भारतीय दंड संहिता (IPC) भाग 10 : लोक शांति के विरुद्ध अपराध और विधि विरुद्ध जमाव
Shadab Salim
15 Dec 2020 10:01 AM IST
पिछले आलेख में राज्य के विरुद्ध अपराधों के संबंध में चर्चा की गई थी इस आलेख में लोक शांति के विरुद्ध अपराधों के संबंध में सारगर्भित चर्चा की जा रही है तथा विशेष प्रावधानों का उल्लेख किया जा रहा है।
किसी भी राष्ट्र के लिए शांति आवश्यक होती है। मनुष्य का विकास शांति के होते हुए ही संभव है यदि किसी समाज में शांति नहीं है तो समाज का विकास संभव ही नहीं है। राष्ट्र की प्रगति के लिए शांति अति आवश्यक होती है। भारत विविधताओं से भरा हुआ राष्ट्र है यहां विभिन्न प्रकार की संस्कृतियां और समाज एक साथ रहतें हैं। भारत के विद्वानों ने भारत में अनेकता में एकता की बात को स्वीकार किया है। भारत का संविधान भी इसी अनेकता में एकता के सिद्धांत पर आधारित है।
इतनी विविधताओं के बीच में सभी समाजों के बीच सामंजस्य स्थापित करना तथा राष्ट्र को शांत रखकर प्रगति और उन्नति की ओर बढ़ना थोड़ा कठिन है, इस आवश्यकता की पूर्ति के लिए इस प्रकार के कार्यों को अपराध घोषित किया जाना था जो राष्ट्र और समाज की शांति के लिए नासूर होते हैं। समाज की शांति के लिए राष्ट्र की शांति के लिए तथा व्यक्तियों को भयमुक्त वातावरण में जीने के लिए लोक शांति के विरुद्ध अपराधों का प्रावधान किया जाना भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत नितांत आवश्यक था। भारतीय दंड संहिता 1860 के अध्याय 8 के अंतर्गत लोक शांति के विरुद्ध अपराधों के संबंध में प्रावधान किए गए हैं।
आज के परिवेश में जहां राजनीतिक विचारों की विभिन्नता है और संचार के माध्यम अत्यंत सरल और सुगम है ऐसी स्थिति में लोक शांति के विरुद्ध अपराधों के संबंध में कड़े प्रावधान और अधिक आवश्यक हैं।
लोक शांति के विरुद्ध अपराध
राज्य के प्रति शांति व्यक्ति के प्रति शांति से अधिक गंभीर होती है फिर भी उसका उतना ही महत्व है जितना कि राज्य के प्रति शांति का महत्व है। व्यक्ति राज्य की एक इकाई है व्यक्तियों से मिलकर ही कोई राज्य बनता है और व्यक्ति के कल्याण पर ही राज्य का कल्याण और विकास निर्भर करता है। एक कल्याणकारी और लोकतांत्रिक राज्य के लिए यह अपेक्षित है कि वह अपने प्रत्येक नागरिक के हितों की रक्षा करें एवं उसकी सुख सुविधा का ध्यान रखें, यदि कोई भी व्यक्ति ऐसा कोई कार्य करता है जिससे लोक शांति भंग होती है या भंग होने की संभावना पैदा होती है तो उसे दंडित किया जाकर ऐसी अशांति का दमन किया जाना आवश्यक है।
भारतीय दंड संहिता के अध्याय 8 की धारा 141 से लेकर धारा 160 तक लोक शांति से संबंधित अपराधों के संबंध में प्रावधान किए गए हैं। इन सभी धाराओं में लोक शांति से जुड़े हुए अपराध तथा उन अपराधों के लिए दंड की व्यवस्था कर दी गई है। वर्तमान परिवेश में भारतीय दंड संहिता के इस अध्याय की जानकारी होना आम जनमानस के लिए अति आवश्यक है क्योंकि यदि आम जनमानस को इस प्रकार की जानकारी होगी की जो कार्य वह कर रहा है क्या वह अपराध है जिस प्रकार का विधि विरुद्ध जमाव उसके द्वारा फैलाया जा रहा है क्या वह अपराध है तो वह स्वयं को इस अपराध से दूर रखने के प्रयास करेगा।
अनेक अपराध केवल इसलिए कारित हो जाते हैं क्योंकि आम जन साधारण को इस बात का ज्ञान नहीं होता कि जो कार्य वह कर रहा है राज्य द्वारा उस कार्य को अपराध घोषित किया गया है। अनेकों छोटे-छोटे कार्य हैं जिन्हें व्यक्तियों द्वारा कर दिया जाता है परंतु व्यक्तियों को उनकी जानकारी नहीं होती उनके द्वारा किए गए वह कार्य राज्य द्वारा अपराध घोषित किए गए।
दंड संहिता के इस अध्याय के अंतर्गत लोक शांति के विरुद्ध किए जाने वाले अपराधों को मुख्य रूप से चार भागों में विभाजित किया जा सकता है हालांकि अध्याय में कोई इस प्रकार का विभाजन नहीं किया गया है परंतु लेखक द्वारा इस अध्याय पर विचार करते हुए उसे चार भागों में विभाजित करने का प्रयास किया गया है। इस अध्याय का अध्ययन करने के उपरांत सभी धाराओं से यह चार प्रकार के अपराध निकल कर आते हैं जिनका उल्लेख लोक शांति के विरुद्ध अपराधों के संबंध में किया गया है।
1)- विधि विरुद्ध जमाव
2)- बलवा
3)- वर्गो में शत्रुता को बढ़ावा देना
4)- दंगा
लेखक द्वारा इस आलेख में विधि विरुद्ध जमाव के संबंध में चर्चा की जा रही है क्योंकि विधि विरुद्ध जमाव का विषय थोड़ा विस्तृत विषय है। इसके अगले आलेख में विशेष रूप से बलवा और दंगा के संबंध में चर्चा की जाएगी।
विधि विरुद्ध जमाव
भारतीय दंड संहिता 1860 की धारा 141 के अंतर्गत विधि विरुद्ध जमाव की परिभाषा प्रस्तुत की गई है इस धारा के अनुसार-
5 या अधिक व्यक्तियों का जमाव विधि विरुद्ध जमाव कहा जाता है यदि उन व्यक्तियों का जिनसे वह जमाव गठित हुआ है सामान्य उद्देश्य-
पहला- केंद्र सरकार को या किसी राज्य सरकार को संसद को या किसी राज्य के विधान मंडल को या किसी लोकसेवक को जबकि वह ऐसे लोकसेवक की विधि पूर्ण शक्ति का प्रयोग कर रहा हो आपराधिक बल द्वारा या आपराधिक बल के प्रदर्शन द्वारा आतंकित करना अथवा।
दूसरा- किसी विधि के या किसी वैध आदेशिका के निष्पादन का प्रतिरोध करना।
तीसरा- किसी रिष्टि, आपराधिक अतिचार या अन्य अपराध का करना।
चौथा- किसी व्यक्ति पर आपराधिक बल द्वारा या आपराधिक बल के प्रदर्शन द्वारा किसी संपत्ति का कब्जा लेना यह भी प्राप्त करना, किसी व्यक्ति को किसी मार्ग के अधिकार के उपभोग से यह जल का उपयोग करने के अधिकार या अन्य अमूर्त अधिकार से जिसका वह कब्जा रखता हो उपभोग करता हो वंचित करना यह किसी अधिकार या अनुमित अधिकार को प्रवर्तित करना अथवा।
पांचवा- आपराधिक बल द्वारा आपराधिक बल के प्रदर्शन द्वारा किसी व्यक्ति को वह करने के लिए जिसे करने के लिए वह वैध रूप से अबाध्य न हो उसका लोप करने के लिए जिसे करने का वह वैध रूप से हकदार हो विवश करना।
स्पष्टीकरण- कोई जमाव जो इकट्ठा होते समय विधि विरुद्ध नहीं था बाद में विधि विरुद्ध जमाव हो सकेगा।
यह भारतीय दंड संहिता की धारा 141 के अंतर्गत विधि विरुद्ध जमाव की विस्तृत परिभाषा थी। भारतीय वैधानिक व्यवस्था संपूर्ण रुप से विधि द्वारा शासित है कोई भी कार्य वैधानिक स्तर पर किया जाएगा। यदि व्यक्ति राज्य द्वारा बनाई गई किसी विधि से संतुष्ट नहीं है तथा उसका यह अनुमान है कि राज्य द्वारा बनाई गई कोई विधि उसके किसी अधिकार का अतिक्रमण करती है तो इस प्रकार के अतिक्रमण के लिए भारत के संविधान ने उस व्यक्ति को न्यायालय का रास्ता दिया है। उस व्यक्ति को न्यायालय जाना होगा और न्यायालय जाकर अपने अधिकारों के संबंध में गुहार करनी होगी। कोई व्यक्ति किसी प्रदर्शन के माध्यम से तथा ऐसे प्रदर्शन के माध्यम से जिसमें आपराधिक अतिचार तथा रिष्टि हो और व्यक्तियों के अधिकारों से उन्हें वंचित किया जा रहा हो जैसे कि किसी सड़क को रोक दिया गया हो किसी नदी के पानी को रोक दिया गया हो। यदि प्रदर्शन भी होगा तो उस प्रदर्शन से किसी के अधिकारों का अतिक्रमण नहीं होना चाहिए ऐसा नहीं होना चाहिए जो किसी मार्ग को बंद कर दे।
भारतीय दंड संहिता द्वारा प्रयास यह किया गया है कि किसी भी प्रकार से व्यक्तियों द्वारा कोई प्रदर्शन इत्यादि नहीं होना चाहिए था। व्यक्ति यदि राज्य के किसी कार्य से संतुष्ट नहीं है तो उसे न्यायालय की सहायता लेनी चाहिए। भारत का संविधान मानव अधिकारों मानवीय गरिमा प्रतिष्ठा पर आधारित है तथा संविधान के आधारभूत ढांचे में राज्य द्वारा भी कोई परिवर्तन नहीं किए जा सकते हैं। व्यक्तियों को प्राप्त मानव अधिकार उनके नैसर्गिक अधिकार हैं कोई भी राज्य उनके इन नैसर्गिक अधिकारों में किसी प्रकार का कोई परिवर्तन नहीं कर सकता है क्योंकि संविधान द्वारा प्राप्त नैसर्गिक अधिकार संविधान का आधारभूत ढांचा है तथा उच्चतम न्यायालय ने केशवानंद भारती के मामले में संविधान के आधारभूत ढांचे में किसी प्रकार के किसी संशोधन को स्वीकार नहीं किया है। राज्य यदि संविधान का संशोधन भी करता है तो संशोधन उसी स्तर तक किया जा सकता है जिस स्तर तक संविधान के आधारभूत ढांचे में किसी प्रकार की कोई छेड़छाड़ नहीं हो।
दंड संहिता की धारा 141 विधि विरुद्ध जमाव में 5 व्यक्तियों तक का उल्लेख करती है। यदि विधि विरुद्ध जमाव में 5 से अधिक व्यक्ति हैं तो उसे विधि विरुद्ध जमाव माना जाएगा। इस प्रकार के 5 या 5 से अधिक व्यक्तियों द्वारा सामान्य उद्देश्य से आपराधिक बल या हिंसा के प्रदर्शन द्वारा केंद्रीय राज्य सरकार को संसदीय राज्य के विधान मंडल को अपनी विधिपूर्ण शक्तियों का प्रयोग करते हुए किसी लोक सेवक को आतंकित करने वाला और किसी विधि के या विधि प्रक्रिया के निष्पादन का प्रतिरोध करना और कोई रिष्टि या आपराधिक अतिचार अन्य अपराध कार्य करना और किसी व्यक्ति के विरुद्ध आपराधिक बल या प्रदर्शन द्वारा किसी संपत्ति पर अधिपत्य कर लेना या किसी व्यक्ति को किसी मार्ग के अधिकार से जल के उपयोग के अधिकार से या किसी अन्य अमूर्त अधिकार से जिसका कि वह अधिकार रखता हो वंचित कर देना।
किसी व्यक्ति को ऐसा कोई कार्य करने के लिए बाध्य करना जिसको कि करने के लिए वह बाध्य नहीं है या ऐसे किसी कार्य लोप के लिए बाध्य करना जिसको कि करने के लिए वह वैध रूप से अधिकृत है।
यह सभी काम भारतीय दंड संहिता की धारा 141 के अंतर्गत विधि विरुद्ध जमाव होता है। शिवाजी सिंह बनाम स्टेट ऑफ़ बिहार एआईआर 2009 उच्चतम न्यायालय 417 के प्रकरण में यह निर्धारित किया गया है कि कोई जमाव आरंभ में विधि पूर्ण जमा हो सकता है लेकिन वही बाद में विधि विरुद्ध जमाव बन सकता है।
विधि विरुद्ध जमाव की उपयुक्त परिभाषा से इसके निम्नलिखित आवश्यक तत्व स्पष्ट होते हैं-
5 या 5 से अधिक व्यक्तियों का होना-
विधि विरुद्ध जमाव में 5 या 5 से अधिक व्यक्तियों का होना आवश्यक है अर्थात अपराध कारित किए जाने के पूर्व एक सामान्य उद्देश्य रखते हुए 4 से अधिक व्यक्तियों का होना विधि विरुद्ध जमाव के लिए अपेक्षित है। जहां 7 व्यक्तियों से गठित विधि विरुद्ध जमाव के 4 सदस्यों को दोषमुक्त घोषित कर दिया जाता है वहां शेष तीन को विधि विरुद्ध जमाव के सदस्य के रूप में बलवा के लिए दोषसिद्ध नहीं किया जा सकता। यह बात मोतीराम 1960 मुंबई के प्रकरण में कही गई है तथा उससे बाद यह बात करतार सिंह एआईआर 1961 उच्चतम न्यायालय के प्रकरण में भी कही गई थी।
अर्थात विधि विरुद्ध जमाव के लिए सभी व्यक्तियों को एक साथ दोषी घोषित किया जाएगा। विधि विरुद्ध जमाव से यह नहीं हो सकता कि किसी एक व्यक्ति को दोषी करार दे दिया जाए तथा अन्य व्यक्तियों को दोषमुक्त कर दिया जाए क्योंकि इस प्रकार की विधि विरुद्ध जमाव में सभी व्यक्तियों का सामान्य उद्देश्य होता है।
सामान्य उद्देश्य होना-
विधि विरुद्ध जमाव के लिए उसके सभी सदस्यों का किसी कार्य को करने का सामान्य उद्देश्य (common object) का होना चाहिए। सामान उद्देश्य इस अपराध का सार है इस धारा का अध्ययन करने के बाद सामान्य उद्देश्य की महत्ता का ज्ञान होता है।
कोई भी जमाव हो तभी विधि विरुद्ध हो सकता है जब उसके सदस्यों का उद्देश्य सामान्य हो अर्थात एक ही जैसा उद्देश्य हो किसी सभा अथवा जमाव में उपस्थित रहने मात्र से कोई व्यक्ति अवैध सभा का सदस्य नहीं हो जाता है जब तक कि उसने एक सामान्य उद्देश्य के अनुसरण में कोई कार्य या लोप नहीं किया हो।
आपराधिक बल या प्रदर्शन द्वारा कोई कार्य किया जाना-
विधि विरुद्ध जमाव के लिए तीसरा आवश्यक महत्वपूर्ण तत्व है आपराधिक बल या प्रदर्शन द्वारा कोई कार्य किया जाना। इस प्रकार प्रदर्शन आपराधिक बल द्वारा होता है अर्थात जैसे किसी मार्ग को रोक देना किसी नदी का जल रोक देना, आपराधिक अतिचार के माध्यम से किसी संपत्ति को नुकसान पहुंचाना, रिष्टि के माध्यम से किसी संपत्ति को नुकसान पहुंचाना। किसी व्यक्ति के ऐसे अधिकार का अतिक्रमण कर देना जो अधिकार उसे प्राप्त है जैसे कि जिस स्थान पर विधि विरुद्ध जमाव हो रहा है उसके आसपास के लोगों को शांति का अधिकार है, राज्य द्वारा उन्हें शांति का अधिकार दिया गया है तथा राज्य का यह कर्तव्य है कि उस जगह के व्यक्तियों को शांति के साथ रहने दिया जाए और इस प्रकार का विधि विरुद्ध जमाव उनके शांति के अधिकार का अतिक्रमण कर रहा है क्योंकि प्रदर्शन इत्यादि में अभद्र भाषा का प्रयोग किया जा रहा है बुरे नारे लगाए जा रहे हैं नैतिकता को तार-तार कर दिया जा रहा है। इस स्थिति में कोई भी प्रदर्शन आपराधिक बल द्वारा हो जाता है।
विधि विरुद्ध जमाव का सदस्य होना-
भारतीय दंड संहिता की धारा 142 विधि विरुद्ध जमाव के सदस्यों के संबंध में उल्लेख कर रही है। इस धारा के अनुसार ऐसा कोई व्यक्ति जो विधि विरुद्ध जमाव के तथ्यों से परिचित होता है उस जमाव में आशयपूर्वक सम्मिलित होता है या बना रहता है तो उसे विधि विरुद्ध जमाव का सदस्य माना जाता है। जहां पांच व्यक्ति किसी रास्ते एक और मृतक की प्रतीक्षा में छिपे हुए हैं वह मृतक के घटनास्थल के पास आने पर अभियुक्त क्रमांक 4, 5 प्रलोभन अभियुक्त क्रमांक 1, 2, 3 ने उस पर बंदूक और पिस्तौल चलाई हो वहां उपर्युक्त अभियुक्त विधि विरुद्ध जमाव के सदस्य माने जाएंगे।
विधि विरुद्ध जमाव के लिए दंड-
भारतीय दंड संहिता की धारा 143 विधि विरुद्ध जमाव के सदस्यों पर दंड के संबंध में उल्लेख कर रही है। इस धारा के अनुसार विधि विरुद्ध जमाव का सदस्य हो जाना इस धारा के अंतर्गत दंडनीय है चाहे ऐसे व्यक्ति द्वारा कोई कार्य नहीं भी किया गया हो। धारा के अनुसार विधि विरुद्ध जमाव के लिए 6 महीने तक का कारावास के दंड का प्रावधान किया गया है आमतौर पर यह साधारण धारा है इसमें कम दंड का उल्लेख किया गया है परंतु विधि विरुद्ध जमाव में घातक हथियारों का भी प्रयोग किया जाता है तो वहां पर दंड अधिक हो जाता है।
यदि कोई विधि विरुद्ध जमाव के सदस्य घातक हथियारों से लैस होकर ऐसा जमाव करते हैं तो यहां पर 2 वर्ष की अवधि का कारावास और जुर्माना निर्धारित किया गया है। धारा 144 इस प्रकार के अपराध का उल्लेख कर रही है इस धारा में वर्णित अपराध धारा 141 पर वर्णित अपराध का उत्तेजक रूप है क्योंकि विधि विरुद्ध जमाव तो अपराध है परंतु इस जमाव में सदस्य हथियारों से लैस होकर उपस्थित हैं तो उससे बड़ा और उत्तेजित अपराध है। इस अपराध के लिए 2 वर्ष का कारावास निर्धारित किया गया है।
धारा 145-
भारतीय दंड संहिता की धारा 145 विधि विरुद्ध जमाव यह जानते हुए कि उसके बिखर जाने का आदेश दे दिया गया है फिर भी सम्मिलित होने के संबंध में उल्लेख कर रही है। इस धारा के अनुसार यदि किसी विधि विरुद्ध जमाव को सरकार द्वारा बिखर जाने का आदेश दे दिया गया है किसी लोक अधिकारी द्वारा इस प्रकार के जमाव को बिखर जाने के लिए कहा गया है इसका कहे जाने के बाद भी यदि इसके सदस्य इस में सम्मिलित होते हैं तो भारतीय दंड संहिता की धारा 145 के अंतर्गत उन पर 2 वर्ष तक के कारावास और जुर्माने का दंड निर्धारित किया गया है।