COVID-19: जानिए आपदा के दौरान एक अधिकारी कीकर्त्तव्य-पालन में असफलता के क्या होंगे परिणाम?

SPARSH UPADHYAY

8 April 2020 4:15 AM GMT

  • COVID-19: जानिए आपदा के दौरान एक अधिकारी कीकर्त्तव्य-पालन में असफलता के क्या होंगे परिणाम?

    जैसा कि हम सभी जानते हैं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 24 मार्च, रात 12 बजे से अगले 21 दिनों के लिए देशव्यापी लॉकडाउन की घोषणा की थी। पीएम ने यह घोषणा करते हुए कहा था कि कोरोना-वायरस को आम-जन के बीच फैलने से रोकने के लिए यह उपाय नितांत आवश्यक है।

    प्रधानमंत्री की इस घोषणा के पश्च्यात, गृह मंत्रालय (एमएचए) ने 24 मार्च को ही आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 को सम्पूर्ण देश में लागू कर दिया था, ताकि देश में फैलते COVID -19 के प्रभाव को रोकने के लिए सोशल डिसटैन्सिंग (या फिजिकल डिसटैन्सिंग) के उपायों को प्रभावी ढंग से लागू किया जा सके।

    इस आदेश के जरिये पहली बार देश को आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के प्रावधानों के तहत बंद किया गया है। यह भी पहली बार है जब केंद्र सरकार ने राज्यों को इस परिमाण के निर्देश जारी किए हैं। आदेश के अंतर्गत इस अधिनियम की धाराओं, 51 से 60 को पूरे देश में लागू कर दिया गया है।

    जैसे कि हम जानते ही हैं, आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 की वस्तु और उद्देश्य के अनुसार इसका मकसद, आपदाओं का प्रबंधन करना है, जिसमें शमन रणनीति, क्षमता-निर्माण और अन्य चीज़ें शामिल है।

    आमतौर पर, एक आपदा को एक प्राकृतिक आपदा जैसे कि चक्रवात या भूकंप से समझा जा सकता है। इसके अलावा, इस अधिनियम की धारा 2 (डी) में "आपदा" की परिभाषा में यह कहा गया है कि आपदा का अर्थ है, "किसी भी क्षेत्र में प्राकृतिक या मानवकृत कारणों से या उपेक्षा से उद्भूत कोई महाविपत्ति..."।

    मौजूदा लेख में हम आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 की धारा 56 (अधिकारी की कर्तव्य पालन में असफलता या उसकी ओर से इस अधिनियम के उपबंधों के उल्लंघन के प्रति मौनानुकूलता) के बारे में बात करेंगे, जिसके अंतर्गत किसी अधिकारी की कर्त्तव्य-पालन में असफलता के विषय में प्रावधान किया गया है।

    हम इस लेख में यह जानेंगे कि यदि एक अधिकारी, जिसे आपदा अधिनियम के अधीन कुछ कर्तव्यों को करने का निर्देश दिया गया है, और वह उन्हें करने से मना कर देता है, या उन्हें करने से विमुख रहता है तो उसके परिणाम क्या होंगे। तो चलिए इसी के साथ इस लेख की शुरुआत करते हैं।

    आखिर क्या है आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 की धारा 56?

    आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 की धारा 56 के अंतर्गत, एक अधिकारी, जिसे आपदा से संबंधित कुछ कर्तव्यों को करने का निर्देश दिया गया है, और वह उन्हें करने से मना कर देता है, या वह बिना अनुमति के अपने कर्तव्यों को पूरा करने से पीछे हट जाता है, तो वह इस धारा के अंतर्गत दोषी ठहराया जा सकता है।

    गौरतलब है कि इस धारा के अंतर्गत, दोषी सिद्ध ठहराए जाने पर व्यक्ति को 1 साल तक की कैद या जुर्माना हो सकता है।

    इस प्रावधान को और बेहतर ढंग से समझने के लिए आइये इसको पहले पढ़ लेते हैं। आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 की धारा 56 यह कहती है कि:-

    [हिंदी में धारा 52] ऐसा कोई अधिकारी, जिस पर इस अधिनियम द्वारा या उसके अधीन कोई कर्तव्य अधिरोपित किया गया है और जो अपने पद के कर्तव्यों का पालन नहीं करेगा या करने से इंकार करेगा या स्वयं को उससे विमुख करलेगा तो, जब तक कि उसने अपने से वरिष्ठ अधिकारी की अभिव्यक्त लिखित अनुमति अभिप्राप्त न कर ली हो या उसके पास ऐसा करने के लिए कोई अन्य विधिपूर्ण कारण न हो, ऐसे कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, दंडनीय होगा

    [Section 52 in English] Any officer, on whom any duty has been imposed by or under this Act and who ceases or refuses to perform or withdraws himself from the duties of his office shall, unless he has obtained the express written permission of his official superior or has other lawful excuse for so doing, be punishable with imprisonment for a term which may extend to one year or with fine

    धारा 56, आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के अंतर्गत अपराध गठित करने के लिए आवश्यक सामग्री:-

    1 – व्यक्ति का एक अधिकारी होना

    2 – ऐसे व्यक्ति पर अधिनियम द्वारा, या उसके अधीन कोई कर्तव्य अधिरोपित किया गया होना

    3 – ऐसे व्यक्ति द्वारा अपने पद के कर्तव्यों का पालन न किया जाना, या पालन करने से इंकार किया जाना या स्वयं को उससे विमुख किया जाना

    4 – ऐसे व्यक्ति द्वारा ऐसा, अपने से वरिष्ठ अधिकारी की अभिव्यक्त लिखित अनुमति प्राप्त किये बिना करना या उसके पास ऐसा करने के लिए कोई अन्य विधिपूर्ण कारण का न होना

    उदाहरण

    किसी जिला स्तर के अधिकारी को जिला प्राधिकारण यह आदेश देता है कि वह आपदा के शमन एवं निवारण या उसके प्रभावी रूप से मोचन के लिए आवश्यक उपाय करे, जो भी एवं जैसा भी परिस्थिति के अनुसार आवश्यक हो (देखें, धारा 33, आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005)।

    अब यदि ऐसा अधिकारी, अपने इस कर्त्तव्य से स्वयं को विमुख कर लेता है, या इसका पालन नहीं करता है, तो यह ऐसा ही होगा जैसे वह इस अधिनियम के अधीन अधिरोपित कर्तव्य से स्वयं को विमुख कर रहा है और इसलिए वह इस धारा के अंतर्गत दोषी ठहराया जा सकता है।

    हाँ, यदि उसके पास कर्तव्यों का पालन न करने एवं दिए गए कर्तव्यों से विमुख रहने के उचित कारण मौजूद हैं, या यह तो वह अपने से वरिष्ठ अधिकारी की अभिव्यक्त लिखित अनुमति प्राप्त कर चुका है, तो वह इस धारा के अंतर्गत अपना बचाव पेश कर सकता है।

    इस प्रावधान की क्या है आवश्यकता?

    आपके मन में यह सवाल अवश्य उठ सकता है कि आखिर इस धारा एवं इस प्रावधान का प्रमुख मकसद क्या है? जैसा कि हम जानते हैं, बाढ़, भूकंप या हाल ही में आई कोरोना महामारी, ये सभी ऐसी आपदाएं हैं, जिनसे आम-जन का जीवन तहस नहस हो जाता है।

    यह बात किसी से छुपी नहीं कि इन आपदाओं के चलते, सब कुछ बर्बादी के कगार पर पहुँच जाता है, और न जाने कितनों लोगों का सबकुछ बर्बाद भी हो जाता है।

    अब यदि हम कोरोना महामारी का ही उदाहरण ले लें, तो हम यह पाएंगे कि इसके कारण, आम जन का जीवन पूर्ण रूप से थम गया है, हम नहीं जानते कि यह आपदा और कितने दिन तक अपना कहर बरपाती रहेगी। ऐसे में, उन लोगों की जिम्मेदारियां बढ़ जाती हैं, जिनके ऊपर इस आपदा से निपटने के लिए विशेष रूप से कर्तव्य अधिरोपित किया गया है।

    अब यदि ऐसे लोग (अधिकारी) अपने कर्तव्यों का पालन नहीं करेंगे, या पालन करने से इंकार करेंगे या स्वयं को उससे विमुख करेंगे, तो फिर इस आपदा से निपटने में गंभीर समस्या खड़ी हो जाएगी। इसीलिए, ऐसी ही स्थिति से निपटने के लिए, इस प्रावधान को अधिनियमित किया गया है, और लॉकडाउन के दौरान इसे लागू किया गया है।

    अंत में, यह कहना आवश्यक है कि इस लेख का मकसद आप सभी पाठकगण को सजग एवं सतर्क बनाना है, जिससे आप इस महामारी से बचने के लिए अपने आप को न केवल शारीरिक रूप से सुरक्षित रखें, बल्कि आप मानसिक रूप से भी इस महामारी से लड़ने के लिए तैयार रहें।

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