क्या 2015 के संशोधन के बाद दाखिल Section 11 की याचिकाओं पर नया कानून लागू होता है, जब Arbitration पहले ही शुरू हो चुका हो?
Himanshu Mishra
13 Jun 2025 4:04 PM

परिचय (Introduction): क्या कोर्ट Arbitrator की नियुक्ति में सीमित भूमिका निभा सकता है?
सुप्रीम कोर्ट ने Shree Vishnu Constructions बनाम Engineer-in-Chief, Military Engineering Services (2023) में एक महत्वपूर्ण कानूनी प्रश्न का निपटारा किया। सवाल यह था कि Arbitration and Conciliation (Amendment) Act, 2015 की Section 11(6A) की सीमित भूमिका वाली व्यवस्था उन मामलों पर लागू होगी या नहीं, जहाँ Arbitration की प्रक्रिया तो संशोधन से पहले शुरू हुई थी, लेकिन Section 11 की याचिका संशोधन के बाद दाखिल की गई। इस निर्णय ने यह स्पष्ट कर दिया कि 2015 का संशोधन किस हद तक पूर्व-प्रचलित (pre-existing) Arbitration पर लागू होता है।
Section 11(6A): केवल Arbitration Agreement की उपस्थिति की जाँच (Existence of Arbitration Agreement Only)
Section 11(6A), जो 2015 के संशोधन में जोड़ा गया था, कोर्ट की भूमिका को सीमित करता है। अब कोर्ट सिर्फ यह देखेगा कि Arbitration Agreement (मध्यस्थता अनुबंध) है या नहीं। कोर्ट अब यह नहीं देखेगा कि क्या विवाद पहले निपटा दिया गया था, या किसी ने अपने दावे छोड़ दिए थे।
लेकिन इस मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने यह कहा कि क्योंकि Arbitration का नोटिस 23 अक्टूबर 2015 से पहले भेजा गया था, इसलिए Section 11(6A) लागू नहीं होगा। इसलिए कोर्ट ने अपनी पारंपरिक शक्ति के अंतर्गत जाकर यह देखा कि क्या "accord and satisfaction" (समझौते व पूर्ण भुगतान के बाद दावा) हुआ था।
Section 26: संशोधन की प्रभावशीलता (Effectiveness of Amendment Act, 2015)
इस निर्णय में Section 26 का मुख्य स्थान रहा। यह धारा कहती है कि नया कानून उन Arbitration पर लागू नहीं होगा जो पहले से शुरू हो चुके हैं, जब तक दोनों पक्ष इसके लिए सहमत न हों। लेकिन प्रश्न यह था कि अगर Section 11 की याचिका बाद में दाखिल की गई हो तो क्या वह "related judicial proceedings" (न्यायिक कार्यवाही से संबंधित) मानी जाएगी और संशोधन लागू होगा?
Board of Control for Cricket in India बनाम Kochi Cricket Pvt. Ltd. (BCCI, 2018) के अनुसार, Court proceedings जो संशोधन के बाद शुरू हुई हों, उन पर नया कानून लागू होगा। लेकिन Parmar Construction और Pradeep Vinod Construction मामलों में कोर्ट ने माना कि अगर Arbitration पहले शुरू हो चुका हो, तो Section 11 की याचिका पर भी पुराना कानून ही लागू होगा।
Arbitration की शुरुआत कब मानी जाती है? (When Does Arbitration Begin?)
Section 21 के अनुसार, Arbitration की प्रक्रिया उसी दिन से मानी जाती है जिस दिन दूसरा पक्ष विवाद को मध्यस्थता में भेजने का अनुरोध प्राप्त करता है। इस मामले में, नोटिस 20 दिसंबर 2013 को भेजा गया था, यानी संशोधन से काफी पहले। इसलिए कोर्ट ने कहा कि प्रक्रिया पहले ही शुरू हो चुकी थी और नया कानून लागू नहीं होगा।
BCCI निर्णय: Context की सीमितता (Limited Applicability of BCCI Judgment)
अपीलकर्ता ने BCCI के निर्णय का हवाला दिया जिसमें कहा गया था कि Amendment Act, 2015 उन सभी Court proceedings पर लागू होगा जो 23 अक्टूबर 2015 के बाद शुरू हुई हों। लेकिन कोर्ट ने स्पष्ट किया कि BCCI का निर्णय Section 34 (Award को चुनौती) और Section 36 (Award को लागू करना) से संबंधित था, न कि Section 11 (Arbitrator की नियुक्ति) से।
इसलिए यह कहना गलत होगा कि BCCI का निर्णय हर प्रकार की न्यायिक प्रक्रिया पर समान रूप से लागू होता है। Parmar Construction और Pradeep Vinod Construction ने सीधे Section 11 से संबंधित प्रश्नों को हल किया है, और इस मामले में वही प्रासंगिक हैं।
Per Incuriam सिद्धांत लागू नहीं होता (Doctrine of Per Incuriam Not Applicable)
अपीलकर्ता ने यह तर्क दिया कि Parmar Construction और अन्य निर्णय BCCI को ध्यान में न रखते हुए दिए गए थे, इसलिए वे per incuriam (गंभीर विधिक चूक) हैं। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि क्योंकि BCCI में Section 11(6) का मुद्दा सामने ही नहीं आया था, इसलिए वह binding precedent नहीं है।
कोर्ट ने कहा कि per incuriam केवल तब लागू होता है जब कोई निर्णय किसी पूर्ववर्ती स्पष्ट और संबंधित निर्णय को अनदेखा करता है। यहाँ ऐसा नहीं हुआ।
संशोधन का Prospective प्रभाव (Prospective Nature of Amendment)
कोर्ट ने दोहराया कि 2015 का संशोधन Prospective (भविष्यकालिक) है, न कि Retrospective (पूर्वव्यापी)। इसलिए यह केवल उन मामलों पर लागू होगा जो 23 अक्टूबर 2015 या उसके बाद शुरू हुए हों। यह न्यायिक प्रणाली की स्थिरता और प्रक्रिया की पूर्वनिश्चितता सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक है।
न्यायिक मिसाल और अनुशासन (Precedent and Hierarchy in Judicial Process)
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि जब कोई निर्णय किसी विशेष प्रावधान से जुड़ा हो, तो उसे प्राथमिकता दी जाती है। इसलिए, Parmar Construction और Pradeep Vinod Construction जो सीधे Section 11 पर आधारित हैं, वे अधिक लागू होते हैं। अन्य निर्णय जो सिर्फ Section 34 और 36 से जुड़े हैं, वे इस विषय में मार्गदर्शक नहीं हैं।
अंतिम निर्णय (Final Ruling): पुराना कानून ही लागू होगा
कोर्ट ने यह निर्णय दिया कि जब Arbitration की प्रक्रिया 2015 के संशोधन से पहले शुरू हो चुकी थी, तो बाद में दाखिल की गई Section 11 की याचिका पर भी संशोधित कानून लागू नहीं होगा। इसलिए High Court ने जो यह माना कि "no further claim certificate" और भुगतान पूर्ण हो चुका था, वह देखने का उसे अधिकार था।
यह निर्णय भारत में Arbitration कानून को स्पष्टता प्रदान करता है। इससे यह तय हो गया कि अगर Arbitration पहले से शुरू हो गया है, तो संशोधन के बाद दाखिल हुई Section 11 याचिकाओं पर पुराना कानून ही लागू होगा। इससे Procedural fairness (प्रक्रियात्मक निष्पक्षता) बनी रहती है और पक्षों के अधिकारों में असमंजस नहीं होता। यह निर्णय कानूनी स्थिरता और सिद्धांत की रक्षा करता है, जो Arbitration प्रक्रिया की आत्मा है।