दोषी सांसदों की अयोग्यता पर लिली थॉमस बनाम भारत संघ फैसले का प्रभाव

Himanshu Mishra

11 Jun 2024 4:13 PM IST

  • दोषी सांसदों की अयोग्यता पर लिली थॉमस बनाम भारत संघ फैसले का प्रभाव

    पृष्ठभूमि

    2005 में, लिली थॉमस ने लखनऊ के अधिवक्ता सत्य नारायण शुक्ला के साथ मिलकर भारत के सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की। उन्होंने जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 8(4) को चुनौती दी। यह धारा दोषी राजनेताओं को चुनाव से अयोग्य ठहराए जाने से बचाती है, यदि उनकी अपील हाईकोर्ट में लंबित है।

    शुरू में, उनकी याचिका खारिज कर दी गई थी, लेकिन लगातार प्रयासों के बाद, जुलाई 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने आखिरकार मामले को संबोधित किया। जस्टिस ए.के. पटनायक और एस.जे. मुखोपाध्याय की पीठ ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया।

    मुख्य तथ्य

    मुख्य मुद्दा जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 8(4) को चुनौती देना था। यह धारा मौजूदा सांसदों और विधायकों को कुछ अपराधों के लिए दोषी ठहराए जाने पर तत्काल अयोग्य ठहराए जाने से बचाती है।

    याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि यह प्रावधान भारतीय संविधान के अनुच्छेद 102 और 191 में निर्धारित अयोग्यता के आधारों का खंडन करता है। ये अनुच्छेद संसद को सांसदों और विधायकों के लिए अतिरिक्त अयोग्यता के आधार निर्धारित करने का अधिकार देते हैं।

    मुख्य मुद्दे

    1. क्या संसद के पास जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 8 की उपधारा 4 को अधिनियमित करने का अधिकार था?

    2. क्या धारा 8(4) भारत के संविधान का उल्लंघन करती है?

    कानून के बिंदु

    कई संवैधानिक प्रावधानों पर चर्चा की गई, विशेष रूप से अनुच्छेद 101, 102, 190, 191, 246 और 248। ये अनुच्छेद सांसदों और विधायकों की योग्यता और अयोग्यता तथा संसद और राज्य विधानमंडलों की शक्तियों को संबोधित करते हैं। जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की प्रासंगिक धाराओं की भी जांच की गई, विशेष रूप से धारा 8, जो दोषी सदस्यों के लिए अयोग्यता मानदंड को रेखांकित करती है।

    याचिकाकर्ताओं के तर्क

    लिली थॉमस के नेतृत्व में याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि अयोग्यता के समान नियम भावी और मौजूदा सांसदों और विधायकों दोनों पर लागू होने चाहिए। उन्होंने 1953 के सुप्रीम कोर्ट के मामले, चुनाव आयोग बनाम साका वेंकट राव का हवाला दिया, जिसमें एक समान अयोग्यता मानदंड पर जोर दिया गया था। उन्होंने तर्क दिया कि संसद के पास मौजूदा सदस्यों को तत्काल अयोग्यता से बचाने का अधिकार नहीं है, जिससे धारा 8(4) असंवैधानिक हो जाती है।

    उन्होंने यह भी तर्क दिया कि आम नागरिकों की तरह ही दोषसिद्धि के तुरंत बाद अयोग्यता होनी चाहिए। याचिकाकर्ताओं ने आगे कहा कि अपीलीय अदालतें दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 389(1) के तहत अयोग्यता पर रोक लगा सकती हैं, जिससे धारा 8(4) अनावश्यक हो जाती है।

    प्रतिवादियों के तर्क

    प्रतिवादियों ने के. प्रभाकरन बनाम पी. जयराजन (2013) में सुप्रीम कोर्ट के पिछले फैसले का हवाला देते हुए धारा 8(4) का बचाव किया, जिसमें मौजूदा सांसदों और विधायकों के लिए अलग-अलग व्यवहार को उचित ठहराया गया था। उन्होंने तर्क दिया कि तत्काल अयोग्यता सरकारों को अस्थिर कर सकती है और अनावश्यक उपचुनावों की आवश्यकता हो सकती है।

    उन्होंने दावा किया कि संसद के पास संविधान के अनुच्छेद 102(1)(ई), 191(1)(ई), 246(1) और 248 के तहत ऐसे प्रावधानों को लागू करने की विधायी शक्ति है, जिसमें अनिर्धारित विषयों पर कानून बनाने की अवशिष्ट शक्तियाँ शामिल हैं। उन्होंने दावा किया कि धारा 8(4) ने नए अयोग्यता मानदंड नहीं बनाए, बल्कि मौजूदा मानदंडों के प्रभाव में देरी की।

    सुप्रीम कोर्ट का फैसला

    सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि संसद के पास जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 8(4) को लागू करने का अधिकार नहीं है। कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि अयोग्यता मानदंड भावी और मौजूदा सांसदों और विधायकों दोनों के लिए समान होने चाहिए।

    इसने कहा कि संसद दोषी सदस्यों की अयोग्यता को स्थगित नहीं कर सकती, क्योंकि यह संविधान के अनुच्छेद 101(3)(ए) और 190(3)(ए) का उल्लंघन करेगा, जो अयोग्यता पर सीटों को तुरंत खाली करने का आदेश देते हैं।

    कोर्ट ने माना कि संसद अतिरिक्त अयोग्यता मानदंड निर्धारित कर सकती है, लेकिन वह मौजूदा सदस्यों के लिए उनके कार्यान्वयन में देरी नहीं कर सकती। इस प्रकार, धारा 8(4) को असंवैधानिक और अधिकार-बाह्य घोषित किया गया, अर्थात संविधान द्वारा प्रदत्त शक्तियों से परे।

    फैसले का असर

    1. तत्काल अयोग्यता

    कोर्ट ने निर्णय लिया कि दोषी ठहराए गए सांसदों को दोषी ठहराए जाने पर तत्काल अयोग्य घोषित कर दिया जाएगा। अपील दायर करने का प्रावधान अयोग्यता के विरुद्ध स्वतः सुरक्षा प्रदान नहीं करता।

    2. दोषसिद्धि पर कोई स्वतः रोक नहीं

    सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि दोषी पाए जाने पर दोषसिद्धि पर कोई स्वतः रोक नहीं होगी। सांसदों को जमानत या अपनी सजा के निलंबन की मांग करनी होगी।

    3. उम्मीदवारों के रिकॉर्ड में पारदर्शिता

    निर्णय ने उम्मीदवारों के रिकॉर्ड में पारदर्शिता की आवश्यकता पर जोर दिया। इसमें सभी चुनाव उम्मीदवारों को चुनाव आयोग, राजनीतिक दलों और जनता के समक्ष अपनी आपराधिक पृष्ठभूमि का खुलासा करने की आवश्यकता थी।

    4. राजनीति के अपराधीकरण से निपटना

    निर्णय का उद्देश्य राजनीति में अपराधीकरण के मुद्दे को संबोधित करना था, यह सुनिश्चित करके कि आपराधिक रिकॉर्ड वाले व्यक्ति सार्वजनिक पद पर नहीं रह सकते या शासन को प्रभावित नहीं कर सकते।

    5. संवैधानिक नैतिकता को कायम रखना

    कोर्ट ने कहा कि दोषी राजनेताओं को उनकी अपील लंबित रहने के दौरान पद पर बने रहने की अनुमति देना संवैधानिक नैतिकता, सुशासन और राजनीतिक व्यवस्था में जनता के विश्वास के सिद्धांतों का उल्लंघन है।

    6. आपराधिक तत्वों को रोकना

    निर्णय ने आपराधिक दोषसिद्धि के लिए सख्त परिणाम लागू करके अपराधियों को राजनीति में प्रवेश करने से रोकने का प्रयास किया। इसका उद्देश्य आपराधिक पृष्ठभूमि वाले व्यक्तियों को राजनीतिक सत्ता प्राप्त करने से हतोत्साहित करना था।

    7. लोकतंत्र को मजबूत बनाना

    इस फैसले ने स्वच्छ और जवाबदेह शासन के महत्व पर जोर देकर भारत के लोकतांत्रिक ताने-बाने को मजबूत किया। इसका उद्देश्य निर्वाचित प्रतिनिधियों में जनता का विश्वास बहाल करना और राजनीतिक व्यवस्था की अखंडता को बनाए रखना था।

    8. राजनीतिक परिदृश्य पर प्रभाव

    लिली थॉमस के फैसले ने भारत के राजनीतिक परिदृश्य को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित किया। इसने विभिन्न राजनीतिक दलों के कई दोषी सांसदों को अयोग्य घोषित कर दिया और राजनीतिक दलों को आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों को मैदान में उतारने में अधिक सतर्क रहने के लिए मजबूर किया।

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