घरेलू हिंसा अधिनियम (DV Act) में अभिरक्षा आदेश
Shadab Salim
13 Oct 2025 6:56 PM IST

इस एक्ट में अभिरक्षा के संबंध में धारा 21 के अंतर्गत निम्न प्रावधान किये गए हैं-
तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि में अन्तर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी, मजिस्ट्रेट, इस अधिनियम के अधीन संरक्षण आदेश या किसी अन्य अनुतोष के लिए आवेदन की सुनवाई के किसी प्रक्रम पर व्यथित व्यक्ति को या उसकी ओर से आवेदन करने वाले व्यक्ति को किसी सन्तान की अस्थायी अभिरक्षा दे सकेगा और यदि आवश्यक हो तो प्रत्यर्थी द्वारा ऐसी सन्तान या सन्तानों से भेंट के इन्तजाम को विनिर्दिष्ट कर सकेगा :
परन्तु, यदि मजिस्ट्रेट की यह राय है कि प्रत्यर्थी की कोई भेंट सन्तान या सन्तानों के हितों के लिए हानिकारक हो सकती है तो मजिस्ट्रेट ऐसी भेंट करने को अनुज्ञात करने से इन्कार करेगा।
अभिरक्षा आदेश बच्चों के संबंध में दिया जाता है। घरेलू हिंसा से पीड़ित किसी महिला से उसके बच्चों को वैधानिक रूप से साथ नहीं रहने दिया जा रहा है ऐसी स्थिति में मजिस्ट्रेट धारा 21 के अंतर्गत आदेश पारित कर सकता है।
घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 21 निर्धारित करती है कि तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि में अन्तर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी, मजिस्ट्रेट, संरक्षण आदेश या किसी अन्य अनुतोष के लिए आवेदन की सुनवाई के किसी प्रक्रम पर व्यक्ति व्यक्ति को या उसकी और से आवेदन करने वाले व्यक्ति किसी को सन्तान की अस्थायी अभिरक्षा दे सकेगा और प्रत्यर्थी द्वारा ऐसी संतान से भेट के इन्तजाम विनिर्दिष्ट कर सकेगा।
मजिस्ट्रेट ऐसी भेट को अनुज्ञात करने से इन्कार कर सकता है यदि उसकी राय में ऐसी भेट सन्तान के हितों के हानिकर हो सकती है।
सन्तान की अस्थायी अभिरक्षा अधिनियम की धारा 21 के अधीन, मजिस्ट्रेट व्यक्ति व्यक्ति को सन्तान की अस्थायी अभिरक्षा का अनुदान दे सकता है एवं व्यक्ति व्यक्ति की सन्तान से प्रत्यर्थी को भेट करने से मना कर सकता है।
सन्तान की अस्थायी अभिरक्षा का अनुदान अधिनियम की धारा 21, किसी सन्तान या सन्तानों की अस्थायी अभिरक्षा व्यथित व्यक्ति को या उसकी ओर से आवेदन करने वाले व्यक्ति को देने के लिए, एवं यदि आवश्यक हो तो प्रत्यर्थी द्वारा ऐसी सन्तान या सन्तानों से भेंट के इन्तजाम को विनिर्दिष्ट करने के लिए व्यवहार करती है।
उदाहरण के लिए, यदि सन्तान व्यथित व्यक्ति की सास की अभिरक्षा के अधीन है, यदि धारा 2 (घ) में दिये गये सीमित अर्थों को लिया जाए तो पति अर्थात् पिता, माता जो संयुक्त रूप से रह रहे हैं, के महिला नातेदार के विरुद्ध अस्थायी अभिरक्षा जैसा कोई आदेश पारित नहीं किया जा सकता।
जब बालक को अभिरक्षा पत्नी के पास निहित है, तो पत्नी के लिए अभिरक्षा के लिए आवेदन दाखिल करने के लिए कोई अवसर नहीं होगा, जैसा कि वर्तमान मामले में हुआ है। उस स्थिति में पति को उस प्रभाव का आवेदन दाखिल करके मुलाकात अधिकार धारण करने का उपचार होगा। परिस्थितियों के अधीन, अपील कोर्ट यह अवधारित करने में पूर्णतया न्यायोचित था कि अभिरक्षा के लिए व्यथित पक्षकार द्वारा आवेदन होने के अभाव में भी मुलाकात अधिकार के आवेदन को कायम रखा जा सकता है।

