क्या नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल हाई कोर्ट के अधिकारों को सीमित करता है?

Himanshu Mishra

3 Feb 2025 5:44 PM IST

  • क्या नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल हाई कोर्ट के अधिकारों को सीमित करता है?

    सुप्रीम कोर्ट ने MP Bar Association बनाम Union of India (2022) मामले में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) की संवैधानिक वैधता (Constitutional Validity) और पर्यावरण से जुड़े मामलों में इसकी भूमिका की जांच की। याचिकाकर्ताओं (Petitioners), जो मध्य प्रदेश के अधिवक्ता (Advocates) थे, ने NGT अधिनियम, 2010 (NGT Act, 2010) की कुछ धाराओं को चुनौती दी।

    उन्होंने कहा कि यह हाई कोर्ट के अधिकार क्षेत्र (Jurisdiction) को सीमित करता है और लोगों को न्याय (Justice) पाने के लिए प्रभावी उपाय (Effective Remedy) नहीं देता। सुप्रीम कोर्ट ने इस अधिनियम को वैध माना और इसमें निहित प्रमुख संवैधानिक मुद्दों (Fundamental Constitutional Issues) पर विचार किया।

    NGT और हाई कोर्ट के अधिकार क्षेत्र (Jurisdiction of High Courts and NGT)

    याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि NGT अधिनियम की धारा 14 और 22 हाई कोर्ट के अनुच्छेद 226 और 227 के तहत दिए गए अधिकारों को खत्म कर देती है। उन्होंने दावा किया कि इससे हाई कोर्ट के पास पर्यावरण मामलों को सुनने की शक्ति समाप्त हो जाती है और केवल NGT ही ऐसा कर सकता है, जिससे न्याय की सुलभता (Accessibility to Justice) कम हो जाती है।

    सुप्रीम कोर्ट ने इस दावे को खारिज किया और स्पष्ट किया कि अनुच्छेद 226 और 227 के तहत न्यायिक पुनरावलोकन (Judicial Review) संविधान के मूल ढांचे (Basic Structure) का हिस्सा है और इसे कोई भी कानून समाप्त नहीं कर सकता।

    कोर्ट ने L. Chandra Kumar बनाम Union of India (1997) का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि ट्रिब्यूनल हाई कोर्ट की संवैधानिक निगरानी (Judicial Superintendence) को समाप्त नहीं कर सकते। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि भले ही NGT मामलों को सुने, लेकिन नागरिक अब भी अनुच्छेद 226 के तहत हाई कोर्ट में याचिका दायर कर सकते हैं।

    अपील प्रणाली और न्याय तक पहुंच (Appeal Mechanism and Access to Justice)

    याचिकाकर्ताओं का यह भी तर्क था कि NGT के फैसलों के खिलाफ अपील (Appeal) केवल सुप्रीम कोर्ट में ही की जा सकती है, जिससे गरीब और वंचित वर्गों (Economically Weaker Sections) के लिए न्याय तक पहुंचना कठिन हो जाता है। उन्होंने मांग की कि अपील का अधिकार हाई कोर्ट को भी दिया जाए ताकि अधिक लोगों को न्याय मिल सके।

    सुप्रीम कोर्ट ने इस मांग को अस्वीकार कर दिया और कहा कि यह दावा गलत है कि सुप्रीम कोर्ट में अपील करने का मतलब न्याय से वंचित होना है।

    कोर्ट ने यह भी कहा कि अन्य ट्रिब्यूनलों (Tribunals) जैसे Armed Forces Tribunal और Telecom Disputes Settlement and Appellate Tribunal में भी सीधे सुप्रीम कोर्ट में अपील की व्यवस्था है। साथ ही, यदि किसी व्यक्ति को लगे कि NGT का निर्णय गैरकानूनी (Illegal) है, तो वह हाई कोर्ट में अनुच्छेद 226 के तहत याचिका दायर कर सकता है।

    कोर्ट ने R.K. Jain बनाम Union of India (1993) और Rojer Mathew बनाम South Indian Bank Ltd. (2020) का हवाला दिया, जिनमें ट्रिब्यूनल की अपील प्रणाली पर पहले भी विचार किया गया था।

    NGT बेंच की स्थापना और स्थान (Establishment and Location of NGT Benches)

    याचिकाकर्ताओं ने NGT की सभी राज्यों में बेंच (Bench) स्थापित करने की मांग की और विशेष रूप से मध्य प्रदेश में भोपाल के बजाय जबलपुर में बेंच स्थापित करने की अपील की। उन्होंने S.P. Sampath Kumar बनाम Union of India (1987) का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि प्रशासनिक ट्रिब्यूनल (Administrative Tribunal) को हाई कोर्ट के मुख्यालय (Principal Seat) पर स्थापित किया जाना चाहिए।

    सुप्रीम कोर्ट ने इस तर्क को अस्वीकार करते हुए कहा कि NGT की बेंचों की स्थापना मामलों की संख्या और लॉजिस्टिक्स (Logistics) के आधार पर की जाती है। कोर्ट ने कहा कि NGT के पास बहुत अधिक मामले नहीं होते, इसलिए प्रत्येक राज्य में इसकी बेंच स्थापित करना व्यावहारिक (Practical) नहीं होगा।

    अदालत ने यह भी उल्लेख किया कि फरवरी 2022 तक भोपाल बेंच में केवल 107 मामले लंबित (Pending) थे, जो कि अन्य ट्रिब्यूनलों की तुलना में बहुत कम हैं। इस आधार पर, कोर्ट ने जबलपुर में बेंच स्थापित करने की मांग को खारिज कर दिया।

    केंद्र सरकार को दी गई शक्तियां और उनका दायरा (Delegation of Powers to the Central Government)

    याचिकाकर्ताओं ने NGT अधिनियम की धारा 3 को चुनौती दी, यह कहते हुए कि इसमें केंद्र सरकार को अत्यधिक शक्तियां (Excessive Powers) दी गई हैं, जिससे संवैधानिक संतुलन (Constitutional Balance) बिगड़ सकता है। उन्होंने तर्क दिया कि सरकार के पास बेंच स्थापित करने और उनके अधिकार क्षेत्र (Territorial Jurisdiction) तय करने की असीमित शक्ति (Unlimited Power) है, जो न्याय के लिए हानिकारक हो सकती है।

    सुप्रीम कोर्ट ने इस दावे को अस्वीकार कर दिया और कहा कि सरकार की यह शक्ति न्यायिक निगरानी (Judicial Oversight) में आती है और इसके लिए स्पष्ट दिशा-निर्देश (Clear Guidelines) मौजूद हैं।

    कोर्ट ने Madras Bar Association बनाम Union of India (2014) का हवाला दिया, जिसमें कुछ अन्य ट्रिब्यूनलों को इस आधार पर असंवैधानिक घोषित किया गया था कि वे स्वतंत्र (Independent) नहीं थे।

    हालांकि, कोर्ट ने पाया कि NGT का मामला अलग है, क्योंकि इसकी संरचना (Structure) और कार्यप्रणाली (Functioning) पर्याप्त सुरक्षा उपायों (Adequate Safeguards) के साथ बनाई गई है।

    पर्यावरण न्याय में NGT की भूमिका (Role of NGT in Environmental Justice)

    सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में यह भी स्पष्ट किया कि NGT केवल एक विवाद समाधान मंच (Dispute Resolution Forum) नहीं है, बल्कि यह पर्यावरण संरक्षण (Environmental Protection) में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

    कोर्ट ने M.C. Mehta बनाम Union of India (1986) और Vellore Citizens' Welfare Forum बनाम Union of India (1996) का हवाला दिया, जिनमें पर्यावरण मामलों के लिए विशेष अदालतों (Special Environmental Courts) की आवश्यकता पर जोर दिया गया था।

    कोर्ट ने यह भी कहा कि Mantri Techzone (P) Ltd. बनाम Forward Foundation (2019) के फैसले में NGT को एक विशेष संस्थान (Sui Generis Institution) के रूप में वर्णित किया गया था, जिसे पर्यावरण मामलों में निर्णय लेने और समाधान प्रदान करने की शक्ति दी गई थी।

    सुप्रीम कोर्ट ने यह भी दोहराया कि पर्यावरणीय अधिकार (Environmental Rights) अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार (Right to Life) का हिस्सा हैं, और NGT इन अधिकारों को लागू करने में एक प्रमुख भूमिका निभाता है।

    सुप्रीम कोर्ट ने याचिका को खारिज करते हुए कहा कि NGT अधिनियम पूरी तरह से संवैधानिक (Constitutional) है। कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि NGT हाई कोर्ट के अधिकार क्षेत्र को नहीं छीनता, इसकी अपील प्रणाली उचित (Reasonable) है, सरकार को दी गई शक्तियां संविधान के अनुरूप (Constitutionally Valid) हैं, और भोपाल में NGT बेंच का स्थान सही है।

    यह फैसला यह सुनिश्चित करता है कि विशेष ट्रिब्यूनल (Special Tribunals) और संवैधानिक न्यायालयों (Constitutional Courts) के बीच संतुलन बना रहे। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी दोहराया कि NGT पर्यावरण न्याय (Environmental Justice) में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, लेकिन साथ ही हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट संविधान की रक्षा करने वाले अंतिम प्रहरी (Ultimate Guardians of the Constitution) बने रहेंगे।

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