भारतीय दंड संहिता (IPC) भाग 24 : बंधुआ मजदूरी और दास बनाने तथा व्यक्तियों को खरीदने बेचने के अपराध
Shadab Salim
30 Dec 2020 3:42 PM IST
किसी समय मनुष्यों को खरीद बेच कर दस बनाने जैसी प्रथा प्रचलित रही थी। मनुष्य खरीदे और बेचे जाते थे, एक समय था जब राजा महाराजा जमीदार और साहूकार लोग निर्धन और कमजोर लोगों को अपने यहां दास के रूप में रख लिया करते थे। जैसा कि हमें स्वतंत्रता पूर्व के लेखकों की कहानियों में भी यह प्राप्त होता है। थोड़े से कर्ज के रुपयों के लिए लोगों को सारे जीवन के लिए दास बना लिया जाता था, उन से बलपूर्वक श्रम और बेगार लेते थे।
लोगों पर अत्याचार किया जाता था। भारत का संविधान समानता तथा प्रतिष्ठा के जीवन का उल्लेख करता है। भारत के संविधान में व्यक्ति को प्रतिष्ठा का अधिकार भी दिया है तथा समानता का अधिकार भी दिया है। किसी व्यक्ति से कार्य लिया जाता है तो उस कार्य को लिए जाने के लिए प्रक्रिया निर्धारित की गई है जिसके अनुसार ही किसी व्यक्ति से काम करवाया जा सकता है। बंधुआ मजदूर बनाकर काम करवाना व्यक्ति को दास बनाकर अपने पास रख लेना भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत दंडनीय अपराध है। हालांकि इस प्रकार के अपराध अधिक देखने को नहीं मिलते हैं परंतु फिर भी कहीं न कहीं, दूर सुदूर के इलाकों में मजदूरी देखने को मिल ही जाती है जहां पर थोड़े से रुपये के लिए व्यक्तियों से जीवन भर गुलामी करवाई जाती है। ग्रामीण क्षेत्रों में जहां कहीं भी यह व्यवस्था थोड़ी रह गई है भारत के संविधान द्वारा समाप्त करने के प्रयास किए गए। योजनाएं चलाकर इस प्रकार से बलपूर्वक मजदूरी को समाप्त किया गया है।
अनुच्छेद 23 मनुष्यों का क्रय विक्रय बेगार और अन्य किसी प्रकार के बलपूर्वक श्रम कराने को प्रतिषिद्ध करता है और उसी उपबंध के उल्लंघन को एक दंडनीय अपराध घोषित करता है। अनुच्छेद 24, 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों को किसी कारखाने खान किसी अन्य जोखिम के कामों में मजदूरी के रूप में कार्य करने को प्रतिबंधित करता है। बेगार में व्यक्ति अपनी इच्छा के विरुद्ध कार्य करता है न्यायालयों के सामने जब जब भी ऐसे मामले आए उन्होंने उन्हें असंवैधानिक घोषित किया।
चंद्रा बनाम स्टेट ऑफ राजस्थान 1959 के एक प्रकरण में न्यायालय में गांव के सरपंच के उस आदेश को जिसके अनुसार प्रत्येक परिवार से एक व्यक्ति को गांव के तालाब पर काम करना आवश्यक था और न आने वालों के लिए सजा और जुर्माना भी था भारत के संविधान के अनुच्छेद 23 (1) के विरुद्ध घोषित किया गया।
भारतीय दंड संहिता 1860 के उपबंधों के अनुसार किसी भी व्यक्ति से बलपूर्वक काम नहीं लिया जा सकता तथा उसे काम करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। भारत की कोई भी प्रक्रिया किसी व्यक्ति को बलपूर्वक कार्य करने के लिए बाध्य नहीं कर सकती है, यदि उसके द्वारा पूर्व में कोई समझौता किया गया है इस प्रकार का समझौता भी भारतीय संविदा अधिनियम के नियमों के अनुसार होना चाहिए। यदि कोई समझौता भारतीय संविदा अधिनियम के नियमों के अनुसार नहीं है तो इस प्रकार का समझौता अवैध होगा।
इस आलेख के अंतर्गत भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत घोषित किए गए ऐसे अपराधों का उल्लेख किया जा रहा है जो किसी व्यक्ति को गुलाम बनाते हैं हैं तथा किसी व्यक्ति से बलपूर्वक कोई कार्य लेते हैं तथा व्यक्तियों की खरीद-फरोख्त करते हैं और उनका बाजार लगाते हैं।
व्यक्ति का दुर्व्यापार (धारा- 370)
भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत यह धारा दंड विधि संशोधन अधिनियम 2013 की धारा 8 द्वारा धारा 370 के स्थान पर प्रतिस्थापित की गई है।
इस धारा के अनुसार जो कोई शोषण के उद्देश्य से धमकियों का प्रयोग कर बल या किसी अन्य प्रकार से कपट का प्रयोग करके व्यक्ति का दुर्विनियोग करके जिसके अंतर्गत ऐसे किसी व्यक्ति की जो भर्ती किए गए, परिवहन किए गए व्यक्तियों पर नियंत्रण रखता है, सहमति प्राप्त करने के लिए भुगतान के फायदे देना जिस प्रकार भी आता है दंडनीय अपराध घोषित किया जाता है।
यह धारा स्पष्ट रूप से यह उल्लेख करती है कि किसी व्यक्तियों से धमकियों से या फिर बल से या फिर असम्यक असर से या कपट से या अपनी शक्तियों का दुरुपयोग करके उसके शरीर का कोई शोषण किया जाता है तो इसे दंडनीय अपराध घोषित किया गया है।
शोषण शब्द के अंतर्गत शरीर शोषण का कोई कृत्य या किसी प्रकार का कोई मानसिक शोषण , दासता के समान व्यवहार आदि से संबंधित बात या अंगों का बलात अपसरण भी है।
दुर्व्यापार किसी भी प्रकार से मान्यता प्राप्त नहीं है यदि दुर्व्यापार के अंदर किसी मनुष्य ने किसी प्रकार की कोई सहमति दी है तो ऐसी सहमति का कोई अर्थ नहीं होता है।
जहां अपराध में 1 से अधिक व्यक्तियों का दुर्व्यापार अन्तर्विलित होता है वहां कठोर कारावास से जिसकी अवधि 10 वर्ष से कम की नहीं होगी और जो आजीवन कारावास तक का हो सकता है दंडित किया जाएगा जुर्माने से भी दंडित होगा।
(धारा-370 ए)
भारतीय दंड संहिता की धारा 370 ए दुर्व्यापार के कारण किए गए शोषण पर दंड का निरूपण करती है। यदि किसी व्यक्ति का दुर्व्यापार किया जाता है और ऐसे दुर्व्यापार के कारण उसका शोषण किया जाता है तथा वह व्यक्ति कम से कम 5 वर्ष तक के दंड का प्रावधान किया गया है तथा अधिकतम 7 वर्ष तक की अवधि से दंडित किया जा सकता है।
गुलामों को खरीदना बेचना (धारा-371)
भारतीय दंड संहिता की धारा 371 व्यक्तियों को गुलामों के रूप में खरीदने और बेचने को अपराध घोषित करती है। यदि कोई व्यक्ति इस प्रकार व्यक्तियों का आयात करेगा निर्यात करेगा, खरीदेगा बेचेगा या उनका दुर्व्यापार या व्यवहार करेगा वह आजीवन कारावास तक के दंड से दंडित किया जाएगा, इस धारा के अंतर्गत दंड की अवधि 10 वर्ष तक भी हो सकती है।
किसी व्यक्ति को जो अवयस्क है वेश्यावृत्ति के प्रयोजन के लिए बेचना (धारा-372)
भारतीय दंड संहिता की धारा 372 किसी व्यक्ति को जिसकी आयु 18 वर्ष से कम है वेश्यावृत्ति के उद्देश्य से बेचता है वह 10 वर्ष तक के कारावास से दंडित किया जाएगा। आज भी अनेक ही बालिकाएं वेश्यावृत्ति के उद्देश्य से खरीदी और बेची जाती पुलिस द्वारा समय-समय पर पकड़ी जाती हैं, जिस पर बालिकाओं को वेश्यावृत्ति के उद्देश्य से खरीदा और बेचा जाता है तथा यह गंभीर अपराध है। इस अपराध को रोकने के उद्देश्य से ही भारतीय दंड संहिता की धारा 372 में वेश्यावृत्ति को समाप्त करना तथा वेश्यावृत्ति में बालिकाओं को बेचने के कृत्य को भंग करने के लिए प्रावधान किए गए।
वेश्यावृत्ति के प्रायोजन से किसी व्यक्ति को खरीदना
भारतीय दंड संहिता की धारा 373 किसी ऐसे व्यक्ति को खरीदने को दंडनीय करार देती है जो 18 वर्षों से कम का है तथा उसे वेश्यावृत्ति के उद्देश्य से खरीदा जा रहा है। बालकों को खरीद कर उनसे वेश्यावृत्ति कराई जाना किसी समय बड़ा धंधा रहा है। आज भी बालकों को खरीद कर उनसे वेश्यावृत्ति जैसे अपराध किए जा रहे हैं। दंड सहिंता की धारा 373 इस प्रकार से किसी बालक को खरीद कर वेश्यावृत्ति के दलदल में धकेल देने को दंडनीय अपराध करार देती है तथा धारा 373 के अंतर्गत इस प्रकार के अपराध का दंड का प्रावधान किया गया है।
वेश्यावृत्ति एक सामाजिक बुराई है जिसे रोकने के लिए विविध विधियां बताई गई है। उनमें से एक यह भी है। हालांकि वेश्यावृत्ति को प्रतिबंधित करने के लिए दूसरे भी अधिनियम है जो समाज में इस बुराई को समाप्त कर रहे हैं परंतु भारतीय दंड संहिता के प्रावधान प्राचीन होने के साथ हर समय में सार्थक भी हैं। दंड संहिता की धारा 372, 373 अवयस्क को वेश्यावृत्ति के लिए क्रय-विक्रय को प्रतिषिद्ध करती है।
इस धारा की संरचना के लिए कुछ बातों का होता अपेक्षित है। जैसे कि किसी व्यक्ति का विक्रय किया जाना, भाड़े पर दिया जाना या उसका अन्यथा शोषण किया जाना।
ऐसे व्यक्ति का 18 वर्ष से कम आयु का होना।
ऐसे विक्रय किए जाने वाले का आशय वेश्यावृत्ति या किसी अन्य व्यक्ति के साथ अवैध लैंगिक संबंध या कोई विधि विरुद्ध अनैतिक प्रयोजन होना।
गोवर्धन कालिदास के प्रकरण में कहा गया है इस धारा की प्रयोज्यता के लिए यह आवश्यक नहीं है कि अधिपत्य किसी अन्य व्यक्ति से प्राप्त किया गया हो अर्थात धारा 376 के अंतर्गत दोषसिद्धि के लिए दो पक्षकारों के बीच संव्यवहार का होना आवश्यक नहीं।
कम्मू के पुराने वाद में अभिनिर्धारित किया गया था की यह धारा 18 वर्ष से कम आयु के किसी भी नर और नारी पर लागू होती है इसलिए इस धारा में व्यक्ति शब्द का प्रयोग किया गया है। इस प्रकार की धारा विवाहित या अविवाहित किसी भी महिला पर लागू होती है चाहे भले ही ऐसी महिला विक्रय के पूर्व दुराचारी जीवन व्यतीत कर रही हो।
एक अन्य प्रकरण में यह कहा गया था कि इस धारा का प्रवर्तन नृतक जाति की बालिका पर भी होता है अर्थात इस धारा के अंतर्गत बचाव पक्ष यह नहीं कह सकता कि कोई महिला दुराचारी है या फिर कोई महिला नर्तक है तो उसका तो स्वभाव इस प्रकार का है।
इन्हीं प्रयोजन हेतु किसी बालिका को देवदासी के रूप में किसी देवालय में समर्पित करना भी इस धारा के अंतर्गत दंडनीय है। इस धारा में दोनों स्पष्टीकरण अपराध की परिसीमा को विस्तार प्रदान करते हैं। स्पष्टीकरण प्रथम में प्रयुक्त वेश्यावृत्ति शब्द का तात्पर्य केवल प्राकृतिक संभोग ही नहीं है इसके अंतर्गत व्यभिचार के समस्त कृत्य सम्मिलित है। इसका तात्पर्य धनराशि के बदले किसी बालिका की पवित्रता का समर्पण है।
धारा 373 के अंतर्गत जो स्पष्टीकरण दिया गया है उसके अनुसार धारणा की जाएगी। इस स्पष्टीकरण के अंतर्गत यदि किसी वेश्या द्वारा इस प्रकार किसी बालिका का अधिपत्य प्राप्त किया जाता है जो वेश्यालय चलाती हो ऐसे वेश्यालय का प्रबंध करती हो तो यहां पर उपधारणा की जाती है कि किसी बालिका को वेश्यावृत्ति के उद्देश्य से ही खरीदा गया होगा।
बलपूर्वक श्रम (धारा-374)
भारतीय दंड संहिता की धारा 376 बलपूर्वक श्रम को प्रतिबंधित करती है। इस धारा के अनुसार यदि किसी व्यक्ति से विधि विरुद्ध तरीके से कोई बलपूर्वक श्रम लिया जाता है, बलपूर्वक कोई कार्य लिया जाता है जो उसकी इच्छा के विरुद्ध है दंडनीय करार दिया गया है। यदि इस धारा के अनुसार इस प्रकार के अपराध को करने के परिणामस्वरूप 1 वर्ष तक के दंड के कारावास का निर्धारण किया गया है।
इस धारा के अंतर्गत द्वारा बातें अपेक्षित है-
किसी व्यक्ति को विधि विरुद्ध विवश करना।
ऐसे विधि विरुद्ध विवश करना उसको उसकी इच्छा के विरुद्ध श्रम करने के लिए बाध्य करना।
भारत का संविधान का अनुच्छेद 23 भी इसी भावना की पुष्टि करता है। इस धारा में प्रयुक्त श्रम शब्द का तात्पर्य शारीरिक और मानसिक दोनों प्रकार के श्रम से है अर्थात किसी व्यक्ति को मानसिक श्रम करने के लिए भी बाध्य नहीं किया जा सकता तथा ऐसा बाध्य उसकी इच्छा के विरुद्ध नहीं होना चाहिए। यदि किसी समझौते के अधीन किसी व्यक्ति से काम लिया जा रहा है तो इस प्रकार का समझौता भारतीय संविदा अधिनियम 1872 के प्रावधानों के अनुसार होना चाहिए।