घरेलू हिंसा अधिनियम (DV Act) महिलाओं पर अत्याचार रोकने का क़ानून

Shadab Salim

4 Oct 2025 4:00 PM IST

  • घरेलू हिंसा अधिनियम (DV Act) महिलाओं पर अत्याचार रोकने का क़ानून

    इस एक्ट का पूरा नाम घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 है। घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 का उद्देश्य महिलाएं, जो परिवार के अन्दर घटित होने वाली किसी भी प्रकार की हिंसा की शिकार हैं, के लिए संविधान के अधीन प्रत्याभूत अधिकारों के प्रभावी संरक्षण के लिए उपबन्ध करना है। अधिनियम केवल घरेलू सम्बन्ध में पत्नियों तथा महिलाओं को उपचार का अधिकार प्रदान करता है।

    उपर्युक्त उद्देश्य की प्राप्ति के लिए एक प्रणाली का उपबन्ध है, अर्थात् यह पुलिस अधिकारी, संरक्षण अधिकारी, सेवा प्रदाता एवं मजिस्ट्रेट का कर्तव्य है कि वह पीड़ित व्यक्ति को अधिनियम के अधीन एक या अधिक अनुतोषों के लिए आवेदन करने के उसके अधिकार की सेवा प्रदाता संरक्षण अधिकारी की सेवाओं की उपलब्धता तथा निःशुल्क विधिक सेवाओं का लाभ उठाने के अधिकार की सूचना दे।

    इसी प्रकार, मजिस्ट्रेट साधारणत: आवेदन की प्राप्ति से तीन दिनों के भीतर इसकी प्रथम सुनवाई को तिथि निश्चित करने के दायित्व के अधीन है तथा प्रथम सुनवाई के 60 दिनों के भीतर प्रत्येक आवेदन के निस्तारण का प्रयास करेगा। घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 एक निश्चित समय सीमा के भीतर सम्पूर्ण एवं त्वरित उपचार का उपबन्ध करता है। जहाँ पीड़ित व्यक्ति के अधिकार पर आक्रमण किया जाता है या उसे नष्ट किया जाता है, या नष्ट किये जाने की संभावना है, वहाँ घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 इसकी हानि के लिए नुकसानी या संरक्षित करने के लिए निषेधादेश के द्वारा एक उपचार प्रदान करता है।

    2005 के अधिनियम का उद्देश्य असहाय और आश्रयहीन पीड़ितों को और अधिक प्रभावी संरक्षण प्रदान करना तथा संविधान के अधीन प्रत्याभूत महिलाओं के अधिकारों को सुनिश्चित करना है।

    घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 के अधिनियमित किये जाने का उद्देश्य महिलाओं को, जो पत्नी या विवाह की प्रकृति के सम्बन्ध में रहने वाली स्त्री के अतिरिक्त अकेली महिला, मातायें, विधवायें, बहनें हैं, सिविल विधि के अधीन उपचार प्रदान करना था

    घरेलू हिंसा अधिनियम का अधिनियमन समाज में घरेलू हिंसा की घटना को रोकने तथा घरेलू हिंसा से पीड़ित होने से महिलाओं के संरक्षण के लिए सिविल विधि में उपचार प्रदान करने के लिए किया गया है। घरेलू हिंसा अधिनियम उन महिलाओं को जो परिवार के भीतर घटित होने वाली किसी भी प्रकार की हिंसा की शिकार हैं, संविधान के अधीन प्रत्याभूत महिलाओं के अधिकारों के प्रभावी संरक्षण प्रदान करने के लिए भी उपबन्धित किया गया है।

    चूंकि अधिनियम का वास्तविक उद्देश्य घरेलू हिंसा तथा सम्बन्धित मुद्दों से जुड़ी महिला को संरक्षण प्रदान करना है इसलिए पद "प्रत्युत्तरदाता" को परिभाषित करना पड़ेगा ताकि घरेलू हिंसा के सभी पीड़ितों को, जो स्त्री हैं इस बात पर विचार किये बिना कि क्या ऐसी घरेलू हिंसा पत्नी, या विवाह की प्रकृति के सम्बन्ध के अधीन रहने वाली स्त्री या सौतेली माता के साथ की गई, विशिष्ट रूप से तब जब धारा 2 (क) में अन्तर्विष्ट "पीड़ित व्यक्ति" को परिभाषा पत्नी या बहू तक सीमित नहीं है। किसी महिला को एकमात्र उसकी वैवाहिक स्थिति पर विचार करते हुए या उसके सास होने पर संरक्षण या विशेषाधिकार सीमित करना अयुक्तियुक्त है।

    अधिनियम को अधिनियमित करने के पीछे विधायिका का आशय निःसन्देह संविधान के अधीन प्रत्याभूत महिलाओं को, जो परिवार में किसी प्रकार की हिंसा की शिकार है तथा उससे सम्बन्धित या उससे संगत मामलों में और अधिक संरक्षण प्रदान करना है। यह स्पष्ट है कि संविधान के अधीन प्रत्याभूत महिलाओं के अधिकारों की सुरक्षा करने के लिए तथा उन्हें घरेलू हिंसा से पीड़ित बनाने के विरुद्ध संरक्षण प्रदान करने के लिए अधिनियम को अधिनियमित किया गया है, इस पवित्र सिद्धान्त को मस्तिष्क में रखते हुए उपबन्धों का अर्थान्वयन अपेक्षित है। सिधान्तः यह स्वीकार नहीं किया जा सकता कि घरेलू हिंसा में हमेशा एक महिला हो शिकार या पीड़ित पक्षकार होती है।

    ऐसे मामले हो सकते हैं जिनमें विधि निर्माताओं या समाज के सहानुभूतिपूर्ण तथा अनुकूल रुख का दुरुपयोग करते हुए, पुरुष भागीदारों का उत्पीड़न किया जा सकता है तत्पश्चात् यदि विधि कोर्ट पुरुष भगीदार पर दूसरी बार जोर डालती है तो यह समाज में अव्यवस्था कारित कर सकती है। ऐसी विधियों को लागू करते समय इस विवाद का निर्णय करने में कि परिवार का कौन सा भाग घरेलू हिंसा का पीड़ित है, न्यायालयों को अधिक सतर्क होने की आवश्यकता है। मात्र दस्तावेजों के आधार पर उनके औपचारिक सबूत के बिना तथा मात्र बहस सुनकर आदेश पारित करना विधि द्वारा अनुज्ञात नहीं किया गया है और न्यायिक प्रक्रिया में यह अनुज्ञात नहीं किया जाना चाहिए तथा वाद के एक पक्षकार के प्रति नरम रुख से बचना अपेक्षित है।

    2005 के अधिनियम के द्वारा निर्णायक रूप से संसद का आशय भवन को साझो गृहस्थी में जो प्रत्यर्थी द्वारा (पति के सम्बन्धियों सहित) किराये पर उठायो जा सकती है, या जिसके सम्बन्ध में प्रत्यर्थी संयुक्ततः या एकल रूप में कोई अधिकार स्वत्व, हित, या साम्या रखता था, पीड़ित व्यक्तियों के अधिकारों को सुरक्षित करना था। उदाहरणस्वरूप, एक विधवा (या इस मामले की भाँति बहु, जो अपने पति से अलग हो गई है), जो सास के स्वामित्वाधीन अधिवास में सास के साथ रह रही है, "घरेलू नातेदारी" के अधीन आती है।

    साझी गृहस्थी में रहने के अधिकार में विघ्न न डालने का दायित्व जारी रहेगा हालांकि सास को कोई अधिकार, स्वत्व या हित नहीं है, किन्तु उन अधिवासों में किरायेदार है या 'साम्या' की हकदार है (जैसे कब्जे का साम्यिक अधिकार)। यह इसलिए है कि परिसर साझी गृहस्थी होगी। इन परिस्थितियों में बहू बेकब्जा किये जाने से संरक्षण की हकदार है हालांकि उसके पति को परिसर में कभी कोई स्वामित्व या अधिकार नहीं था। अधिकार, स्वत्व पर आश्रित नहीं है, अपितु मात्र निवास के तथ्य पर आश्रित है।

    इस प्रकार, हालांकि सास किरायेदार है, तब उस आधार पर या किसी अन्य आधार पर साम्या रखती है, बहू को बेकब्जा करने से रोका जा सकता है। सास के स्वामी होने की दशा में, बहू को साझी गृहस्थी में निवास के लिए अनुज्ञा देना, जब तक उसके तथा पति के बीच वैवाहिक नातेदारी रहती है, दायित्व जारी रहेगा। मात्र एक अपवाद धारा 19 (1) (ख) का परन्तुक है, जो स्त्री को साझी गृहस्थी (sliared household) से स्वयं को हटाये जाने का निर्देश देती है। धारा 19 के अधीन अन्य अनुतोषों के लिए ऐसे अपवाद नहीं सृजित किये गये हैं, विशेषकर, संरक्षण आदेशों के सम्बन्ध में क्या महिला के पक्ष में अन्य अपवाद सृजित करने का संसद का आशय था, उसे ऐसा करना होगा। यह लोप इच्छित था तथा अधिनियम की शेष योजना से संगत था।

    श्रीमती प्रीति सतीजा बनाम श्रीमती राज कुमारी, एआईआर 2014 के मामले में कहा गया है कि घरेलू नातेदारी के अन्य मामले हो सकते हैं जैसे कि एक भाई या पुत्र के गृह में रहने वाली अनाथ बहन या विधवा माता दोनों घरेलू नातेदारी की परिभाषा से आच्छादित हैं, क्योंकि भाई स्पष्ट रूप से एक प्रत्यर्थी है। ऐसे मामले में भी, यदि विधवा माता या बहन को बेकब्जा किये जाने की धमकी दी जाती है, तो वे अधिनियम के अधीन, पुत्र या भाई का सम्पत्ति पर अनन्य स्वामित्व के होते हुए भी, अनुतोष सुरक्षित कर सकती हैं। इस प्रकार, सम्पत्तियों के विरुद्ध निवास के अधिकार को अपवर्जित करते हुए, जहाँ पति अधिकार, अंश, हित या स्वत्व, विहिन हो निवास के अधिकार की उपयोगिता के विस्तार को कठोरता से कम किया जाएगा।

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