भारतीय स्टांप अधिनियम 1899 की धारा 28 के तहत संपत्ति विक्रय से जुड़े विभिन्न दस्तावेजों पर लगने वाले शुल्क
Himanshu Mishra
24 Feb 2025 3:40 PM

भारतीय स्टांप अधिनियम, 1899 (Indian Stamp Act, 1899) विभिन्न कानूनी दस्तावेजों (Legal Documents) पर स्टांप शुल्क (Stamp Duty) लगाने के नियमों को निर्धारित करता है। यह सुनिश्चित करता है कि सरकार को उचित राजस्व (Revenue) प्राप्त हो और दस्तावेजों की कानूनी वैधता (Legal Validity) बनी रहे।
धारा 28 विशेष रूप से उन परिस्थितियों को संबोधित करती है जहां एक ही संपत्ति (Property) को कई अलग-अलग दस्तावेजों के माध्यम से स्थानांतरित (Transfer) किया जाता है। यह उन मामलों पर लागू होता है जहां संपत्ति को अलग-अलग हिस्सों में बेचा जाता है, संयुक्त रूप से खरीदा जाता है, पुनः विक्रय (Resale) किया जाता है, या उप-क्रेताओं (Sub-Purchasers) के माध्यम से हस्तांतरित किया जाता है।
इस धारा को समझने से पहले, स्टांप शुल्क से संबंधित कुछ अन्य प्रावधानों को देखना आवश्यक है।
• धारा 26 उन मामलों को कवर करती है जहां किसी दस्तावेज में निर्दिष्ट मूल्य (Value) तय नहीं किया जा सकता, और इस स्थिति में अधिकतम संभावित मूल्य पर शुल्क लगाया जाता है।
• धारा 27 यह निर्धारित करती है कि स्टांप शुल्क को प्रभावित करने वाले सभी तथ्यों और परिस्थितियों को दस्तावेज़ में स्पष्ट रूप से लिखा जाना चाहिए।
धारा 28 इन प्रावधानों को आगे विस्तार देती है और सुनिश्चित करती है कि संपत्ति की बिक्री और हस्तांतरण के मामलों में स्टांप शुल्क सही तरीके से लगाया जाए।
जब संपत्ति को अलग-अलग भागों में बेचा जाता है (Conveyance in Separate Parts) - उपधारा (Sub-section) 1
कई बार ऐसा होता है कि कोई संपत्ति एकमुश्त राशि (Lump Sum Consideration) में बेची जाती है लेकिन खरीदार इसे अलग-अलग भागों में खरीदना चाहता है। ऐसी स्थिति में, संपत्ति को अलग-अलग दस्तावेजों (Instruments) के माध्यम से हस्तांतरित किया जा सकता है, लेकिन प्रत्येक दस्तावेज़ में उस विशेष भाग का मूल्य स्पष्ट रूप से लिखा जाना चाहिए।
उदाहरण के लिए, यदि किसी भूमि को ₹1,00,00,000 में बेचा जाता है और खरीदार इसे चार भागों में विभाजित करके प्रत्येक के लिए अलग-अलग दस्तावेज़ चाहता है, तो प्रत्येक भाग की कीमत ₹25,00,000 मानी जाएगी। इस स्थिति में, प्रत्येक दस्तावेज़ पर ₹25,00,000 के आधार पर स्टांप शुल्क लगेगा।
इस प्रावधान का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि संपत्ति के हर हिस्से पर अलग-अलग स्टांप शुल्क लगे और कोई व्यक्ति कर (Tax) से बचने के लिए विक्रय प्रक्रिया को जटिल न बना सके।
जब संपत्ति संयुक्त रूप से खरीदी जाती है (Joint Purchase) - उपधारा 2
यदि दो या अधिक लोग संयुक्त रूप से एक संपत्ति खरीदते हैं और बाद में इसे विभाजित करके अलग-अलग हिस्सों में लेते हैं, तो प्रत्येक व्यक्ति को उसके हिस्से के अनुसार स्टांप शुल्क देना होगा।
उदाहरण के लिए, यदि दो लोग मिलकर ₹50,00,000 की संपत्ति खरीदते हैं और बाद में इसे दो बराबर भागों में विभाजित करते हैं, तो प्रत्येक को ₹25,00,000 के अनुसार स्टांप शुल्क देना होगा।
यह नियम यह सुनिश्चित करता है कि कोई भी संयुक्त खरीदार (Joint Buyer) बाद में विभाजन (Division) करके स्टांप शुल्क से बच न सके।
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जब संपत्ति को हस्तांतरण से पहले ही पुनः बेचा जाता है (Resale Before Original Conveyance) - उपधारा 3
यदि कोई व्यक्ति किसी संपत्ति को खरीदने का अनुबंध (Contract) करता है लेकिन उसके नाम पर हस्तांतरण (Conveyance) होने से पहले ही उसे किसी और को बेच देता है, तो इस स्थिति में स्टांप शुल्क अंतिम खरीदार (Sub-Purchaser) द्वारा भुगतान की गई राशि पर लगाया जाएगा।
उदाहरण के लिए, मान लीजिए कि A, B से ₹40,00,000 में एक संपत्ति खरीदने का अनुबंध करता है, लेकिन उससे पहले वह इसे C को ₹50,00,000 में बेच देता है। इस स्थिति में, संपत्ति सीधे B से C को हस्तांतरित की जाएगी और स्टांप शुल्क ₹50,00,000 की राशि पर लगेगा।
इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि विक्रय का वास्तविक मूल्य (Actual Sale Price) स्टांप शुल्क के लिए आधार बने, ताकि कम कीमत दिखाकर कर बचाने की प्रवृत्ति को रोका जा सके।
जब संपत्ति का कुछ भाग पुनः बेचा जाता है (Partial Resale Before Conveyance) - उपधारा 4
यदि किसी ने संपत्ति खरीदने का अनुबंध किया लेकिन उसे प्राप्त करने से पहले ही उसका कुछ भाग किसी अन्य को बेच दिया, तो संपत्ति के उस भाग का हस्तांतरण (Transfer) सीधे पहले विक्रेता (Original Seller) से नए खरीदारों (Sub-Purchasers) को होगा। इस स्थिति में, प्रत्येक उप-क्रेता (Sub-Purchaser) को अपने द्वारा दी गई राशि के अनुसार स्टांप शुल्क देना होगा।
उदाहरण के लिए, यदि A, B से ₹1,00,00,000 में भूमि खरीदने का अनुबंध करता है लेकिन इससे पहले वह इसका एक भाग X को ₹40,00,000 और दूसरा भाग Y को ₹30,00,000 में बेच देता है, तो –
• X को ₹40,00,000 के आधार पर स्टांप शुल्क देना होगा।
• Y को ₹30,00,000 के आधार पर स्टांप शुल्क देना होगा।
• यदि A के पास अभी भी कुछ भूमि बची हुई है, तो उसे ₹1,00,00,000 - (₹40,00,000 + ₹30,00,000) = ₹30,00,000 के आधार पर स्टांप शुल्क देना होगा।
यह नियम यह सुनिश्चित करता है कि स्टांप शुल्क को सही तरीके से विभाजित किया जाए और कोई भी व्यक्ति कर से बचने के लिए संपत्ति को पुनः विक्रय की प्रक्रिया को जटिल न बनाए।
जब उप-क्रेता (Sub-Purchaser) को संपत्ति के दो अलग-अलग दस्तावेज़ मिलते हैं - उपधारा 5
यदि कोई उप-क्रेता (Sub-Purchaser) पहले उस व्यक्ति से संपत्ति खरीदता है जिसने मूल रूप से संपत्ति खरीदने का अनुबंध किया था, तो पहले हस्तांतरण (Transfer) पर स्टांप शुल्क उसकी भुगतान की गई राशि पर लगेगा।
बाद में, यदि मूल विक्रेता (Original Seller) भी उप-क्रेता को संपत्ति का एक अलग दस्तावेज़ जारी करता है, तो इस दूसरे दस्तावेज़ पर कम स्टांप शुल्क लगेगा। इस स्थिति में, दूसरा दस्तावेज़ अधिकतम ₹5 के स्टांप शुल्क के साथ मान्य होगा।
उदाहरण के लिए, यदि A, B से ₹50,00,000 में भूमि खरीदता है लेकिन उसे C को ₹60,00,000 में बेच देता है, और C को सबसे पहले A से दस्तावेज़ मिलता है, तो स्टांप शुल्क ₹60,00,000 के आधार पर लगेगा।
बाद में, यदि B, C को एक और दस्तावेज़ जारी करता है, तो उस पर या तो ₹50,00,000 की स्टांप शुल्क दर लगेगी या अधिकतम ₹5, जो भी कम हो।
इससे यह सुनिश्चित होता है कि एक ही संपत्ति के लिए बार-बार स्टांप शुल्क न लगे और कर की अधिकता से बचा जा सके।
धारा 28 संपत्ति विक्रय (Property Sale) से संबंधित विभिन्न जटिलताओं (Complexities) को संबोधित करती है और यह सुनिश्चित करती है कि स्टांप शुल्क सही तरीके से लगाया जाए।
मुख्य बिंदु इस प्रकार हैं:
1. यदि संपत्ति को अलग-अलग भागों में बेचा जाता है, तो प्रत्येक भाग पर अलग से स्टांप शुल्क लगेगा।
2. संयुक्त खरीदारों (Joint Buyers) को उनके हिस्से के अनुसार शुल्क देना होगा।
3. यदि संपत्ति को स्थानांतरण से पहले पुनः बेचा जाता है, तो शुल्क अंतिम कीमत पर लगेगा।
4. पुनः विक्रय की स्थिति में स्टांप शुल्क को उचित रूप से विभाजित किया जाएगा।
5. यदि उप-क्रेता को दो बार दस्तावेज़ मिलता है, तो दूसरी बार कम शुल्क लगेगा।
यह प्रावधान पारदर्शिता (Transparency) सुनिश्चित करता है और संपत्ति विक्रय से जुड़े कर अपवंचन (Tax Evasion) को रोकता है।