गलत सबूत के स्वीकार या अस्वीकार का सिविल और आपराधिक मामलों पर प्रभाव - धारा 169, भारतीय साक्ष्य अधिनियम 2023

Himanshu Mishra

17 Sept 2024 5:58 PM IST

  • गलत सबूत के स्वीकार या अस्वीकार का सिविल और आपराधिक मामलों पर प्रभाव - धारा 169, भारतीय साक्ष्य अधिनियम 2023

    भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023 1 जुलाई 2024 से लागू हुआ है और इसने पुराने भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 को बदल दिया है। इस नए अधिनियम का एक महत्वपूर्ण अनुभाग है धारा 169, जो गलत तरीके से सबूत को स्वीकार (Admission of Evidence) या अस्वीकार (Rejection of Evidence) करने से संबंधित है।

    यह सेक्शन पुराने अधिनियम के धारा 167 के समान है (Pari Materia), जिसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि यदि पर्याप्त वैध सबूत (Sufficient Evidence) पहले से मौजूद हैं, तो सबूत के गलत तरीके से स्वीकार या अस्वीकार होने पर भी नया ट्रायल (New Trial) या निर्णय को पलटने (Reversal of Judgment) की आवश्यकता न हो।

    धारा 169 यह सुनिश्चित करता है कि सबूतों से जुड़ी मामूली त्रुटियों के कारण अनावश्यक रूप से कानूनी प्रक्रिया लंबी न हो और अन्यायपूर्ण परिणाम न आएं। यह प्रावधान सुनिश्चित करता है कि निर्णय केवल सही और वैध सबूतों पर आधारित हो, चाहे वह सिविल हो या आपराधिक मामला। इससे न्याय प्रणाली की दक्षता (Efficiency) और निष्पक्षता (Fairness) बनी रहती है और अनावश्यक ट्रायल से बचा जाता है।

    सिविल मामलों में गलत सबूत का स्वीकार या अस्वीकार का प्रभाव

    सिविल मामलों (Civil Cases) में अक्सर यह विवाद होता है कि कुछ सबूतों को स्वीकार या अस्वीकार किया जाना चाहिए था या नहीं। धारा 169 के अनुसार, गलत सबूतों का स्वीकार या अस्वीकार अपने आप में नया ट्रायल शुरू करने या निर्णय को पलटने का सही आधार नहीं है।

    यदि पर्याप्त प्रासंगिक (Relevant) और वैध सबूत पहले से हैं, तो गलत सबूत को स्वीकार किए जाने पर भी निर्णय वैध रहेगा। कोर्ट यह देखता है कि क्या सही तरीके से स्वीकार किए गए सबूत निर्णय के लिए पर्याप्त हैं या नहीं।

    उदाहरण के लिए, Abdul Rahim v. King-Emperor मामले में कोर्ट ने यह कहा कि अगर गलत सबूत स्वीकार किए गए हैं, तो इसका मतलब यह नहीं है कि नया ट्रायल होना चाहिए। कोर्ट ने यह भी कहा कि गलत सबूत को स्वीकार करना निर्णय को पलटने का आधार नहीं है, यदि अन्य सही सबूत निर्णय का समर्थन करते हैं।

    इसी तरह, State of Mysore v. Sampangiramiah मामले में कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा कि गलत सबूतों को स्वीकार करना उतना हानिकारक नहीं है जितना कि सही सबूतों को अस्वीकार करना। इसका कारण यह है कि गलत सबूतों को निर्णय लेते समय नजरअंदाज किया जा सकता है, जबकि सही सबूतों के अस्वीकार किए जाने पर अतिरिक्त कार्यवाही (Proceedings) की आवश्यकता हो सकती है।

    यदि सिविल मामलों में निर्णय केवल गलत सबूतों पर आधारित है, तो कोर्ट उन सबूतों को हटा कर देखेगा कि क्या बचे हुए सबूत निर्णय का समर्थन कर सकते हैं। यदि नहीं, तो निर्णय को पलटा जा सकता है।

    आपराधिक मामलों में गलत सबूत का स्वीकार या अस्वीकार का प्रभाव

    धारा 169 के सिद्धांत आपराधिक मामलों (Criminal Cases) में भी लागू होते हैं। Abdul Rahim v. King-Emperor मामले में बॉम्बे हाई कोर्ट ने कहा कि आपराधिक मामलों में गलत सबूत स्वीकार किए जाने से नया ट्रायल जरूरी नहीं हो जाता।

    ऐसे मामलों में, अपील पर कोर्ट को गलत सबूतों को हटाकर यह देखना चाहिए कि क्या निर्णय सही सबूतों पर आधारित है। यदि कोर्ट पाता है कि पर्याप्त वैध सबूत निर्णय को समर्थन दे रहे हैं, तो निर्णय सिर्फ गलत सबूतों के आधार पर पलटा नहीं जाएगा।

    उदाहरण के लिए, यदि किसी आपराधिक मामले में गलत सबूतों को स्वीकार किया गया है, लेकिन अन्य सही सबूतों से आरोपी की दोषसिद्धि (Conviction) साबित हो रही है, तो निर्णय को सही माना जाएगा। लेकिन अगर गलत सबूत ही निर्णय का मुख्य आधार है, और इसके बिना पर्याप्त सबूत नहीं हैं, तो निर्णय पलटा जाएगा।

    Madan Lal v. Principal, H.B.T. Institute मामले में कोर्ट ने कहा कि यदि किसी तथ्य पर अनिश्चितता हो कि क्या इसे गलत तरीके से स्वीकार किए गए सबूत से प्रभावित किया गया है, तो हाईकोर्ट हस्तक्षेप कर सकता है। लेकिन यदि कोर्ट को विश्वास है कि निर्णय बिना गलत सबूतों के भी वही होता, तो निर्णय पर कोई असर नहीं पड़ेगा।

    सिविल और आपराधिक मामलों में सबूत का अस्वीकार (Rejection of Evidence)

    वैध सबूत को अस्वीकार करना गलत सबूत को स्वीकार करने से अलग माना जाता है। जब वैध सबूतों को गलत तरीके से अस्वीकार किया जाता है, तो सही निर्णय के लिए फिर से कार्यवाही की आवश्यकता हो सकती है ताकि सबूतों को सही तरीके से रिकॉर्ड किया जा सके।

    उदाहरण के लिए, Narain v. State of Punjab मामले में अभियोजन पक्ष (Prosecution) ने एक गवाह को पेश नहीं किया जिसे पहले गिनाया गया था। जब गवाह ने गवाही देने से इनकार किया, तो अभियोजन पक्ष ने उसे हटा दिया, और कोर्ट ने इसे धारा 169 के तहत सबूत के अस्वीकार के रूप में नहीं माना। कोर्ट ने कहा कि असल सवाल यह है कि क्या अस्वीकार किए गए सबूत से मामले का परिणाम बदल सकता था या नहीं।

    सिविल और आपराधिक मामलों में, यदि किसी ट्रायल कोर्ट ने महत्वपूर्ण सबूतों को गलत तरीके से अस्वीकार कर दिया है जो कि निर्णय को प्रभावित कर सकते थे, तो और कार्यवाही की आवश्यकता हो सकती है ताकि सबूतों को सही तरीके से रिकॉर्ड किया जा सके। इससे यह सुनिश्चित होता है कि वैध सबूतों के अस्वीकार से गलत निर्णय न हो।

    गलत सबूत के स्वीकार या अस्वीकार पर नया ट्रायल नहीं - धारा 169, Bharatiya Sakshya Adhiniyam, 2023

    धारा 169 साफ़ तौर पर कहता है कि गलत सबूतों का स्वीकार या अस्वीकार अपने आप में नया ट्रायल शुरू करने या निर्णय को पलटने का पर्याप्त आधार नहीं है। कोर्ट पहले यह देखेगा कि क्या पर्याप्त वैध सबूत मौजूद हैं, जो कि गलत सबूतों को हटा कर भी निर्णय को समर्थन देते हों।

    यदि कोर्ट पाता है कि निर्णय अन्य वैध सबूतों पर आधारित है, तो सिर्फ गलत सबूतों के स्वीकार या अस्वीकार के आधार पर नया ट्रायल या निर्णय को पलटा नहीं जाएगा। इसी तरह, यदि अस्वीकार किए गए सबूत से मामले का नहीं बदलता, तो कोर्ट इसे निर्णय पलटने का कारण नहीं मानेगा।

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