भारतीय दंड संहिता (IPC) भाग 22 : मारपीट के अपराध के अंतर्गत गंभीर चोट पहुंचाने पर क्या हैं प्रावधान

Shadab Salim

28 Dec 2020 5:11 AM GMT

  • भारतीय दंड संहिता (IPC) भाग 22 :  मारपीट के अपराध के अंतर्गत गंभीर चोट पहुंचाने पर क्या हैं प्रावधान

    पिछले आलेख में मारपीट के दौरान साधारण चोट पहुंचाने पर होने वाले अपराधों के संबंध में उल्लेख किया गया था, इस आलेख के अंतर्गत स्वेच्छा से गंभीर चोट कारित करने के संबंध में उल्लेख किया जा रहा है।

    गंभीर चोट

    भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत धारा 320 गंभीर चोट की परिभाषा प्रस्तुत कर रही है। दंड सहिंता सभी प्रकार की चोट को गंभीर चोट नहीं मानती है, गंभीर चोट के लिए एक विशेष प्रारूप तैयार किया गया है जिसके अंतर्गत ही किसी चोट को गंभीर चोट माना जाता है।जब कोई चोट इस प्रारूप के अंतर्गत होती है तब वह गंभीर चोट होती है अन्यथा वह साधारण चोट कहलाती है। साधारण चोट के संबंध में अपराधों का उल्लेख पिछले आलेख पर किया जा चुका है।

    दंड संहिता की धारा 320 के अंतर्गत गंभीर चोट की विस्तृत परिभाषा प्रस्तुत की गई है। आठ प्रकार के ऐसे मामले बताए गए हैं जिनमें कोई चोट गंभीर चोट होती है अर्थात यदि किसी क्षति में चोट इस प्रकार की होती है जो इन 8 विषयों के अंतर्गत आती है तो वह चोट गंभीर चोट हो जाती है। गंभीर चोट के लिए भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत साधारण चोट से अधिक दंड का प्रावधान है।जितने अपराध साधारण चोट के अंतर्गत किए जाते हैं उन में गंभीर चोट के अंतर्गत किए जाने वाले अपराधों की अपेक्षा कम दंड दिया जाता है। आइए जानते हैं धारा 320 के अंतर्गत कोई चोट गंभीर चोट कब होती है और वह 8 विषय कौन से है।

    1. यौन अंगों को क्षतिग्रस्त करना

    किसी साधारण चोट को गंभीर चोट होने के लिए पहला विषय चोट ऐसी हो कि यौन अंगों को क्षति पहुंचाई गई हो। किसी पुरुष को उसकी पुरुष शक्ति से वंचित करना उसके यौन अंगों को नुकसान पहुंचाना घोर उपहति है। सहिंता में इसके लिए पुनस्तहरण शब्द दिया गया।

    शब्द के अंतर्गत महिला और पुरुष दोनों सम्मिलित हैं, क्योंकि दंड संहिता के अंतर्गत जहां जहां पुरुष बोधक शब्द है, वहां पर स्त्रियों को भी संबोधित किया जा सकता है। यौन अंगों को क्षतिग्रस्त करना अर्थात किसी पुरुष के अंडकोष दबा देना या उसके अंडकोष को दबाकर सदा के लिए दुर्बल बना देना, किसी घातक हथियार के द्वारा लिंग को क्षति पहुंचाई जाना जिससे किसी पुरुष में यौन संबंधी बीमारियों का जन्म हो जाए। पसे ग्रस्त होकर भारत की महिलाओं द्वारा पुरुषों के अंडकोष को दबाकर उन्हें क्षति पहुंचाए जाने के अनेक प्रकरण प्राप्त होते हैं

    2 नेत्र दृष्टि विच्छेद

    आंखों को किसी प्रकार की चोट पहुंचाई जाना भारतीय दंड संहिता की धारा 320 के अंतर्गत गंभीर चोट होता है। नेत्र की दृष्टि को स्थाई रूप से विच्छेद कर देना या फिर किसी एक आंख को फोड़ दिया जाना या फिर कोई ऐसी चोट पहुंचाई जाना जिससे एक नेत्र की रोशनी समाप्त हो जाए। जीवन के लिए प्रकाश अति आवश्यक है यदि किसी व्यक्ति के कोई कार्य द्वारा नेत्र को ही दूषित कर दिया जाए तथा उसके जीवन को अंधकारमय कर दिया जाए अत्यंत गंभीर अपराध है। किसी भी प्रकार से आंखों को चोट पहुंचाई जाना गंभीर चोट के अंतर्गत माना जाता है।

    3 सुनने की शक्ति का विच्छेद

    भारतीय दंड संहिता की धारा 320 के अंतर्गत सुनने की शक्ति का विच्छेद गंभीर चोट के अंतर्गत आता है। जैसे कि अनेक लड़ाई झगड़ों में कान पर कोई मुक्का या फिर हथियार मार दिया गया जिससे कान के पर्दे फट जाने की संभावना होती है और ऐसी स्थिति में व्यक्ति के कान सदा के लिए बहरे हो जाते हैं उसकी श्रवण शक्ति का नाश हो जाता है। दंड संहिता इस प्रकार की क्षति को गंभीर चोट मानती है इस प्रकार की चोट से शरीर में श्रवण शक्ति स्थाई रूप से समाप्त हो जाना गंभीर चोट है।

    4 अंग या जोड़ का विच्छेद

    किसी मनुष्य के शरीर से उसके अंगों को काट देना या उसके अंग को विच्छेद कर देना गंभीर चोट के अंतर्गत आता है। किसी भी अंग या जोड़ का विच्छेद घोर उपहति माना गया है। इस प्रकार की उपहति कारित करने के दंड की प्रकृति एक समान नहीं हो सकती जैसे हाथ या पैर के विच्छेद की अपेक्षा किसी छोटी उंगली का विच्छेद कम गंभीर हो सकता है तथा इसके दंड की प्रकृति भी साधारण हो सकती है।

    5 अंग जोड़ की शक्ति का नाश या स्थाई नुकसान

    भारतीय दंड संहिता की धारा 320 के अंतर्गत किसी भी अंग की शक्तियों का नाश या स्थाई हास् पांचवें प्रकार की घोर उपहति मानी गई है। अंग या जोड़ की शक्ति का नाश या स्थाई नुकसान का तात्पर्य अंग जोड़ का विच्छेद न होकर उसकी परिचालन शक्ति अथवा कार्य करने की क्षमता का नाश है। जैसे कि किसी व्यक्ति के घुटनों को तोड़ दिया जाना। घुटने शरीर में उसी स्थान पर स्थित होते हैं परंतु उनका कार्य बंद हो जाता है उनका परिचालन समाप्त हो जाता है। इस प्रकार की चोट गंभीर चोट होगी। इस प्रकार के अंग शक्तिविहीन होकर बने रहते हैं और मनुष्य के लिए भयानक रूप से कष्टकारी होते हैं।

    सर या चेहरे की चोट

    धारा 320 के अंतर्गत सर या चेहरे का विदरूपीकरण स्थाई होना चाहिए। यदि सर या चेहरे पर कोई स्थाई छोड़ दी गई है विदरूपीकरण का तात्पर्य किसी मनुष्य के सर या चेहरे पर ऐसी भारी क्षति कारित करना है जो उसके आकार को हानि पहुंचाती है। जैसे किसी मनुष्य की नाक अथवा उसके किसी कान को काट देना।एक प्रकरण में लड़की के गालों पर लोहे के लाल सलाखों से दाग का स्थाई चिन्ह बना दिए गए थे। न्यायालय द्वारा अभिनीत किया गया की धारा 320 के अंतर्गत खंड इस प्रकरण पर प्रयोज्य होता है।

    7 हड्डियां, दांत का तोड़ना

    धारा 320 हड्डियां दांत के टूटने को भी गंभीर चोट के अंतर्गत मानती है। अस्थियां व दांत का भाग क्षतिग्रस्त होना व्यक्ति को भयंकर पीड़ा और कष्ट में डाल देता है इसे घोर उपहति की श्रेणी में रखा गया है। एक मामले में अभियुक्त ने अपनी पत्नी को उठा कर ऊपर से खिड़की के नीचे फेंक दिया था जिसे कारण उसके घुटने की हड्डी टूट गई और उसे अनेक छोटी-छोटी छोटे भी लगी। न्यायालय द्वारा अभिनिर्धारित किया गया कि अभियुक्त ने घोर उपहति कारित की थी।

    8 भयंकर चोट

    भारतीय दंड संहिता की धारा 320 के अंतर्गत ऐसी सभी भयंकर चोट को भी सम्मिलित कर दिया गया है जो जीवन के लिए संकटकारी है। इस प्रावधान के अंतर्गत शरीर के मर्म स्थल जैसे मस्तिष्क, आंख, छाती आदि में कोई चोट पहुंचाना जीवन के लिए संकटकारी हैं।

    इस वर्ग के अंतर्गत आने वाली घोर उपहति हत्या की कोटि में आने वाले सदोष मानव वध के अपराधियों के बीच में विभाजन रेखा खींचना कठिन है। यदि चोट ऐसी है जिनसे जीवन संकट में हो जाता है तो वह घोर उपहति मानी जाएगी, यदि ऐसी है जो संभवत मृत्यु कारित कर सकती हैं तो हत्या की कोठी में न आने वाला अपराधिक मानव वध माना जाएगा। किसी उपहति को तब जीवन को संकट करने वाली उपहति कहा जा सकता है जब वह सचमुच जीवन को संकट दे।

    जब भी कोई चिकित्सक किसी क्षति को जीवन के लिए खतरनाक वर्णित करता है और क्षति की प्रकृति कैसी है जिससे कि ऐसा निष्कर्ष निकाला जा सकता है तो ऐसी क्षति को घोर उपहति के रूप में धारा 320 के आठवें खंड में के इस प्रथम भाग में लिया जाएगा।

    आठवे खंड के अंतर्गत कोई भी ऐसी चोट पहुंचाई जाना जिसके परिणामस्वरूप शरीर में तिल व पीड़ा हो और व्यक्ति अपने रोजमर्रा के काम करने से रह जाए उसका पलंग से उठना बैठना तक दूभर हो जाए ऐसी चोट भी जीवन के लिए संकट उत्पन्न नहीं करती है परंतु यह चोट व्यक्ति को भीतर तक हिला देती है तथा उसकी पीड़ा का प्रमुख कारण होती है। यदि चोट ऐसी है जिस की गंभीरता 20 दिनों से अधिक समय तक बनी रहती है तब उसे गंभीर चोट माना जाता है। यदि इस प्रकार की चोट के कारण व्यक्ति 20 दिन तक अपने सामान्य कामकाज को करने के लिए असमर्थ रहता है घोर उपहति की श्रेणी में आती है।

    धारा 320 का अध्ययन करने के बाद यह समझना चाहिए कि किसी भी अपराध में जो मानव शरीर के विरुद्ध होता है मानव शरीर को चोट दी जाती है। हत्या में भी मानव शरीर को चोट दी जाती है। हत्या के प्रयास में भी मानव शरीर को चोट दी जाती है तथा अपराधिक मानव वध और आपराधिक मानव वध के प्रयास में भी मानव शरीर को चोट दी जाती है पर चोट दिए जाने के उद्देश्य पर बल दिया जाना चाहिए क्योंकि आशय सर्वप्रथम है। यदि आशय हत्या करने का था तो हत्या के प्रयास का प्रकरण बनेगा परंतु यदि हत्या करने का आशय नहीं था चोट पहुंचाने का आशय था ऐसी स्थिति में घोर गंभीर चोट पहुंचाई जाने का प्रकरण बनेगा। किसी कार्य से जो न तो मृत्यु कारित करने के आशय से था और न जिन से संभाव्यता मृत्यु कारित हो सकती हैं।

    यदि मृत्यु हो जाती है तो वह कार्य गंभीर चोट की कोटि में आ सकता है। इसका निर्धारण चोट की प्रकृति पर निर्भर करता है। यदि चोट धारा 320 में अभिव्यक्त इस श्रेणी में आती है तो वह गंभीर चोट होगी अन्यथा साधारण चोट मानी जाएगी। मानव शरीर को प्रभावित करने वाले उच्च कोटि का अपराध हत्या मृत्यु की सर्वाधिक संभावना पर निर्भर करता है। हत्या की कोटि में न आने वाला अपराधिक मानव वध मृत्यु की मात्र संभावना पर निर्भर करता है।

    यदि कार्य आशय से नहीं किया गया है और न ही उससे मृत्यु संभव है और उससे होने वाली चोट भयानक होने के कारण मृत्यु हो जाती है तो अपराध गंभीर चोट की श्रेणी में आ जाता है तो यही चोट सामान्य है परंतु मृत्यु हो जाती है जो न तो आशय था और न ही संभव थी तो वह साधारण चोट होगी।

    गंभीर चोट (घोर उपहति) के लिए दंड

    भारतीय दंड संहिता की धारा 325 गंभीर प्रकार की चोट के लिए दंड का प्रावधान करती है। धारा 325 के अंतर्गत किसी भी गंभीर प्रकार की चोट कारित करने के परिणामस्वरुप 7 वर्षों तक के दंड का निर्धारण किया गया है। गंभीर प्रकार की चोट बगैर किसी हथियार से कारित की गई है जो कोई काटने का हथियार था तब धारा 325 प्रयोज्य नहीं होती है। धारा 325 साधारण साधनों से कोई गंभीर प्रकार की चोट पहुंचाने के संबंध में लागू होती है जैसे मुक्के द्वारा दांत तोड़ देना।

    हथियारों के माध्यम से गंभीर प्रकार की चोट पहुंचाई जाना

    भारतीय दंड संहिता की धारा 326 स्वेच्छा से हथियारों से लैस होकर गंभीर चोट पहुंचाने के संबंध में उल्लेख कर रही है। आयुध हो या साधनों के माध्यम से गंभीर प्रकार की चोट पहुंचाई जाती है तो दंड सहिंता की धारा 326 के अंतर्गत आजीवन कारावास तक के दंड का प्रावधान किया गया है। इस प्रकार का दंड 10 वर्षों तक भी हो सकता है साथ में जुर्माना भी लगाया जा सकता है। धारा 326 के अंतर्गत कार्य शमन योग्य नहीं है क्योंकि दंड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 320 के अंतर्गत शमनीय अपराध की सूची में सम्मिलित नहीं किया गया है।

    एसिड के हमले के द्वारा गंभीर चोट पहुंचाई जाना

    निर्भया कांड के बाद दंड विधि संशोधन अधिनियम 2013 में संशोधन कर एसिड हमले को भी स्वेच्छा से गंभीर चोट की श्रेणी में रखा गया है। एसिड फेंक कर अंगों को विदुषित किया जाता है या विकलांग बनाया जाता है या जलाया जाता है ऐसी स्थिति में आजीवन कारावास के दंड का निर्धारण किया गया है और कम से कम कारावास 10 वर्ष तक का होगा। 10 वर्ष से कम कारावास इस अपराध के अंतर्गत नहीं दिया जाएगा।

    धारा 326 बी के अंतर्गत इस प्रकार के एसिड फेंकने के प्रयास को भी दंडनीय अपराध करार दिया गया है। एसिड फेंकने का प्रयास किया जाता है तो 7 वर्ष तक के दंड का निर्धारण किया गया है जिसकी कम से कम अवधि 5 वर्ष तो होगी ही।

    संस्वीकृति प्राप्त करने के उद्देश्य से किसी व्यक्ति को विवश करके बुलवाया जाना तथा इसके परिणामस्वरूप उस व्यक्ति को गंभीर चोटें देना भारतीय दंड संहिता की धारा 336 के अंतर्गत गंभीर दंडनीय अपराध है। इस धारा के अंतर्गत 10 वर्ष की अवधि तक के दंड का निर्धारण किया गया है। जैसा कि पुलिसकर्मियों द्वारा किसी व्यक्ति को विवश करके किसी अपराध को कबूल करने के लिए इतनी चोट पहुंचाई जाती है कि उसे घोर उपहति कारित हो जाती है, यह दंडनीय अपराध है।

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