Right to Information Act में मांगी गई सूचना का निपटारा
Shadab Salim
17 Jun 2025 6:41 PM IST

इस संबंध में अधिनियम के भीतर धारा 7 है।
(1) धारा 5 की उपधारा (2) के परन्तुक या धारा 6 की उपधारा (3) के परन्तुक के अधीन रहते हुए धारा 6 के अधीन अनुरोध के प्राप्त होने पर यथास्थिति, केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी या राज्य लोक सूचना अधिकारी, यथा संभव शीघ्रता से, और किसी भी दशा में अनुरोध की प्राप्ति के तीस दिन के भीतर ऐसी फीस के संदाय पर, जो विहित की जाए या तो सूचना उपलब्ध कराएगा या धारा 8 और धारा 9 में विनिर्दिष्ट कारणों में से किसी कारण से अनुरोध को अस्वीकार करेगा:
परन्तु जहाँ मांगी गई जानकारी का संबंध किसी व्यक्ति के जीवन या स्वतंत्रता से है, वहां वह अनुरोध प्राप्त होने के 48 घंटे के भीतर उपलब्ध कराई जाएगी।
(2) यदि, यथास्थिति, केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी या राज्य लोक सूचना अधिकारी उपधारा (1) के अधीन विनिर्दिष्ट अवधि के भीतर सूचना के लिए अनुरोध पर विनिश्चय करने में असफल रहता है तो, यथास्थिति, केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी या राज्य लोक सूचना अधिकारी के बारे में यह समझा जाएगा कि उसने अनुरोध को नामंजूर कर दिया है।
(3) जहाँ, सूचना उपलब्ध कराने की लागत के रूप में किसी और फीस के संदाय पर सूचना उपलब्ध कराने का विनिश्चय किया जाता है, वहाँ यथास्थिति, केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी या राज्य लोक सूचना अधिकारी अनुरोध करने वाले व्यक्ति को,
(क) उसके द्वारा यथा अवधारित सूचना उपलब्ध कराने को लागत के रूप में और फीस के ब्यौरे, जिनके साथ उपधारा (1) के अधीन विहित फीस के अनुसार रकम निकालने के लिए की गई संगणनाएँ होंगी, देते हुए उससे उस फीस को जमा करने का अनुरोध करते हुए कोई संसूचना भेजेगा और उक्त संसूचना के प्रेषण और फीस के संदाय के बीच मध्यवर्ती अवधि को उस धारा में निर्दिष्ट तीस दिन की अवधि की संगणना करने के प्रयोजन के लिए अपवर्जित किया जाएगा;
(ख) प्रभारित फीस की रकम या उपलब्ध कराई गई पहुंच के प्ररूप के बारे में जिसके अंतर्गत अपील प्राधिकारी को विशिष्टियां समय-सीमा, प्रक्रिया और कोई अन्य प्ररूप भी हैं, विनिश्चय करने का पुनर्विलोकन करने के संबंध में उसके अधिकार से संबंधित सूचना देते हुए कोई संसूचना भेजेगा।
(4) जहाँ, इस अधिनियम के अधीन अभिलेख या उसके किसी भाग तक पहुंच अपेक्षित है, और ऐसा व्यक्ति जिसको पहुँच उपलब्ध कराई जानी है, संवेदनात्मक रूप से निःशक्त है, वहाँ यथास्थिति, केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी या राज्य लोक सूचना अधिकारी सूचना तक पहुँच को समर्थ बनाने के लिए सहायता उपलब्ध कराएगा जिसमें निरीक्षण के लिए ऐसी सहायता कराना भी सम्मिलित है, जो समुचित हो।
(5) जहाँ, सूचना तक पहुंच मुद्रित या किसी इलेक्ट्रानिक रूपविधान में उपलब्ध कराई जानी है, वहां आवेदक, उपधारा (6) के अधीन रहते हुए, ऐसी फीस का संदाय करेगा, जो विहित की जाए : परन्तु धारा 6 की उपधारा (1) और धारा 7 की उपधारा (1) और उपधारा (5) के अधीन विहित फीस युक्तियुक्त होगी और ऐसे व्यक्तियों से, जो गरीबी की रेखा के नीचे हैं। जैसा समुचित सरकार द्वारा अवधारित किया जाए, कोई फीस प्रभारित नहीं की जाएगी।
(6) उपधारा (5) में किसी बात के होते हुए भी, जहाँ कोई लोक प्राधिकारी उपधारा (1) में विनिर्दिष्ट समय सीमा का अनुपालन करने में असफल रहता है, वहाँ सूचना के लिए अनुरोध करने वाले व्यक्ति को प्रभार के बिना सूचना उपलब्ध कराई जाएगी।
(7) उपधारा (1) के अधीन कोई विनिश्चय करने से पूर्व, यथास्थिति, केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी या राज्य लोक सूचना अधिकारी धारा 11 के अधीन पर व्यक्ति द्वारा किए गए अभ्यावेदन को ध्यान में रखेगा।
(8) जहाँ, किसी अनुरोध को उपधारा (1) के अधीन अस्वीकृत किया गया है, वहाँ, यथास्थिति, केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी या राज्य लोक सूचना अधिकारी अनुरोध करने वाले व्यक्ति को,
(1) ऐसी अस्वीकृति के लिए कारण;
(ii) वह अवधि, जिसके भीतर ऐसी अस्वीकृति के विरुद्ध कोई अपील की जा सकेगी; और
(iii) अपील प्राधिकारी की विशिष्टियां, संसूचित करेगा।
(9) किसी सूचना को साधारणतया उसी प्ररूप में उपलब्ध कराया जाएगा, जिसमें उसे मांगा गया है, जब तक कि वह लोक प्राधिकारी के स्रोतों को अननुपाती रूप से विचलित न करता हो या प्रशनगत अभिलेख को सुरक्षा या संरक्षण के प्रतिकूल न हो।
यह इस अधिनियम में प्रस्तुत की गई धारा का मूल स्वरूप है। अधिनियम स्पष्ट रूप से लोक सूचना अधिकारियों द्वारा अनुरोधों के निस्तारण के लिए समय सीमा को नियत करता है, जिससे नागरिकों को अन्तहीन रूप से सूचना के लिए लोक प्राधिकारियों का चक्कर न लगाना पड़े। आवेदकों के लिए सूचना के विभिन्न संवर्गों के लिए समय-सीमा, ढंग, जिसके द्वारा समय सीमा की संगणना लोक सूचना अधिकारी द्वारा की जाती है और अतिरिक्त फीस के भुगतान की अपेक्षा को जानना महत्वपूर्ण है, जिससे आवेदक आसानी से सूचना प्राप्त कर सकता है जिसकी वह अपेक्षा करता है/करती है।
इस धारा के अधीन, सूचना को लोक सूचना अधिकारियों द्वारा आवेदन प्राप्त करने के 30 दिनों के भीतर नागरिकों को प्रदान किया जाना चाहिए। किन्तु यदि सूचना व्यक्ति के जीवन और स्वतन्त्रता से सम्बन्धित है, तो लोक सूचना अधिकारियों को 48 घण्टे के भीतर सूचना प्रदान करनी चाहिए। नागरिकों को सहायक लोक सूचना अधिकारी के समक्ष सूचना के लिए आवेदन पेश करने का विकल्प होगा, जो उसकी प्राप्ति के 5 दिनोंवके भीतर आवेदन लोक सूचना अधिकारियों को अन्तरित करेगा।
यदि लोक सूचना अधिकारी सूचना प्रदान करने का विनिश्चित करता है, तो वह सूचना आवेदक को विनिर्दिश्ट रूप से अग्रिम फीस (जिराक्स, नमूना/मुद्रित सामग्री/निरीक्षण फीस इत्यादि) के विवरण को स्पष्ट रूप से विनिर्दिष्ट करते हुए आवेदक को सूचित करेगा, जिसका भुगतान सूचना प्राप्त करने के लिए किया जाता है। उसे आवेदक को उस तारीख और समय के बारे में भी सूचना देना चाहिए, जब सूचना को आवेदक द्वारा फीस के भुगतान के पश्चात् एकत्रित किया जा सकता है।
नागरिकों के लिए यह जानना महत्वपूर्ण है कि सूचना के लिए अनुरोध के निस्तारण के लिए समय-सीमा की गणना कैसे लोक सूचना अधिकारियों द्वारा की जाती है। 30 दिनों की गणना उस तारीख से प्रारम्भ होती है, जब लोक सूचना अधिकारी आवेदन प्राप्त करता है, गणना तब समाप्त होती है, जब लोक सूचना अधिकारी आवेदक को पुनः फीस (जिरॉक्स इत्यादि) के भुगतान के बारे में आवेदक को सूचना देता है और गणना पुनः तब प्रारम्भ होती है, जब नागरिक ने सूचना अभिप्राप्त करने के लिए अपेक्षित फीस का भुगतान किया था।
इसलिए लोक सूचना अधिकारी द्वारा पुनः फीस के भुगतान के लिए और आवेदक द्वारा ऐसी फीस से भुगतान के लिए सूचना को देने के मध्य सीमा को 30 दिनों को विहित समय-सीमा में शामिल नहीं किया जायेगा। यदि लोक सूचना अधिकारी उक्त समय-सीमा के अन्तर्गत मांगी गयी सूचना प्रदान नहीं करता, तो मांगी गयी सूचना नामंजूर की गयी मानी जायेगी। यदि लोक सूचना अधिकारी इस धारा के अधीन नियत समय सीमा के अन्तर्गत सूचना प्रदान नहीं करता, तो सूचना आवेदक को निःशुल्क प्रदान की जायेगी। यह जानना महत्वपूर्ण है कि कोई आवेदन फीस या पुनः फीस आवेदकों पर प्रभारित नहीं की जानी चाहिए, जो नागरिकों के बी० पी० एल० संवर्ग से सम्बन्धित है।
लोक सूचना अधिकारी को आवेदक को कुछ सूचना का प्रत्याख्यान करने का अधिकार है, जो अधिनियम की धारा 8 (1) के अधीन आच्छादित है। यदि आवेदक को सूचना नामंजूर की जाती है, तो लोक सूचना अधिकारी ऐसी नामंजूरी और ऐसी सूचना प्रदान न करने के लिए कारणों के बारे में आवेदक को सूचना देने के लिए कर्तव्य से आबद्ध है। उसी समय, लोक सूचना अधिकारी को आवेदक को उस समय सीमा के बारे में सूचना देनी चाहिए, जिसके अन्तर्गत आवेदक लोक प्राधिकारी के अपीलीय प्राधिकारी के समक्ष लोक सूचना अधिकारी द्वारा नामंजूरी के लिए अपील दाखिल कर सकता है, उसे आवेदक को अपीलीय अधिकारी का नाम और पता भी प्रदान करना चाहिए।
इस प्रकार धारा 7 स्पष्ट रूप से सूचना प्रदान करने के लिए अनुरोध की कार्यवाही या निस्तारण और लोक प्राधिकारियों द्वारा सूचना प्रदान करने के लिए समय सीमा के सम्बन्ध में प्रावधान विनिर्दिष्ट करती है।
अमिताभ ठाकुर बनाम उत्तर प्रदेश राज्य सूचना आयोग एवं एक अन्य, 2017 के मामले में तीस दिन के भीतर आदेश को पारित करने के आवेदन को नामंजूर किया गया था। द्वितीय अपील को राज्य सूचना आयुक्त द्वारा यह निर्देशित करते हुए अनुज्ञात कर लिया गया था कि याची नियमों के अनुसार परिगणित अतिरिक्त शुल्क के संदाय पर सूचना को प्राप्त कर सकेगा। याची का दावा कि उसे सूचना निःशुल्क प्रदान की जानी चाहिए। अभिनिर्धारित किया गया कि, तीस दिन की अवधि को उस तारीख से प्रारम्भ होना था जब द्वितीय अपील को अनुज्ञात किया गया था तथा द्वितीय अपील को अनुज्ञात करने की तिथि के समाप्त होने पर याची सभी सूचना को निःशुल्क प्राप्त करने का हकदार था जैसा कि उस आदेश के अधीन निर्देशित किया गया था। याची को निःशुल्क सूचना प्रदान करने हेतु निर्देश जारी किया गया।
इसे केवल तब प्रदान किया जा सकता है जहां आवेदन पर इसके दाखिल किये जाने के दिनांक से तीस दिन के भीतर विचारित नहीं किया गया है अथवा यदि प्रथम अपीलीय प्राधिकारी द्वारा स्वयं निःशुल्क सूचना प्रदान करने का लोक सूचना अधिकारी को निर्देश दिया जाता है।
यदि ईप्सित सूचना का उत्तर देने में विलम्ब है, तो अपीलार्थी को धारा 7 (6) के अधीन शर्त के अनुसार खर्च के बिना सूचना प्रदान की जानी चाहिए क्योंकि सूचना प्रदान करने में विलम्ब है और अपीलार्थी धारा 19 (8) (ख) के अधीन प्रतिपूर्ति का हकदार निर्णीत किया जाता है। यह अभिनिश्चय गीता दीवान वर्मा बनाम अर्बन डेवलपमेंट डिपार्टमेंट, डेहली, के मामले में किया गया है।
यदि सूचना उस समय सीमा के बाद प्रदान की गयी है, जैसा कि धारा 7 (1) के अधीन विहित है, तो फीस के प्रतिदाय का आदेश धारा 7 (6) के अधीन दिया जा सकता है।
धारा 7 (1) के अधीन आवेदन का प्राण और स्वतन्त्रता से सम्बन्धित आवेदन माने जाने के लिए, उसे मौलिक साक्ष्य के साथ होना चाहिए कि प्राण और स्वतन्त्रता में आशंका विद्यमान है और अहिंसा के प्रयोग के साथ आन्दोलन को विरोध का सद्भावपूर्ण रूप मान्य किया जाना चाहिए और इसलिए यदि प्राण और स्वतन्त्रता के लिए चिंता का दावा लोक प्राधिकारी द्वारा विशिष्ट मामले में स्वीकार नहीं किया जाता, तो ऐसा न करने के लिए कारण लिखित में आवेदन को निस्तारित करने में दिया जाना चाहिए।

