पर कुछ नहीं। तीसरा एक तकनीकी उल्लंघन (Technical Breach) है, जब रैटिफिकेशन के समय दी गई आरक्षणें (Reservations) संधि के उद्देश्य (Object) या प्रयोजन (Purpose) से मेल नहीं खातीं। (Violation)
उल्लंघन के कारण (Causes of Treaty Violations)
कई बार राजनीतिक बदलाव (Political Change) के कारण नया नेतृत्व पुरानी संधियों को महत्व नहीं देता। आर्थिक दबाव (Economic Pressure) जैसे रोजगार या विकास की चिंता भी उल्लंघन का कारण बनती है।
कुछ राज्य मानते हैं कि संधि का निर्माण गलत तरीके (Invalid Conclusion) से हुआ था, जैसे धोखाधड़ी (Fraud) या जबरदस्ती (Coercion)। आपातकालीन स्थिति (Emergency Situation) जैसे युद्ध (Armed Conflict) या गंभीर आर्थिक संकट (Economic Crisis) में भी राज्य अपनी संधिगत जिम्मेदारियों से दूर हो सकते हैं। (Causes)
कानूनी परिणाम (Legal Consequences)
जब कोई राज्य संधि का उल्लंघन करता है, तो वह 'अंतरराष्ट्रीय रूप से गलत कार्य' (Internationally Wrongful Act) करता है। इसके तहत उस राज्य पर 'राज्य उत्तरदायित्व' (State Responsibility) लगती है। यानी उसे पूरे नुकसान की भरपाई (Reparation) करनी होगी।
इसमें शामिल हो सकते हैं: उल्लंघन बंद करना (Cessation), दोहराए न जाने की गारंटी (Guarantees of Non-Repetition), मूल स्थिति बहाल करना (Restitution), क्षतिपूर्ति (Compensation), और संतोष (Satisfaction) जैसे माफी (Apology) या अन्य नैतिक उपाय (Moral Remedy)। (State Responsibility)
क्षतिपूर्ति के उपाय (Remedies Available to Injured States)
उल्लंघन का शिकार राज्य (Injured State) पहले कूटनीतिक वार्ता (Diplomatic Negotiation) या मध्यस्थता (Mediation) कर सकता है। यदि इससे समाधान नहीं निकलता, तो संधि में तय विवाद निपटान (Dispute Resolution) की प्रक्रिया शुरू होती है जैसे आर्बिट्रेशन (Arbitration) या अंतरराष्ट्रीय अदालतों (International Courts) में मामला उठाना। उदाहरण के लिए, विश्व व्यापार संगठन (WTO) के अंतर्गत व्यापार विवादों को सुलझाया जाता है।
यदि इन कानूनी उपायों से भी संतोष नहीं मिलता, तो शिकार राज्य नियंत्रित प्रतिकार (Countermeasures) अपना सकता है, जैसे सीमित शुल्क वृद्धि (Tariffs) या व्यापार प्रतिबंध (Trade Restrictions)। (Compensation)
अंतरराष्ट्रीय न्यायालयों और त्रिब्यूनलों की भूमिका (Role of International Courts and Tribunals)
अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (International Court of Justice) और विभिन्न त्रिब्यूनल (Tribunal) संधियों की व्याख्या (Interpretation) और विवादों का निपटारा करते हैं।
वे संधि की भाषा (Text), परिप्रेक्ष्य (Context), उद्देश्य (Object) और प्रयोजन (Purpose) को ध्यान में रखकर फैसला सुनाते हैं। ऐसे निर्णय संधि के अस्पष्ट (Ambiguous) प्रावधानों को स्पष्ट (Clarify) करते हैं और अंतरराष्ट्रीय कानून में स्थिरता (Consistency) बनाए रखते हैं। (Tribunals)
राजनैतिक और कूटनीतिक प्रतिक्रिया (Political and Diplomatic Responses)
कानूनी उपायों के अलावा, राज्य राजनैतिक तरीके से भी प्रतिक्रिया देते हैं। वे प्रेस रिलीज (Protest), संयुक्त राष्ट्र (United Nations) में प्रस्ताव (Resolution) या विशेष सत्र बुलाकर उल्लंघन की निंदा (Condemnation) कर सकते हैं।
आर्थिक प्रतिबंध (Economic Sanctions) जैसे व्यापार या वित्तीय पाबंदियाँ उल्लंघनकारी राज्य पर दबाव (Pressure) डालने में मदद करती हैं। साथ ही मीडिया और जनमत (Public Opinion) भी देशों को संधि पालन के लिए प्रेरित करते हैं। (Sanctions)
अंतरराष्ट्रीय संधियाँ (Treaties) देशों के बीच विश्वास और नियमबद्धता (Predictability) का आधार हैं। जब कोई राज्य संधि का उल्लंघन करता है, तो अंतरराष्ट्रीय कानून राज्य उत्तरदायित्व (State Responsibility) का ढांचा प्रदान करता है, जिसमें कानूनी, राजनीतिक और कूटनीतिक उपाय शामिल हैं।

