मेनका गांधी बनाम बारत संघ (1978) के संवैधानिक मामले में महत्वपूर्ण बिंदु

Himanshu Mishra

20 Feb 2024 12:27 PM GMT

  • मेनका गांधी बनाम बारत संघ (1978) के संवैधानिक मामले में महत्वपूर्ण बिंदु

    मेनका गांधी को 1967 के पासपोर्ट अधिनियम का पालन करते हुए 1 जून 1976 को अपना पासपोर्ट मिला। 2 जुलाई 1977 को, नई दिल्ली में क्षेत्रीय पासपोर्ट कार्यालय ने उन्हें बिना कारण बताए अपना पासपोर्ट छोड़ने के लिए कहा, यह दावा करते हुए कि यह सार्वजनिक हित में था। बिना किसी स्पष्टीकरण के, उसने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया और तर्क दिया कि उसका पासपोर्ट जब्त करना अनुच्छेद 21 के तहत उसके व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन है। अधिकारियों ने जवाब दिया कि उन्हें "आम जनता के हित" के लिए कारण बताने की ज़रूरत नहीं है। जवाब में, उन्होंने अनुच्छेद 32 के तहत एक रिट याचिका दायर की, जिसमें अनुच्छेद 14, 19 और 21 के तहत गारंटीकृत मौलिक अधिकारों के उल्लंघन का आरोप लगाया गया, जिसमें कहा गया कि अधिनियम की धारा 10(3)(सी) संविधान के खिलाफ है।

    न्यायालय का निर्णय

    धारा 10(3)(सी) असंवैधानिक घोषित :

    अदालत ने पासपोर्ट अधिनियम, 1967 की धारा 10(3)(सी) को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन घोषित किया। यह अनुभाग पासपोर्ट प्राधिकरण को अपरिभाषित शक्ति प्रदान करता है, जिसमें स्पष्टता और निष्पक्षता का अभाव है।

    अनुच्छेद 21 का उल्लंघन:

    अदालत ने धारा 10(3)(सी) को अनुच्छेद 21 का उल्लंघन करते हुए पाया क्योंकि इसमें उचित प्रक्रिया का अभाव है, और निष्पादित प्रक्रिया को सबसे खराब संभव माना गया। पासपोर्ट अधिकारियों के पास तब तक रहेगा जब तक वे अन्यथा निर्णय नहीं लेते।

    ऐतिहासिक निर्णय - 25 जनवरी, 1978:

    7-न्यायाधीशों की पीठ द्वारा दिए गए इस ऐतिहासिक फैसले ने भारतीय संविधान को नया आकार दिया। इसने प्रस्तावना में उल्लिखित कल्याणकारी राज्य के लक्ष्य को रेखांकित करते हुए अनुच्छेद 21 के दायरे का विस्तार किया।

    पासपोर्ट अधिनियम पूर्व परिदृश्य:

    पासपोर्ट अधिनियम 1967 से पहले, पासपोर्ट पर कोई नियम नहीं थे, अधिकारियों के पास विवेकाधीन शक्तियां थीं। फैसले का उद्देश्य पासपोर्ट जारी करने की समस्या का समाधान करना था।

    सतवंत सिंह साहनी की मिसाल:

    सतवंत सिंह साहनी बनाम डी रामरत्नम का जिक्र करते हुए अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता में विदेश यात्रा का अधिकार भी शामिल है। स्थापित प्रक्रियाओं के बिना पासपोर्ट जब्त करना अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है।

    अन्यायपूर्ण ज़ब्ती :

    अदालत ने इस बात पर प्रकाश डाला कि केंद्र सरकार मेनका गांधी का पासपोर्ट जब्त करने के कारणों का खुलासा करने में विफल रही। जांच आयोग के समक्ष उसकी उपस्थिति की आवश्यकता के लिए कथित सार्वजनिक हित को एक बहाना पाया गया।

    परस्पर मौलिक अधिकार: (Interconnected Fundamental Rights)

    फैसले में इस बात पर जोर दिया गया कि अनुच्छेद 21 के तहत मौलिक अधिकारों को अलग-थलग नहीं किया जाना चाहिए। अदालत ने अनुच्छेद 14, 19 और 21 को जोड़ते हुए कहा कि वे परस्पर संबंधित हैं और उन्हें सामूहिक रूप से परीक्षण पास करना होगा।

    Principles of Natural Justice

    जबकि अनुच्छेद 21 "कानून की उचित प्रक्रिया" के बजाय "कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया" का उपयोग करता है, अदालत ने माना कि ऑडी अल्टरम पार्टम सहित प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत, किसी भी निष्पक्ष प्रक्रिया का अभिन्न अंग होना चाहिए।

    अधिकारों का वैश्विक प्रयोग:

    अदालत ने स्पष्ट किया कि बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता जैसे मौलिक अधिकार भारत तक ही सीमित नहीं हैं। मौलिक अधिकारों द्वारा संरक्षित कुछ मानवीय मूल्य स्पष्ट संवैधानिक उल्लेखों से परे हो सकते हैं।

    A. K. Gopalan v. State of Madras को खारिज करते हुए गोपालन:

    फैसले ने AK Gopalan v Union of India को खारिज कर दिया। गोपालन ने अनुच्छेद 14, 19 और 21 की परस्पर निर्भरता बताते हुए कहा कि पहले इन प्रावधानों को गलती से परस्पर अनन्य माना जाता था।

    सुप्रीम कोर्ट की निगरानी भूमिका:

    इस मामले के बाद, सुप्रीम कोर्ट ने संवैधानिक सिद्धांतों की रक्षा करने की भूमिका निभाई। बहुमत की राय ने इस बात पर जोर दिया कि संवैधानिक जांच का सामना करने के लिए कानून उचित, निष्पक्ष और उचित होना चाहिए।

    स्वर्ण त्रिभुज सिद्धांत (Golden Triangle Principle)

    अदालत ने "स्वर्ण त्रिभुज" सिद्धांत पेश किया, जिसमें कहा गया कि अनुच्छेद 14, 19 और 21 पर एक साथ विचार किया जाना चाहिए। यह सिद्धांत कानूनों की वैधता के मूल्यांकन के लिए एक महत्वपूर्ण ढांचा बन गया।

    व्यक्तिगत स्वतंत्रता और निष्पक्ष प्रक्रिया:

    फैसले ने व्यक्तिगत स्वतंत्रता के महत्व को दोहराया, यह सुनिश्चित किया कि यह निष्पक्ष और उचित प्रक्रियाओं के अनुरूप हो। इसने इस बात को पुष्ट किया कि कानून की भावना, न कि केवल रूप, न्याय को कायम रखती है।

    मेनका गांधी बनाम भारत संघ मामले में इस ऐतिहासिक फैसले ने व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा और कानूनों की न्यायसंगतता सुनिश्चित करने के लिए एक महत्वपूर्ण मिसाल कायम की।

    मेनका गांधी बनाम भारत संघ मामले ने महत्वपूर्ण कानूनी सिद्धांत स्थापित किए। सर्वोच्च न्यायालय ने मौलिक अधिकारों के संरक्षक के रूप में कार्य किया, इस बात पर जोर दिया कि कानून असंवैधानिक समझे जाने से बचने के लिए उचित, निष्पक्ष और उचित (Just, Unbiased and Fair) होने चाहिए।

    फैसले ने संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार की व्याख्या का विस्तार किया।नागरिकों को कार्यपालिका की मनमानी कार्रवाइयों के विरुद्ध सुरक्षा प्राप्त करने की क्षमता प्राप्त हुई।

    अनुच्छेद 14, 19 और 21 वाले "स्वर्ण त्रिभुज" के महत्व पर प्रकाश डाला गया, जिससे प्रक्रियाओं के लिए तीनों अनुच्छेदों के साथ संरेखित होना अनिवार्य हो गया।

    इस निर्णय ने अनुच्छेद 21 के तहत विभिन्न अन्य अधिकारों जैसे स्वच्छ पानी तक पहुंच, मानक शिक्षा, आजीविका, कानूनी सहायता आदि को शामिल करने का दायरा बढ़ा दिया।

    A. K. Gopalan v. State of Madras के विपरीत मामले में, जहां "कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया" (Procedure Established by Law) को "कानून की उचित प्रक्रिया" (Due Process by Law) के साथ नहीं माना गया था, सुप्रीम कोर्ट ने मेनका गांधी मामले में इस दृष्टिकोण को खारिज कर दिया। न्यायालय ने फैसला सुनाया कि बिना कारण बताए पासपोर्ट जब्त करना मनमाना था, जिससे इन कानूनी वाक्यांशों की व्याख्या का विस्तार हुआ और एक नई मिसाल कायम हुई।

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