साझा संपत्ति के बंटवारे के मुकदमों में Court Fee कैसे लगेगी – Rajasthan Court Fees and Suits Valuation Act, 1961 की धारा 35
Himanshu Mishra
21 April 2025 11:22 AM

भारत जैसे देश में जहाँ संयुक्त परिवार प्रणाली (Joint Family System) एक आम परंपरा है, वहाँ पारिवारिक संपत्तियों का विवाद और बंटवारे के मुकदमे काफी सामान्य हैं। ऐसे मामलों में जब एक या अधिक व्यक्ति संयुक्त संपत्ति (Joint Family Property) में अपना हिस्सा प्राप्त करना चाहते हैं, तब वे अदालत में Partition Suit दायर करते हैं। Partition Suit का उद्देश्य यह होता है कि संपत्ति का न्यायोचित बंटवारा हो और संबंधित पक्षों को उनका वैधानिक (Legal) हिस्सा मिले।
ऐसे मुकदमों में Court Fee एक महत्वपूर्ण विषय होता है, क्योंकि यह इस पर निर्भर करता है कि Plaintiff (मुकदमा दायर करने वाला) या Defendant (उत्तरदाता) संपत्ति के कब्जे में है या उससे बाहर कर दिया गया है। Rajasthan Court Fees and Suits Valuation Act, 1961 की धारा 35 विशेष रूप से Partition Suits से संबंधित मामलों में Court Fee की गणना को स्पष्ट करती है। इस धारा में यह बताया गया है कि अलग-अलग स्थितियों में Fee किस तरह से तय की जाएगी।
इस लेख में हम धारा 35 के सभी उप-विनियमों को क्रमवार और सरल हिंदी में समझेंगे, उदाहरणों की सहायता से इसका पूरा अर्थ स्पष्ट करेंगे ताकि एक आम व्यक्ति भी इस विषय को आसानी से समझ सके।
धारा 35(1): कब्जे से बाहर किए गए Plaintiff के लिए Court Fee का निर्धारण (Fee Based on Market Value of Plaintiff's Share When Excluded from Possession)
जब कोई Plaintiff यह दावा करता है कि वह संयुक्त परिवार की संपत्ति या किसी साझेदारी वाली संपत्ति से बाहर कर दिया गया है और अब वह अपनी हिस्सेदारी का बंटवारा और अलग से कब्जा (Separate Possession) चाहता है, तो उसे Court Fee अपनी हिस्सेदारी की Market Value यानी बाजार मूल्य के अनुसार देनी होगी।
इस स्थिति में Court Fee निर्धारित करते समय यह देखा जाता है कि Plaintiff के हिस्से की संपत्ति की बाजार में कितनी कीमत है। जितना बड़ा हिस्सा होगा और जितनी अधिक कीमत होगी, Court Fee उतनी ही अधिक लगेगी।
उदाहरण के लिए, अगर राम यह दावा करता है कि वह अपने भाइयों द्वारा संयुक्त मकान से बाहर कर दिया गया है और उसका 1/3 हिस्सा है जिसकी कीमत ₹9 लाख है, तो उसे Court Fee ₹9 लाख के अनुसार देनी होगी। यह इसलिए है क्योंकि वह अब उस संपत्ति में कब्जे में नहीं है और उसका हिस्सा Court के ज़रिए प्राप्त करना चाहता है।
धारा 35(2): कब्जे में रहने वाले Plaintiff के लिए Court Fee का निर्धारण (Fixed Fee Slabs When Plaintiff is in Joint Possession)
अगर Plaintiff अभी भी संपत्ति में संयुक्त कब्जे (Joint Possession) में है, यानी उसे बाहर नहीं निकाला गया है और वह संपत्ति में रह रहा है, तो Court Fee का निर्धारण बाजार मूल्य के अनुसार नहीं होगा, बल्कि एक निश्चित राशि के रूप में तय किया गया है।
तीन स्तरों पर यह निर्धारित किया गया है:
यदि Plaintiff के हिस्से का मूल्य ₹5,000 या उससे कम है, तो Court Fee ₹30 होगी।
यदि मूल्य ₹5,000 से अधिक है लेकिन ₹10,000 से कम या बराबर है, तो Court Fee ₹100 देनी होगी।
यदि हिस्से का मूल्य ₹10,000 से अधिक है, तो Court Fee ₹200 देनी होगी।
यह प्रणाली इस बात को मान्यता देती है कि जब Plaintiff पहले से संपत्ति में मौजूद है, तो बंटवारे की मांग केवल औपचारिक रूप से की जा रही है, इसलिए Court Fee कम रखी गई है।
उदाहरण के रूप में, अगर सीता का दावा है कि वह अपने पिता की संयुक्त संपत्ति में रह रही है और उसका हिस्सा ₹12,000 का है, तो वह ₹200 की Court Fee अदा करके Partition Suit दायर कर सकती है।
धारा 35(3): Defendant द्वारा बंटवारे की मांग पर Court Fee (Defendant's Fee Based on Half Market Value or Half Fixed Fee)
यदि Partition Suit में कोई Defendant यह मांग करता है कि उसे भी संपत्ति में से उसका हिस्सा चाहिए और वह भी अलग से कब्जा चाहता है, तो उसे भी Court Fee अदा करनी होगी। उसकी Fee दो बातों पर निर्भर करेगी:
यदि Defendant को संपत्ति से बाहर कर दिया गया है, तो उसे अपने हिस्से के Market Value का आधा हिस्सा लेकर Court Fee देनी होगी।
अगर Defendant संयुक्त कब्जे में है, तो धारा 35(2) में दिए गए Fee Slabs का आधा Court Fee देनी होगी।
यह व्यवस्था यह सुनिश्चित करती है कि यदि Defendant भी Partition से लाभ उठाना चाहता है, तो उसे भी वैसी ही Court Fee देनी चाहिए जैसी Plaintiff देता है, परन्तु यह कुछ हद तक रियायत देती है क्योंकि Defendant ने स्वतः मुकदमा नहीं दायर किया।
उदाहरण के तौर पर, मान लीजिए कि मुकदमे में राधा Defendant है और वह भी अब अपना हिस्सा चाहती है जो कि ₹6,000 का है और वह संपत्ति में रह रही है, तो धारा 35(2) के अनुसार उसकी Fee ₹100 होती, और उसका आधा ₹50, उसे देना होगा।
धारा 35(4): वाद में किसी दस्तावेज या डिक्री को रद्द करने की मांग हो तो अलग से Court Fee देनी होगी (Separate Fee for Relief of Cancellation of Decree or Document as per Section 38)
Partition Suit में कभी-कभी Plaintiff या Defendant ऐसा Relief भी मांगते हैं कि किसी पुराने बंटवारे की डिक्री (Decree) या किसी दस्तावेज (Document) को रद्द (Cancel) किया जाए। यदि ऐसा होता है, तो उसके लिए अलग से Court Fee देनी होगी, जैसा कि Section 38 में निर्धारित किया गया है।
यह उप-विनियम इस बात को स्पष्ट करता है कि Partition Suit के अंदर यदि कोई अतिरिक्त Relief भी माँगा जा रहा है, तो उसकी Court Fee भी अलग से लगेगी। उदाहरण के लिए, यदि Plaintiff कहता है कि किसी पुराने Registered Will या Family Settlement को रद्द किया जाए क्योंकि वह फर्जी है, तो उसके लिए Section 38 के अनुसार अलग से Court Fee देनी होगी।
पूर्व धाराओं से तुलना (Comparison with Earlier Sections if Required)
Section 34 और Section 35 के बीच एक स्पष्ट अंतर यह है कि Section 34 में Partnership के बंटवारे की बात होती है, जबकि Section 35 में पारिवारिक या साझे स्वामित्व (Joint or Common Ownership) वाली संपत्ति की बात होती है। Section 33 में भी Court Fee वास्तविक राशि निकलने पर बढ़ती है, लेकिन Section 35(2) में निश्चित रकम तय कर दी गई है ताकि समान कब्जे में रहने वाले लोगों को अधिक Fee न देनी पड़े।
Rajasthan Court Fees and Suits Valuation Act, 1961 की धारा 35, साझा संपत्ति के बंटवारे से संबंधित मामलों में Court Fee के निर्धारण की विस्तृत प्रक्रिया को स्पष्ट करती है। यह धारा इस आधार पर Court Fee को अलग-अलग तरीके से तय करती है कि Plaintiff या Defendant कब्जे में है या नहीं, और वह कितने हिस्से का दावा कर रहा है।
यदि कब्जे से बाहर किया गया हो, तो Market Value के अनुसार Fee लगेगी। यदि कब्जे में है, तो एक निश्चित राशि देनी होगी। Defendant भी यदि Relief मांगता है तो उसे भी Fee देनी होगी, भले ही वह आधी क्यों न हो। और यदि किसी पुराने दस्तावेज या डिक्री को रद्द करने की मांग की जाए, तो उस पर अलग से Section 38 के अनुसार Court Fee देनी होगी।
इस प्रकार, धारा 35 न्यायिक प्रक्रिया को पारदर्शी और संतुलित बनाती है, जिससे सभी पक्ष न्यायिक प्रक्रिया में बराबरी के साथ भाग ले सकें और उन्हें उचित Fee के आधार पर अपना हक मिल सके। Partition के मामलों में यह धारा व्यवहारिक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण है और आम नागरिकों को अपने अधिकार प्राप्त करने में कानूनी मार्गदर्शन प्रदान करती है।