क्या हर महिला, चाहे वह विवाहित हो या अविवाहित, सुरक्षित और कानूनी गर्भपात का अधिकार रखती है?

Himanshu Mishra

11 Feb 2025 11:52 AM

  • क्या हर महिला, चाहे वह विवाहित हो या अविवाहित, सुरक्षित और कानूनी गर्भपात का अधिकार रखती है?

    सुरक्षित और कानूनी गर्भपात (Abortion) का अधिकार महिलाओं के प्रजनन अधिकार (Reproductive Rights) और व्यक्तिगत स्वतंत्रता (Personal Autonomy) का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। X बनाम प्रिंसिपल सेक्रेटरी, हेल्थ एंड फैमिली वेलफेयर डिपार्टमेंट, दिल्ली सरकार (2022) के ऐतिहासिक फैसले में, सुप्रीम कोर्ट ने मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (MTP) अधिनियम, 1971 और उसके नियमों की व्याख्या की।

    कोर्ट ने कहा कि सभी महिलाओं को, चाहे वे विवाहित (Married) हों या अविवाहित (Unmarried), गर्भपात की सुविधा उपलब्ध होनी चाहिए। कानून की संकीर्ण व्याख्या (Restrictive Interpretation) करना संविधान के मौलिक अधिकारों (Fundamental Rights) का उल्लंघन होगा।

    इस लेख में, हम सुप्रीम कोर्ट के फैसले के कानूनी पहलुओं पर चर्चा करेंगे, जिसमें गर्भपात के अधिकारों, विवाह (Marriage) और गर्भपात के बीच के संबंध, और महिलाओं के लिए सुरक्षित स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता जैसे विषय शामिल हैं।

    मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (MTP) अधिनियम, 1971: एक प्रगतिशील कानून (Progressive Law)

    MTP अधिनियम 1971 से पहले, भारतीय दंड संहिता (IPC) के तहत गर्भपात को अपराध माना जाता था, जिसके कारण महिलाएं असुरक्षित (Unsafe) और अवैध (Illegal) गर्भपात कराने को मजबूर होती थीं। यह अधिनियम इस समस्या को दूर करने के लिए बनाया गया था, ताकि कुछ निश्चित परिस्थितियों में गर्भपात कानूनी रूप से किया जा सके।

    इस अधिनियम में यह प्रावधान किया गया कि यदि गर्भावस्था (Pregnancy) महिला के जीवन के लिए जोखिम (Risk) है, उसके मानसिक या शारीरिक स्वास्थ्य को गंभीर चोट (Grave Injury) पहुंचा सकती है, या यदि भ्रूण (Foetus) में गंभीर जन्मजात विकृति (Congenital Abnormality) है, तो गर्भपात किया जा सकता है। 2021 में हुए संशोधन (Amendment) के बाद, कुछ विशेष परिस्थितियों में गर्भपात की अधिकतम अवधि 20 सप्ताह से बढ़ाकर 24 सप्ताह कर दी गई।

    सुप्रीम कोर्ट की व्याख्या (Supreme Court's Interpretation) और नियम 3B

    इस मामले का सबसे बड़ा मुद्दा MTP नियम, 2003 का नियम 3B (Rule 3B) था, जिसमें उन महिलाओं की श्रेणियां (Categories) दी गई हैं जो 20 से 24 सप्ताह के गर्भपात के लिए पात्र (Eligible) हैं। यह नियम मुख्य रूप से यौन शोषण (Sexual Assault) की पीड़ितों, नाबालिग (Minor) लड़कियों, विवाह के दौरान वैवाहिक स्थिति (Marital Status) में बदलाव झेलने वाली महिलाओं (जैसे विधवा या तलाकशुदा), और शारीरिक/मानसिक रूप से अक्षम महिलाओं को शामिल करता है।

    सुप्रीम कोर्ट ने यह माना कि यदि केवल विवाहित महिलाओं को 20 से 24 सप्ताह के गर्भपात की अनुमति दी जाए और अविवाहित महिलाओं को इससे बाहर रखा जाए, तो यह भेदभावपूर्ण (Discriminatory) होगा और संविधान के अनुच्छेद 14 (Article 14) के तहत समानता (Equality) के अधिकार का उल्लंघन करेगा। कोर्ट ने कहा कि "वैवाहिक स्थिति में बदलाव" (Change of Marital Status) का मतलब केवल शादीशुदा महिलाओं तक सीमित नहीं होना चाहिए। सभी महिलाओं को, चाहे वे विवाहित हों या अविवाहित, गर्भपात का अधिकार मिलना चाहिए।

    प्रजनन स्वायत्तता (Reproductive Autonomy) एक मौलिक अधिकार (Fundamental Right)

    कोर्ट ने यह भी दोहराया कि महिलाओं को अपने शरीर और प्रजनन स्वास्थ्य (Reproductive Health) से जुड़े फैसले लेने का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 (Article 21) के तहत जीवन और स्वतंत्रता (Life and Liberty) के अधिकार में शामिल है।

    यह व्याख्या K.S. Puttaswamy बनाम भारत संघ (2017) मामले में दिए गए फैसले से प्रेरित थी, जिसमें यह कहा गया था कि व्यक्तिगत गोपनीयता (Privacy) और निर्णय लेने की स्वतंत्रता मौलिक अधिकारों का हिस्सा हैं। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि महिलाओं के गर्भपात के अधिकार को उनकी वैवाहिक स्थिति के आधार पर प्रतिबंधित (Restrict) नहीं किया जा सकता।

    वैवाहिक बलात्कार (Marital Rape) का MTP अधिनियम में समावेश

    इस फैसले में एक महत्वपूर्ण पहलू यह था कि कोर्ट ने MTP अधिनियम में "बलात्कार" (Rape) की परिभाषा में वैवाहिक बलात्कार (Marital Rape) को भी शामिल किया। नियम 3B(a) के तहत बलात्कार पीड़िताओं को 24 सप्ताह तक गर्भपात की अनुमति दी गई है। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि इस नियम में "बलात्कार" शब्द का अर्थ वैवाहिक बलात्कार भी होगा।

    भले ही भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 375 में विवाहित पुरुष द्वारा अपनी पत्नी से जबरन यौन संबंध (Forced Intercourse) बनाने को बलात्कार नहीं माना जाता (जब तक कि पत्नी की उम्र 15 साल से कम न हो), सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि MTP अधिनियम के संदर्भ में इसे बलात्कार माना जाएगा।

    POCSO अधिनियम और नाबालिगों की गोपनीयता (POCSO Act and Minors' Confidentiality)

    कोर्ट ने बाल यौन शोषण सुरक्षा अधिनियम (POCSO Act) और MTP अधिनियम के बीच के संबंध पर भी चर्चा की। POCSO अधिनियम के तहत, किसी भी नाबालिग (Minor) के गर्भपात का मामला रिपोर्ट करना आवश्यक होता है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब कोई नाबालिग गर्भपात करवाने के लिए डॉक्टर के पास जाती है, तो डॉक्टर उसकी पहचान उजागर (Disclose) करने के लिए बाध्य नहीं है।

    सुरक्षित गर्भपात में आने वाली बाधाएं (Barriers to Safe Abortion)

    हालांकि कानून महिलाओं को गर्भपात की अनुमति देता है, लेकिन व्यावहारिक रूप से उन्हें कई बाधाओं का सामना करना पड़ता है।

    1. कानूनी डर (Fear of Prosecution): कई डॉक्टर गर्भपात करने से इसलिए डरते हैं क्योंकि उन्हें डर रहता है कि उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई हो सकती है।

    2. सामाजिक कलंक (Social Stigma): अविवाहित महिलाओं को अक्सर समाज में गर्भपात करवाने के लिए शर्मिंदा किया जाता है, जिससे वे अवैध और असुरक्षित गर्भपात के लिए मजबूर हो जाती हैं।

    3. जागरूकता की कमी (Lack of Awareness): खासकर ग्रामीण क्षेत्रों (Rural Areas) में महिलाएं अपने गर्भपात के अधिकारों के बारे में नहीं जानतीं।

    4. न्यायिक देरी (Judicial Delays): कई महिलाएं अदालत का रुख करती हैं, लेकिन कानूनी प्रक्रिया में देरी के कारण गर्भावस्था 24 सप्ताह से अधिक हो जाती है, जिससे वे कानूनी गर्भपात नहीं करा पातीं।

    सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला गर्भपात के अधिकारों को मजबूत करने वाला है। कोर्ट ने यह सुनिश्चित किया कि अविवाहित महिलाओं को भी वही अधिकार मिलें जो विवाहित महिलाओं को मिलते हैं।

    कोर्ट ने यह भी कहा कि डॉक्टरों को गर्भपात के लिए अवैध शर्तें (Extra-legal Conditions) नहीं लगानी चाहिए और महिलाओं के अधिकारों का सम्मान किया जाना चाहिए।

    यह फैसला एक महत्वपूर्ण मिसाल (Precedent) बन गया है और भविष्य में महिलाओं के गर्भपात अधिकारों को और अधिक स्पष्ट करने में मदद करेगा। हालांकि, असली चुनौती यह सुनिश्चित करने में है कि ये कानूनी सुरक्षा जमीनी स्तर (Ground Level) पर सभी महिलाओं को समान रूप से मिले। कानून को समय के साथ बदलते सामाजिक परिवेश (Social Context) के अनुसार विकसित होना चाहिए, ताकि सभी महिलाओं को समान अधिकार मिल सकें।

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