Hindu Marriage Act के क्रिमिनल प्रावधान
Shadab Salim
25 July 2025 10:08 AM IST

हिंदू विवाह अधिनियम 1955 एक सिविल अधिनियम है। इससे संबंधित प्रकरण सिविल प्रक्रिया संहिता 1908 के माध्यम से निपटाए जाते हैं। इस अधिनियम के सिविल होने के पश्चात भी इसमें कुछ दाण्डिक प्रावधान किए गए। इस अधिनियम की कुछ शर्तें ऐसी है जिन का उल्लंघन किया जाना इस अधिनियम के अंतर्गत दंडनीय अपराध बनाया गया है।
इस प्रकार के प्रावधान का उद्देश्य अधिनियम के लक्ष्य को बनाए रखना है। यदि कुछ कृत्यों को आपराधिक कृत्य नहीं बनाया जाता है तो अधिनियम का लक्ष्य भेद पाना कठिन हो सकता है।
प्राचीन शास्त्रीय हिंदू विवाह के अंतर्गत हिंदू पुरुष को बहुपत्नी के संबंध में मान्यता प्राप्त थी तथा कोई भी हिंदू विवाह में एक से अधिक पत्नी हो सकती थी। 1955 में बनाए गए इस अधिनियम के माध्यम से हिंदू विवाह के अंतर्गत बहुपत्नी की प्रथा को समाप्त कर दिया गया।
अधिनियम की धारा 17 के अंतर्गत बहुपत्नी को दंडनीय अपराध बनाया गया है। इस धारा की विशेषता यह है कि यह धारा पति और पत्नी दोनों पर समान रूप से लागू होती है।
यदि पति या पत्नी के जीवित रहते हुए इस अधिनियम के अंतर्गत अनुष्ठापित हुए किसी मान्य विवाह के दोनों पक्षकारों में कोई पक्षकार दूसरा विवाह कर लेता है ऐसा कार्य धारा 17 के अंतर्गत दंडनीय अपराध है।
दूसरा विवाह विधिवत संपन्न किया गया है यह सिद्ध करना आवश्यक होता है। इस धारा के अनुसार पति या पत्नी यदि प्रथम विवाह की विधिमान्यता की अवस्था में दूसरा विवाह संपन्न करते हैं तो दूसरा विवाह शून्य होता है क्योंकि दूसरा विवाह धारा 5 के अंतर्गत शून्य है।
शून्य होने के कारण भारतीय न्याय संहिता के दंड से बचाव नहीं किया जा सकता यदि सिद्ध हो जाता है कि पति या पत्नी ने प्रथम विवाह के विद्यमान रहते हुए विधि अनुसार रीति-रिवाजों के अनुसार दूसरा विवाह कर लिया है तो दोषी पति या पत्नी को भारतीय न्याय के अंतर्गत दंडित किया जाता है।
भारतीय न्याय संहिता में दूसरा विवाह करने पर 7 वर्ष तक के कारावास का प्रावधान करती है।
नागलिंगम बनाम शिवगामी एआईआर 2001 सुप्रीम कोर्ट 3576 के प्रकरण में भारत के सुप्रीम कोर्ट ने यह निर्धारित किया कि बिना सप्तपदी का अनुष्ठान किए विवाह वैध नहीं समझा जाएगा। इस प्रकरण में अपीलार्थी अभियुक्त से उसकी दूसरी कथित पत्नी तमिलनाडु राज्य के निवासी थे और उन्होंने तिरुपति बालाजी के मंदिर में जाकर विवाह संपन्न किया था।
सुप्रीम कोर्ट ने यह पाया कि तमिलनाडु राज्य में धारा 7 के द्वारा हिंदू विवाह अधिनियम में संशोधन किया गया है जिसके अंतर्गत थिरुमंगलम को पति द्वारा वधू के गर्दन के चारों ओर लपेटा गया तथा उसके पश्चात उन दोनों ने आपस में माला का आदान प्रदान किया तथा वधु के पिता ने कन्यादान अग्नि देवी को साक्षी मानते हुए किया।
इस प्रकार धारा 7 के अधीन जो तमिलनाडु राज्य में लागू है विवाह विधिपूर्वक अनुष्ठापित किया गया है। यह कहना कि सप्तपदी का अनुष्ठान नहीं किया गया था यह तमिलनाडु राज्य के विधि सम्मत विवाह हेतु आवश्यक नहीं था, इस कारण अपीलार्थी अभियुक्त को धारा 494 भारतीय दंड संहिता का दोषी पाया गया।
कमला कुमारी बनाम मोहनलाल 1984 के एक प्रकरण में धारा 17 की संवैधानिकता को चुनौती दी गई थी परंतु इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यह माना की धारा 17 किसी भी तरह से संविधान के किसी अनुच्छेद का उल्लंघन नहीं करती है तथा धारा 17 पूर्ण रूप से संविधानिक धारा है।
हिंदू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 18 के अंतर्गत तीन अपराधों का उल्लेख किया गया है। जिनके अंतर्गत दंड के प्रावधान रखे गए है। यदि कोई हिंदू विवाह निर्धारित की गई आयु जो अभी वर के लिए 21 वर्ष और वधू के लिए 18 वर्ष है का उल्लंघन करता है तो यह दण्डनीय है।
यदि इस धारा के अंतर्गत न्यूनतम आयु का उल्लंघन करके विवाह किया गया है तो यदि भले ही विवाह शून्य हो परंतु वर्तमान धारा के अंतर्गत ऐसे उल्लंघन के परिणामस्वरूप दंड भुगतना ही होगा। इस उपबंध के अधीन दोषी व्यक्ति को 15 दिवस तक का कारावास व एक हज़ार रूपये तक की राशि का जुर्माना अथवा दोनों से दंडित किया जा सकता है। बाल विवाह निरोध अधिनियम की धारा 3 के अंतर्गत इसी के समान दंड का प्रावधान किया गया है।
यह अधिनियम समस्त भारत के सभी समुदायों पर लागू होता है, इस अधिनियम के लागू होने के बाद कोई भी समुदाय इस अधिनियम के अंतर्गत निर्धारित की गई आयु का उल्लंघन करके अपनी किसी रूढ़ि या प्रथा के अनुसार विवाह को अनुष्ठापित नहीं कर सकता है।
प्राचीन शास्त्रीय हिंदू विधि का अनुसरण करते हुए हिंदू विवाह को संस्कार बनाए रखने के उद्देश्य से सपिंड नातेदारी और प्रतिषिद्ध नातेदारी के अंतर्गत विवाह को शून्य घोषित किया जाता है तथा इस प्रकार के विवाह का प्रारंभ से ही कोई अस्तित्व नहीं होता है यदि कोई हिंदू विवाह इस प्रकार की नातेदारी के भीतर अनुष्ठापित कर दिया जाता है तो इस प्रकार का विवाह अनुष्ठान करने के परिणामस्वरूप 30 दिनों तक का कारावास और एक हज़ार रूपये तक की धनराशि का जुर्माना किया जा सकता है। यह सभी अपराध दंड प्रक्रिया संहिता के अंतर्गत संज्ञेय अपराध है।

