भारत का संविधान (Constitution of India) भाग 13: भारत की संसद, लोकसभा और राज्यसभा की संरचना

Shadab Salim

19 Feb 2021 6:17 AM GMT

  • भारत का संविधान (Constitution of India) भाग 13: भारत की संसद, लोकसभा और राज्यसभा की संरचना

    भारत के संविधान से संबंधित लिखे जा रहे हैं आलेखों में पिछले आलेख के अंतर्गत संघ की कार्यपालिका और राष्ट्रपति के निर्वाचन की प्रक्रिया के संदर्भ में सारगर्भित उल्लेख किया गया था, इस आलेख में केंद्र की विधायी शक्ति अर्थात लोकतंत्र के दूसरे स्तंभ विधायिका का उल्लेख किया जा रहा है जिसमें भारत की संसद लोकसभा और राज्यसभा की संरचना पर आवश्यक जानकारियों को लेखबद्ध किया जा रहा है।

    संसदीय लोकतंत्र को तीन हिस्सों में बांटा गया है जिसमें कार्यपालिका के बाद विधायिका का महत्वपूर्ण स्थान है। भारत के संविधान में केंद्रीय विधान मंडल के संदर्भ में अत्यंत विस्तृत उपबंध किए गए हैं। भारत की संसद को केंद्रीय विधान मंडल कहा जा सकता है अर्थात भारत की संसद केंद्रीय कानून बनाने का काम करती है।

    भारत की संसद के 3 अंग होते हैं राष्ट्रपति राज्यसभा और लोकसभा राष्ट्रपति संसद के दोनों सदनों में से किसी भी सदन का सदस्य नहीं है परंतु फिर भी राष्ट्रपति संसद का अहम और महत्वपूर्ण हिस्सा है क्योंकि किसी भी विधेयक के अधिनियम होने के लिए राष्ट्रपति की स्वीकृति अत्यंत आवश्यक है।

    कोई भी विधेयक अधिनियम तभी बनता है जब उसे राष्ट्रपति की स्वीकृति दी जाती है। कार्यपालिका विधायिका और न्यायपालिका का आपस में इस प्रकार पृथक्करण किया गया है जिससे किसी एक के पास सभी शक्तियां एकत्रित नहीं हो जाएं। भारत के संविधान में सरकार की शक्तियां अलग-अलग अंगों में निहित की है।

    भारत के शक्ति पृथक्करण के सिद्धांत को अत्यंत कठोरता से लागू किया है। भारत की कार्यपालिका अर्थात मंत्रिमंडल के सदस्य विधान मंडल के सदस्य भी होते हैं। सदस्य होने के लिए विधानमंडल का सदस्य होना आवश्यक है। राष्ट्रपति को अनुच्छेद 72 के अधीन माफी की शक्ति प्राप्त है जो एक न्यायिक कृत्य है।

    इसके अतिरिक्त राष्ट्रपति अनुच्छेद 124 के अधीन अध्यादेश जारी कर सकता है उसकी एक विधायी सकती है। संसदीय प्रणाली में कार्यपालिका और विधायिका का अलग अलग होना संभव नहीं फिर भी भारतीय संविधान में इन दोनों के मध्य समन्वय बनाकर दोनों को अलग किए जाने का अथक प्रयास किया है।

    शक्ति पृथक्करण का सिद्धांत को भारतीय संविधान में कठोरता से लागू नहीं किया गया किंतु इस बात का ध्यान रखा गया है कि सरकार कोई भी अंग निरंकुश न हो जाए। इसलिए संविधान में रोकथाम की व्यवस्था की गई है। इसी उद्देश्य से कार्यपालिका को लोकसभा के प्रति उत्तरदाई बनाया गया है।

    पूर्व विधायिका तथा कार्यपालिका के मनमानी कृत्यों के विरुद्ध न्यायपालिका को शक्ति दी गई है। उनके कार्यों को अवैध घोषित करके उन्हें अपनी सीमा में कार्य करने के लिए बाध्य करें।

    भारत की संसद दो सदनों से मिलकर बनती है जिन्हें ऊपरी सदन में निचला सदन भी कहा जाता है और राज्यसभा और लोकसभा भी कहा जाता है। राज्यसभा में सदस्यों का चुनाव आप्रत्यक्ष होता है और लोकसभा के सदस्यों का चुनाव प्रत्यक्ष होता है।

    राज्यसभा की संरचना

    राज्य सभा की अधिकतम सदस्य संख्या 250 है। इनमें से 238 सदस्य राज्य और संघ राज्य क्षेत्रों के निर्वाचित प्रतिनिधि होते हैं और 12 ऐसे सदस्यों को राष्ट्रपति नामांकित करता है जो साहित्य कला विज्ञान और सामाजिक सेवा के क्षेत्र में विशेष ज्ञान या वास्तविक अनुभव रखते हैं। नामांकित सदस्य राष्ट्रपति के निर्वाचन में भाग नहीं लेते हैं।

    राज्यसभा के सदस्यों का निर्वाचन राज्य की विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्यों द्वारा आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति के अनुसार एकल संक्रमणीय मत द्वारा होता है। राज्यसभा के लिए संघ राज्य क्षेत्र प्रतिनिधि चुने जाएंगे जैसा कि संसद विधि द्वारा विविध करें।

    राज्यसभा में प्रत्येक राज्य और कुछ संघ राज्य क्षेत्रों में सीटों का बंटवारा संविधान की चौथी अनुसूची द्वारा किया जाता है। इसमे आंध्र प्रदेश 18, असम राज्य से 7, बिहार राज्य से 16, झारखंड राज्य से 6, गोवा राज्य से 1, गुजरात राज्य से 11, हरियाणा राज्य से 5, राजस्थान राज्य से 10, उत्तर प्रदेश राज्य से 31, उत्तराखंड राज्य से 3, पश्चिम बंगाल राज्य से 16, जम्मू कश्मीर राज्य से 6, नागालैंड राज्य से 1, हिमाचल प्रदेश राज्य से 3, मणिपुर राज्य से 1, त्रिपुरा राज्य से 1 मेघालय राज्य से 1, सिक्किम राज्य से 1, मिजोरम राज्य से 11, अरुणाचल प्रदेश राज्य से 1, दिल्ली राज्य से 3, पांडिचेरी राज्य से 1 इस तरह कुल 233 सदस्य हैं। 12 सदस्य राष्ट्रपति द्वारा नामांकित किए जाते हैं सीटों का बंटवारा जनसंख्या के आधार पर किया जाता है

    राज्यसभा एक स्थाई सदन है। इसका विघटन नहीं होता है किंतु इसके एक तिहाई सदस्य प्रत्येक दूसरे वर्ष की समाप्ति पर रिटायर हो जाते हैं। इस नीति के अनुसार 6 वर्षों तक राज्यसभा का सदस्य व्यक्ति रहता है। भारत का उपराष्ट्रपति राज्यसभा का पदेन सभापति होता है।

    राज्यसभा के सदस्यों में से किसी सदस्य को उपसभापति चुना जाता है। जब सभापति का पद रिक्त हो जाता है जब उपराष्ट्रपति राष्ट्रपति के रूप में कार्य कर रहा हो तब उपसभापति उस पद के कर्तव्यों का पालन करता है। यदि उपसभापति का पद भी रिक्त हो राज्यसभा का ऐसा सदस्य कार्य करेगा जिसे राष्ट्रपति नियुक्त करें।

    राज्यसभा के उपलक्ष उपसभापति धारण करने वाला व्यक्ति सभा का सदस्य नहीं रह जाता तो अपना पद खाली कर देगा। वह अपने पद से त्यागपत्र दे सकता है। राज्यसभा में तत्कालीन सदस्यों के बहुमत से प्रस्ताव पारित करके उसे हटा सकती है। इसी प्रक्रिया द्वारा राज्यसभा के सभापति को हटा सकती है।

    राज्य सभा की बैठक में उपराष्ट्रपति को हटाने का प्रस्ताव विचाराधीन हो तब उपराष्ट्रपति सभा की अध्यक्षता नहीं करेगा।

    भारत में राज्यसभा को रखने का औचित्य है कि भारत को एकात्मक राष्ट्र बनने से रोकना है क्योंकि भारत को जब स्वतंत्रता मिली थी जब सभी राज्यों को एक करके भारत बनाया गया है। भारत राज्यों का एक संघ है। सभी प्रांतों को भारत में मिलाकर भारत को अखंड किया गया परंतु भारत को एकात्मक राष्ट्र नहीं बनाया गया क्योंकि यह कठिन कार्य था।

    कुछ शक्तियां प्रांतों को भी दी गई है इसलिए राज्यसभा का होना भारत की संसद की अनिवार्य आवश्यकता है। यह वह सभा है जिसमें देश के योग्य और अनुभवी राजनेताओं की चुनावी परेशानियों के बिना सदस्य बन जाते हैं। इस प्रकार देश को उनके अनुभव तथा ज्ञान का लाभ प्राप्त होता रहता है।

    राज्यसभा लोकसभा द्वारा जल्दबाजी से पारित किए गए कानूनों को उन पर उसे पुनर्विचार करने का अवसर प्रदान करती है, राज्य हितों की संरक्षिका है जो संघीय के सिद्धांत के अनुरूप है। व्यवहार में राज्यसभा अब राज्य हित के लिए कार्य नहीं करती है वरन राष्ट्र हित को ध्यान में रखकर कार्य करती है।

    राज्यसभा के सदस्यों को अलग-अलग प्रांतों की विधान मंडलों के जनता द्वारा कि निर्वाचित किए गए सदस्यों द्वारा चुना जाता है। इस प्रकार राज्यसभा में सारे भारत के अलग-अलग प्रांतों के लोगों का समावेश रहता है। सभी का प्रतिनिधित्व उनकी जनसंख्या के अनुपात में होता है।

    लोकसभा की संरचना

    भारत के संसद का दूसरा सबसे महत्वपूर्ण अंग भारत की लोकसभा है।लोकसभा को जनता की सभा में कहा जाता है क्योंकि लोकसभा में जनता द्वारा आम चुनाव में चुने गए प्रतिनिधि होते हैं।

    इसके सदस्यों की अधिकतम संख्या 550 है जिनमें से 530 सदस्य को राज्यों के मतदाताओं द्वारा प्रत्यक्ष चुनाव से निर्वाचित किया जाता है, 20 सदस्य संघ राज्य क्षेत्रों के प्रतिनिधि होते हैं I इसके अलावा राष्ट्रपति की राय में लोकसभा में एंग्लो इंडियन समाज में समाज को पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं मिला है तो अनुच्छेद 331 के अधीन एंग्लो इंडियन समुदाय के दो सदस्यों को नामजद कर सकता है।

    राज्यों के प्रतिनिधियों का चुनाव वयस्क मताधिकार के आधार पर प्रत्यक्ष मतदान द्वारा होता है अर्थात भारत के प्रत्येक नागरिक को 18 वर्ष की आयु पूरी करने के बाद मतदान करने का अधिकार होता है।

    भारत की लोकसभा सीटों का निर्धारण 20 जनवरी 1976 में किया गया जिसके अनुसार आंध्र प्रदेश राज्य के लिए 42 सीट है, असम राज्य के लिए 14, बिहार राज्य के लिए 54, गुजरात राज्य के लिए 26, हरियाणा राज्य के लिए 10, हिमाचल प्रदेश राज्य के लिए 4, जम्मू कश्मीर के लिए 6, कर्नाटक राज्य के लिए 28, केरल राज्य के लिए 20, मध्य प्रदेश राज्य के लिए 40, महाराष्ट्र राज्य के लिए 48, मणिपुर राज्य के लिए 2, मेघालय राज्य के लिए 2, नागालैंड राज्य के लिए 1, उड़ीसा राज्य के लिए 21, पंजाब राज्य 13, राजस्थान 25, तमिलनाडु 40, त्रिपुरा 2, उत्तर प्रदेश 85, पश्चिम बंगाल 49, अरुणाचल प्रदेश 2, मिजोरम 1, गोवा 1।

    लोकसभा के सदस्यों के चुनाव के प्रयोजन के लिए प्रत्येक राज्य को प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों में विभक्त कर दिया जाता है। प्रत्येक राज्य प्रदेशिक निर्वाचन क्षेत्र को विभाजित किया जाता है जो कि प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र की जनसंख्या तथा उसके लिए नियत किए गए सदस्यों की संख्या का अनुपात समस्त राज्य में एक हो।

    प्रत्येक राज्य के लिए लोकसभा के स्थानों की संख्या की बात ऐसी लिखी से की जाएगी कि उस संख्या के राज्य की जनसंख्या का अनुपात समस्त राज्यों के लिए एक ही हो। इस प्रकार संविधान लोकसभा के निर्वाचन में प्रतिनिधित्व की एकरूपता दो प्रकार से स्थापित करने का उपबंध करता है।

    विभिन्न राज्यों से और एक राज्य के विभिन्न निर्वाचन क्षेत्रों में प्रत्येक जनगणना की समाप्ति पर लोकसभा में राज्यों के स्थानों का आवंटन में प्रत्येक राज्य का प्रदेशिक निर्वाचन क्षेत्रों में विभाजन समायोजित किया जाएगा। जैसा कि संसद विधि द्वारा निर्धारित करें किंतु ऐसे समायोजन का वर्तमान लोकसभा में प्रतिनिधित्व कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।

    लोकसभा यदि पहले से ही विघटित न कर दी जाए तो अपने प्रथम अधिवेशन की तारीख से 5 वर्ष तक चालू रहेगी। राष्ट्रपति के पहले भी उसे विघटन कर सकता है परंतु उक्त अवधि को जब आप आपात घोषणा प्रबंधन में है।

    संसद विधि द्वारा 1 वर्ष के लिए बढ़ा सकती है इस प्रकार बढ़ाई गई है उन्हीं की इसी अवधि में आपात उद्घोषणा के समाप्त हो जाने के पश्चात 6 महीने से अधिक न होगी।

    भारत के संविधान का अनुच्छेद 84 संसद के सदस्यों के लिए किसी व्यक्ति को अर्हता देता है जिन का होना आवश्यक है। जैसे ऐसे सदस्य हैं भारत के नागरिक होना चाहिए, राज्यसभा के सदस्य के लिए कम से कम 35 वर्ष वर्ष की आयु का तथा लोकसभा के सदस्य के लिए कम से कम 25 वर्ष की आयु का होना आवश्यक है।

    निर्वाचन आयोग द्वारा प्राधिकृत किसी व्यक्ति के समक्ष तृतीय अनुसूची में प्रयोजन के लिए दिए हुए प्रपत्र के अनुसार शपथ ले लिया हो। ऐसी अन्य योग्यताएं रखता हो जो इस संबंध में संसद द्वारा बनाई गई किसी विधि के द्वारा विहित की जाए। उदाहरण के लिए लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम के अनुसार व्यक्ति का नाम किसी भी निर्वाचन क्षेत्र से मतदाता के रूप में पंजीकृत होना चाहिए।

    कोई भी ऐसा व्यक्ति जो स्वास्थ्य चित्त नहीं है और दिवालिया है या भारत का नागरिक नहीं है यह विदेशी राज्य की नागरिकता स्वच्छता से अर्जित कर चुका है वह संसद द्वारा बनाई गई किसी विधि द्वारा लोकसभा का सदस्य होने से निर्योग्य घोषित कर दिया जाएगा।

    जया बच्चन बनाम भारत संघ एआईआर 2006 उच्चतम न्यायालय 2119 के मामले में समाजवादी पार्टी की राज्यसभा सदस्य जया बच्चन को राज्यसभा सदस्यता से इस आधार पर निरयोग्य घोषित कर दिया कि वह उत्तर प्रदेश फिल्म निगम की अध्यक्ष के रूप में लाभ का पद धारण करती थी। उनके विरुद्ध कांग्रेस पार्टी के एक सदस्य ने राष्ट्रपति को इसके लिए आवेदन दिया था।

    राष्ट्रपति ने चुनाव आयोग के विचार में भेज दिया था। चुनाव आयोग ने इस आरोप को सख्त पाया और राष्ट्रपति को अपनी सिफारिश भेज दी। राष्ट्रपति ने आयोग की सिफारिश पर उन्हें संसद की सदस्यता के निरयोग्य घोषित कर दिया।

    जया बच्चन ने इस विनिश्चय के विरुद्ध उच्चतम न्यायालय में अपील फाइल की। उनका तर्क था कि अगर सरकार ने उन्हें उपर्युक्त पद पर मिलने वाली सभी सुविधाएं प्रदान नहीं की थी किंतु उन्होंने इसका उपयोग नहीं किया था किंतु उच्चतम न्यायालय ने उनके तर्क को अस्वीकार कर दिया और यह अभिनिर्धारित किया कि उनका पद लाभ का पद था कि वह पद स्थाई था और उसको धारण करने वाला उससे युक्तियुक्त रूप से कुछ लाभ पा सकता था।

    वास्तविक लाभ पाना आवश्यक नहीं इसके पश्चात मामला और आगे बढ़ा और अनेक सांसदों ने विरोध इस प्रकार के आवेदन उनको निर्योग्य करने के लिए राष्ट्रपति को दिए।

    लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 में संसद की सदस्यता के लिए कुछ और अर्हता दी गई हैं, जो इस प्रकार है जैसे किसी चुनाव में भ्रष्टाचार किसी अपराध में दोषसिद्धि के फलस्वरूप दो या दो से अधिक वर्षों का कारावास के दंड हो गया हो, चुनाव के खर्चे का हिसाब पेश करने में विफलता, माल की आपूर्ति की संविदा में हित या अन्य सरकार के प्रति किसी कार्य का संपादन या सेवा किसी निगम में जिसमें सरकार 25% से अंश रखती हो लाभ का पद धारण करना, भ्रष्टाचार या सरकार के प्रति वफादारी के आधार पर सरकारी सेवा से बर्खास्तगी के कारण।

    कोई भी व्यक्ति संसद के दोनों सदनों का सदस्य नहीं हो सकता है, यदि कोई व्यक्ति संसद के दोनों सदनों का सदस्य निर्वाचित हो जाता है तो संसद विधि द्वारा यह बंधित करेगी तो उसका किस सदन का स्थान खाली किया जाएगा।

    इसी प्रकार कोई भी व्यक्ति संसद तथा किसी राज्य के विधान मंडल दोनों का एक साथ सदस्य नहीं हो सकता, यदि ऐसा व्यक्ति दोनों का सदस्य निर्वाचित हो जाता है तो ऐसी अवधि की समाप्ति पर जो राष्ट्रपति द्वारा बनाए गए नियम लिखित को संसद में उसका स्थान खाली हो जाएगा।

    संसद के सत्र

    राष्ट्रपति समय-समय पर संसद के प्रत्येक सदन को ऐसे समय और स्थान पर जैसा कि वह उचित समझे अधिवेशन के लिए आहूत कर करता है। एक सत्र की अंतिम बैठक और अगले सत्र की प्रथम बैठक के लिए नियुक्त तारीख के बीच से 6 महीने का अंतर नहीं होना चाहिए अर्थात 6 महीने के बाद सत्र बुलाना ही होता है।

    इस प्रकार 1 वर्ष में दो बार संसद का अधिवेशन बुलाया जाना आवश्यक है। राष्ट्रपति प्रधानमंत्री की सलाह पर संसद का अधिवेशन बुलाता है। अभी हाल ही के मामले में कोरोना संक्रमण काल के कारण संसद का सत्र 6 महीने तक स्थगित रखा गया। संसद के अधिवेशन की कार्यवाही नहीं जा सकती कि उसके जेल में बंद होने के कारण उसकी कार्रवाई से भाग लेने से वंचित कर दिया गया है।

    लोकसभा प्रत्येक आम चुनाव के पश्चात प्रथम सत्र के शुरू होने पर प्रत्येक वर्ष के पहले सत्र के आरंभ में एक साथ आहूत दोनों सदनों को राष्ट्रपति संबोधित करता है। संसद को उसके बुलाए जाने के कारणों को बताता है। राष्ट्रपति के अभिभाषण में उसके कारणों का उल्लेख रहता है।

    राष्ट्रपति संसद के किसी एक सदन को या साथ बुलाए गए दोनों सदनों को संबोधित करेगा तथा इस प्रयोजन के लिए सदस्यों की उपस्थिति की अपेक्षा करेगा। वह संसद में लंबित किसी विधायक या अन्य विषय के संबंध में किसी सदन को संदेश भेज सकता है।

    संसद के सत्र का उठाया जाना

    भारत का राष्ट्रपति संसद के सत्र को उठाता है अर्थात सत्रावसान करता है। स्थगन संसद के किसी विशेष सत्र को समाप्त करना है। स्थगन सदन की बैठक को समाप्त करता है। एक सत्र में कई बैठकें होती हैं।

    स्थगन स्वयं सदन का कार्य होता है जिसका प्रयोग स्पीकर या सभापति करता है। सत्रों के स्थगन का सदन में विचाराधीन अपूर्ण मामलों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। सदन ऐसे मामलों पर दूसरी बैठकों में विचार कर सकता है।

    संसद का समाप्त हो जाना

    संसद उसकी समय अवधि के समाप्त हो जाने पर समाप्त हो जाती है जिसके बाद नई लोकसभा के निर्माण के लिए निर्वाचन होना आवश्यक हो जाता है। राज्यसभा का गठन कभी नहीं होता है राज्यसभा एक सतत जारी रहने वाली प्रक्रिया है जिसके सदस्य चुनते रहते हैं और राज्यसभा बनी रहती है।

    स्थगन और विघटन में अंतर यह है कि सत्रवासन सदन के किसी विशेष सत्र को समाप्त करता है जबकि विघटन सदन को ही समाप्त कर देता है। लोकसभा को विघटन करने की शक्ति राष्ट्रपति में निहित है। भारत के संविधान का अनुच्छेद 85 यह कहता है कि राष्ट्रपति समय-समय पर लोकसभा का विघटन कर सकता है।

    इस मामले में राष्ट्रपति मंत्री परिषद के परामर्श से ही लोकसभा का विघटन करता है। जब तक प्रधानमंत्री को लोकसभा के बहुमत का विश्वास प्राप्त है राष्ट्रपति प्रधानमंत्री के परामर्श को मानने के लिए बाध्य है और वह उसके परामर्श से ही लोकसभा का खात्मा कर सकता है।

    यदि किसी विषय पर सरकार लोकसभा में पराजित हो जाती है तो प्रधानमंत्री स्वयं अपने मंत्रिमंडल का त्याग पत्र दे देगा यदि ऐसा नहीं करता है सरकार को अपदस्थ करके लोकसभा को समाप्त कर देगा।

    असल में संसद का विघटन नहीं होता है। राज्यसभा तो हमेशा बरकरार ही रहती है ऐसा कभी भी नहीं होता कि संसद के तीनों अंग राष्ट्रपति राज्यसभा और लोकसभा तीनों एक साथ समाप्त हो जाए, केवल लोकसभा 5 वर्ष की अवधि में समाप्त हो जाती है, राज्यसभा हमेशा बरकरार रहती है और राष्ट्रपति का चुनाव इन दोनों के बाद होता है।

    इस स्थिति में भारत की संसद के तीनों अंग कभी भी एक साथ समाप्त नहीं होतें है केवल लोकसभा का विघटन होता है।

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