The Indian Contract Act में किसी भी Contract का अमल में लाया जाना
Shadab Salim
3 Sept 2025 9:18 AM IST

इस एक्ट की धारा 37 के अनुसार किसी Contractके पक्षकारों को अपनी क्रमागत प्रतिज्ञाओं का पालन जब तक कि ऐसा पालन इस अधिनियम के या किसी अन्य विधि के अधीन माफी योग्य नहीं है या तो करना चाहिए या करने की पेशकश करनी चाहिए।
इस अधिनियम की धारा 37 में एक महत्वपूर्ण बात यह है कि पालन की पेशकश को पालन के समतुल्य रखा गया है। इस नियम का कारण क्या है कि यदि कोई पक्षकार पालन की पेशकश करता है परंतु दूसरा पक्षकार उसे स्वीकार नहीं करता है या उसे पालन नहीं करने देता है तो पालन की पेशकश करने वाला पक्षकार Contractके अधीन अपने उत्तरदायित्व से उन्मुक्त हो जाएगा परंतु इसके लिए धारा 38 में वर्णित शर्तों का पूरा करना आवश्यक होता है। धारा 38 के अनुसार जबकि किसी प्रतिज्ञाकर्ता ने किसी प्रतिज्ञाग्रहिता से पालन की पेशकश की है और वह पेशकश प्रतिग्रहीत नहीं की गई है तो प्रतिज्ञाकर्ता पालन न करने के लिए उत्तरदायी नहीं है और न ही वह Contractके अधीन अपने अधिकारों को एतद् द्वारा खो देता है।
धारा 38 के अंतर्गत संविदाओं के पालन के लिए पालन के पेशकश के लिए जो शर्त बतलायी गई है उनके अधीन ऐसी पेशकश बगैर किसी शर्त के होना चाहिए और वह उचित समय और स्थान पर तथा ऐसी परिस्थितियों के अधीन की जानी चाहिए कि उस व्यक्ति को जिस से वह की गई है यह निश्चित करने का युक्तियुक्त अवसर हो कि वह व्यक्ति जिसके द्वारा वह की गई है वहीं और उसी समय पर उस बात को जिसे कि वह अपनी प्रतिज्ञा करने को बाध्य है पूर्णता करने को समर्थ रजामंद है।
Contract Actकी धारा 38 के अंतर्गत एक दृष्टांत प्रस्तुत किया गया है जो इस प्रकार है-
ख को उसके भंडारगार में एक विशिष्ट क्वालिटी की रूई की सौ गांठें 1873 की मार्च की 1 तारीख को परिदान करने की Contractक करता है।
इस उद्देश्य से की पालन की ऐसी प्रस्थापना की जाए जिसका प्रभाव वह हो जो इस धारा में कथित है। क को वह रूई नियत दिन को ख के भंडारगर में ऐसी परिस्थितियों के अधीन लानी होगी की ख को अपना यह समाधान कर लेने का युक्तियुक्त अवसर मिल जाए कि परिदत चीज उच्च क्वालिटी की रुई है जिसकी Contractकी गई थी और यह वह सौ गाँठे ही है।
धारा 38 के अर्थ को यदि सामान्य रूप से समझा जाए तो जब Contractका एक पक्षकार Contractका पालन नहीं करता है जबकि ऐसा करने के लिए विधि द्वारा बाध्य है तो ऐसी स्थिति में दूसरा पक्षकार भी उस Contractके पालन के दायित्व से मुक्त हो जाता है और वह उसे जो Contractभंग के कारण हानि हुई है उनकी वसूली Contractभंग करने वाले पक्षकार से कर सकता है अर्थात हानि होने वाले पक्षकार द्वारा Contractभंग करने वाले पक्षकार से प्रतिकर वसूला जा सकता है।
भारतीय Contract Act की धारा 38 का विश्लेषण करने पर हम यह पाते हैं कि जब किसी वचनदाता ने वचनग्रहिता से किसी Contractका पालन करने हेतु प्रस्थापना की है किंतु वह यह प्रस्थापना प्रतिग्रहीत न हुई हो तो वचनदाता का दायित्व पालन के संदर्भ में न होगा और न ही उसके द्वारा वह अपने अधिकारों को ही Contractके अधीन खो देता है।
जब किसी Contractका कोई एक पक्षकार अपने वचन का पूर्ण रुप से पालन करने से इंकार कर देता है या पालन करने से अपने आप को असमर्थ कर लेता है या पालन करने के अयोग्य बना लेता है तब वचनग्रहिता Contractसमाप्त करने का अधिकारी हो जाता है पर यदि वह शब्दों या आचरण से Contractको जारी रखने की हामी देता है तो वह Contractका अंत नहीं कर सकता है।
एक गीतकार थिएटर के मैनेजर से 2 महीने की अवधि में सप्ताह में दो रातों को उसके थिएटर में गाने की Contractकरता है तथा उसे प्रति रात हेतु सौ देने का वचन दिया जाता है। छठी रात को गाने वाला जानबूझकर थिएटर में अनुपस्थित रहता है अब यहां पर गाने वाले से Contractकरने वाला थिएटर का मैनेजर Contractको समाप्त कर सकता है लेकिन यदि गाने वाला सातवीं रात को आता है तो उसे गाना गाने दिया जाता है ऐसी परिस्थिति में Contractसमाप्त नहीं होती यदि Contractको समाप्त करना है उस सातवीं रात को गाने वाले को गाने से रोकना होगा। छठी रात की क्षतिपूर्ति थिएटर का मैनेजर गाने वाले से प्राप्त करने का अधिकारी होगा।
हरीहरा अय्यर बनाम मेश्यू जॉर्ज एआईआर 1965 केरल 187 के प्रकरण में कहा गया है कि वह पक्षकार जिसको Contractके परिणामस्वरुप हानि होती है वह क्षतिपूर्ति पाने का हकदार होता है।
क्षतिग्रस्त पक्षकार को कोई सूचना देना अपेक्षित नहीं है क्योंकि पूर्व कालिक भंग की सूचना दी जाए वह Contractको प्रवर्तन होने हेतु प्रतीक्षा करेगा भले ही उसका भंगीकरण होने के पश्चात उसको हानि क्यों न सहन करना पड़ी हो।
धारा के संबंध में रॉक वेल्ड इलेक्ट्रोड इंडिया लिमिटेड बनाम केसी बिजीगम 1979 एमएलजे (494) एक प्रकरण उल्लेखनीय है। इस प्रकरण में यह कहा गया था कि यदि कोई नियोजित व्यक्ति किसी कर्मचारी को निलंबित करता है फुल से ड्यूटी पर रिपोर्टिंग करने से रोकता है तो Contractके किसी शर्त के अभाव में नियोजित कर्मचारी के विषय में यह माना जाएगा कि उक्त मामले में Contractका भंग हुआ है जोकि नियोजक के पक्ष में है और नियोजित व्यक्ति क्षतिपूर्ति पाने के लिए अधिकृत होगा।
Contract Actकी धारा 39 का प्रयोग अचल संपत्ति के विक्रय में भी किया जाता है। इस धारा के अंतर्गत किया गया सिद्धांत अचल संपत्ति के विभिन्न मामलों में लागू किया गया है जहां विक्रय की किसी Contractमें एक प्लाट विक्रेता द्वारा त्वरित रूप में कब्जे का परिदान किए जाने के संबंध में था किंतु ऐसा कब्जा दिलवाने में वह असमर्थ था तब खरीददार Contractका विखंडन करने के लिए अधिकृत माना गया है।

