अगर किसी अपराध का ट्रायल किसी अन्य राज्य में हुआ हो तो किस राज्य सरकार को दोषी की Remission याचिका पर निर्णय लेने का अधिकार होगा?

Himanshu Mishra

30 Jan 2025 11:45 AM

  • अगर किसी अपराध का ट्रायल किसी अन्य राज्य में हुआ हो तो किस राज्य सरकार को दोषी की Remission याचिका पर निर्णय लेने का अधिकार होगा?

    सुप्रीम कोर्ट ने राधेश्याम भगवंदास शाह बनाम गुजरात राज्य (2022) मामले में एक महत्वपूर्ण कानूनी सवाल पर फैसला दिया कि क्या किसी दोषी (Convict) को उसी Remission नीति (Premature Release Policy) के तहत रिहाई का अधिकार है, जो उसकी सजा (Conviction) के समय लागू थी, या उसे बाद में बदली गई नीति के अनुसार देखा जाएगा।

    कोर्ट ने स्पष्ट किया कि दोषी की Remission याचिका (Application) पर उसी नीति के अनुसार विचार किया जाना चाहिए, जो उसके सजा सुनाए जाने (Conviction) के समय प्रभावी थी। इस फैसले ने सजा और सजा के बाद के अधिकारों (Post-Conviction Rights) में समानता (Fairness) के सिद्धांत को और मजबूत किया।

    यह फैसला Code of Criminal Procedure, 1973 (CrPC) की धारा 432 और 433 की व्याख्या (Interpretation) पर आधारित था, जो सरकार को दोषियों की सजा कम करने (Sentence Remission) का अधिकार देती है।

    इसके अलावा, यह मामला तब और जटिल हो गया जब दोषी का ट्रायल (Trial) एक राज्य में हुआ, लेकिन अपराध (Crime) दूसरे राज्य में किया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने यह तय किया कि ऐसी स्थिति में किस राज्य को दोषी की Remission याचिका पर फैसला करने का अधिकार होगा।

    कोर्ट द्वारा जांचे गए कानूनी प्रावधान (Legal Provisions Considered by the Court)

    इस मामले में Remission से संबंधित CrPC के महत्वपूर्ण प्रावधानों (Provisions) का विश्लेषण किया गया। दो मुख्य प्रावधान थे:

    1. CrPC की धारा 432 (Section 432 of CrPC) – यह सरकार को दोषियों की सजा निलंबित (Suspend) या माफ (Remit) करने का अधिकार देता है। धारा 432(7) के अनुसार, "उचित सरकार" (Appropriate Government) आमतौर पर वही राज्य होता है जहां अपराध हुआ था।

    2. CrPC की धारा 433 (Section 433 of CrPC) – इस धारा के तहत, सरकार को आजीवन कारावास (Life Imprisonment) को कम अवधि की सजा में बदलने (Commutation) का अधिकार होता है।

    3. संविधान का अनुच्छेद 161 (Article 161 of the Constitution of India) – यह राज्यपाल (Governor) को दोषियों की सजा माफ करने का अधिकार देता है। हालांकि, यह शक्ति पूरी तरह से मनमानी (Arbitrary) नहीं हो सकती और इसे न्यायालय (Court) के न्यायिक समीक्षा (Judicial Review) के अधीन रखा गया है।

    कोर्ट ने इन प्रावधानों की समीक्षा करते हुए यह तय किया कि दोषी की Remission याचिका पर विचार करने के लिए सजा के समय लागू नीति को प्राथमिकता दी जानी चाहिए, न कि बाद में बनाए गए कड़े नियमों को।

    Remission नीति में सजा के समय की नीति का महत्व (Principle of Applying the Policy in Force at the Time of Conviction)

    सुप्रीम कोर्ट ने यह दोहराया कि Remission नीति का निर्धारण उस समय की नीति के अनुसार किया जाना चाहिए, जो दोषी के सजा सुनाए जाने के समय प्रभावी थी।

    यह सिद्धांत पहले हरियाणा राज्य बनाम जगदीश (2010) मामले में स्थापित किया गया था, जिसमें कोर्ट ने कहा था कि दोषी यह उम्मीद कर सकता है कि उसकी सजा में छूट (Remission) उसी नीति के अनुसार दी जाएगी, जो उसकी सजा के समय लागू थी।

    कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि यदि किसी दोषी को सजा के समय Remission का अधिक उदार (Liberal) प्रावधान दिया गया था, तो उस नीति को लागू किया जाना चाहिए। अगर बाद में नीति में बदलाव होता है, तो इसे दोषी के खिलाफ इस्तेमाल नहीं किया जा सकता, क्योंकि यह न्याय के सिद्धांतों (Principles of Justice) का उल्लंघन होगा।

    "उचित सरकार" का निर्धारण (Determining the "Appropriate Government" for Remission)

    इस मामले में एक प्रमुख मुद्दा यह था कि कौन सी राज्य सरकार दोषी की Remission याचिका पर निर्णय लेगी। अपराध गुजरात में हुआ था, लेकिन विशेष परिस्थितियों में ट्रायल महाराष्ट्र में स्थानांतरित (Transfer) कर दिया गया था।

    दोषी ने अपनी Remission याचिका गुजरात सरकार को सौंपी, लेकिन गुजरात हाईकोर्ट ने इसे यह कहते हुए खारिज कर दिया कि चूंकि ट्रायल महाराष्ट्र में हुआ था, इसलिए महाराष्ट्र सरकार को इस पर विचार करना चाहिए।

    सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला दिया कि Remission पर निर्णय लेने का अधिकार उसी राज्य सरकार को होगा, जहां अपराध हुआ था।

    कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि भले ही किसी विशेष मामले में ट्रायल किसी अन्य राज्य में स्थानांतरित कर दिया गया हो, लेकिन मूल अपराध जिस राज्य में हुआ था, वही राज्य "उचित सरकार" (Appropriate Government) मानी जाएगी। यह निष्कर्ष CrPC की धारा 432(7) की भाषा पर आधारित था, जो यह कहती है कि "उचित सरकार" वह होगी जिसके अधिकार क्षेत्र (Jurisdiction) में अपराध हुआ था।

    पिछले फैसलों में उत्पन्न भ्रम को दूर करना (Overruling the Confusion Created by Previous Judgments)

    गुजरात राज्य ने अपने बचाव में सुप्रीम कोर्ट के फैसले भारत संघ बनाम वी. श्रीहरन (2016) का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि चूंकि ट्रायल महाराष्ट्र में हुआ था, इसलिए महाराष्ट्र सरकार को Remission पर फैसला करना चाहिए।

    लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस तर्क को खारिज कर दिया और कहा कि सामान्य परिस्थितियों में, वही राज्य सरकार Remission पर विचार करेगी जहां अपराध हुआ था।

    कोर्ट ने यह भी कहा कि CrPC की धारा 432(7) के तहत, किसी दोषी के मामले में दो राज्यों को एक साथ अधिकार नहीं दिया जा सकता। यह फैसला न केवल इस मामले को हल करता है बल्कि भविष्य में भी ऐसे मामलों में स्पष्टता (Clarity) लाने का काम करेगा।

    दोषी की Remission याचिका पर कोर्ट का निर्देश (The Court's Direction on the Petitioner's Remission Application)

    कोर्ट ने यह फैसला सुनाया कि दोषी की Remission याचिका गुजरात सरकार द्वारा 9 जुलाई 1992 की नीति के अनुसार देखी जानी चाहिए, क्योंकि यह नीति दोषी के सजा पाने के समय प्रभावी थी। कोर्ट ने गुजरात सरकार को निर्देश दिया कि वह इस याचिका पर दो महीने के भीतर फैसला करे।

    अगर सरकार कोई प्रतिकूल (Adverse) फैसला लेती है, तो दोषी को कानूनी उपाय (Legal Remedy) अपनाने का अधिकार रहेगा। इस फैसले से यह सुनिश्चित हुआ कि दोषी की सजा के बाद भी उसके अधिकारों (Post-Conviction Rights) को सुरक्षित रखा जाए।

    Remission में निष्पक्षता का महत्व (The Importance of Fairness in Remission Decisions)

    कोर्ट के इस फैसले से यह सिद्धांत मजबूत हुआ कि Remission नीतियों में दोषियों के अधिकारों की रक्षा (Protection of Rights) होनी चाहिए। "वैध अपेक्षा" (Legitimate Expectation) का सिद्धांत इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। जब कोई दोषी सजा पाता है, तो उसे यह उम्मीद होती है कि उसकी Remission याचिका उसी नीति के अनुसार देखी जाएगी, जो उस समय लागू थी। किसी भी तरह का बदलाव, जो दोषी के खिलाफ जाए, अनुचित (Unjust) होगा।

    कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि Remission कोई स्वचालित (Automatic) अधिकार नहीं है, बल्कि सरकार की विवेकाधीन शक्ति (Discretionary Power) के तहत दिया जाता है। हालांकि, सरकार को इसे निष्पक्षता (Fairness) और समानता (Equality) के आधार पर लागू करना होगा।

    इस फैसले का व्यापक प्रभाव (The Wider Impact of the Judgment)

    इस फैसले का असर पूरे देश में Remission नीतियों पर पड़ेगा। अब यह सुनिश्चित किया जाएगा कि किसी दोषी की सजा मनमाने ढंग से बढ़ाई न जाए। इसके अलावा, यह भी स्पष्ट कर दिया गया है कि अगर किसी दोषी का ट्रायल दूसरे राज्य में स्थानांतरित कर दिया जाता है, तो भी उसके Remission पर फैसला उसी राज्य सरकार द्वारा किया जाएगा जहां अपराध हुआ था।

    सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला न्याय और निष्पक्षता (Justice and Fairness) को बनाए रखने में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह सुनिश्चित करता है कि Remission नीति दोषियों के लिए मनमाने ढंग से बदली न जाए और कानूनी प्रक्रियाएं पारदर्शी (Transparent) और न्यायसंगत (Just) बनी रहें। इस फैसले ने एक मजबूत मिसाल पेश की है, जिससे भविष्य में ऐसे मामलों में न्याय की गारंटी होगी।

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