न्यायालय में कार्यवाही की रिपोर्टिंग पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता: एक संवैधानिक अधिकार
Himanshu Mishra
24 Sept 2024 5:51 PM IST
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (Freedom of Speech and Expression) लोकतांत्रिक समाज में सबसे महत्वपूर्ण अधिकारों में से एक है। जब अदालतों में होने वाली कार्यवाही की रिपोर्टिंग की बात आती है, तो यह अधिकार न्यायपालिका में पारदर्शिता, उत्तरदायित्व (Accountability), और जनता के विश्वास को बनाए रखने में अहम भूमिका निभाता है।
भारत में, यह अधिकार संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) (Article 19(1)(a)) के तहत संरक्षित है, और इसे सुप्रीम कोर्ट द्वारा व्यापक रूप से व्याख्यायित किया गया है, जिसमें न्यायिक कार्यवाही (Court Proceedings) की रिपोर्टिंग की स्वतंत्रता को शामिल किया गया है।
The Chief Election Commissioner of India v. M.R. Vijayabhaskar (2021) मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने इस अधिकार की महत्वपूर्ण प्रकृति को पुनः स्थापित किया, और यह बताया कि अदालत में कार्यवाही की रिपोर्टिंग करना अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का महत्वपूर्ण हिस्सा है। इस लेख में हम संविधान के संबंधित प्रावधानों (Provisions) और उन महत्वपूर्ण न्यायिक निर्णयों (Judicial Precedents) पर चर्चा करेंगे जिन्होंने अदालत की कार्यवाही की रिपोर्टिंग के अधिकार को आकार दिया है।
अनुच्छेद 19(1)(a) (Article 19(1)(a)) और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 19(1)(a) प्रत्येक नागरिक को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार देता है। इसमें स्वतंत्र रूप से राय व्यक्त करने, जानकारी फैलाने, और महत्वपूर्ण मुद्दों पर सार्वजनिक बहस में भाग लेने का अधिकार शामिल है। यह अधिकार अनुच्छेद 19(2) (Article 19(2)) के तहत कुछ सीमाओं के अधीन है, जो सार्वजनिक व्यवस्था (Public Order), नैतिकता (Morality), राज्य की सुरक्षा (Security of the State) और मानहानि (Defamation) जैसे आधारों पर प्रतिबंधों की अनुमति देता है।
न्यायिक कार्यवाही की रिपोर्टिंग के संदर्भ में, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता यह सुनिश्चित करती है कि जनता न्यायपालिका की कार्यवाही के बारे में जानकारी रख सके। खुली अदालतें (Open Courts) लोकतांत्रिक शासन (Governance) में पारदर्शिता का प्रतीक हैं, और मीडिया इस जानकारी को जनता तक पहुँचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
न्यायिक मिसालें (Judicial Precedents) और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता
The Chief Election Commissioner of India v. M.R. Vijayabhaskar (2021)
यह मामला तब सामने आया जब चुनाव आयोग (Election Commission of India - ECI) ने मद्रास उच्च न्यायालय द्वारा चुनाव आयोग के COVID-19 प्रोटोकॉल के प्रबंधन पर की गई कुछ मौखिक टिप्पणियों को चुनौती दी। इन टिप्पणियों को मीडिया द्वारा व्यापक रूप से रिपोर्ट किया गया, और आयोग का तर्क था कि इससे उसकी छवि खराब हुई है।
सुप्रीम कोर्ट ने ECI की याचिका को खारिज करते हुए कहा कि न्यायालय की कार्यवाही, जिसमें मौखिक टिप्पणियां भी शामिल हैं, सार्वजनिक रिपोर्टिंग के दायरे में आती हैं।
कोर्ट ने दो प्रमुख सिद्धांतों को रेखांकित किया:
1. खुली अदालतें (Open Courts): अदालतें खुली होनी चाहिए, जिससे जनता न्यायिक प्रक्रिया को देख सके और इस पर विश्वास बनाए रख सके।
2. मीडिया की स्वतंत्रता (Freedom of the Media): मीडिया अदालत में क्या होता है, इसकी रिपोर्टिंग करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। केवल उन मामलों में मीडिया की रिपोर्टिंग को प्रतिबंधित किया जाना चाहिए जहां विशेष परिस्थितियाँ इसकी मांग करती हैं, जैसे गोपनीयता (Privacy) या निष्पक्ष सुनवाई (Fair Trial) का मामला हो।
अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि इन मौखिक टिप्पणियों को लिखित निर्णय का हिस्सा नहीं माना जाता, लेकिन वे न्यायिक प्रक्रिया को समझने का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होती हैं।
Express Newspapers (P) Ltd. v. Union of India (1958)
इस ऐतिहासिक मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने माना कि अनुच्छेद 19(1)(a) के तहत प्रेस की स्वतंत्रता भी शामिल है। अदालत ने कहा कि प्रेस की स्वतंत्रता लोकतंत्र के उचित संचालन के लिए आवश्यक है। प्रेस पर प्रतिबंध तभी लगाए जाने चाहिए जब वे कानून के अनुसार आवश्यक हों।
Naresh Shridhar Mirajkar v. State of Maharashtra (1966)
इस मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने इस प्रश्न पर विचार किया कि क्या अदालत प्रेस को किसी मामले की रिपोर्टिंग से रोक सकती है। अदालत ने यह निर्णय दिया कि खुली अदालतों में न्यायिक कार्यवाही करना न्याय के प्रशासन के लिए आवश्यक है। केवल असाधारण मामलों में, जैसे कि जहां रिपोर्टिंग से निष्पक्ष सुनवाई (Fair Trial) खतरे में पड़ सकती हो, प्रेस की रिपोर्टिंग पर रोक लगाई जा सकती है।
खुली अदालतें और मीडिया की भूमिका (Open Courts and the Role of the Media)
"खुली अदालतों" (Open Courts) का सिद्धांत न्यायिक पारदर्शिता का केंद्रीय हिस्सा है। खुली अदालतें यह सुनिश्चित करती हैं कि न्याय न केवल किया जाए, बल्कि जनता के सामने होते हुए किया जाए। न्यायिक निर्णयों की सार्वजनिक निगरानी (Public Scrutiny) न्यायिक प्रक्रिया में विश्वास पैदा करती है और न्यायिक शक्ति के मनमाने उपयोग पर नियंत्रण रखती है।
The Chief Election Commissioner of India v. M.R. Vijayabhaskar में, सुप्रीम कोर्ट ने यह विस्तार से बताया कि खुली अदालतें क्यों महत्वपूर्ण हैं। मौखिक बहस, न्यायाधीशों द्वारा पूछे गए सवाल, और वकीलों की प्रतिक्रियाएँ न्यायिक प्रक्रिया का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। मीडिया द्वारा इन कार्यवाहियों की रिपोर्टिंग जनता को जानकारी प्रदान करती है और न्यायिक जवाबदेही (Judicial Accountability) को बढ़ावा देती है।
जस्टिस चंद्रचूड़ ने अपने फैसले में यह स्पष्ट किया कि मौखिक टिप्पणियाँ (Oral Remarks) न्यायिक निर्णय का हिस्सा नहीं होतीं, लेकिन वे उस प्रक्रिया को दर्शाती हैं जो अंतिम निर्णय की ओर ले जाती है। अगर मीडिया को इन टिप्पणियों की रिपोर्टिंग से रोका जाएगा, तो जनता न्यायिक प्रक्रिया को पूरी तरह से समझने में असमर्थ रहेगी।
खुली अदालतों के अपवाद (Exceptions to the Rule of Open Courts)
हालांकि खुली अदालतों की प्रक्रिया सामान्य नियम है, कुछ अपवाद होते हैं जहाँ अदालत गोपनीयता बनाए रखने के लिए रिपोर्टिंग को प्रतिबंधित कर सकती है, जैसे:
• In-camera कार्यवाही: कुछ मामलों, जैसे यौन उत्पीड़न (Sexual Assault) या राष्ट्रीय सुरक्षा (National Security) के मामलों में, गोपनीयता की सुरक्षा के लिए कार्यवाही निजी रूप से की जाती है।
• न्याय के लिए जोखिम: अगर मीडिया की रिपोर्टिंग सुनवाई की निष्पक्षता को खतरे में डाल सकती है या सार्वजनिक राय को प्रभावित कर सकती है, तो अदालत रिपोर्टिंग पर प्रतिबंध लगा सकती है।
हालांकि, इन अपवादों को संकीर्ण रूप से देखा जाता है, और जो भी पक्ष इन प्रतिबंधों की मांग करता है, उसे इसे साबित करना पड़ता है।
जिम्मेदार मीडिया रिपोर्टिंग का महत्व (Importance of Responsible Media Reporting)
हालांकि मीडिया को अदालत की कार्यवाही की रिपोर्टिंग करने का अधिकार है, यह अधिकार जिम्मेदारी के साथ आता है कि रिपोर्टिंग सटीक और संतुलित हो। The Chief Election Commissioner of India v. M.R. Vijayabhaskar में, सुप्रीम कोर्ट ने जोर देकर कहा कि मीडिया को सनसनीखेज (Sensationalism) रिपोर्टिंग से बचना चाहिए और न्यायिक कार्यवाही का सही और निष्पक्ष वर्णन प्रस्तुत करना चाहिए। गलत रिपोर्टिंग जनता को गुमराह कर सकती है और न्यायपालिका में विश्वास को कम कर सकती है।
अदालत ने यह भी माना कि डिजिटल युग में सोशल मीडिया और ऑनलाइन प्लेटफार्मों ने न्यायिक कार्यवाही की रिपोर्टिंग को और भी व्यापक बना दिया है। इसलिए, यह और भी महत्वपूर्ण हो जाता है कि रिपोर्टिंग न्यायिक टिप्पणियों को गलत ढंग से प्रस्तुत न करे।
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, जैसा कि संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) में उल्लेखित है, मीडिया के लिए अदालत की कार्यवाही की रिपोर्टिंग करने का अधिकार भी शामिल है। यह अधिकार न्यायिक पारदर्शिता, उत्तरदायित्व और जनता के न्यायपालिका में विश्वास को बनाए रखने के लिए आवश्यक है। The Chief Election Commissioner of India v. M.R. Vijayabhaskar जैसे महत्वपूर्ण मामलों ने इस सिद्धांत को मजबूत किया है कि अदालतें जनता और मीडिया के लिए खुली होनी चाहिए, सिवाय विशेष परिस्थितियों के, जहाँ गोपनीयता या निष्पक्ष सुनवाई का मुद्दा हो।
जबकि मीडिया न्यायिक कार्यवाही के बारे में जनता को सूचित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, उसे यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उसकी रिपोर्टिंग सटीक हो और उसकी अखंडता बनी रहे। पारदर्शिता की खोज में, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और न्यायिक मर्यादा के बीच संतुलन बनाए रखना कानून के शासन (Rule of Law) को बनाए रखने के लिए आवश्यक है।