भारत का संविधान ( Constitution of India): भारत में चुनाव सुधार और समितियां

Brij Nandan

10 April 2021 7:50 AM GMT

  • भारत का संविधान ( Constitution of India): भारत में चुनाव सुधार और समितियां

    भारत में अब तक 17 आम चुनाव हो चुके हैं। वैसे तो सभी चुनाव शांतिपूर्ण ढंग से बीते हैं, लेकिन कुछ चुनावों में कुछ ऐसी चीजें देखने को मिली हैं, जिससे जनता का चुनावों में आस्था कम हुआ है। चुनावों में काले धन, हिंसा, मतदान केंद्रों पर कब्जा करने की प्रवृत्तियां निरंतर बढ़ रही हैं। इसे सही समय रहते नियंत्रित करना आवश्यक है।

    इन्हीं सब चीजों को ध्यान में रखते हुए विभिन्न सरकार ने अपने कार्यकाल के दौरान चुनाव में सुधार करने का प्रयास किया। साल 1990 में दिनेश गोस्वामी की अध्यक्षता में गठित समिति ने चुनाव सुधारों की तरफ अपना ध्यान आकर्षित किया। इसके साथ ही मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य निर्वाचन आयुक्त(सेवा शर्तें) अधिनियम 1991 और लोक प्रतिनिधित्व (संशोधन) अधिनियम 1996 के अधिनियमन से समिति की अनेक सिफारिशें लागू हो गई हैं।

    संविधान विशेषज्ञ डॉ. लक्ष्मीमल्ल सिंघवी के अनुसार,

    "हमारे संविधान ने आधुनिक उदारवादी दर्शन के सार तत्व सार्वभौम वयस्क मताधिकार को अपनाया है, परंतु इसके पूरे अर्थ का उद्घाटन होना है; अभी इसे न्याय, स्वतंत्रता तथा क्षमता के उदात्त लक्ष्यों की सिद्धि का शासन बनाना शेष है। अगर हमें इस भव्य आदर्श को धरातल पर लाना है, तो हमारे लिए यह आवश्यक है कि हम अपने चुनाव प्रक्रिया से संबंधित त्रुटियों को पहचानें और इन त्रुटियों को दूर करने का प्रयास करें।"

    तारकुंडे समिति द्वारा चुनाव सुधार के लिए की गई सिफारिशें

    तारकुंडे समिति का उद्देश्य था कि स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों में बाधक धन की सत्ता और सत्ताधारी दल द्वारा सरकारी साधनों एंव प्रशासनिक व्यवस्था के दुरूपयोग पर प्रतिबंध लगाने, निर्वाचन आयोग की निष्पक्षता की व्यवस्था करने और चुनाव याचिकाओं की सुनवाई में होने वाले देरी को रोकने के लिए नीति का निर्माण करना।

    उनकी सिफारिशें निम्निलखित हैं:

    1. मतदान करने का अधिकार 21 वर्ष के बजाय 18 वर्ष की आयु में ही प्रदान किया जाए।

    2. आय के स्रोतों का उल्लेख तथा आय- व्यय का पूरा हिसाब देना समस्त राजनीतिक दलों के लिए अनिवार्य कर दिया जाना चाहिए और इसके साथ ही निर्वाचन आयोग द्वारा इसकी निष्पक्ष रूप से जांच करनी चाहिए।

    3. उम्मदवारों के चुनाव-खर्च के हिसाब की जांच कराई जानी चाहिए और राजनीतिक दलों द्वारा उम्मीदवारों पर किया जाने वाला खर्च उम्मीदवारों के हिसाब में जोड़ा जाए तथा चुनाव खर्च की वर्तमान सीमा को दोगुना कर दिया जाए।

    4. प्रत्येक उम्मीदवार को सरकार की ओर से छपे हुए मतदान-कार्ड नि:शुल्क दिए जाने चाहिए और इसके साथ ही प्रत्येक मतदाता के नाम का कार्ड बिना टिकीट लगाए डाक से भेजने की छूट दी जानी चाहिए।

    5. जो लोग राजनीतिक दलों को वर्ष में एक हजार रूपए दान देंगे, उन्हें इस राशि पर आयकर की छूट दी जाए और कंपनियों पर यह प्रतिबंध जारी रखा जाए कि वे राजनीतिक दलों को दान नहीं दे सकते हैं। कंपनियों द्वारा विज्ञापनों के रूप में राजनीतिक दलों को दी जाने वाली सहायता पर भी पाबंदी लगाई जाए।

    6. लोकसभा या विधानसभा के विघटन और नए चुनावों की घोषणा के बाद से सरकार कामचलाऊ सरकार की तरह काम करें।

    7. चुनाव के दौरान मंत्रिमंडल के सदस्य सरकारी खर्च पर यात्रा न करें। सरकारी सवारी और विमान उपयोग में न लाएं, उनकी सभाओं के लिए सरकारी मंच न बनाएं और उनके दौरों के सरकारी कर्मचारी तैनात न किए जाएं।

    8. आकाशवाणी के संबंध में चंदा समिति की रिपोर्ट पर अमल किया जाए और आकाशवाणी को निगम का रूप दिया जाए। जिस तरह से ब्रिटेन में बी.बी.सी पर राजनीतिक दलों को पिछले चुनावों में प्राप्त मतों का अनुपात में प्रचार का समय दिया जाता है, उसी प्रकार भारत में भी उन्हें रेडिओ और टेलीविजन पर समय दिया जाए।

    9. राज्यों में निर्वाचन आयोग स्थापित किया जाए। इसके साथ ही केंद्रीय निर्वाचन आयोग में एक के बजाय तीन सदस्य हों और उनकी नियुक्ति राष्ट्रपति केवल प्रधानमंत्री के परामर्श पर नहीं, बल्कि तीन सदस्यीय की एक कमेटी की सिफारिश पर किया जाए। इस कमेटी में प्रधानमंत्री, सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश और लोकसभा के विरोधी पक्ष का नेता या विरोध पक्ष का प्रतिनिधि हो।

    10. निर्वाचन आयोग की सहायता के लिए केंद्र और राज्यों में निर्वाचन परिषदें बनाई जाएं, जो उन्हें सलाह देने का काम करेंगी। इन परिषदों में विभिन्न राजनीतिक दलों के प्रतिनिधि होने चाहिए। इससे साथ ही 'मतदाता परिषद' को बनाया जाना चाहिए, जो निर्वाचन के समय होने वाले अनुचित कामों पर निगरानी रखेंगे।

    तारंकुडे समिति ने कुछ विवादास्पद मुद्दों पर स्पष्ट राय नहीं दी है। समिति ने लोक निर्णय और विधानसभा के सदस्यों के रिकॉल की मांग और आनुपातिक प्रतिनिधित्व एंव सूची प्रणाली को भी व्यावहारिक नहीं माना और समिति ने यह कहकर पल्ला झाड़ लिया है कि वह एक विवादास्पद विषय है, जिस पर राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा एंव चिंतन की आवश्यकता है।

    दिनेश गोस्वामी समिति के सुझाव

    मई 1990 में दिनेश गोस्वामी समिति ने निम्निलिखित सुझाव दिए हैं:

    1. निर्वाचन आयोग तीन सदस्यीय निकाय होना चाहिए। मुख्य निर्वाचन आयोग आयुक्त की नियुक्ति भारत के मुख्य न्यायाधीश और विपक्ष के नेता द्वारा की जानी चाहिए और अन्य सदस्यों की नियुक्ति मुख्य निर्वाचन आयुक्त से विचार-विमर्श करके की जानी चाहिए।

    2. मुख्य निर्वाचन आयुक्त और अन्य निर्वाचन आयुक्तों का कार्यकाल 5 वर्ष या 65 वर्ष की आयु तक होना चाहिए।

    3. 1981 की जनगणना के आधार पर नया परिसीमन करना चाहिए।

    4. किसी भी व्यक्ति को दो से अधिक निर्वाचन क्षेत्रों से चुनाव लड़ने की अनुमति नहीं मिलनी चाहिए।

    5. आदर्श आचार संहिता के महत्वपूर्ण प्रावधानों के लिए सांविधानिक समर्थन देना चाहिए और इसके साथ ही भविष्य में होने वाले सभी चुनावों में इलेक्टॉनिक मतदान मशीन का प्रयोग किया जाना चाहिए।

    6. मतदान केंद्रों पर कब्जा करने और मतदाताओं को प्रभावित करने और डराने-धमकाने को समाप्त करने के लिए विधायी उपाय करने चाहिए।

    7. मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों को एक निश्चित सीमा में राज्य की ओर से धनराशि मिलनी चाहिए।

    8. सभी चुनावी मुद्दों की जांच करने के लिए संसद की एक स्थायी समिति का गठना होना चाहिए।

    9. रिटर्निंग अधिकारी के रिपोर्ट के बिना पूरे निर्वाचन क्षेत्र या उसके किसी भाग में मतदान को रद्द करना और पुन: मतदान कराने का आदेश देने का अधिकार देना।

    10. किसी स्वतंत्र उम्मीदवार का निधन होने पर चुनाव रद्द कराया जाना चाहिए।

    11. मतदान की समाप्ति से 48 घंटे पहले चुनाव के संबंध में जुलूस या आम बैठकें करने की मनाही हो।

    12. किसी भी मतदान केंद्र पर मतदाताओं को नि:शुल्क ले जाने के लिए वाहनों को अवैध रूप से किराए पर लेने पर दण्ड का प्रावधान होना चाहिए।

    13. मतदान के दिन किसी औद्योगिक उपक्रम अथवा संस्थान के कर्मचारियों को वेतन के साथ छुट्टी मिलनी चाहिए।

    लोक प्रतिनिधित्व (संशोधन) अधिनियम, 1996 में चुनावी सुधार के लिए दिए गए सुझाव

    1. मतदाता सूची को तैयार करने संबंधी सरकारी ड्यूटी का उल्लंघन करने पर दंड को बढ़ाया जाना चाहिए।

    2. भारत के निर्वाचन आयोग द्वारा नियुक्त पर्यपक्षकों को सांविधानिक समर्थन देना और उन्हें यह अधिकार देना कि वे रिटर्निंग अधिकारी को यह निर्देश दे सकें कि यदि बहुत बड़े पैमाने पर मतदान केंद्रों पर कब्जा हुआ है तो भारत के निर्वाचन आयोग के निर्णय के लंबित रहने तक मतगणना और परिणाम की घोषणा रोक दी जाए।

    3. न्यूनतम प्रचार अवधि को घटाकर 14 दिन कर दिया जाना चाहिए।

    4. प्रतिभूति राशि को बढ़ाया जाना चाहिए और इसके साथ ही स्वतंत्र उम्मीदवार के मामले में प्रस्तावकों की संख्या 10 कर दी जानी चाहिए।

    5. एक उम्मीदवार को एक श्रेणी के दो से अधिक निर्वाचन क्षेत्रों से चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए।

    6. मतदान पत्र पर मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों के उम्मीदवारों के नाम स्वतंत्र उम्मीदवारों के नामों से पहले रखा जाना चाहिए।

    7. मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल के उम्मीदवार के निधन के मामले में भी चुनाव रद्द न किया जाए।

    8. चुनाव समाप्त होने से 48 घंटे पहले चुनाव संबंधी सार्वजनिक सभाओं और अन्य प्रकार से चुनाव प्रचार करने पर प्रतिबंध लगाने से संबंधित प्रावधान का विस्तार करना।

    9. चुनाव सभाओं में गड़बड़ी करने पर दंड को बढ़ाना और अपराध को संज्ञेय बनाना चाहिए।

    10. मतदान केंद्र से मतपत्रों के हटाने के अपराध के प्रावधान का विस्तार करना चाहिए।

    11. मतदान के दिन मतदान केंद्र पर और उसके नजदीक शस्त्र ले जाने पर प्रतिबंध लगाना और इसे चुनावी अपराध माना जाना चाहिए।

    12. मतदान केंद्रों पर कब्जा करने के अपराध का विस्तार करना चाहिए और इसके साथ ही इस अपराध को संज्ञेय बनाकर इसके लिए दंड बढ़ाया जाना चाहिए।

    13. छह महीने के भीतर उप-चुनाव कराया जाना चाहिए।

    14. मतदान समाप्त होने से 48 घंटे पूर्व शराब की बिक्री या वितरण पर प्रतिबंध लगाना।

    चुनावों सुधारों के प्रस्तावों पर चर्चा करने के लिए 22 मई, 1998 को राजनीतिक दलों की बैठक आयोजित की गई।

    इस बैठक में राजनीतिक दलों की ओर से लिए गए कुछ महत्वपूर्ण निर्णय;

    1. वर्तमान में संसदीय और विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों की संख्या जारी रहेगी जब तक कि वर्तमान संवैधानिक उपबंधों के अनुसार नया परिसीमन तय नहीं हो जाता है।

    2. एक प्रत्याशी को दो निर्वाचन क्षेत्रों से चुनाव लड़ने के लिए वर्तमान स्थिति को जारी रखना और फिलहाल इसे एक क्षेत्र तक सीमित नहीं किया जाएगा।

    3. भारत के निर्वाचन आयोग से अनुरोध किया जाए कि वह राजनीतिक दलों के परामर्श से आदर्श आचार संहिता की पुनरीक्षा करके उसको पुन: तैयार करें।

    4. इसके साथ ही निर्वाचन आयोग से यह भी अनुरोध किया जाए कि वह राजनीतिक दलों के परामर्श से चुनाव चिन्हों के आरक्षण और आवंटन के संबंध में अपने आदेश की पुनरीक्षा करें।

    5. मतदान को अनिवार्य न बनाया जाए।

    6. मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों को राज्य निधीयन उपलब्ध कराने के लिए ठोस उपायों का सुझाव देने और राजनीतिक दलों द्वारा लेखों के रख-रखाव तथा उनकी लेखापरीक्षा कराने, राजनीतिक दलों को कंपनियों द्वारा दिए जाने वाले चंदे पर प्रतिबंध लगाने, चुनाव खर्चों पर रोक लगाने के लिए प्रत्याशियों के चुनाव खर्च में खर्च की अधिकतम सीमा निर्धारित करने की शक्ति प्रदान करने संबंधि प्रस्तावों के संबंध में सिफारिश करने के लिए इंद्रजीत गुप्त, संसद सदस्य की अध्यक्षता में एक कमेटी के गठन करने का सुझाव दिया गया है।

    मुख्य निर्वाचन आयुक्त टी.एन शेषन ने चुनावों की खामियों को दूर करने के लिए कई कदम उठाए जैसे मतदाताओं को पहचान पत्र जारी करना, चुनावों में फिजूलखर्च रोकने के लिए पर्यवेक्षक तैनात करना, मतदान के पहले छह दिन पहले 'ड्राइ डे' घोषित करना आदि। इसके साथ ही जनप्रतिनिधित्व कानून में भी संशोधन किया गया ताकि मतदान में इलेक्ट्रॉनिक मतदान मशीनों का उपयोग किया जा सके।

    भारत में अभी भी चुनाव में कुछ कमियां हैं जिनमें सुधार की आवश्यकता है- जैसे जाली मतदान पर रोक, मतदाताओं की उपस्थिति सुनिश्चित करना, शासक दलों के प्रशासानिक तंत्र के दुरूपयोग पर रोक, राजनीतिक दल निर्वाचन आयोग पर दबाव न डालें, ऱाजनीति के अपराधीकरण पर रोक लगे और इसके साथ ही निर्वाचन याचिकाओं की जल्दी से सुनवाई करके मामलों को शीघ्र निपटाया जाना चाहिए।

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