COVID-2019: आपदा संबंधी फर्जी ख़बर फ़ैलाने के क्या हो सकते हैं दुष्परिणाम, जानिए क्या कहता है कानून?

SPARSH UPADHYAY

2 April 2020 9:11 AM GMT

  • COVID-2019: आपदा संबंधी फर्जी ख़बर फ़ैलाने के क्या हो सकते हैं दुष्परिणाम, जानिए क्या कहता है कानून?

    सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (31 मार्च, 2020) को अलख आलोक श्रीवास्तव बनाम भारत संघ Writ Petition(s) (Civil) No(s). 468/2020 के मामले में यह कहा कि शहरों में काम कर रहे मज़दूरों का पलायन, देशव्यापी लॉकडाउन की घोषणा के बाद इस फ़र्ज़ी खबर के कारण शुरू हुआ कि लॉकडाउन 3 महीने तक चलेगा।

    इस मामले में पीठ ने आगे यह भी कहा कि,

    "...हम मीडिया (प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक या सोशल) से यह उम्मीद करते हैं कि वह जिम्मेदारी भरा रवैया अपनाएगी और यह सुनिश्चित करेगी कि दहशत का माहौल पैदा करने वाली खबरें, बिना पुष्टि के लोगों तक नहीं पहुंचे।"

    दरअसल, इससे पहले केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में पीआईएल पर अपने पक्ष के बारे में हलफ़नामा दायर करते हुए कहा था कि अदालत यह निर्देश दे कि कोई मीडिया, सरकार से तथ्यों की जांच के बिना COVID-19 से सम्बंधित खबरें प्रकाशित नहीं करे।

    पीठ ने इस बारे में SG की इस दलील पर भी ग़ौर किया कि सोशल मीडिया सहित सभी मीडिया पर भारत सरकार का दैनिक बुलेटिन जारी होगा जो लोगों के संदेहों को दूर करेगा।

    सुप्रीम कोर्ट ने आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 की धारा 54 को भी अपने आदेश में दोहराया, जिसके अंतर्गत एक ऐसे व्यक्ति को सजा देने का प्रावधान किया गया है, जो कोई किसी आपदा या उसकी गंभीरता या उसके परिणाम के सम्बन्ध में आतंकित करने वाली मिथ्या संकट – सूचना या चेतावनी देता है। गौरतलब है कि ऐसे व्यक्ति को दोषसिद्धि पर कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी या जुर्माने से दण्डित किया जा सकता है।

    मौजूदा लेख में हम मुख्य रूप से इसी धारा के बारे में चर्चा करेंगे और इसके साथ ही यह समझने का प्रयास करेंगे कि यदि कोई व्यक्ति एक फर्जी खबर फैलाता है, जिसके परिणामस्वरूप किसी आपदा को लेकर आंतक उत्पन्न होता है, तो ऐसे व्यक्ति को किस प्रकार से दण्डित किया जा सकता है। तो चलिए इस लेख की शुरुआत करते हैं।

    फर्जी खबर क्यों है खतरनाक?

    वैसे तो फर्जी खबर को फैलाना एवं इसके फैलने में अपना योगदान देना अपने आप में बिलकुल भी उचित नहीं, परन्तु आपदा के दौरान फर्जी ख़बरों का वितरण बेहद खतरनाक हो सकता है। इसके दुष्परिणाम किसी से भी छुपे नहीं हैं।

    अलख आलोक श्रीवास्तव के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने यह टिपण्णी की कि फर्जी ख़बरों के जरिये फैलने वाला आतंक, लोगों के मानसिक स्वास्थ्य को बुरी तरह से प्रभावित कर सकता है। पीठ का कहना था कि, "हमें उन लोगों को शांत करने की जरूरत है, जो दहशत की स्थिति में हैं।"

    हम भी यह जानते हैं कि जनता में खलबली और आतंक पैदा करने वाले विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स में गलत सूचनाओं/ फर्जी ख़बरों के प्रसार और कोरोनवायरस से संबंधित फर्जी डेटा साझा करने का चलन आम है।

    इसे के मद्देनजर, बीते 20 मार्च 2020 को इलेक्ट्रौनिकी और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय, भारत सरकार ने सोशल नेटवर्क को प्राथमिकता के आधार पर ऐसी किसी भी सामग्री को निष्क्रिय करने और हटाने के लिए तत्काल कार्रवाई करने को कहा था।

    इसी सम्बन्ध में, सोशल मीडिया मंचों को किसी भी आतंक से बचने के लिए, कोरोनोवायरस से संबंधित प्रामाणिक सामग्री को बढ़ावा देने के सम्बन्ध में एक एडवाइजरी भी जारी की गयी थी।

    इसी एडवाइजरी के जरिये, सोशल मीडिया मंचों को उपयोगकर्ताओं को गलत सूचना पोस्ट करने से दूर करने के लिए जागरूकता अभियान चलाने के लिए भी कहा गया था।

    आखिर क्या है 'मिथ्या चेतावनी' (False Warning) और उसके लिए दंड?

    आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 की 'धारा 54' के अंतर्गत, 'मिथ्या चेतावनी' (False Warning) को दंडनीय बनाया गया है। यह धारा कहती है:-

    जो कोई जिसे किसी आपदा या उसकी गंभीरता या उसके परिणाम के सम्बन्ध में आतंकित करने वाली मिथ्या संकट – सूचना या चेतावनी देता है, तो वह दोषसिद्धि पर कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी या जुर्माने से दंडनीय होगा

    उदाहरण

    इस धारा के अंतर्गत, यदि कोई व्यक्ति ऐसा प्रयास करता है कि किसी आपदा या उसकी गंभीरता के सम्बन्ध में आम जनता के बीच आतंक का फैलाव हो तो उसे इस धारा के अंतर्गत दण्डित किया जा सकता है।

    उदाहरण के तौर पर, यदि कोई व्यक्ति यह कह दे कि किसी महामारी से किसी शहर में हजारों लोग मारे गए हैं (जोकि असत्य है) या किसी महामारी के चलते किसी शहर/प्रदेश या इलाके में राशन खत्म हो गया है (जोकि असत्य है) तो ऐसा व्यक्ति इस धारा के अंतर्गत दोषी ठहराया जा सकता है।

    मुंबई का हालिया मामला

    [NOTE - हालाँकि, इस मामले के तथ्यों को हम सत्यापित नहीं कर रहे हैं, पर इस लेख को समझने के लिए हम न्यूज़ रिपोर्ट्स में आये तथ्यों का इस्तेमाल भर कर रहे हैं।]

    टाइम्स ऑफ़ इंडिया की खबर के मुताबिक, मुंबई में एक व्यक्ति सोहेल ने "मुंबई एकता" नामक व्हाट्सएप ग्रुप पर एक अफवाह पोस्ट की, जिसमें उसने यह कहा कि "मुंबई का नल बाजार, भिंडी बाजार, डोंगरी, मदनपुरा, काला पानी, साट रस्ता इलाका, पुलिस के कण्ट्रोल से बाहर हो चुका है और इसलिए, सेना को बुलाया गया है। वे भीड़ को नियंत्रित करने के लिए बल, लाठीचार्ज के साथ-साथ गोलीबारी का भी इस्तेमाल करेंगे।"

    इसके पश्च्यात, उक्त व्यक्ति के खिलाफ (कुछ अन्य कानूनों की धाराओं के अलावा) आपदा प्रबंधन अधिनियम की धारा 54 के तहत मामला दर्ज किया गया है।

    साफ़ है, इस धारा का उपयोग इसलिए किया गया होगा क्योंकि यहाँ पर मामला, प्रथम दृष्टया, कोरोना महामारी/आपदा के बीच, आपदा की गंभीरता या उसके परिणाम के सम्बन्ध में आतंकित करने वाली मिथ्या संकट – सूचना या चेतावनी देने वाला प्रतीत हो रहा है।

    हालिया वायरल खबर की सच्चाई

    हाल ही में, एक मैसेज/पोस्ट सोशल मीडिया से लेकर फेसबुक मैसेंजर एवं व्हाट्सअप/टेलीग्राम इत्यादि जैसे मंचों पर भी खूब वायरल हुआ है, जिसमे यह कहा जा रहा है कि कोरोना संबंधित कोई भी जानकारी-अपडेट, सोशल मीडिया में शेयर व पोस्ट करना दंडनीय अपराध है।

    इस मैसेज/पोस्ट की सच्चाई जानने से पहले आइये वह मैसेज/पोस्ट पढ़ लेते हैं:-

    साथियो, आज रात्रि 12 बजे से Disaster Management Act पूरे देश में लागू होगा। जिससे सरकारी विभाग के अलावा किसी भी नागरिक को कोरोना संबंधित कोई भी जानकारी-अपडेट, सोशल मीडिया में शेयर व पोस्ट करना दंडनीय अपराध है। अतःआप सभी से अनुरोध है कि कोरोना से सम्बंधित किसी भी प्रकार मैसेज ग्रुप मे पोस्ट न करे।

    इसके अलावा, जहाँ कुछ मैसेजस में प्राधिकरण से परमिशन के बाद ही ऐसे मैसेजस पोस्ट करने को कहा जा रहा है, तो वहीँ कुछ जगहों पर व्हाट्सअप ग्रुप एडमिन की गिरफ़्तारी की बात हो रही है।

    दरअसल, इस मामले को लेकर एक पिछले लेख में हम इस विषय पर बात कर चुके हैं कि COVID-2019 महामारी के दौरान, मिथ्या चेतावनी (False Warning) के मामलों में कौन सी परिस्थितियों में किसी व्यक्ति को जेल हो सकती है। इसी लेख में हमने मिथ्या दावे (FalseClaim) के विषय में भी चर्चा की है जिसे आप ऊपर दिए गए लिंक पर जाकर पढ़ सकते हैं।

    इस लेख में हम यह जान ही चुके हैं कि यदि एक व्यक्ति किसी आपदा या उसकी गंभीरता या उसके परिणाम के सम्बन्ध में आतंकित करने वाली मिथ्या संकट – सूचना या चेतावनी देता है, तो ही उसे धारा 54, Disaster Management Act, 2005 (आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005) के तहत दोषी ठहराया जा सकता है।

    इसलिए इस खबर में कोई सच्चाई नहीं है कि किसी व्यक्ति को कोरोना से सम्बंधित किसी जानकारी को शेयर करने की इजाजत नहीं, या उसे किसी प्राधिकरण से पूर्व इजाजत लेने की आवश्यकता है।

    हालाँकि, यह जरुर है कि किसी भी व्यक्ति को फर्जी ख़बरों का वितरण नहीं करना चाहिए, वर्ना उस व्यक्ति पर धारा 54, आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के तहत मामला दर्ज हो सकता है (यदि उस मामले में, ऊपर बताये गए, इस धारा से जुड़े सभी अवयव पूरे होते हैं तो)। इसके अलावा, अन्य कोई भी जानकारी को शेयर करने या पोस्ट करने पर कोई भी रोक नहीं है.

    आपकी सतर्कता ही है आपका बचाव

    हमारे लिए यह जान लेना भी अत्यंत जरुरी है कि यदि आपके द्वारा कोरोना से सम्बंधित कोई मैसेज प्राप्त किया जा रहा है, तो उस मैसेज को औरों को फॉरवर्ड करने से पहले उसकी सत्यता को जांच लें, क्योंकि हो सकता है कि वह मैसेज असत्य हो और आपके एक मैसेज/जानकारी से औरों को भ्रमित होना पड़े।

    इसके चलते न केवल, धारा 54, आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 का मामला आपके खिलाफ बन सकता है, बल्कि कुछ परिस्थितियों में भारतीय दंड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 505 (1) (b) का मामला भी बन सकता है।

    भारतीय दंड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 505 (1) (b), उन मामलों से सम्बंधित है, जहाँ किसी कथन, जनश्रुति या सूचना को, इस आशय से कि, या जिससे यह सम्भाव्य हो कि, सामान्य जन या जनता के किसी भाग को ऐसा भय या संत्रास कारित हो, जिससे कोई व्यक्ति राज्य के विरुद्ध या सार्वजनिक शांति के विरुद्ध अपराध करने के लिए उत्प्रेरित हो, रचित, प्रकाशित या परिचालित किया जाता है।

    इस कानून के तहत दोषी ठहराए जाने पर अधिकतम तीन साल के कारावास और जुर्माने से दंडित किया जा सकता है।

    अंत में, यह कहना आवश्यक है कि इस लेख का मकसद आप सभी पाठकगण को सजग एवं सतर्क बनाना है, जिससे आप इस महामारी से बचने के लिए अपने आप को न केवल शारीरिक रूप से सुरक्षित रखें, बल्कि आप मानसिक रूप से भी इससे लड़ने के लिए तैयार रहें।

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