मतदाताओं को उम्मीदवारों के बारे में जानकारी प्राप्त करने का संवैधानिक आधार और जवाबदेही से जुड़े महत्वपूर्ण मामले

Himanshu Mishra

19 Nov 2024 8:45 AM IST

  • मतदाताओं को उम्मीदवारों के बारे में जानकारी प्राप्त करने का संवैधानिक आधार और जवाबदेही से जुड़े महत्वपूर्ण मामले

    चुनाव लोकतंत्र (Democracy) की बुनियाद हैं, जहां जनता अपनी संप्रभु इच्छाओं को व्यक्त करती है। लेकिन राजनीति में अपराधीकरण (Criminalization) और भ्रष्ट आचरण (Corrupt Practices) इन चुनावी प्रक्रियाओं को कमजोर करते हैं।

    चुनावी कानून (Electoral Law) में "अनुचित प्रभाव" (Undue Influence) का मतलब केवल सीधा दबाव डालने तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें भ्रामक (Misleading) तरीके अपनाना, जैसे कि जरूरी जानकारी छुपाना, भी शामिल है। सुप्रीम कोर्ट ने इस प्रावधान को कई मामलों में व्याख्या कर एक नई दिशा दी है।

    अनुचित प्रभाव (Undue Influence) और भ्रष्ट आचरण (Corrupt Practices) की समझ

    जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 (Representation of People Act, 1951) की धारा 123(2) के तहत अनुचित प्रभाव किसी भी प्रत्यक्ष (Direct) या अप्रत्यक्ष (Indirect) हस्तक्षेप को कहते हैं, जो किसी व्यक्ति के मतदान के अधिकार (Electoral Right) को प्रभावित करता है।

    यह केवल धमकी या जोर-जबरदस्ती तक सीमित नहीं है, बल्कि ऐसे कार्यों को भी कवर करता है जो मतदाताओं को गुमराह (Mislead) करते हैं और उनके निर्णय को प्रभावित करते हैं।

    कृष्णमूर्ति बनाम शिवकुमार एवं अन्य के मामले में, अदालत ने कहा कि अनुचित प्रभाव का मतलब उन कार्यों से है जो मतदाताओं के चुनावी अधिकारों को बाधित (Interfere) करते हैं, चाहे उनका वास्तविक प्रभाव (Actual Effect) हो या नहीं। अदालत ने यह भी पाया कि आपराधिक पृष्ठभूमि (Criminal Antecedents) का खुलासा न करना अनुचित प्रभाव के समान है, क्योंकि यह मतदाताओं के निर्णय को तोड़-मरोड़ देता है।

    जानने का अधिकार और उसका संवैधानिक आधार (The Right to Know and Its Constitutional Basis)

    सुप्रीम कोर्ट ने बार-बार मतदाताओं को उम्मीदवारों के बारे में जानकारी प्राप्त करने के अधिकार को लोकतंत्र की एक बुनियादी आवश्यकता के रूप में मान्यता दी है। यह अधिकार भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) (Article 19(1)(a)) से उत्पन्न होता है, जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (Freedom of Speech and Expression) को सुनिश्चित करता है।

    पिछले फैसलों में अदालत ने कहा कि मतदाताओं को उम्मीदवारों की पृष्ठभूमि (Background) जानने का अधिकार है ताकि वे सूचित (Informed) निर्णय ले सकें। अदालत ने स्पष्ट किया कि पारदर्शिता (Transparency) चुनावी प्रक्रिया की नींव है, और आपराधिक मामलों की जानकारी छुपाना लोकतांत्रिक मूल्यों (Democratic Values) के खिलाफ है।

    हलफनामे (Affidavits) और कानूनी दायित्व (Legal Obligations) की भूमिका

    चुनाव कानूनों के तहत उम्मीदवारों को हलफनामा दाखिल करना होता है, जिसमें आपराधिक मामलों, संपत्तियों और देनदारियों की जानकारी देना अनिवार्य है। अदालत ने दोहराया कि ये हलफनामे केवल औपचारिकता नहीं हैं, बल्कि यह सुनिश्चित करने के उपकरण (Tools) हैं कि मतदाता सूचित चुनाव कर सकें।

    अदालत ने यह भी कहा कि अगर कोई उम्मीदवार महत्वपूर्ण जानकारी छुपाता है, जैसे कि लंबित आपराधिक मामलों का विवरण, तो यह मतदाताओं को गुमराह करने के समान है। यह चुनावी पारदर्शिता को कमजोर करता है और इसे अनुचित प्रभाव माना जाएगा।

    खुलासे और जवाबदेही (Disclosure and Accountability) से जुड़े महत्वपूर्ण मामले

    1. एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स बनाम भारत संघ (Association for Democratic Reforms v. Union of India)

    इस ऐतिहासिक मामले में अदालत ने कहा कि मतदाताओं का यह मौलिक अधिकार (Fundamental Right) है कि वे चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों के आपराधिक मामलों, संपत्तियों, देनदारियों और शैक्षणिक योग्यता (Educational Qualification) के बारे में जानें। अदालत ने निर्देश दिया कि चुनाव आयोग (Election Commission) को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उम्मीदवार यह जानकारी हलफनामे (Affidavit) के माध्यम से प्रस्तुत करें।

    2. पीपल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज बनाम भारत संघ (People's Union for Civil Liberties v. Union of India)

    इस मामले में अदालत ने उम्मीदवारों के बारे में जानकारी प्राप्त करने के अधिकार को लोकतंत्र (Democracy) के लिए आवश्यक बताया। अदालत ने कहा कि यह अधिकार पारदर्शिता (Transparency) को बढ़ावा देता है और एक मजबूत लोकतंत्र सुनिश्चित करता है। अदालत ने यह भी माना कि इस अधिकार को सीमित करने वाले किसी भी कानून को खारिज किया जाना चाहिए।

    3. रिसर्जेंस इंडिया बनाम भारत निर्वाचन आयोग (Resurgence India v. Election Commission of India)

    इस फैसले में अदालत ने कहा कि अपूर्ण (Incomplete) या खाली (Blank) जानकारी वाले हलफनामे नामांकन को अमान्य (Invalid) बनाते हैं। अदालत ने यह भी कहा कि रिटर्निंग ऑफिसर (Returning Officer) को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हलफनामा पूरा हो और पारदर्शी (Transparent) तरीके से दायर किया गया हो।

    4. मनोज नरूला बनाम भारत संघ (Manoj Narula v. Union of India)

    इस फैसले में अदालत ने राजनीति के अपराधीकरण (Criminalization of Politics) और भ्रष्टाचार (Corruption) की कड़ी निंदा की। अदालत ने वोहरा समिति (Vohra Committee Report) की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि राजनीति में आपराधिक तत्वों का प्रवेश लोकतांत्रिक शासन (Democratic Governance) के लिए गंभीर खतरा है।

    5. राम डायल बनाम संत लाल (Ram Dial v. Sant Lal)

    इस मामले में अदालत ने जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 (Representation of People Act, 1951) के तहत अनुचित प्रभाव (Undue Influence) की परिभाषा स्पष्ट की। अदालत ने कहा कि अनुचित प्रभाव केवल प्रत्यक्ष दबाव (Direct Coercion) तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें ऐसे कार्य शामिल हैं जो मतदाताओं के स्वतंत्र निर्णय को बाधित करते हैं।

    6. शालिग्राम श्रीवास्तव बनाम नरेश सिंह पटेल (Shaligram Shrivastava v. Naresh Singh Patel)

    इस फैसले में अदालत ने कहा कि उम्मीदवारों द्वारा पूरी जानकारी का खुलासा (Disclosure) करना आवश्यक है और गलत या भ्रामक जानकारी (Misleading Information) देना मतदाताओं के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन (Violation) है।

    7. मोहिंदर सिंह गिल बनाम मुख्य चुनाव आयुक्त (Mohinder Singh Gill v. Chief Election Commissioner)

    अदालत ने कहा कि चुनाव आयोग के पास अनुच्छेद 324 (Article 324) के तहत स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव (Free and Fair Elections) सुनिश्चित करने के लिए व्यापक अधिकार हैं, जिसमें पारदर्शिता के लिए निर्देश (Directions) जारी करना भी शामिल है।

    8. पी.वी. नरसिम्हा राव बनाम राज्य (CBI/SPE) (P.V. Narasimha Rao v. State (CBI/SPE))

    इस मामले में अदालत ने कहा कि स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव (Free and Fair Elections) लोकतंत्र के लिए आवश्यक हैं और सूचित मतदान (Informed Voting) का अधिकार जानने के अधिकार (Right to Know) से जुड़ा हुआ है।

    9. सुब्रमण्यम स्वामी बनाम CBI (Subramanian Swamy v. CBI)

    इस फैसले में अदालत ने वरिष्ठ अधिकारियों को भ्रष्टाचार (Corruption) जांच से बचाने वाले प्रावधानों को खारिज कर दिया। अदालत ने कहा कि भ्रष्टाचार लोकतंत्र (Democracy) और जनता के विश्वास (Public Trust) को कमजोर करता है।

    10. निरंजन हेमचंद्र शशीतल बनाम महाराष्ट्र राज्य (Niranjan Hemchandra Sashittal v. State of Maharashtra)

    इस फैसले में अदालत ने भ्रष्टाचार को समाज और शासन (Governance) के लिए सबसे बड़ा खतरा बताया। अदालत ने कहा कि यह सामाजिक मूल्यों (Social Values) को नष्ट करता है और जनता के विश्वास को कमजोर करता है।

    11. दिनेश त्रिवेदी बनाम भारत संघ (Dinesh Trivedi v. Union of India)

    अदालत ने वोहरा समिति की रिपोर्ट का हवाला देते हुए राजनीति और अपराध के गठजोड़ (Nexus) को लोकतंत्र के लिए हानिकारक माना और इसे रोकने के लिए सख्त कदम उठाने की जरूरत बताई।

    12. अनुकुल चंद्र प्रधान बनाम भारत संघ (Anukul Chandra Pradhan v. Union of India)

    इस मामले में अदालत ने उन प्रावधानों को सही ठहराया जो आपराधिक पृष्ठभूमि (Criminal Background) वाले व्यक्तियों को चुनाव लड़ने से रोकते हैं। अदालत ने कहा कि इस प्रकार के प्रावधान निष्पक्ष चुनाव (Fair Elections) सुनिश्चित करने और जनता के विश्वास को बनाए रखने के लिए आवश्यक हैं।

    13. लिली थॉमस बनाम लोकसभा अध्यक्ष (Lily Thomas v. Speaker of Lok Sabha)

    अदालत ने कहा कि मतदान (Voting) लोकतंत्र का एक मौलिक (Fundamental) हिस्सा है और मतदाता का अधिकार (Right of the Voter) यह जानने से जुड़ा है कि उम्मीदवार कौन हैं और उनकी पृष्ठभूमि क्या है।

    14. न्यायमूर्ति जे.एस. वर्मा समिति की रिपोर्ट (Justice J.S. Verma Committee Report on Amendments to Criminal Law, 2013)

    इस रिपोर्ट में सिफारिश की गई थी कि जघन्य अपराधों (Heinous Crimes) से जुड़े मामलों के आरोपियों को चुनाव लड़ने से अयोग्य घोषित किया जाए।

    15. द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग (Second Administrative Reforms Commission, 2008)

    इस आयोग ने राजनीति के अपराधीकरण के नकारात्मक प्रभावों और चुनावी सुधारों (Electoral Reforms) की आवश्यकता पर जोर दिया।

    इन सभी न्यायिक निर्णयों ने पारदर्शिता, जानने के अधिकार और चुनावी प्रक्रिया में आपराधिकरण और भ्रष्टाचार को खत्म करने की आवश्यकता पर जोर दिया।

    राजनीति का अपराधीकरण (Criminalization of Politics) और उसके प्रभाव

    फैसले में राजनीति के अपराधीकरण को लोकतांत्रिक शासन के लिए खतरा बताया गया। अदालत ने जोर देकर कहा कि आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों की उपस्थिति जनता के विश्वास (Public Trust) को कमजोर करती है। यह देखा गया कि पारदर्शिता लोकतांत्रिक प्रक्रिया को शुद्ध करने के लिए पहला कदम है।

    इससे पहले के फैसलों में अदालत ने राजनीति और अपराध के गठजोड़ (Nexus) को लोकतंत्र के लिए हानिकारक माना था। अदालत ने कहा कि चुनावी प्रक्रिया को साफ और पारदर्शी बनाने के लिए सूचित मतदान (Informed Voting) जरूरी है।

    संवैधानिक मूल्य और चुनावी अखंडता (Constitutional Values and Electoral Integrity)

    अदालत ने उम्मीदवारों द्वारा जानकारी छुपाने के कृत्य को संवैधानिक सिद्धांतों (Constitutional Principles) के खिलाफ माना। अदालत ने कहा कि यह केवल कानूनी प्रावधानों का उल्लंघन (Violation) नहीं है, बल्कि यह चुनावी प्रक्रिया की अखंडता (Integrity) को भी प्रभावित करता है।

    जानकारी न देना चुनावी प्रक्रिया को हेरफेर (Manipulate) और धोखाधड़ी (Deceit) के प्रति संवेदनशील बनाता है। अदालत ने इस तरह के कृत्यों को अनुचित प्रभाव और भ्रष्ट आचरण का हिस्सा माना।

    सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला चुनावी न्यायशास्त्र (Electoral Jurisprudence) को एक नई दिशा देता है। मतदाताओं के जानने के अधिकार को अनुचित प्रभाव से जोड़कर अदालत ने पारदर्शिता की अहमियत को दोहराया है।

    यह फैसला याद दिलाता है कि चुनावी अखंडता केवल एक प्रक्रियात्मक आवश्यकता (Procedural Requirement) नहीं है, बल्कि लोकतंत्र की आधारशिला (Cornerstone) है। उम्मीदवारों द्वारा पूरी जानकारी का खुलासा सुनिश्चित करना चुनावों की पवित्रता बनाए रखने और लोकतांत्रिक प्रक्रिया में जनता का विश्वास बहाल करने के लिए अनिवार्य है।

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