भारतीय दंड संहिता (IPC) भाग 20 : भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत गर्भपात और शिशुओं से संबंधित अपराध

Shadab Salim

26 Dec 2020 8:27 AM GMT

  • भारतीय दंड संहिता (IPC) भाग 20 : भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत गर्भपात और शिशुओं से संबंधित अपराध

    भारतीय दंड संहिता सीरीज के अंतर्गत पिछले आलेख में आत्महत्या का दुष्प्रेरण तथा हत्या के प्रयास के अपराध के संबंध में चर्चा की गई थी, अब इस आलेख में गर्भपात और शिशुओं से संबंधित अपराध पर सारगर्भित चर्चा की जा रही है।

    भारतीय दंड संहिता 1860 एक अत्यंत विषाद ग्रंथ है। भारत के राज्य द्वारा अपने नागरिकों को किस प्रकार की सुरक्षा दी जाएगी इसका पूरा उल्लेख इस दंड संहिता के अंतर्गत मिलता है। भारतीय दंड संहिता केवल जीवित व्यक्तियों के ही प्राणों की रक्षा नहीं करती है अपितु गर्भ में रहने वाले व्यक्तियों की भी प्राणों की रक्षा भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत की गई है। शिशु अबोध होता है उसे समाज तथा प्रकृति का कोई ज्ञान नहीं होता है, एक शिशु ही आगे चलकर एक समाज का निर्माण करता है। राज्य का यह कर्तव्य है कि वे अपने राज्य में जन्म लेने वाले शिशुओं के अधिकारों को संरक्षित करें तथा उन सभी कार्यों को अपराध घोषित करें जिन कार्यों के माध्यम से कहीं न कहीं गर्भ में स्थित और नवजात शिशु को क्षति पहुंचाई जा रही है तथा उनके जन्म लेने में कोई रुकावट पैदा की जा रही है।

    भारतीय दंड संहिता में ऐसे अनेक कार्यों को अपराध घोषित किया गया है जिनके माध्यम से गर्भ में स्थित तथा नवजात जन्म लेने वाले शिशुओं के संबंध में क्षति कारित करते हैं। किसी व्यक्ति का जन्म लेना उसका अधिकार है, किसी व्यक्ति को जन्म से नहीं रोका जा सकता यदि प्रकृति ने किसी स्त्री के गर्भ में किसी व्यक्ति को दिया है तो उसके जन्म को उसी परिस्थिति में रोका जाता है जब स्त्री के जीवन को कोई संकट हो।

    विवाह एक सामाजिक संस्था है, स्त्री और पुरुषों के साथ रहने की एक संविदा है तथा समाज की यही अवधारणा है कि कोई भी बालक विवाह के पश्चात ही जन्म लेना चाहिए परंतु अनेक मामले ऐसे होते हैं जहां विवाह के पूर्व ही किसी स्त्री की देह में उसके गर्भ में कोई शिशु आ जाता है। इस प्रकार का शिशु, स्त्री और पुरुष के आपस में यौन संबंधों के परिणामस्वरूप ही जन्म लेता है। विवाह के होने के पश्चात जन्म देने वाले शिशुओं को वैध रूप से सामाजिक मान्यता प्राप्त होती है परंतु विवाह के पूर्व ही जन्म लेने वाले शिशुओं को समाज द्वारा अवैध कहा जाता है। मानवता का विचार यह है कि धरती पर जन्म लेने वाला कोई भी अवैध नहीं होता। यदि किसी मनुष्य द्वारा किसी दूसरे मनुष्य को जन्म दिया जाता है यह प्रकृति की नैसर्गिक प्रक्रिया है। वैध अवैध की अवधारणा मनुष्य द्वारा धरती पर बनाई गई है। प्रकृति का नियम यह है कि जब दो विपरीत लिंग एक दूसरे के साथ शारीरिक संबंधों की स्थापना करते हैं तब गर्भधारण होता है।

    भारतीय दंड संहिता शुद्ध मानवतावादी विचारों पर तथा साम्य पर आधारित है। यदि कोई शिशु किसी स्त्री के गर्भ में आया है उसको जन्म लेने का अधिकार भी प्राप्त क्योंकि कोई शिशु भले ही किसी स्त्री के गर्भ में बलात्कार के परिणामस्वरूप आया हो, विवाह के पूर्व संबंधों के परिणामस्वरुप गर्भ में आया हो परंतु शिशु के जन्म का अधिकार उसका मौलिक अधिकार है किसी की परिस्थिति में शिशु को जन्म लेने से नहीं रोका जा सकता। इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु ही भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत ऐसे अनेक कार्यों को अपराध घोषित किया गया है जो किसी शिशु के जन्म में रुकावट बनते हैं या फिर उस शिशु की हत्या करते हैं।

    इन अपराधों को मानव शरीर पर प्रभाव डालने वाले अपराधों के संबंध में दिए गए अध्याय 16 में स्थान दिया गया है। भारतीय दंड संहिता की धारा 312 से लेकर 318 तक शिशु तथा गर्भपात से संबंधित कार्यों को अपराध घोषित किया गया है। इन धाराओं का क्रमवार उल्लेख लेखक द्वारा इस आलेख में किया जा रहा है तथा उन धाराओं से संबंधित निर्धारित दंड का भी उल्लेख इस लेख के अंतर्गत किया जाएगा तथा उससे संबंधित कुछ विशेष प्रकरणों का भी उल्लेख किया जाएगा।

    गर्भपात कारित करना (धारा-312)

    भारतीय दंड संहिता की धारा 312 गर्भपात कारित करने के संबंध में उल्लेख कर रही है। इस धारा के अनुसार यदि कोई व्यक्ति किसी स्त्री की स्वेच्छा होते हुए उसका गर्भपात कारित है जबकि ऐसे गर्भधारण से उस स्त्री के जीवन को कोई संकट नहीं हो इसे दंडनीय अपराध घोषित किया गया है। गर्भवती स्त्री की सहमति से गर्भपात कारित करना इस धारा में संव्यवहार किया गया है। इस धारा के अंतर्गत अपराध में निम्न दो तत्व समाहित किए गए हैं। पहला गर्भवती स्त्री का स्वेच्छा से गर्भ कारित करना, दूसरा ऐसा गर्भपात उस स्त्री का जीवन बचाने के प्रयोजन से सदभावनापूर्वक न किया जाना।

    धारा के भाव बोध से समझा जा सकता है कि गर्भपात केवल स्त्री के जीवन बचाने के उद्देश्य से ही किया जा सकता है अन्यथा नहीं किया जा सकता। यदि गर्भपात से किसी स्त्री के जीवन को खतरा है इस स्थिति में गर्भपात किया जा सकता है। भारतीय दंड संहिता की धारा 312 के अंतर्गत गर्भपात शब्द की परिभाषा तो नहीं दी गई है परंतु गर्भपात शब्द का तात्पर्य गर्भधारण के पश्चात भ्रूण का गर्भाशय में पूर्ण अवधि प्राप्त करने के पूर्व निकाला जाना है। गर्भवती स्त्री का तात्पर्य है जिसने गर्भधारण किया हो, यह आवश्यक नहीं है कि उस स्त्री को स्पंदन प्रारंभ हो गया हो अथवा भ्रूण ने अपना आकार विकसित कर लिया हो। सामान्य रूप से गर्भधारण करने के चार पांच माह बाद महिला स्पंदन गर्भा हो जाती है।

    इस धारा के अंतर्गत यदि गर्भवती स्त्री को जीवन बचाने के प्रयोजन से सदभावनापूर्वक गर्भपात कारित किया जाता है तो इस स्थिति में किसी अपराध की संरचना नहीं होती, इसका उल्लेख मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी एक्ट, 1971 में किया गया है । इस अधिनियम के अंतर्गत दी गई परिस्थितियों में ही गर्भपात की अनुमति प्रदान की गई है, यदि इस अधिनियम के अंतर्गत गर्भपात कारित किया जाता है तो धारा 312 के अंतर्गत वह अपराध नहीं माना जाएगा। इस अधिनियम के अंतर्गत गर्भपात कारित करने की एक समयावधि है, उस समय अवधि के बीत जाने के बाद किसी स्त्री का उसकी इच्छा से भी गर्भपात नहीं किया जा सकता। यदि इच्छा से भी गर्भपात किया जाएगा तब भी धारा 312 के अंतर्गत अपराध बन जाएगा। इस धारा के अनुसार दंड दो प्रकार से दिया जाता है पहला प्रकार वह है कि यदि किसी स्त्री में स्पंदन प्रारंभ नहीं हुआ है तथा 4, 5 महीने नहीं बीते हैं और गर्भपात कर दिया जाता है। इसमें 3 वर्ष के दंड का निर्धारण किया गया है और यदि किसी स्त्री में स्पंदन प्रारंभ हो जाता है और उसका गर्भपात किया जाता है तथा ऐसा गर्भपात मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी एक्ट 1971 के अंतर्गत नहीं किया गया है तो 7 वर्ष तक के दंड का निर्धारण इस धारा में किया गया है। इस धारा के अंतर्गत गर्भपात करने वाला व्यक्ति तथा जिस स्त्री का गर्भपात किया गया है वह दोनों आरोपी बनाए जाते हैं।

    स्त्री की सहमति के बिना गर्भपात कारित करना- (धारा-313)

    भारतीय दंड संहिता की धारा 313 किसी स्त्री की सहमति के बिना उसका गर्भपात कारित करने के संबंध में उल्लेख कर रही है। इस धारा के अंतर्गत केवल उस व्यक्ति को ही दंडित किया जा सकता है जो किसी स्त्री का गर्भपात कारित करता है जबकि धारा 312 के अंतर्गत उसके साथ-साथ स्त्री को भी दंडित किया जा सकता है।

    कभी-कभी परिस्थितियां ऐसी होती है कि स्त्री को बताया नहीं जाता तथा उसका गर्भपात कारित कर दिया जाता है। जैसे कि किसी व्यक्ति द्वारा किसी महिला के साथ में कोई अवैध संबंध बना लिए गए तथा अवैध संबंधों के परिणामस्वरूप महिला गर्भवती हो गई, अब महिलाओं शिशु को जन्म देना चाहती है परंतु उस व्यक्ति द्वारा द्वेषपूर्ण तरीके से स्त्री का गर्भपात करा दिया जाता है। इस प्रकार के प्रकरण में धारा 313 की सहायता ली जाती है। 1987 के केरल के एक प्रकरण में कुछ इस प्रकार के ही तथ्य सामने आए हैं। इस मामले में गर्भपात किसी स्त्री की सहमति के बिना कराया गया, एक व्यक्ति किसी स्त्री को गर्भपात के लिए चिकित्सक के पास ले गया और वह स्त्री चिकित्सक के समक्ष अपने आप को गर्भपात के लिए समर्पित कर देती है। तब ऐसे व्यक्ति को इस धारा के अंतर्गत तब तक दोषी घोषित नहीं ठहराया जा सकता जब तक यह साबित नहीं हो जाता कि वह व्यक्ति उस स्त्री को उसकी इच्छा के विरुद्ध चिकित्सक के पास ले गया था और उसका गर्भपात करवाया।

    यहां पर स्त्री की इच्छा को सिद्ध किया जाना आवश्यक है, यदि इच्छा के विरुद्ध गर्भपात पारित कराया गया है तो भारतीय दंड संहिता की धारा 313 ऐसी स्थिति में 10 वर्ष तक के कारावास के दंड का निर्धारण करती है।

    गर्भपात करने के आशय से किए गए कार्य द्वारा मृत्यु होना- (धारा-314)

    जैसा कि पूर्व की धाराओं में यह निर्धारित हो चुका है कि गर्भपात का कारित करना भारत राज्य के अंतर्गत दंडनीय अपराध है।भारतीय दंड संहिता की धारा 312 गर्भपात कारित करने को अपराध करार देती है तथा धारा 313 इस प्रकार का गर्भपात स्त्री की सहमति के बिना करने पर दंडनीय अपराध करार देती है। अब धारा 314 इस प्रकार के गर्भपात कारित करने के आशय से किए गए कार्य को जिसके परिणामस्वरूप स्त्री की मृत्यु हो जाए दंडनीय अपराध करार देती है।

    गर्भपात दो प्रकार से किया जाता है पहला प्रकार है स्त्री की स्वेच्छापूर्वक गर्भपात कारित किया जाना और दूसरा प्रकार है स्त्री की सहमति के बिना गर्भपात किया जाना। धारा 314 दो प्रकार के दंड का निर्धारण करती है, यदि गर्भपात स्त्री की स्वेच्छा से किया जा रहा था और ऐसे गर्भपात में उस स्त्री की मृत्यु हो गई तो गर्भपात करने वाला 10 वर्ष तक की अवधि के दंड से दंडित किया जाएगा और यदि गर्भपात स्त्री की सम्मति के बिना किया जा रहा था मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी एक्ट, 1971 के अधिनियम के प्रावधानों के विरुद्ध किया जा रहा था तब ऐसे गर्भपात में स्त्री की मृत्यु होने पर आजीवन कारावास के दंड का निर्धारण धारा 314 के अंतर्गत किया गया है। कुछ चिकित्सकीय परिस्थितियां ऐसी होती हैं जिनमें जिस स्त्री का गर्भपात किया जाता है उसकी मृत्यु तक हो जाती है, अधिक खून बह जाने से स्त्री की मृत्यु हो जाती है, इस प्रकार के गर्भपात से यदि गर्भवती स्त्री की मृत्यु होती है उसके संबंध में धारा 314 व्यवहार कर रही है।

    शिशु को जन्म लेने से रोकना या जन्म के बाद उसकी मृत्यु कर देना-(धारा-315)

    भारतीय दंड संहिता की धारा 315 शिशुओं से संबंधित अपराध का उल्लेख कर रही है। इस धारा के अनुसार यदि किसी शिशु को जन्म लेने से रोका जाता है, प्रयास किए जाते हैं कि जिससे कोई शिशु जीवित रूप से जन्म नहीं ले तथा इस प्रकार के किए गए प्रयासों से उस शिशु की मृत्यु हो जाती है। किसी भी प्रकार से शिशु को जन्म लेने से रोका जाता है प्रयास ही होते हैं कि जन्म के होते ही शिशु की मृत्यु हो जाए या फिर शिशु के जन्म लेने के पश्चात उसकी मृत्यु कारित कर दी जाती है ऐसी स्थिति में भारतीय दंड संहिता की धारा 315 के अंतर्गत 10 वर्ष तक की अवधि के कारावास का निर्धारण किया गया है, इसके साथ जुर्माना भी अधिरोपित किया जा सकता है।

    आपराधिक मानव वध के अंतर्गत किसी शिशु की मृत्यु कारित करना

    पूर्व के आलेख में यह अध्ययन किया गया है कि किसी व्यक्ति की मृत्यु दो प्रकार से कारित की जाती है। पहला प्रकार है आपराधिक मानव वध और दूसरा प्रकार है हत्या। यदि आपराधिक मानव वध के अंतर्गत किसी स्त्री की मृत्यु कारित की जा रही हो तथा उस स्त्री की मृत्यु कारित नहीं होती हो और उसके गर्भ में स्थित शिशु की मृत्यु हो जाती है तब भारतीय दंड संहिता की धारा 316 इस प्रकार के अपराध को दंडनीय करार देती है तथा इस धारा के अंतर्गत 10 वर्ष तक की अवधि के दंड का निर्धारण किया गया है।

    जैसे कि किसी स्त्री के गर्भ में कोई शिशु है और किसी व्यक्ति द्वारा किसी लड़ाई में लाठियां चलाई जा रही हैं ऐसी लाठी किसी स्त्री के पेट पर लगती है जिसके परिणामस्वरूप उस स्त्री के गर्भ में स्थित शिशु की मृत्यु हो जाती है।

    ध्यान देने वाली बात यह है कि कोई ऐसा कार्य किया जाना चाहिए जिससे अपराधिक मानव वध की कोटि में मृत्यु हो अर्थात हत्या की कोटि में मृत्यु नहीं होना चाहिए। किसी स्त्री को आपराधिक मानव वध के उद्देश्य से मृत्यु कारित की जाती है जो 5 परिस्थितियां धारा 300 के अंतर्गत दी गई है उन परिस्थितियों में किसी स्त्री की मृत्यु करने के उद्देश्य से कोई कार्य किया जाता है और ऐसे कार्य के परिणामस्वरूप स्त्री की मृत्यु नहीं होती है अपितु उसके गर्भ में स्थित बालक की मृत्यु हो जाती है तब धारा 316 प्रयोज्य होगी।

    जब्बार बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एआईआर 1966 इलाहाबाद 590 के प्रकरण में यह कहा गया है कि इस धारा की परिकल्पना के लिए यह आवश्यक है कि कारित किए गए कार्य का आशय गर्भ में स्थित शिशु की मृत्यु कारित करना रहा हो। यदि कोई व्यक्ति माता के विरुद्ध कोई कार्य सहायता से करता है कि वह धारा 299 के अंतर्गत अपराध घटित करें तो केवल इस कारण कि ऐसे कार्य से शिशु की मृत्यु हो गई है इस धारा के अंतर्गत अपराध का गठन हुआ नहीं माना जाएगा।

    माता-पिता या संरक्षक द्वारा शिशु को किसी स्थान पर छोड़ देना या उसका त्याग कर देना- (धारा-317)

    माता-पिता का यह कर्तव्य होता है कि यदि उनके द्वारा किसी शिशु को जन्म दिया गया है तथा वह अबोधबालक है तब माता-पिता द्वारा उनका संरक्षण किया जाए। कभी-कभी किसी शिशु के माता-पिता जीवित नहीं होते हैं उनका संरक्षक कोई और होता है। ऐसी परिस्थिति में यह कर्तव्य शिशु के संरक्षक का होता है। भारतीय दंड संहिता की धारा 317 12 वर्ष तक के शिशु के संरक्षण के अधिकार को संरक्षित करती है, जिस शिशु को जिन व्यक्तियों द्वारा जन्म दिया गया है उन व्यक्तियों द्वारा ही संरक्षण दिया जाएगा। धारा 317 की विशेषता यह है कि यह हत्या को ही केवल अपराध घोषित नहीं करती है अपितु ऐसे शिशु को जो किसी व्यक्ति के संरक्षण में है अब भले वह व्यक्ति माता-पिता भी हो किसी ऐसे स्थान पर छोड़ दिया जाता है जिस स्थान पर शिशु की मृत्यु हो जाए इसे दंडनीय अपराध घोषित किया गया है।

    इस प्रकार की घटना आम है वर्तमान समय में अनेकों देखने को मिल रही है। अवैध संबंधों के परिणामस्वरुप जन्म लेने वाली संतान को माता-पिता द्वारा अस्पतालों में ही छोड़कर भाग जाया जाता है। कई मामलों में तो कुछ बच्चियों को झाड़ियों के पीछे फेंक कर चले जाया जाता है। पुत्र की चाहत पुत्रियों का जीवन बर्बाद कर देती है। माता-पिता की चाहत होती है कि पुत्र का जन्म हो परंतु यदि पुत्री का जन्म हो जाता है तो उनके द्वारा ऐसी जन्म लेने वाली पुत्री को किसी स्थान पर छोड़ कर या फेंक कर चले जाने की घटना देखने को मिलती है।

    यदि किसी शिशु को ऐसे स्थान पर छोड़कर जाया जाता है जिससे उसके संरक्षक द्वारा दिए जाने वाला संरक्षण शिशु को प्राप्त नहीं होता है तब भारतीय दंड संहिता की धारा 317 के अंतर्गत उसके माता-पिता या संरक्षक को 7 वर्ष तक का कारावास दिया जा सकता है।

    दंड संहिता की धारा 370 से संबंधित पुराना प्रकरण है। सम्राट बनाम क्रिप्स। इस मामले में नवजात बच्चे की माता ने उसे खुले में छोड़ देने के आशय से चुपके से क नामक एक व्यक्ति को दे दिया।वह उसे रेलगाड़ी में ले गया और द्वितीय श्रेणी के एक डिब्बे में उसे छोड़ दिया। बच्चा अच्छी तरह से वस्त्र में लपेटा हुआ था और उसके पास दूध की शीशी पड़ी हुई थी। इस प्रकरण में यह धारण किया गया है कि माता धारा 317 के अंतर्गत एवं धारा 109 के अंतर्गत अपराधी थी और क नामक व्यक्ति धारा 317 के अंतर्गत अपराधी था क्योंकि क का भी वही आशय था जो आशय मां का था तथा दोनों का सामान्य आशय था क द्वारा किसी शिशु को अजात छोड़ने का कार्य किया गया।

    अन्य मामले में छह माह के अवैध बच्चे को माता ने एक अंधी महिला के पास यह कह कर छोड़ दिया कि वह शीघ्र ही वापस लौटेने वाली है परंतु वापस नहीं लौटी। वह एक दूसरे गांव में चली गई और फिर नहीं आई और न ही लौटने का उसने कोई प्रयास किया, लौटने का उसका कोई आशय ही नहीं था। इस प्रकरण में धारण किया गया कि उसे इस धारा के अंतर्गत दोषसिद्ध नहीं किया जा सकता। यह धारा शिशु को ऐसे स्थान पर छोड़ देने के संबंध में है जिससे उसको संरक्षण ही नहीं मिले। इस मामले में वह अंधी महिला शिशु की संरक्षक बन गई थी क्योंकि महिला द्वारा शिशु को अजात स्थिति में नहीं छोड़ा गया।

    मृत शरीर को छिपाकर शिशु के जन्म को छिपाना (धारा-318)

    भारतीय दंड संहिता की धारा 318 बच्चों के गुप्त रूप से गाड़ दिए जाने या अन्यथा व्यनित कर दिए जाने के बारे में व्यवस्था करती है। इस धारा के अंतर्गत अपराधपूर्ण हो जाता है जब किसी शिशु के मृत शरीर को गुप्त रूप से किसी साधन द्वारा छिपा दिया जाता है। अवैध संबंधों के परिणामस्वरुप जन्म लेने वाली संतान के शरीर को इस प्रकार छिपाया जाता है तथा उसके जन्म को छुपा दिया जाता है और उसके मर जाने के पश्चात उसके शरीर को छिपाकर गाड़ दिया जाता है या फिर किसी अन्य ढंग से उसके शरीर को ठिकाने लगा दिया जाता है।

    स्टेट बनाम केसरी सिंह एआईआर 1953 के प्रकरण में कहा गया है कि किसी शिशु को जन्म से गांव के अधिकांश व्यक्ति परिचित हो वहां ऐसे शिशु के मृत शरीर का बयान इस धारा के अंतर्गत जन्म के छिपाने के आशय के अंतर्गत नहीं किया जाएगा। यदि किसी शिशु के जन्म से लोग परिचित हैं और ऐसे शिशु के मृत शरीर को डिस्पोज किया गया है तब इस धारा के अंतर्गत प्रकरण नहीं बनता है। धारा 318 के अंतर्गत इस प्रकार का अपराध किए जाने पर 2 वर्ष तक की अवधि के दंड का निर्धारण किया गया है। यहां पर ध्यान देना आवश्यक है कि केवल मृत शरीर को छिपाकर व्यनित करने पर 2 वर्ष की अवधि के दंड का निर्धारण है। यहां पर किसी शिशु की हत्या के संबंध में उल्लेख नहीं है केवल छिपाकर उसके शरीर को ठिकाने लगाना अपराध है।

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