दक्षिण एशियाई देशों के बीच व्यापार को बढ़ावा देने वाला ऐतिहासिक समझौता: साप्टा की रूपरेखा, उद्देश्य और कानूनी विश्लेषण
Himanshu Mishra
15 May 2025 7:48 PM IST

SAARC (South Asian Association for Regional Cooperation) का उद्देश्य अपने सदस्य देशों के बीच सहयोग को बढ़ाना है। इसी दिशा में 1995 में SAPTA (SAARC Preferential Trading Arrangement) की शुरुआत हुई, जो दक्षिण एशिया में क्षेत्रीय व्यापार को प्रोत्साहित करने की पहली ठोस कोशिश थी।
इस समझौते के तहत सदस्य देशों ने तय किया कि वे धीरे-धीरे आपसी व्यापार पर लगने वाले टैरिफ (Tariff – आयात-निर्यात पर लगने वाला शुल्क) में कटौती करेंगे और व्यापारिक रियायतें देंगे, जिससे आर्थिक एकीकरण (Economic Integration) की नींव रखी जा सके।
हालाँकि, 2006 में जब SAFTA (SAARC Free Trade Area) की शुरुआत हुई, तब SAPTA की गतिविधियाँ लगभग बंद हो गईं। लेकिन आज, बदलते वैश्विक व्यापार परिदृश्य और दक्षिण एशियाई देशों की नई पहलों के चलते SAPTA फिर से चर्चा में है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि (Historical Background)
1990 के दशक की शुरुआत में दक्षिण एशियाई देशों को यह अहसास हुआ कि वे आपस में आर्थिक सहयोग बढ़ाकर विकास, गरीबी उन्मूलन और स्थिरता सुनिश्चित कर सकते हैं। इसी सोच के साथ, अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, भारत, मालदीव, नेपाल, पाकिस्तान और श्रीलंका ने SAPTA पर हस्ताक्षर किए। इसका उद्देश्य था – शुरुआती तौर पर कुछ उत्पादों (Products) पर टैरिफ में छूट देना, और भविष्य में व्यापार को और खोलने के लिए एक मजबूत ढांचा तैयार करना।
SAPTA की रूपरेखा ऐसी बनाई गई कि यह सभी सदस्य देशों की अलग-अलग आर्थिक स्थितियों को ध्यान में रखे। जहाँ कुछ देश कृषि पर निर्भर थे, वहीं कुछ देश औद्योगिक या सेवा क्षेत्र में मजबूत थे। SAPTA ने सबसे कम विकसित देशों की जरूरतों को भी मान्यता दी और उनके लिए विशेष प्रावधान किए।
SAPTA के उद्देश्य (Objectives of SAPTA)
SAPTA का मूल उद्देश्य था – आपसी व्यापार को बढ़ाना और आर्थिक सहयोग को मजबूत करना। टैरिफ छूट देकर सदस्य देशों को पड़ोसी देशों के बाजारों तक पहुंचाने का प्रयास किया गया, ताकि नए रोजगार पैदा हों, आमदनी बढ़े और क्षेत्रीय स्थिरता को मजबूती मिले।
SAPTA में यह भी माना गया कि नेपाल, भूटान और मालदीव जैसे देशों को तकनीकी और वित्तीय सहायता (Technical and Financial Assistance) की ज़रूरत होगी ताकि वे इन व्यापारिक रियायतों का पूरा लाभ उठा सकें। इसीलिए गुणवत्ता सुधार, उत्पादन में विविधता लाने और निर्यात मानकों को पूरा करने में सहायता देने की व्यवस्था की गई।
मुख्य प्रावधान (Main Provisions)
SAPTA के तहत कई महत्वपूर्ण प्रावधान किए गए:
1. उत्पाद-वार बातचीत (Product-by-Product Negotiation):
पहले दौर की बातचीत में सदस्य देशों ने विशेष उत्पादों जैसे वस्त्र (Textiles), मसाले (Spices), और चाय (Tea) को प्राथमिकता दी। इसका उद्देश्य यह था कि बातचीत सीमित दायरे में हो और संस्थागत क्षमता पर अधिक भार न पड़े।
2. बातचीत के हर दौर में विस्तार (Deeper and Broader Rounds):
SAPTA के चार औपचारिक दौर पूरे हो चुके हैं, जिनमें 5,000 से अधिक उत्पादों पर टैरिफ में रियायतें दी गईं। यह रियायतें समय के साथ गहराई और विस्तार दोनों में बढ़ीं। लेकिन कई देशों ने शिकायत की कि SAPTA के अंतर्गत व्यापार बहुत कम रहा, जिसका कारण था – ऊँचे ट्रांजैक्शन कॉस्ट (Transaction Costs), सीमित बुनियादी ढांचा और गैर-टैरिफ बाधाएं (Non-Tariff Barriers)।
3. कम विकसित देशों के लिए विशेष सहयोग (Special Provisions for Least Developed Countries):
SAPTA के अंतर्गत ऐसे देशों को तकनीकी सहायता जैसे उत्पाद विकास, कस्टम प्रक्रिया में प्रशिक्षण, और अध्ययन आदि में सहयोग देने की बात कही गई।
4. संस्थागत निगरानी प्रणाली (Institutional Oversight Mechanism):
SAARC सचिवालय के अंतर्गत एक स्थायी समिति (Standing Committee) गठित की गई जो प्रगति की समीक्षा, विवाद समाधान, और बातचीत के नए दौर का प्रस्ताव देती थी। परंतु यह समिति धीरे-धीरे निष्क्रिय हो गई, खासकर राजनीतिक मतभेदों के कारण।
SAPTA क्यों चर्चा में है? (Why SAPTA Is in the News These Days)
SAARC को पुनर्जीवित करने की माँग (Calls for SAARC Revitalization)
अप्रैल 2025 में काठमांडू में SAARC Programming Committee की बैठक हुई, जिसमें SAPTA को पुनर्जीवित करने की आवश्यकता को दोहराया गया। प्रतिनिधियों ने कहा कि क्षेत्रीय सहयोग ठप हो जाने से व्यापार, निवेश और लोगों के बीच संपर्क में भारी कमी आई है।
बांग्लादेश और नेपाल की पहल (Initiative by Bangladesh and Nepal)
बांग्लादेश और नेपाल ने संयुक्त रूप से SAARC की निष्क्रिय संस्थाओं को पुनर्जीवित करने की पहल की है। उनका मानना है कि SAPTA एक लचीला और व्यावहारिक प्रारंभिक बिंदु है, खासकर तब जब SAFTA ठप पड़ा है और द्विपक्षीय तनाव बने हुए हैं।
वैश्विक व्यापार की अनिश्चितता (Global Trade Uncertainty)
दुनिया में बढ़ती व्यापारिक चुनौतियों—जैसे संरक्षणवाद, युद्ध, और आर्थिक मंदी—के चलते SAPTA जैसे क्षेत्रीय समझौते सदस्य देशों को स्थिरता प्रदान कर सकते हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि भले ही SAPTA में छूट सीमित हो, लेकिन यह स्थानीय उत्पादकों और उपभोक्ताओं को राहत दे सकता है।
अधिक एकीकरण की दिशा में पहला कदम (Step Toward Deeper Integration)
कुछ अर्थशास्त्री SAPTA को एक पुराने दस्तावेज़ के रूप में नहीं, बल्कि भविष्य के आर्थिक एकीकरण जैसे SAARC Economic Union की नींव मानते हैं।
कानूनी विश्लेषण (Legal Analysis)
संधि की वैधता (Treaty Status and Legal Validity)
SAPTA एक विधिवत अंतरराष्ट्रीय समझौता है, जिसे सभी सदस्य देशों ने अपनी संसदों से अनुमोदित करवाया है। Vienna Convention के अनुसार, सदस्य देश इसके प्रावधानों को "सच्चे मन से निभाना" (Pacta Sunt Servanda) के लिए बाध्य हैं।
विवाद समाधान तंत्र (Dispute Resolution Mechanism)
यदि कोई देश मानता है कि किसी अन्य देश ने तय रियायतें नहीं दीं या नई बाधाएँ पैदा कीं, तो वह SAARC सचिवालय के माध्यम से बातचीत का अनुरोध कर सकता है। यदि यह असफल होती है तो विशेषज्ञों की समिति के समक्ष मामला रखा जा सकता है। हालांकि, अब तक कोई मामला अंतिम समाधान तक नहीं पहुँचा।
WTO से संगतता (WTO Compatibility)
SAPTA को GATT के Article XXIV के तहत मान्यता तभी मिलेगी जब यह अधिकांश व्यापार को मुक्त करे। SAPTA की सीमित प्रकृति और समयसीमा की अनुपस्थिति इसे WTO नियमों के अनुरूप बनाना चुनौतीपूर्ण बनाती है। इसी कारण SAPTA और SAFTA के बीच तालमेल का प्रयास हुआ।
विशेष व्यवहार का अधिकार (Special and Differential Treatment)
SAPTA का ढाँचा WTO नियमों से मेल खाता है, जो विकासशील और कम विकसित देशों को विशेष छूट देता है। परंतु ज़मीनी स्तर पर इन प्रावधानों का प्रभाव सीमित रहा है, क्योंकि धन की कमी और संस्थागत निष्क्रियता बड़ी बाधाएँ बनी रहीं।
पुनर्जीवन की चुनौतियाँ (Challenges in Revival)
SAPTA को फिर से शुरू करना आसान नहीं है। इसके लिए सभी आठ देशों की सहमति आवश्यक है, जो द्विपक्षीय तनावों के चलते मुश्किल हो सकती है। इसके अलावा, जब कोई देश SAPTA के तहत टैरिफ छूट देता है, तो उसे अपने देश के कानूनों और कस्टम शेड्यूल में बदलाव करने पड़ते हैं, जो कई बार राजनीतिक और कानूनी विवाद खड़े कर सकते हैं।
आम लोगों के लिए प्रभाव (Implications for Laypersons)
SAPTA के दोबारा सक्रिय होने से छोटे व्यापारियों, किसानों और उपभोक्ताओं को प्रत्यक्ष लाभ मिल सकता है:
• टैरिफ कम होने से रोजमर्रा की चीजों के दाम घट सकते हैं।
• सीमावर्ती क्षेत्रों के छोटे व्यापारी नए बाजारों में अपने उत्पाद बेच सकेंगे।
• मैन्युफैक्चरिंग और लॉजिस्टिक्स सेक्टर में रोजगार बढ़ेगा।
हालांकि, चुनौतियाँ भी होंगी—स्थानीय उत्पादक पड़ोसी देशों से प्रतिस्पर्धा से डर सकते हैं। और अगर परिवहन और भंडारण जैसे बुनियादी ढांचे को सुधारा नहीं गया तो ग्रामीण इलाकों में लाभ नहीं पहुँच पाएगा।
आगे की राह (Path Forward)
SAPTA को पुनर्जीवित करने के लिए एक चरणबद्ध और यथार्थवादी योजना अपनानी होगी:
1. SAPTA समिति को पुनः सक्रिय करना:
पिछली बातचीत की समीक्षा की जाए और उन क्षेत्रों को प्राथमिकता दी जाए जिनमें व्यापार की संभावना अधिक है, जैसे फार्मास्यूटिकल्स, खाद्य प्रसंस्करण (Agro-processing), और हल्के औद्योगिक उत्पाद।
2. तकनीकी सहायता जुटाना:
अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों से वित्तीय और तकनीकी सहयोग लेकर कम विकसित देशों को मदद देना।
3. SAFTA और SAPTA में समन्वय:
दोनों व्यवस्था एक-दूसरे से अलग ना हों और एक स्पष्ट समयरेखा तय की जाए।
4. राजनीतिक इच्छाशक्ति दिखाना:
काठमांडू में हुए Programming Committee के आह्वान को वास्तविक कार्रवाई में बदलना आवश्यक है।
SAPTA एक ऐसा समझौता है जिसने कभी दक्षिण एशिया में व्यापारिक एकता की नींव रखी थी। अब यह फिर से प्रासंगिक हो गया है। कानूनी रूप से यह एक सशक्त संधि है और WTO के प्रावधानों से मेल खाती है। आम नागरिकों के लिए यह रोज़मर्रा की जिंदगी में राहत और संभावनाओं का द्वार खोल सकती है।
लेकिन इसके लिए जरूरी है कि सभी देश आपसी मतभेदों को एक तरफ रखकर साझा समृद्धि के लिए मिलकर प्रयास करें। SAPTA को पुनर्जीवित करके SAARC क्षेत्र आर्थिक एकता और शांति की ओर फिर से कदम बढ़ा सकता है।

