सीनियर एडवोकेट का दर्जा कैसे दिया जाता है? – पूरी प्रक्रिया और योग्यता का विश्लेषण

Himanshu Mishra

14 Oct 2024 10:11 AM IST

  • सीनियर एडवोकेट का दर्जा कैसे दिया जाता है? – पूरी प्रक्रिया और योग्यता का विश्लेषण

    भारत के सुप्रीम कोर्ट ने इंदिरा जयसिंह बनाम भारत का सुप्रीम कोर्ट व अन्य मामले में सीनियर एडवोकेट (Senior Advocates) को नामित करने की प्रक्रिया में सुधार किया है। नया सिस्टम निष्पक्षता (Fairness), पारदर्शिता (Transparency), और वस्तुनिष्ठता (Objectivity) सुनिश्चित करता है।

    इस व्यवस्था का उद्देश्य पुराने मनमाने तरीकों को समाप्त कर सुव्यवस्थित तंत्र स्थापित करना है। इस लेख में सीनियर एडवोकेट का दर्जा पाने के लिए आवश्यक योग्यता और पूरी प्रक्रिया का सरल विश्लेषण दिया गया है।

    योग्यता और पात्रता (Qualification and Eligibility)

    एडवोकेट एक्ट, 1961 (Advocates Act) की धारा 16 के अनुसार, कोई अधिवक्ता हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट द्वारा उसकी कानूनी क्षमता (Legal Ability), बार में उसकी प्रतिष्ठा (Standing at the Bar) और कानून में विशेष अनुभव (Special Knowledge or Experience) के आधार पर सीनियर एडवोकेट के रूप में नामित किया जा सकता है।

    इस नामांकन के लिए एडवोकेट की सहमति आवश्यक होती है क्योंकि वरिष्ठ अधिवक्ता बनने के बाद उनके कामकाज पर कुछ सीमाएँ (Restrictions) लागू होती हैं।

    इन सीमाओं के तहत सीनियर एडवोकेट सीधे मामलों की फाइलिंग नहीं कर सकते और न ही ग्राहकों से सीधे संपर्क कर सकते हैं। उन्हें हमेशा जूनियर एडवोकेट या एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड (Advocate-on-Record) के साथ काम करना होता है।

    यह दर्जा केवल अनुभव के आधार पर नहीं, बल्कि अधिवक्ता की विशेषज्ञता, विधिक क्षेत्र में योगदान और सार्वजनिक सेवा (Public Service) के आधार पर दिया जाता है। प्रो बोनो (Pro Bono) कार्य और कानूनी प्रकाशनों (Legal Publications) को भी इस मूल्यांकन में महत्व दिया जाता है।

    वरिष्ठ अधिवक्ता का दर्जा देने की नई प्रक्रिया (New Procedure for Designation)

    सुप्रीम कोर्ट ने इस प्रक्रिया को पारदर्शी और एकरूप बनाने के लिए सेलेक्शन कमेटी (Selection Committee) का गठन किया है। यह कमेटी नामांकन का मूल्यांकन करती है और उम्मीदवारों के नामों की सिफारिश करती है।

    इस कमेटी की अध्यक्षता भारत के चीफ जस्टिस (Chief Justice of India) करते हैं और इसमें सुप्रीम कोर्ट के दो सीनियर जज, भारत के अटॉर्नी जनरल (Attorney General of India), और सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष (President of the Supreme Court Bar Association) शामिल होते हैं।

    इस बहु-सदस्यीय समिति की संरचना से चयन प्रक्रिया में निष्पक्षता और संतुलन सुनिश्चित होता है।

    प्रक्रिया की शुरुआत उम्मीदवारों द्वारा स्वयं आवेदन जमा करने या न्यायाधीशों और बार के सदस्यों की अनुशंसा से होती है। इसके बाद, सेलेक्शन कमेटी सभी आवेदनों की समीक्षा करती है और उम्मीदवारों को अंक-आधारित मूल्यांकन प्रणाली (Point-Based Evaluation System) के तहत स्कोर देती है, जिससे निष्पक्षता सुनिश्चित हो सके।

    अंक-आधारित मूल्यांकन प्रणाली (Point-Based Evaluation System)

    इस प्रणाली में उम्मीदवारों को कुल 100 अंकों का स्कोर दिया जाता है। विभिन्न मापदंडों के आधार पर यह स्कोर निर्धारित किया जाता है। पेशेवर योग्यता (Professional Competence) को सबसे अधिक महत्व दिया गया है, जिसके लिए 40 अंक तक मिलते हैं।

    ईमानदारी और प्रतिष्ठा (Integrity and Reputation) के लिए 25 अंक दिए जाते हैं, जबकि कानूनी प्रकाशन (Publications) और विद्वतापूर्ण योगदान के लिए 15 अंक निर्धारित किए गए हैं।

    सार्वजनिक सेवा (Public Service) और प्रो बोनो कार्य के लिए 10 अंक मिलते हैं। शेष 10 अंक विशेष क्षेत्रों में वकालत (जैसे, संवैधानिक कानून या सार्वजनिक हित याचिका) के लिए दिए जाते हैं।

    सेलेक्शन कमेटी उम्मीदवारों के साक्षात्कार (Interview) भी कर सकती है ताकि उनकी योग्यता और कौशल का सही आकलन किया जा सके। इसके अलावा, न्यायाधीश और कानूनी विशेषज्ञ उम्मीदवारों के बारे में फीडबैक या गुप्त अनुशंसा (Confidential References) भी दे सकते हैं, जिससे मूल्यांकन को और व्यापक बनाया जा सके।

    फुल कोर्ट द्वारा अंतिम निर्णय (Final Decision by the Full Court)

    सेलेक्शन कमेटी द्वारा शॉर्टलिस्ट किए गए उम्मीदवारों की सूची फुल कोर्ट (Full Court) के समक्ष रखी जाती है। फुल कोर्ट में सुप्रीम कोर्ट के सभी न्यायाधीश शामिल होते हैं, जो गुप्त मतदान (Secret Voting) के माध्यम से अंतिम निर्णय लेते हैं। अगर किसी उम्मीदवार को बहुमत प्राप्त होता है तो उसे सीनियर एडवोकेट का दर्जा दिया जाता है।

    यह मतदान प्रक्रिया इस बात को सुनिश्चित करती है कि निर्णय लोकतांत्रिक तरीके से और निष्पक्षता के आधार पर हो।

    सीनियर एडवोकेट पर लागू सीमाएँ (Restrictions on Senior Advocates)

    सीनियर एडवोकेट बनने के बाद निम्नलिखित सीमाएँ लागू होती हैं:

    1. वे वकालतनामा (Vakalatnama) दाखिल नहीं कर सकते और न ही सीधे ग्राहकों का प्रतिनिधित्व कर सकते हैं।

    2. उन्हें अदालत में एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड (Advocate-on-Record) या किसी जूनियर एडवोकेट के साथ उपस्थित होना अनिवार्य होता है।

    3. वे याचिकाओं या दस्तावेजों का मसौदा तैयार नहीं कर सकते, लेकिन जूनियर एडवोकेट के साथ परामर्श कर दस्तावेजों को अंतिम रूप दे सकते हैं।

    4. वे सीधे किसी ग्राहक से मामले की जानकारी या निर्देश प्राप्त नहीं कर सकते।

    ये सीमाएँ यह सुनिश्चित करती हैं कि सीनियर एडवोकेट केवल जटिल कानूनी तर्कों और रणनीतियों पर ध्यान केंद्रित करें और जूनियर एडवोकेट का मार्गदर्शन करें।

    हाईकोर्ट में विविधताएँ (Variations Across High Courts)

    हालाँकि सुप्रीम कोर्ट ने एक समान प्रक्रिया लागू की है, लेकिन अलग-अलग हाईकोर्ट में कुछ मामूली भिन्नताएँ मौजूद हैं। उदाहरण के लिए, कलकत्ता हाईकोर्ट (Calcutta High Court) में आवेदन करने के लिए उम्मीदवार की आयु कम से कम 40 वर्ष और 15 वर्ष का वकालती अनुभव होना चाहिए।

    वहीं, त्रिपुरा हाईकोर्ट (Tripura High Court) में यह आयु सीमा 45 वर्ष रखी गई है। कुछ हाईकोर्ट यह भी सुनिश्चित करते हैं कि उम्मीदवार उसी राज्य के निवासी हों और उनकी वार्षिक आय एक निश्चित सीमा से अधिक हो। हालांकि, सभी अदालतों में प्रमुख सिद्धांत यही है कि चयन मेधा (Merit) और निष्पक्षता (Fairness) के आधार पर हो।

    सुप्रीम कोर्ट द्वारा सीनियर एडवोकेट की नामांकन प्रक्रिया में किया गया यह सुधार पुरानी मनमानी प्रक्रियाओं को समाप्त करता है। सेलेक्शन कमेटी (Selection Committee), अंक-आधारित मूल्यांकन और फुल कोर्ट द्वारा गुप्त मतदान जैसी व्यवस्थाएँ इस प्रक्रिया को निष्पक्ष और पारदर्शी बनाती हैं। यह नया ढाँचा न केवल भारतीय न्याय प्रणाली को वैश्विक मानकों के अनुरूप बनाता है, बल्कि कानूनी क्षेत्र में जनता का विश्वास भी मजबूत करता है।

    Next Story