Consumer Protection Act में फोरम के ऑर्डर्स का पालन करना

Shadab Salim

4 Jun 2025 10:12 AM IST

  • Consumer Protection Act में फोरम के ऑर्डर्स का पालन करना

    इस एक्ट की धारा 71 ने स्पष्ट कर दिया है कि किसी भी फोरम के सभी ऑर्डर का पालन किया जाएगा। धारा- 71 स्पष्ट करती है कि-

    जिला आयोग, स्टेट फोरम और नेशनल फोरम के आदेशों का प्रवर्तन जिला आयोग, स्टेट फोरम या नेशनल फोरम द्वारा किया गया प्रत्येक आदेश इसके द्वारा उस रीति में प्रवर्तित किया जाएगा, मानो वह कोर्ट में लंबित वाद में की गई डिक्री हो, और सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (1908 का 5) की पहली अनुसूची के आदेश 21 के उपबंध, यथाशक्य इस उपांतरण के अधीन रहते हुए लागू होंगे कि डिक्री के प्रति उसमें प्रत्येक निदेश का यह अर्थ लगाया जाएगा कि वह इस अधिनियम के अधीन किए गए आदेश के प्रति निर्देश है।

    पुरानी धारा 25 नई 71 के उपबंध यह प्रदान करते हैं जिला मंच नेशनल फोरम तथा राज्य आयोगों के आदेशों का क्रियान्वयन कैसे किया जाएगा। यह धारा यह प्रावधानित करती है कि जिला मंच, स्टेट फोरम एवं नेशनल फोरम के प्रत्येक आदेश जैसा भी हो उन्हीं न्यायालयों द्वारा आज्ञाप्ति या आदेश की भाँति क्रियान्वित किये जायेंगे तथा उन्हें इसका विधिक अधिकार होगा कि उन्हें उन न्यायालयों को भेजे जहाँ पर कि उन्हें क्रियान्वित करना है तथा जिसके क्षेत्राधिकार में आते हो

    (अ) किसी कम्पनी के विरुद्ध आदेश जहाँ पर कम्पनी की पंजीकृत कार्यालय स्थित हो वहाँ भेजा जायेगा।

    (ब) किसी व्यक्ति के विरुद्ध आदेश उस स्थान पर कि जहाँ वह व्यक्ति स्वेच्छा से निवास करता हो, व्यापार करता हो तथा कोई लाभ का कार्य कर रहा हो, स्थित हो भेजा जायेगा और उस पर वह कोर्ट जिसको आदेश दिया गया है। व्यवहार कोर्ट आज्ञाप्ति तथा आदेश की भाँति कार्य करेगा।

    अधिनियम की धारा 71 उपचारात्मक मंचो को यह विवेकाधिकार प्रदान करती है कि दे इन आदेशों को यदि असफल होते हैं तो डिक्री अथवा आदेश के इजरों की भांति कार्य करेगी। अधिनियम के कार्यक्रम के अन्तर्गत धारा 71 की यदि विशद् व्याख्या की जाय तो यह मालूम होगा कि यह उपचारात्मक मंचों की एक विवेकाधिकार देने वाली धारा है, जिसे वे सिविल कोर्ट की भाँति (यदि असफल होते हैं) उन्हें कार्य करेंगे।

    एक मामले में स्टेट फोरम को इस निष्कर्ष पर पहुंचने को दोषपूर्ण माना गया कि यह साबित करने के लिए अभिलेख पर कोई बात नहीं थी कि परिवादी अपनी जीविकोपार्जन के लिए मशीन का प्रयोग कर रहा था और इसलिए स्टेट फोरम के आक्षेपित निर्णय के विरुद्ध पुनरीक्षण को अनुज्ञात कर दिया गया और मामले को प्रतिप्रेषित कर दिया गया।

    सुमन लता बनाम आनन्द कान्सट्रक्सन दिल्ली प्रायवेट लिमिटेड 1993 के वाद में कहा गया है कि उपचारात्मक मंच अपने आदेशों के अनुपालन हेतु व्यवहार न्यायालयों को इजरा हेतु भेजने के अतिरिक्त आदेश न पालन करने पर या असफल रहने पर उस व्यक्ति को दोषसिद्ध करके सज़ा भी दे सकता है।

    पत्र की डिलीवरी में विलम्ब जहाँ पर कि इस प्रकार का कोई आरोप नहीं है कि क्षति किसी फर्जी डाक कर्मचारी द्वारा पत्र की देरी या पत्र न देने के कारण हुई है। डाकखाने द्वारा प्रदत्त सेवाएं संविधिक हैं न कि संविदात्मक। डाकखाना को किसी सामान्य वाहन से तुलना नहीं की जानी चाहिए। दावेदार को क्षतिपूर्ति एवार्ड करते समय मंच की धारा 27 के अन्तर्गत यह भी आदेश पारित किया कि उसमें निश्चित अवधि के अन्दर उसने धन अदा नहीं किया।

    इस प्रकार के मिश्रित आदेश अधिनियम के अन्तर्गत गठित विभिन्न मंचों को इस प्रकार का आदेश पारित नहीं करना चाहिए। अधिनियम की धारा 25 एवं 27 के अन्तर्गत आदेश पारित करने के पूर्व दोषी पक्ष को कारण बताने के लिए कि क्यों न इस प्रकार का आदेश पारित कर दिया जाय का अवसर प्रदान किया जाना चाहिए। पक्षकार एक वाजिव कारण बता सकते हैं उन सारे आधारों को विचार करते हुए मंच को एक उचित आदेश पारित करना चाहिए।

    उपभोक्ता फोरम के आदेश को निष्पादन करने की शक्ति सिविल कोर्ट को उस स्थिति में प्राप्त होगी जब उसको इसे निष्पादन हेतु उपभोक्ता फोरम द्वारा उसे भेजा जाए अन्यथा उसे उपभोक्ता फोरम के आदेश को निष्पादित करने की अधिकारिता नहीं होगी।

    प्रतिकर प्रदान करके इसके भुगतान के बारे में निर्देशित किया जा सकता है। निर्देश के अनुसार यदि प्रतिकर का भुगतान नहीं किया जाता तो अधिनियम की धारा 25 एवं 27 के अन्तर्गत निष्पादन सम्बन्धी कार्यवाही की जा सकेगी।

    जहां अधिनिर्णीत रकम का संदाय 5 विरोधी पक्षकारों द्वारा संयुक्त रूप से तथा पृथक तौर पर किया जाना चाहिए या वहां एक मात्र विरोधी पक्षकार-1के ही विरुद्ध अजमानतीय वारण्ट जिला फोरम द्वारा जारी किया जाना न्यायसंगत नहीं माना गया।

    जहां उपभोक्ता सम्बन्धी मामला 2002 में दाखिल किया गया और गैर जमानतीय वारष्ट जारी किया वहां जब ऐसे आदेश के विरुद्ध अपील दाखिल की गयी. तब कथित अपील को पोषणीय माना गया।

    संयुक्त आवेदन पत्र की पोषणीयता यदि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की पुरानी धारा 25 एवम् 27 के अधीन आवेदन पत्र संयुक्त रूप से दाखिल किया जाय तो वह पोषणीय होगा।

    पुनरीक्षण निर्णय के अन्तिम होने के बाद निष्पादक कोर्ट मात्र निर्णय को प्रवर्तित कर सकता है, न कि उसमें संशोधन कर सकता है।

    जब एक समान रूप से प्रभावी उपचार आक्षेपित आदेश के विरुद्ध अपील द्वारा प्रदान किया गया तब इन परिस्थितियों के अधीन वर्तमान पुनरीक्षण याचिकाएं पोषणीय नहीं गयी।

    निष्पादन आवेदन पत्र का खारिज किया जाना जहां कनेक्शन काट दिये जाने का आदेश पारित किये जाने के पश्चात् एक नयावाद हेतुक नये परिवाद को दाखिल करने के लिए परिवादी के लिए उद्भूत हुआ, वहां आयोग के किसी ऐसे आदेश के निष्पादन का कोई प्रश्न ही नहीं उद्भूत हुआ।

    अधिनिर्णय का प्रवर्तन अधिनिर्णय का प्रवर्तन कम्पनी के निर्देश का दायित्व होता है।

    चूंकि यह साबित करने के लिए कोई दस्तावेजी साध्य नहीं था कि विकासकर्ता को ही आवासन सोसाइटी के सदस्यों को आवंटन कराना पड़ता है इसलिए अपील के निष्पादन को अनुज्ञात कर दिया गया जबकि आवासन सोसाइटी की बाबत स्टेट फोरम के शेष आदेश को अनुज्ञात कर दिया गया।

    दिनेश कुमार पालीवाल बनाम टूडे डोम्स एण्ड इन्फास्ट्रचर प्रा लिमिटेड 2019 के वाद में कहा गया है कि यदि उपभोक्ता फोरम के आदेश का अनुपालन करने में सद्भावना का अभाव पाया जाता है तो विरोधी पक्षकार को अभिरक्षा में लिया जा सकेगा और उसकी सम्पत्ति कुर्क की जा सकेगी।

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