साक्षी की गवाही की पुष्टि : भारतीय साक्ष्य अधिनियम 2023 के अंतर्गत धारा 159 और 160
Himanshu Mishra
10 Sep 2024 12:34 PM GMT
भारतीय साक्ष्य अधिनियम 2023, जो 1 जुलाई 2024 से लागू हुआ है, साक्षियों (witnesses) की गवाही की पुष्टि के संबंध में विशेष प्रावधान करता है। पुष्टि (corroboration) का तात्पर्य है साक्षी द्वारा दिए गए बयान को अन्य साक्ष्य (evidence) के माध्यम से समर्थन देना ताकि उसकी गवाही और विश्वसनीय (credible) बन सके। धारा 159 और 160 इस बात पर केंद्रित हैं कि साक्षी की गवाही की पुष्टि कैसे और कब की जा सकती है। इस लेख में हम इन धाराओं का विस्तार से विश्लेषण करेंगे और अन्य संबंधित धाराओं के संदर्भ में समझेंगे।
धारा 159: साक्षी की गवाही की पुष्टि के लिए अन्य परिस्थितियों का उपयोग (Use of Other Circumstances to Corroborate Testimony)
भारतीय साक्ष्य अधिनियम 2023 की धारा 159 अदालत को यह अनुमति देती है कि वह साक्षी से न केवल उस घटना के बारे में पूछताछ करे जो केस से जुड़ी है, बल्कि उस समय या स्थान पर घटित अन्य परिस्थितियों (circumstances) के बारे में भी पूछे। इसका उद्देश्य साक्षी की गवाही को विस्तृत संदर्भ (context) में समझना और उसे अधिक विश्वसनीय बनाना है।
उदाहरण के लिए, यदि कोई साक्षी किसी चोरी की घटना का वर्णन करता है, तो अदालत उस साक्षी से घटना के समय देखे गए अन्य व्यक्तियों या वस्तुओं के बारे में पूछताछ कर सकती है। यदि ये अतिरिक्त विवरण सही साबित होते हैं, तो साक्षी की गवाही को और मजबूत बनाया जा सकता है।
उदाहरण (Illustration) मान लीजिए, A नामक व्यक्ति चोरी की घटना में शामिल था और वह अदालत में चोरी का विवरण देता है। वह चोरी के अलावा अपने रास्ते में देखी गई अन्य घटनाओं का भी उल्लेख करता है, जैसे कुछ लोग या अन्य घटनाएँ। इन विवरणों का स्वतंत्र रूप से सत्यापन होने पर, अदालत A की चोरी से संबंधित गवाही को अधिक विश्वसनीय मान सकती है। यह धारा 159 साक्षी की गवाही को संदर्भित परिस्थितियों के साथ जोड़कर उसकी पुष्टि करने में सहायक होती है।
धारा 160: पूर्व बयानों का उपयोग साक्षी की गवाही की पुष्टि के लिए (Use of Former Statements to Corroborate Testimony)
धारा 160 साक्षी द्वारा पूर्व में दिए गए बयानों (statements) का उपयोग उसकी वर्तमान गवाही की पुष्टि के लिए करती है। विशेष रूप से, जब साक्षी ने घटना के तुरंत बाद या किसी सक्षम प्राधिकारी (authority) के समक्ष बयान दिया हो, तो ऐसे बयान अदालत में उसकी गवाही की पुष्टि के लिए प्रस्तुत किए जा सकते हैं। यह महत्वपूर्ण इसलिए है क्योंकि समय के साथ दिए गए समान बयान साक्षी की विश्वसनीयता को और बढ़ाते हैं।
उदाहरण के तौर पर, अगर किसी घटना के गवाह ने पुलिस को पहले से ही घटना के बारे में बयान दिया हो और अदालत में वही बयान देता हो, तो इस पहले दिए गए बयान को साक्षी की गवाही की पुष्टि के रूप में पेश किया जा सकता है।
उदाहरण (Illustration) मान लीजिए A किसी दुर्घटना का गवाह है। घटना के तुरंत बाद उसने पुलिस को बयान दिया कि उसने क्या देखा था। बाद में अदालत में A वही घटना का विवरण प्रस्तुत करता है। यदि दोनों बयानों में समानता होती है, तो पहले दिया गया बयान A की अदालत में गवाही की पुष्टि के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। इससे अदालत A की गवाही पर और अधिक विश्वास कर सकती है क्योंकि समय के साथ समान बयान देना अक्सर सत्य का संकेत होता है।
साक्षियों से संबंधित पूर्व धाराओं का संदर्भ (Reference to Previous Sections on Witnesses)
धारा 159 और 160 को पूरी तरह से समझने के लिए भारतीय साक्ष्य अधिनियम 2023 की अन्य धाराओं का संदर्भ लेना आवश्यक है, विशेष रूप से उन धाराओं का जो साक्षियों से संबंधित हैं। धारा 137 इस बात की जानकारी देती है कि किस प्रकार साक्षियों का मुख्य परीक्षा (examination-in-chief), प्रतिपरीक्षा (cross-examination), और पुनः परीक्षा (re-examination) होती है। यह प्रक्रिया अदालत में साक्षी की विश्वसनीयता की नींव रखती है।
धारा 138 साक्षियों की प्रतिपरीक्षा के नियमों को विस्तार से बताती है, जहाँ विपक्षी पक्ष साक्षी के मुख्य परीक्षा में दिए गए बयानों को चुनौती दे सकता है। यह महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे साक्षी की सच्चाई या झूठ का पता चल सकता है। प्रतिपरीक्षा का उद्देश्य साक्षी की गवाही को परखना होता है, और साक्षी द्वारा दिए गए जवाबों का अदालत की नजर में उसकी गवाही पर सीधा असर पड़ता है।
धारा 155, जो साक्षी की विश्वसनीयता को चुनौती देने (impeaching credibility) से संबंधित है, यह निर्धारित करती है कि कब और क्यों साक्षी की विश्वसनीयता पर सवाल उठाए जा सकते हैं। साक्षी की विश्वसनीयता को चुनौती देने की प्रक्रिया यह सुनिश्चित करती है कि जब साक्षी पर संदेह हो, तब उसके बयान की पुष्टि के लिए अतिरिक्त साक्ष्य की आवश्यकता होती है, जैसा कि धारा 159 और 160 में प्रावधान किया गया है।
इन प्रक्रियाओं की विस्तृत जानकारी के लिए, आप Live Law Hindi की पहले की पोस्टों को भी देख सकते हैं, जहाँ साक्षी की परीक्षा और प्रतिपरीक्षा को विस्तार से समझाया गया है।
व्यवहार में साक्षी की गवाही की पुष्टि (Corroboration of Witness Testimony in Practice)
साक्षी की गवाही की पुष्टि करना एक सामान्य प्रक्रिया है, विशेष रूप से आपराधिक मामलों (criminal cases) में, जहाँ प्रमाण का बोझ (burden of proof) अधिक होता है। अदालत साक्ष्य की पुष्टि इसलिए चाहती है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि साक्षी का बयान गलत या गुमराह करने वाला न हो।
उदाहरण के तौर पर, अगर किसी हत्या के मामले में मुख्य गवाह यह गवाही देता है कि उसने अपराध स्थल पर आरोपी को देखा था, तो उस गवाह से घटना के समय देखी गई अन्य चीज़ों के बारे में भी पूछताछ की जा सकती है, जैसे कि आरोपी के कपड़े या वहाँ मौजूद अन्य लोग। अगर इन विवरणों की स्वतंत्र रूप से पुष्टि होती है, तो साक्षी की गवाही और भी विश्वसनीय मानी जाएगी।
साथ ही, यदि इस गवाह ने पहले पुलिस या किसी अन्य प्राधिकरण को बयान दिया था और वह बयान अदालत में दी गई गवाही से मेल खाता है, तो यह पुष्टि के रूप में पेश किया जा सकता है। यदि साक्षी के बयान समय के साथ एक जैसे रहे हैं, तो अदालत उसकी गवाही पर और अधिक विश्वास कर सकती है।
भारतीय साक्ष्य अधिनियम 2023 की धारा 159 और 160 साक्षी की गवाही की पुष्टि के लिए महत्वपूर्ण मार्गदर्शन प्रदान करती हैं। धारा 159 साक्षी से संबंधित अन्य परिस्थितियों के बारे में पूछताछ की अनुमति देती है, जबकि धारा 160 साक्षी के पूर्व बयानों को गवाही की पुष्टि के रूप में उपयोग करने की सुविधा देती है। ये प्रावधान सुनिश्चित करते हैं कि साक्षी की गवाही का गहराई से विश्लेषण किया जाए और इसे अन्य साक्ष्यों के माध्यम से समर्थन प्रदान किया जाए।
पुष्टि केवल मुख्य तथ्य की सच्चाई को सिद्ध करने के लिए नहीं है, बल्कि साक्षी की समग्र विश्वसनीयता को भी समर्थन देने के लिए है। जब साक्षी की परीक्षा और प्रतिपरीक्षा से संबंधित पूर्व धाराओं के साथ इन प्रावधानों को मिलाकर देखा जाता है, तो यह अदालत में साक्षियों की विश्वसनीयता के मूल्यांकन के लिए एक समग्र ढांचा प्रदान करता है।