कोई पुलिस केस किसी सरकारी नौकरी के मामले में क्या प्रभाव डालता है? जानिए प्रावधान

Shadab Salim

22 Jan 2022 5:00 AM GMT

  • कोई पुलिस केस किसी सरकारी नौकरी के मामले में क्या प्रभाव डालता है? जानिए प्रावधान

    एक सरकारी सेवक पुलिस केस के नाम से अत्यधिक भयभीत रहता है। ऐसा माना जाता है कि कोई भी पुलिस केस होने पर किसी सरकारी सेवक को उसकी सेवा से हटा दिया जाता है या फिर सरकारी सेवा की तैयारी करने वाले व्यक्ति को पुलिस वेरिफिकेशन में किसी भी प्रकार का कोई पुलिस केस मिलने पर सरकारी नौकरी नहीं दी जाती है।

    भारत में इससे संबंधित मामले में उच्चतम न्यायालय के समक्ष निरंतर आते रहे हैं। अलग-अलग मामलों में बहुत सारी रूलिंग उच्चतम न्यायालय ने दी है, उन सभी बातों से निकलकर कुछ बातें ऐसी व्यवहार में सामने आती है, जिससे यह स्पष्ट हो जाता है कि एक सरकारी सेवा के मामले में पुलिस केस की क्या भूमिका होती है।

    हालांकि इससे जुड़ा भारत में कोई एक सहिंताबद्ध कानून तो नहीं है, लेकिन अलग-अलग राज्यों के सेवा नियमों में बहुत सारी बातों को समावेश किया गया है।मूल बातें ऐसी है जो सभी जगह एक है और जिनके बारे में भारत का उच्चतम न्यायालय भी एक मत है।

    किसी सरकारी सेवक पर पुलिस केस

    जब भी किसी सरकारी सेवक पर कोई पुलिस केस होता है, तब उसके सस्पेंड या फिर टर्मिनेशन जैसी स्थिति निर्मित हो जाती है। सस्पेंड में किसी व्यक्ति की सेवा को अस्थाई रूप से समाप्त कर दिया जाता है और टर्मिनेशन में सेवा को स्थाई रूप से समाप्त कर दिया जाता है।

    जब भी किसी सरकारी सेवक पर किसी भी प्रकार का आपराधिक प्रकरण बनाया जाता है, तब उसकी सेवा पर प्रश्न तो खड़े होते हैं, लेकिन उसके लिए एक सीमा निर्धारित की गई है। सभी अपराधों के मामले में एफआईआर हो जाने पर सीधे निलंबन की कार्यवाही नहीं कर दी जाती है, बल्कि ऐसे अपराध जो नैतिक अधमता से जुड़े हुए हैं और जिन अपराधों में 3 वर्ष से अधिक के कारावास का प्रावधान है, उन अपराधों की एफआईआर होने पर किसी सरकारी सेवक को निलंबित किया जा सकता है। ऐसा सरकारी सेवक जब तक उस मुकदमे में बाइज्जत बरी नहीं हो जाता है, तब तक उसको सेवा में नहीं लिया जाता है।

    समझौता और बाइज्जत बरी

    किसी भी मुकदमे में समझौता होना और बाइज्जत बरी होने में बहुत अंतर होता है। दंड प्रक्रिया संहिता,1973 की धारा 320 के अंतर्गत कुछ अपराधों में समझौते को मान्यता दी गई है। अगर किसी व्यक्ति ने किसी अपराध में समझौता कर लिया है और समझौते के माध्यम से उसको न्यायालय द्वारा दोषमुक्त कर दिया गया है, तब सरकारी सेवा में ऐसा व्यक्ति नहीं रह सकता है। यहां पर यह ध्यान देना चाहिए कि सरकारी सेवा में केवल वही व्यक्ति रह सकता है जिसे न्यायालय द्वारा बाइज़्ज़त बरी किया गया है।

    अगर कोर्ट में किसी मामले में किसी सरकारी सेवक पर ₹100 का जुर्माना कर दिया है और व्यक्ति ने उस जुर्माने को स्वीकार कर लिया, तब भी ऐसा व्यक्ति सरकारी सेवा में नहीं रह सकता है। इसलिए एक सरकारी सेवक को यह ध्यान देना चाहिए कि वे किसी भी मामले में किसी भी अपराध को स्वीकार नहीं करें।बल्कि जहां तक प्रयास हो वह मामले में बाइज्जत बरी होने की कोशिश करें। क्योंकि अनेक मामले ऐसे होते हैं, जिनमें छोटा-मोटा अर्थदंड कर दिया जाता है। ऐसा अर्थदंड तब ही किया जाता है जब आरोपी किसी अपराध को स्वीकार कर लेता है।

    अपराध को स्वीकार करने का अर्थ यही है कि व्यक्ति ने उस अपराध को किया है, तब ही उस अपराध में कोर्ट ने उस पर जुर्माना किया है। इसलिए किसी भी सरकारी सेवक को किसी भी प्रकार के अपराध को स्वीकार नहीं करना चाहिए, बल्कि उसका विचारण करवाना चाहिए और उस मामले में बाइज्जत बरी होना चाहिए।

    अगर कोई सरकारी सेवक किसी बड़े अपराध में अभियुक्त बनाया गया है और उस पर एफआईआर दर्ज कर दी गई है तथा उस पर विचारण कार्यवाही चल रही है, तब उसे सेवा से निकाला जा सकता है और न्यायालय भी इस मामले में उसकी कोई सहायता नहीं कर सकता।

    क्योंकि यह स्पष्ट नियम है कि यदि किसी व्यक्ति को किसी एक बड़े अपराध में अपराधी बनाया गया है, तब उस व्यक्ति को सेवा में नहीं रहने दिया जा सकता। वे तब तक उस सेवा में नहीं रह सकता है, जब तक वह न्यायालय से बाइज्जत बरी नहीं हो जाता है।

    सरकारी सेवा की तैयारी करने वाले लोगों पर पुलिस केस का प्रभाव

    अनेक लोग सरकारी सेवाओं में प्रवेश पाने के लिए होने वाली परीक्षाओं की तैयारी करते हैं। किसी भी व्यक्ति को किसी भी सरकारी सेवा में नियुक्त करने के पहले उसका पुलिस वेरिफिकेशन करवाया जाता है। ऐसे पुलिस वेरिफिकेशन में सबसे महत्वपूर्ण चीज यह देखी जाती है कि अभ्यार्थी का कोई आपराधिक रिकॉर्ड है या नहीं।

    किसी भी अभ्यार्थी पर बहुत अधिक आपराधिक प्रकरण नहीं होना चाहिए और कोई भी ऐसा प्रकरण नहीं होना चाहिए जिसमें 3 वर्षों से अधिक के कारावास का प्रावधान है, जो नैतिक अधमता जैसे मानव शरीर से संबंधित अपराध, संपत्ति से संबंधित अपराध और देश के विरुद्ध होने वाले अपराध से जुड़े न हो।

    अगर किसी भी अभ्यर्थी पर किसी बड़े अपराध का जिसमें 3 वर्ष से अधिक की अवधि के कारावास की सजा का प्रावधान है, विचारण चल रहा है तब उसे सरकारी सेवा में नहीं लिया जा सकता।

    अगर अभ्यार्थी पर ऐसा विचारण चल चुका है और उसे बाइज्जत बरी कर दिया गया है, तब उसे सरकारी सेवा में लिया जा सकता है, भले ही रिकॉर्ड पर उस अभ्यार्थी के मामले में यह दर्ज़ हो कि उस पर मुकदमा चला है।

    यहां पर ध्यान देने योग्य बात यह है कि आमतौर पर लोग छोटे मामलों में समझौता कर लेते हैं, अगर किसी अपराध में समझौते के माध्यम से बरी हुआ गया है, तब इस स्थिति में अभ्यार्थियों को सेवा में अवसर नहीं दिया जा सकता। क्योंकि समझौते के मामले में व्यक्ति बाइज्जत बरी नहीं होता है, बल्कि समझौते से भरी होता है। बाइज्जत बरी होना उसे कहा जाता है जहां अभियोजन द्वारा मामला प्रमाणित नहीं किया गया है।

    प्रतिभूति से संबंधित अपराध

    अनेक अभ्यर्थियों को यह लगता है कि अगर पुलिस ने उनके विरुद्ध कोई प्रिवेंशन कार्यवाही करते हुए कोई प्रतिभूति से संबंधित अपराध दर्ज किया है, जैसे दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 107 और धारा 151 के अंतर्गत व्यक्ति से बॉण्ड लेकर यह वचन लिया जाता है कि वह भविष्य में किसी प्रकार का अपराध नहीं करेगा।

    इस मामले में अगर किसी व्यक्ति पर कोई अपराध दर्ज है, तब उसे अपराध की कोटि में नहीं लिया जाता है। यहां पर यह ध्यान देने योग्य है कि ऐसा अपराध भी एक बार से ज्यादा दर्द नहीं होना चाहिए। अगर बार बार किसी व्यक्ति पर धारा 151 की कार्यवाही की गई है, तब उसे सरकारी सेवा में नहीं लिया जाता है।

    गिरफ्तारी का प्रभाव

    अगर किसी सरकारी सेवा में लगे हुए व्यक्ति की गिरफ्तारी होती है या फिर किसी सरकारी सेवा की तैयारी करते हुए व्यक्ति की किसी अपराध में गिरफ्तारी होती है और उस गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को 48 घंटे से अधिक पुलिस हिरासत में रखा जाता है या फिर न्यायिक हिरासत में रखा जाता है। तब ऐसे व्यक्ति को सरकारी सेवा का अवसर प्राप्त नहीं हो सकता।

    जब तक की उसके द्वारा यह साबित नहीं कर दिया जाता है कि उसे उस मामले में बाइज्जत बरी कर दिया गया है। अगर किसी व्यक्ति ने ऐसे मामले में अग्रिम जमानत ली है, वह गिरफ्तार नहीं किया गया है, तब उसकी सेवा पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।

    वैवाहिक प्रकरण के मामले में

    किसी भी सरकारी सेवा में लगे हुए व्यक्ति के या सरकारी सेवा की तैयारी करने वाले व्यक्ति के लिए वैवाहिक मामलों के प्रकरण भी महत्वपूर्ण होते हैं।वैवाहिक मामलों में भी कुछ कार्यवाही ऐसी होती है, जिसमें व्यक्ति पर आपराधिक प्रकरण दर्ज किए जाते हैं।

    भरण पोषण का परिवाद जो दंड प्रक्रिया संहिता,1973 की धारा 125 के अंतर्गत पेश किया जाता है, इसे एक सिविल नेचर का प्रकरण मान जाता है। लेकिन भारतीय दंड संहिता की धारा 498(ए) और दहेज से जुड़े मामले में धारा 406 का प्रकरण दर्ज किया जाता है। उसके साथ ही मारपीट और जान से मारने की धमकी का प्रकरण भी दर्ज कर दिया जाता है।

    ऐसी स्थिति में यदि किसी व्यक्ति के ऊपर कोई प्रकरण चल रहा है और वह बाइज्जत बरी नहीं हुआ है, तब उसे सरकारी सेवा से तब तक सस्पेंड किया जाएगा जब तक वह बाइज्जत बरी नहीं कर दिया जाता है। किसी भी ऐसे अभ्यर्थी को तब तक सरकारी सेवा नहीं मिल सकती, जब तक उसे बाइज़्ज़त बरी नहीं किया जाता है।

    यहां पर यह ध्यान देना चाहिए कि किसी भी आपराधिक प्रकरण में व्यक्ति का बाइज्जत बरी होना आवश्यक है। अगर वह बरी हुआ है तब ही उसे सरकारी सेवा में रखा जा सकता है। अगर उसने समझौता किया है या जुर्म स्वीकार किया है, तब उसे सरकारी सेवा में रखा भी नहीं जाएगा और अगर पहले से सरकारी सेवा में है, तब उसे सेवा से हटा दिया जाएगा।

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