नीलामी की निष्पक्षता, भुगतान की शर्तें और पुनः बिक्री की प्रक्रिया – राजस्थान भू-राजस्व अधिनियम, 1956 की धारा 240 से 245
Himanshu Mishra
26 Jun 2025 11:13 AM

नीलामी की निष्पक्षता, भुगतान की शर्तें और पुनः बिक्री की प्रक्रिया – राजस्थान भू-राजस्व अधिनियम, 1956 की धारा 240 से 245
राजस्थान भू-राजस्व अधिनियम, 1956 (Rajasthan Land Revenue Act, 1956) की धाराएँ 240 से 245 नीलामी (Auction) की प्रक्रिया को निष्पक्ष, पारदर्शी और कानूनी रूप से संरक्षित बनाए रखने के उद्देश्य से लागू की गई हैं।
जब किसी डिफॉल्टर की भूमि या अचल संपत्ति को बकाया राजस्व या किराया वसूलने हेतु नीलाम किया जाता है, तो यह धाराएँ सुनिश्चित करती हैं कि प्रक्रिया का दुरुपयोग न हो, समय पर भुगतान हो और यदि खरीदार भुगतान करने में विफल रहता है तो संपत्ति की पुनः बिक्री (Re-sale) का स्पष्ट तरीका हो।
धारा 240 – नीलामी में भाग लेने पर प्रतिबंध (Prohibition to Bid in Auction by Certain Officers)
कोई भी अधिकारी, जिसे नीलामी प्रक्रिया में कोई भी अधिकार, कर्तव्य या नियंत्रण प्राप्त है, वह स्वयं, या उसके अधीनस्थ व्यक्ति नीलामी में भाग नहीं ले सकते। वे संपत्ति की बोली नहीं लगा सकते और न ही प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से उस संपत्ति को खरीद सकते हैं।
एकमात्र अपवाद:
यह प्रतिबंध राज्य सरकार या कोर्ट ऑफ वार्ड्स की ओर से की गई बोली पर लागू नहीं होता।
उदाहरण:
अगर तहसीलदार स्वयं नीलामी की निगरानी कर रहे हैं, तो वह या उनका कर्मचारी उस संपत्ति की खरीद में रुचि नहीं ले सकते। इससे नीलामी प्रक्रिया निष्पक्ष बनी रहती है।
धारा 241 – नीलामी रुकवाने की स्थिति (When Sale May Be Stayed)
अगर डिफॉल्टर, भूमि की नीलामी से पहले बकाया राशि चुका देता है, तो नीलामी स्थगित (Stay) कर दी जाएगी। यह भुगतान निम्न व्यक्तियों में से किसी को किया जा सकता है:
• नियुक्त राजस्व संग्रहकर्ता
• उपखंड अधिकारी (Assistant Collector)
• स्वयं कलेक्टर
यह प्रावधान डिफॉल्टर को अंतिम समय तक राहत पाने का अवसर देता है।
उदाहरण:
अगर नीलामी की तारीख 1 अगस्त है और डिफॉल्टर 31 जुलाई को बकाया चुका देता है, तो नीलामी नहीं होगी।
धारा 242 – खरीदार द्वारा अग्रिम जमा और डिफॉल्ट की स्थिति (Deposit by Purchaser and Re-sale in Case of Default)
जो व्यक्ति नीलामी में उच्चतम बोली लगाता है और विजेता घोषित होता है, उसे उसी समय बोली राशि का 25% जमा करना होता है। यदि वह ऐसा नहीं करता, तो उसी समय संपत्ति फिर से नीलामी में रख दी जाती है।
इसके परिणाम:
• पहले नीलामी से हुई लागत और दोबारा बिक्री से जो मूल्य में घाटा होता है, वह उस डिफॉल्ट करने वाले व्यक्ति से वसूला जाएगा
• यह वसूली भी बकाया राजस्व की तरह की जाएगी
उदाहरण:
मोहन ने ₹1,00,000 की बोली लगाई लेकिन तुरंत ₹25,000 नहीं जमा किया। संपत्ति अगली बार ₹90,000 में बिकी। तो ₹10,000 का घाटा और पहले की लागत मोहन से वसूली जाएगी।
धारा 243 – खरीद मूल्य की पूर्ण अदायगी (When Full Purchase Money Must Be Paid)
नीलामी में सफल खरीदार को 15 दिन के भीतर कलेक्टर कार्यालय में पूरा पैसा जमा करना होता है।
अगर नहीं किया भुगतान:
• जो 25% पहले जमा किया गया था, वह जब्त (Forfeit) कर लिया जाएगा
• बिक्री की लागत उस राशि में से काट ली जाएगी
• संपत्ति फिर से नीलाम की जाएगी
• खरीदार को उस संपत्ति पर कोई दावा नहीं रहेगा
उदाहरण:
राज ने नीलामी के दिन ₹50,000 जमा किया पर शेष ₹1,50,000 15 दिन में जमा नहीं किया। उसका अग्रिम जब्त कर लिया गया और संपत्ति फिर नीलाम की गई।
धारा 244 – पुनः बिक्री से हुई हानि की जिम्मेदारी (Liability of Purchaser for Loss by Re-sale)
अगर संपत्ति की पुनः बिक्री पर मिलने वाली राशि पहली बार घोषित बोली राशि से कम होती है, तो दोनों के बीच का अंतर (Difference) उस खरीदार से वसूला जाएगा जिसने पहले बोली जीतकर बाद में भुगतान नहीं किया।
यह अंतर भी राजस्व बकाया की तरह वसूल किया जाएगा।
उदाहरण:
पहली नीलामी ₹2,00,000 में हुई, लेकिन भुगतान नहीं होने के कारण दूसरी नीलामी ₹1,70,000 में हुई। ₹30,000 की हानि उस पहले खरीदार से वसूली जाएगी।
धारा 245 – पुनः नीलामी से पहले उद्घोषणा (Proclamation Before Re-sale)
यदि नीलामी को स्थगित किया गया है (धारा 239 के तहत), या खरीदार ने भुगतान नहीं किया और पुनः बिक्री होनी है (धारा 242 के तहत), तो दोबारा नीलामी से पहले एक नई उद्घोषणा करना अनिवार्य है।
यह उद्घोषणा उसी प्रकार की होगी जैसी पहली नीलामी से पहले की गई थी।
इसका उद्देश्य:
• पारदर्शिता बनाए रखना
• सभी संबंधित पक्षों को सूचित करना
• नए संभावित खरीदारों को मौका देना
धाराएँ 240 से 245 यह सुनिश्चित करती हैं कि भूमि या अचल संपत्ति की नीलामी पूरी तरह से न्यायपूर्ण, पारदर्शी और कानूनी प्रक्रिया के अंतर्गत हो। अधिकारी नीलामी में निजी लाभ नहीं कमा सकते, डिफॉल्टर को अंतिम मौके तक राहत का अवसर दिया जाता है, और खरीदारों को समय पर भुगतान की सख्त शर्तों का पालन करना होता है। यदि ऐसा नहीं होता, तो सरकार के पास यह अधिकार है कि वह न केवल पुनः नीलामी करे बल्कि डिफॉल्ट करने वाले खरीदार से नुकसान की भरपाई भी करे।
इन नियमों से यह स्पष्ट होता है कि भू-राजस्व अधिनियम, 1956 राज्य के राजस्व हितों की रक्षा करते हुए एक निष्पक्ष और उत्तरदायी प्रणाली का निर्माण करता है।