भारत-ब्रिटेन मुक्त व्यापार समझौता: अवसर, चुनौतियाँ और संवैधानिक दृष्टिकोण
Himanshu Mishra
19 May 2025 6:28 PM IST

भारत और यूनाइटेड किंगडम (ब्रिटेन) के बीच प्रस्तावित Free Trade Agreement (FTA - मुक्त व्यापार समझौता) इन दिनों व्यापार, राजनीति और अंतरराष्ट्रीय संबंधों के क्षेत्र में एक बड़ा विषय बना हुआ है। इस समझौते का उद्देश्य भारत और ब्रिटेन के बीच व्यापार (Trade), निवेश (Investment), सेवाओं (Services) और बौद्धिक संपदा अधिकारों (Intellectual Property Rights) जैसे कई क्षेत्रों में बाधाओं को हटाकर पारस्परिक लाभ को बढ़ावा देना है।
2021 से इस पर बातचीत जारी है और अब यह अंतिम दौर में पहुँच चुका है। यह समझौता इसलिए भी ख़ास है क्योंकि यह post-Brexit दौर में ब्रिटेन का सबसे महत्वपूर्ण रणनीतिक और आर्थिक कदम माना जा रहा है, वहीं भारत के लिए यह एक बड़ी आर्थिक छलांग और वैश्विक व्यापार में भागीदारी बढ़ाने का अवसर है।
मुख्य उद्देश्य और प्रावधान (Main Objectives and Provisions)
यह समझौता भारत-ब्रिटेन के व्यापार संबंधों को मजबूत बनाने के लिए कई क्षेत्रों में महत्वपूर्ण प्रावधानों को शामिल करता है। इसका उद्देश्य है कि दोनों देश एक-दूसरे को कर मुक्त (Duty-Free) या कम कर (Low Tariff) वाली सुविधा दें ताकि उत्पादों और सेवाओं का आदान-प्रदान आसानी से हो सके।
ब्रिटेन की ओर से यह अपेक्षा की गई है कि भारतीय बाज़ार में शराब, ऑटोमोबाइल्स और उच्च तकनीक सेवाओं को अधिक पहुंच मिले। वहीं भारत चाहता है कि उसके टेक्सटाइल (Textile), आईटी (IT), दवाइयों (Pharmaceuticals) और योग-आयुर्वेद आधारित उत्पादों को ब्रिटेन में ज्यादा मौके मिलें।
भारत यह भी चाहता है कि भारतीय पेशेवरों (Professionals) को ब्रिटेन में आसानी से वीज़ा (Visa) मिले, जिससे शिक्षा, हेल्थ और आईटी सेक्टर में भारतीय युवाओं को काम करने का अवसर बढ़े।
विवादास्पद मुद्दे (Controversial Issues)
हाल ही में यह समझौता कुछ विवादों की वजह से चर्चा में है। पहला मुद्दा Rule of Origin का है, यानी कोई उत्पाद वास्तव में किस देश में बना है, इसकी पहचान जरूरी होगी। ब्रिटेन चाहता है कि भारत इसमें अधिक पारदर्शिता रखे, जबकि भारत को लगता है कि इससे उसके उद्योगों पर दबाव बढ़ सकता है।
दूसरा बड़ा मुद्दा है Investor-State Dispute Settlement (ISDS) प्रणाली, जिसमें विदेशी कंपनियाँ भारत सरकार के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय अदालत में मुकदमा कर सकती हैं। भारत इस प्रकार के तंत्र का विरोध करता आया है क्योंकि इससे उसकी नीतियों की स्वायत्तता (Sovereignty) प्रभावित हो सकती है।
क्यों है यह समझौता खबरों में (Why It Is In News These Days)
अप्रैल 2024 में इस समझौते को लेकर ब्रिटेन के व्यापार सचिव और भारत के वाणिज्य मंत्री के बीच अहम बैठक हुई। उम्मीद जताई गई थी कि लोकसभा चुनाव से पहले इसे अंतिम रूप दे दिया जाएगा, लेकिन कुछ मुद्दों पर मतभेद के चलते इसमें देरी हुई।
इसके अतिरिक्त, ब्रिटेन की सरकार पर यह दबाव है कि वह ब्रेक्सिट के बाद जल्दी से जल्दी प्रभावी व्यापार साझेदारियों को अंतिम रूप दे, ताकि उसकी वैश्विक छवि और अर्थव्यवस्था को मजबूती मिल सके। भारत के लिए यह मौका है कि वह ब्रिटेन के साथ एक मजबूत भागीदारी स्थापित कर अन्य यूरोपीय देशों के साथ भी नए समझौते करने की भूमिका तैयार करे।
संवैधानिक दृष्टिकोण से विश्लेषण (Legal & Constitutional Analysis)
भारत में संविधान के अनुच्छेद 246 और सातवीं अनुसूची के तहत विदेशी व्यापार केंद्र सरकार के अधिकार क्षेत्र में आता है। यानी संसद और केंद्र सरकार को यह शक्ति है कि वह अंतरराष्ट्रीय व्यापार समझौते करें।
हालांकि ऐसे समझौते घरेलू कानूनों से ऊपर नहीं होते, इसलिए यदि FTA में ऐसा कोई प्रावधान आता है जो भारतीय श्रम कानून, पर्यावरण कानून या किसी राज्य की नीति से टकराता है, तो उसका विशेष ध्यान रखा जाना जरूरी होता है।
भारतीय संविधान संघीय (Federal) ढांचे को मान्यता देता है, जिसमें राज्यों को कुछ अधिकार होते हैं। जैसे, शराब या कृषि उत्पादों पर नियंत्रण राज्य सरकारों के पास है। ऐसे में यदि FTA के कारण किसी राज्य को नुकसान होता है, तो उस राज्य की राय भी आवश्यक है। हालांकि इस तरह की राय बाध्यकारी (Binding) नहीं होती, लेकिन लोकतांत्रिक भावना के तहत इसे महत्व दिया जाना चाहिए।
इसके अलावा, संविधान के अनुच्छेद 253 के अंतर्गत केंद्र सरकार को अंतरराष्ट्रीय संधियों को लागू करने के लिए संसद में कानून बनाने का अधिकार प्राप्त है। इस संदर्भ में यदि भारत-यूके FTA के कुछ प्रावधानों को लागू करने के लिए संसद में नया कानून लाना पड़े, तो यह प्रक्रिया अपनानी होगी।
आर्थिक महत्व और संभावनाएं (Economic Significance and Opportunities)
भारत और ब्रिटेन के बीच फिलहाल लगभग 20 बिलियन डॉलर का वार्षिक व्यापार होता है। इस समझौते के बाद इसमें लगभग 50 प्रतिशत तक वृद्धि की उम्मीद है। भारत के लिए ब्रिटेन एक महत्वपूर्ण बाजार है, खासकर ऑर्गेनिक दवाओं, जेम्स एंड ज्वैलरी (Gems & Jewellery), गारमेंट्स और सेवाओं के क्षेत्र में।
वहीं भारत में ब्रिटेन की कंपनियाँ शिक्षा, बीमा, बैंकिंग और ऊर्जा जैसे क्षेत्रों में निवेश करने की इच्छुक हैं। इससे भारत को FDI (Foreign Direct Investment) बढ़ाने का अवसर मिलेगा।
भारत के स्टार्टअप (Startup) और MSME क्षेत्र को भी इससे लाभ मिल सकता है क्योंकि उन्हें नया बाजार मिलेगा और वे अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा में आने के लिए बेहतर टेक्नोलॉजी और संसाधन पा सकेंगे।
भारत के दृष्टिकोण से चिंताएं (Concerns from India's Perspective)
हालांकि यह समझौता कई अवसर प्रदान करता है, फिर भी भारत के सामने कुछ अहम चिंताएं भी हैं। जैसे, यदि ब्रिटेन से आने वाले सस्ते उत्पाद भारतीय उद्योगों को नुकसान पहुँचाते हैं तो इससे रोजगार पर असर पड़ सकता है। भारत के छोटे उद्योगों के लिए ब्रिटेन की कंपनियों से प्रतिस्पर्धा करना मुश्किल हो सकता है।
इसके अलावा, यदि ब्रिटेन की कंपनियाँ ISDS के तहत भारत पर मुकदमे करने लगें, तो इससे सरकार की नीतियों और कार्यक्रमों पर असर पड़ सकता है।
राजनीतिक और सामाजिक प्रभाव (Political and Social Impact)
इस समझौते से भारत और ब्रिटेन के द्विपक्षीय संबंध और मजबूत हो सकते हैं। शिक्षा, तकनीक, संस्कृति और सामरिक क्षेत्रों में सहयोग बढ़ेगा। ब्रिटेन में भारतीय प्रवासी बड़ी संख्या में हैं, और इस समझौते से उन्हें भी नए अवसर मिल सकते हैं।
हालांकि, ब्रिटेन में वीजा नीति को लेकर जो सख्ती रही है, वह एक चिंता का विषय है। भारत चाहता है कि पेशेवरों और छात्रों को अधिक आसानी से ब्रिटेन में आने-जाने की सुविधा मिले, ताकि यह समझौता एकतरफा न रह जाए।
भारत और ब्रिटेन के बीच FTA न केवल आर्थिक समझौता है, बल्कि यह दो लोकतंत्रों के बीच विश्वास और साझेदारी का प्रतीक भी है। यह समझौता यदि संतुलन और पारदर्शिता के साथ किया जाता है, तो यह भारत के व्यापार, रोजगार और वैश्विक स्थान को नई ऊँचाई दे सकता है।
हालांकि, भारत को यह ध्यान रखना होगा कि इसके प्रावधान घरेलू उद्योगों, संविधानिक ढांचे और नीतिगत स्वतंत्रता पर असर न डालें। यही इसकी सफलता की असली कसौटी होगी।

