सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 भाग 27: संपत्ति की कुर्की

Shadab Salim

18 April 2022 4:24 AM GMT

  • सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 भाग 27: संपत्ति की कुर्की

    सिविल प्रक्रिया संहिता,1908 (Civil Procedure Code,1908) की धारा 60 कुर्की से संबंधित धारा है। यह धारा संहिता की महत्वपूर्ण धारा है। कुर्की एक प्रसिद्ध शब्द है, जहां किसी कर्जदार से वसूली के लिए उसकी संपत्ति को न्यायालय कुर्क करता है, फिर उसकी बोली लगाकर लेनदार को अदायगी करवाई जाती है।

    हालांकि कुर्की केवल कर्ज़ के मामले में नहीं अपितु प्रत्येक निर्णीत ऋणी के विरुद्ध की जा सकती है। इस आलेख के अंतर्गत कुर्की से संबंधित धारा 60 पर विस्तृत विवेचन किया जा रहा है।

    धारा 60 इस बात का उपबन्ध करती है कि धन के भुगतान के लिये पारित की गयी डिक्री के निष्पादन में कौन सी सम्पत्ति कुर्क और विक्रय की जा सकेगी और कौन सी सम्पत्ति कुर्क और विक्रय नहीं की जा सकेगी।

    इस धारा के उपबन्ध सम्पत्ति अन्तरण अधिनियम, 1882 की धारा 6 की भाँति है जो यह बताती है कि किस प्रकार की सम्पत्ति का अन्तरण हो सकता है और कौन-कौन सी सम्पत्ति का अन्तरण नहीं हो सकता है। दोनों में अन्तर यह है कि प्रत्येक सम्पत्ति जिसका अन्तरण सम्पत्ति अन्तरण अधिनियम के अन्तर्गत हो सकता है, उस सम्पत्ति की कुर्की संहिता की धारा 60 के अधीन नहीं हो सकती।

    यह धारा किसी विशेष या स्थानीय विधि को प्रभावित नहीं करती जिसके अधीन, उस सम्पत्ति को कुर्की से छूट मिली है, जिसे धारा 60 के अन्तर्गत कुर्क किया जा सकता है।

    यह धारा बन्धक-डिक्री पर भी लागू नहीं होगी। डिक्री शब्द का तात्पर्य इस धारा के अधीन धन-डिक्री या धन के संदाय की डिक्री से है। बन्धक डिक्री से नहीं कि जिसके निष्पादन के लिये कुर्की की आवश्यकता नहीं है।

    यह धारा निर्णय के पूर्व कुर्की (attachment before judgment) पर लागू नहीं होती क्योंकि वह डिक्री के निष्पादन में कुर्की नहीं है।

    धन की वसूली के लिये वाद में डिक्री मृत व्यक्ति के विधिक प्रतिनिधियों के विरुद्ध पारित की गई। प्रश्न ऐसी डिक्री के निष्पादन का था। डिक्री के निष्पादन में डिक्री धारक ऐसे प्रतिकर (compensation) कुर्क कराना चाहता था जो मृतक के मोटर दुर्घटना में मृत्यु के परिणामस्वरूप मोटर दावा अधिकरण ने प्रदान किया था।

    ऐसी स्थिति में मद्रास उच्च न्यायालय ने के० अय्या स्वामी बनाम मोहन सुन्दरी एवं अन्य में यह अभिनिर्धारित किया कि ऐसा प्रतिकर मृतक की सम्पदा का भाग नहीं है और डिक्री धारक द्वारा मृतक को सम्पदा के विरुद्ध डिक्री में कुर्क नहीं कराया जा सकता।

    विक्रय योग्य सम्पत्ति इस धारा के अधीन प्रत्येक वह सम्पत्ति जिसकी कुर्की हो सकती है, यह सम्पत्ति "विक्रय योग्य सम्पत्ति (saleable property) होनी चाहिये। विक्रय योग्य सम्पत्ति से तात्पर्य उस सम्पत्ति से है जिसे अनिवार्य बिक्री (compulsory sale) में न्यायालय नीलाम कर सके।

    किसी भी सम्पत्ति के बिक्री योग्य होने के लिये निम्र शर्तों का पूरा होना आवश्यक है-

    (1) सम्पत्ति विद्यमान ( In existence) होनी चाहिये। भविष्य में होने वाली या अनिश्चित लाभ बिक्री योग्य सम्पत्ति की परिभाषा में नहीं आयेगा।

    (2) सम्पत्ति अन्तरण योग्य होनी चाहिये। किसी मकान में रहने का अधिकार एक व्यक्तिगत अधिकार है और वह अन्तरणीय नहीं है। अत: धारा 60 के अधीन विक्रय योग्य नहीं है यहाँ यह स्पष्ट होना आवश्यक है कि इस धारा के अधीन जो सम्पत्ति कुर्क की जायेगी और जिसकी बिक्री की जायेगी यह निर्णीत-ऋणी की होनी चाहिये।

    व्ययन अधिकार (Disposing power) यह सम्भव है कि कोई सम्पत्ति निर्णीत ऋणी की न हो परन्तु उस सम्पत्ति पर उसे व्ययन अधिकार प्राप्त हों, जिसका उपयोग वह अपने लाभ के लिये कर सकता हो ऐसी सम्पत्ति धारा 60 के अधीन कुर्क की जा सकती है और बेची भी जा सकती है। उदाहरणस्वरूप एक हिन्दू पिता कुछ परिस्थितियों में अपने व्यक्तिगत ऋण की अदायगी के लिये सम्पूर्ण संयुक्त परिवार की सम्पत्ति पर व्ययन का अधिकार रखता है।

    अतः ऐसी सम्पत्ति को धारा 60 के अधीन कुर्क किया जा सकता है 'अ' एक लिफाफा जिसमें रुपये भरे हैं, पोस्ट आफिस को भेजता है कि वह लिफाफा (पोस्ट आफिस) 'ब' को परिदान (deliver) करे क्या उस लिफाफे को जो कि अभी भी पोस्ट आफिस में है, 'ब' का ऋणदाता कुर्क करा सकता है? यह निर्णय दिया गया कि उसे कुर्क कराया जा सकता है क्योंकि 'ब' को उस पर व्ययन का अधिकार प्राप्त है। जब एक बार लिफाफा पोस्ट आफिस को दे दिया जाता है तो उसमें का धन प्रेषितों में निहित हो जाता है

    बाम्बे उच्च न्यायालय के पूर्णपीठ के टी ई एस पप्रायवेट लिमिटेड बनाम इण्डियन केमिकल्स में के निर्णय के अनुसार एक अभिधारी (किरायेदार) का एक गैर आवासीय परिसर में अधिभोग (occupation) बने रहने का अधिकार (जिस पर महाराष्ट्र भाटक नियंत्रण अधिनियम लागू होता है) एक सम्पत्ति है, ऐसी ) में सम्पत्ति बिक्री योग्य है, अभिधारी को उस पर व्ययन का अधिकार है। अतः ऐसे अभिधारों का गैर आवासीय परिसर में अधिभोग के बने रहने का हित (अधिकार) अभिधारों के विरुद्ध एक डिक्री के निष्पादन में कुर्की योग्य और विक्रय योग्य है।

    कुर्क की जाने वाली सम्पत्ति-

    यहाँ उन सभी सम्पत्तियों का ब्यौरा देना कठिन है जिसे धारा 60 के अधीन कुर्क किया जा सकता है। परन्तु उदाहरणस्वरूप कुछ सम्पत्ति अवश्य गिनाई जा सकती है। भूमि, गृह, माल, धन, बैंक, नोट, चैक, विनिमय पत्र, हुंडी वचन-पत्र, सरकारी प्रतिभूतियाँ, धन के लिये बन्ध-पत्र या अन्य प्रतिभूतियों, ऋण, निगम, अंश तथा वे सभी बल या अचल सम्पति जो निर्णीत ऋणी को है एवं जिसके लाभों पर वह ऐसी व्ययन शक्ति रखता है जिसे वह अपने फायदे के लिये उपयोग कर सकता हो।

    सम्पत्ति जो कुर्क नहीं की जा सकती

    जहाँ उपरोक्त लिखित वस्तुओं को कुर्क किया जा सकता है। और उनकी बिक्री की जा सकती है वहां पर निम्रलिखित वस्तुओं को कुर्क और विक्रय नहीं किया जा सकती-

    (1) निर्णोत- ऋणी उसकी पत्नी और बच्चों के पहनने के आवश्यक वस्त्र, भोजन पकाने के बर्तन, चारपाई और बिछौने और ऐसी निजी आभूषण जिन्हें कोई स्त्री धार्मिक प्रथा के अनुसार अपने से अलग नहीं कर सकती जैसे विवाह की अंगूठी, मंगल-सूत्र आदि।

    (2) शिल्पी के औजार, शिल्पी को परिभाषा में सुनार, लुहार, बढ़ई आदि आते हैं। अतः उन लोगों के औजार कुर्की से मुक्त हैं। औजार शब्द के अन्तर्गत न केवल सारे औजार शामिल हैं बल्कि जटिल यान्त्रिक उपकरण भी शामिल हैं जैसे कटिंग प्रेस, प्लेटों को तैयार करने को मशीन और सुनारों द्वारा उपयोग में लाये जाने वाले उप्पे जिन्हें कारीगर या दस्तकार उपयोग में लाते हैं।

    अगर निर्णीत-ऋणी कृषक हैं तो उसके कृषि के उपकरण, जैसे हल-बैल बोज, खुरपी, फावड़ा चक्र, कढ़ाई, लकड़ी का पल्ला या तख्ता जो कृषक गन्ने का रस निकालने में उपयोग करता है या गुढ़ बनाने में उपयोग करता है।

    नागपुर उच्च न्यायालय के सालिकराम बनाम शिवप्रताप नामक बाद में निर्णय के अनुसार मोटर ट्रैक्टर कृषि के उपकरण की परिभाषा में नहीं आता, क्योंकि वह खेती के लिये अपरिहार्य (indispensable) नहीं है। परन्तु अब नियम प्रासंगिक नहीं रह गया है। यह प्रश्न कि क्या पम्पिंग सेट खेतों के उपकरण में आता है या नहीं और पुन: यह कुर्की से मुक्त है कि नहीं, इस प्रश्न का उत्तर उच्चतम न्यायालय ने शांति देवी बनाम स्टेट आफ यू पी में खुला छोड़ दिया।

    यहाँ यह प्रश्न स्वाभाविक रूप से उठ सकता है कि कृषक किसे कहते हैं? कृषक शब्द की परिभाषा धारा 60 का स्पष्टीकरण (5) में है, स्पष्टीकरण की भाषा में "कृषक" शब्द से ऐसा अभिप्रेत है जो स्वयं खेती करता है और जो अपनी जीविका के लिये मुख्यतः कृषि भूमि की आय पर निर्भर है चाहे स्वामी के रूप में या अभिधारी (tenant), भागीदार (partner) या कृषि श्रमिक के रूप में।

    किस कृषक को स्वयं खेती करने वाला समझा जायेगा

    स्पष्टीकरण की मूल भाषा में : "स्पष्टीकरण 5 के प्रयोजनों के लिये, कोई कृषक स्वयं खेती करने वाला समझा जायेगा, यदि वह )

    (क) अपने श्रम द्वारा, अथवा

    (ख) अपने कुटुम्ब के किसी सदस्य के श्रम द्वारा, अथवा

    (ग) नकद या वस्तु के रूप में (जो उपज का अंश न हो) या दोनों में संदेय मजदूरियों पर सेवकों या श्रमिकों द्वारा खेती करता है।

    (3) किसी कृषक या श्रमिक या घरेलू नौकर के मकान या भवन, मकान या भवन के लिये भूमि, मकान या भवन-सामग्री, मकान या भवन से संलग्न भूमि जो, उसके उपयोग के लिये आवश्यक है।

    केवल वही 'कृषक' जो धारा 60 (1) (ग) में दी गई कृषक की परिभाषा के अन्तर्गत आता है वहीं अपने मकान या भवन को कुर्की से उन्मुक्ति या छूट माँग सकता है। अतः जहाँ ऋणी याचिकाकर्ता अपने मकान का " कृषि कार्यों से सम्बन्ध स्थापित करने में असफल रहता है, वहाँ वह अपने मकान की कुर्की से उन्मुक्ति का लाभ नहीं प्राप्त कर सकता है। ऐसा निर्णय आन्ध्र प्रदेश उच्च न्यायालय ने परचूरू नरसिम्हा राव बनाम नुने पाण्डुरंगा राव' नामक वाद में दिया है।

    यह तर्क कि निर्णीत-ऋणी एक कृषक है और उसकी सम्पत्ति धारा 60 (1) (ग) की वर्जना में कुर्क नहीं की जा सकती वहाँ नहीं मानी जायेगी जहाँ निर्णीत-ऋणी के विधिक प्रतिनिधि, कृषक, श्रमिक घरेलू नौकर नहीं है। धारा 60 (1) (ग) के अन्तर्गत जो अधिकार कृषक, श्रमिक या घरेलू नौकर को उपलब्ध है, वह व्यक्तिगत अधिकार है।

    न तो यह अधिकार उत्तराधिकार योग्य है और न हो अन्तरणीय है। इस अधिकार का प्रवर्तन केवल उस व्यक्ति के जीवनकाल में किया जा सकता है जो ऐसे अधिकार के दावे का हकदार है, और उसकी मृत्यु के पश्चात् कथित अधिकार समाप्त हो जाता है।

    यहाँ श्रमिक की परिभाषा में कोई भी कुशल, अकुशल या अर्धकुशल श्रमिक आता है।

    (4) लेखा-बहियाँ

    (5) "नुकसानी के लिये वाद लाने का अधिकार मात्र अन्तःकालीन लाभ नुकसानी को प्रकृति का माना जाता है। अंतः अन्तःकालीन लाभ के लिये वाद लाने का अधिकार नुकसानी का अधिकार माना जाता है। अतः ऐसे अधिकार को डिक्री के निष्पादन में कुर्क नहीं किया जा सकता और न ही उसे बेचा जा सकता है

    (6) वैयक्तिक सेवा कराने का कोई अधिकार अगर किसी को वृत्ति (vritti) प्राप्त होती है तो उसे धारा 60 के अधीन कुर्क नहीं किया जा सकता है। वृत्ति के अधिकार से तात्पर्य ऐसे वेतन से है जो किसी को व्यक्तिगत सेवाओं के उपलक्ष में प्रदान किया जाता है। जैसे पुजारी को मन्दिर में पूजा करने के उपलक्ष्य में अगर कुछ वेतन दिया जाता है या पारिश्रमिक दिया जाता है तो वह वृत्ति कहलाता है और उसे कुर्क नहीं किया जा सकता। लेकिन पुजारी को अगर उत्पत्त (utpat) या देवता को जो चढ़ावा चढ़ता है उसके शुद्ध भाग (net balance) में हिस्सा मिलता है तो वह कुर्क किया जा सकता है।

    (7) वे वृत्तिकायें या वृत्तियाँ (stipend) और उपादान (gratuities) जो सरकार के या किसी स्थानीय प्राधिकारों के या किसी अन्य नियोजन के पेंशन भोगियों को अनुज्ञात हैं या ऐसी किसी सेवा कुटुम्ब पेंशन निधि (sc.vice family pension fund) में से जो केन्द्रीय या राज्य सरकार द्वारा रापजत्र में अधिसूचना द्वारा इस निमित्त अधिसूचित की गई है, संदेय है और राजनैतिक पेंशन 6 यदि पेंशन और उपादान जो प्राप्त हुआ है उसे नियतकालिक निक्षेप रसीदों (F.D.R) में बदल दिया गया है तो भी उसे धारा 60 के अन्तर्गत कुर्क नहीं किया जा सकता।

    उपादान से तात्पर्य एक प्रकार के बोनस से है जो किसी कर्मचारी को उसकी पिछली सेवाओं के उपलक्ष्य में दिया जाता है। यह ऐसे व्यक्ति को भी प्रदान की जा सकती है जिसे वृति (pension) प्राप्त नहीं होती है या उसे पेंशन के अतिरिक्त दिया जा सकता है।

    परन्तु ध्यान रहे ऐसे उपादान की धनराशि जो मृत कर्मचारी को देय है और उसके विधिक उत्तराधिकारी को भुगतान किया जाना है, वह कुर्कों से मुक्त नहीं है। ऐसा निर्णय केरल उच्च न्यायालय ने सत्यपथी बनाम भार्गवी' नामक बाद में दिया है।

    (8) श्रमिकों और घरेलू नौकरों को मजदूरी चाहे वह धन में या वस्तु के रूप में संदेय हो। मजदूरी के अन्तर्गत बोनस भी शामिल है।कर्नाटक उच्च न्यायालय के शिवगमनम बनाम रामलाल' नामक वाद में निर्णय के अनुसार एक ड्राफ्टमैन (draftsman) इस उपधारा (उपधारा 'ज') का लाभ पाने का अधिकारी नहीं है।

    (9) भरण-पोषण की डिक्री से भिन्न किसी डिक्री के निष्पादन में वेतन के प्रथम एक हजार रुपये और बाकी का दो तिहाई। उदाहरण के लिये, अगर किसी का वेतन पाँच हजार रुपये है तो जो धन कुर्क नहीं हो सकता, वह होगा प्रथम 1000 रुपया और बाकी का दो तिहाई अर्थात 2667 रुपया कुर्की से मुक्त होगा। दूसरे शब्दों में, वेतन का वह हिस्सा जो कुर्क हो सकता है वह है 1333 रुपया है।

    (10) भरण-पोषण की डिक्री के निष्पादन में वेतन का एक तिहाई।

    लेकिन यहाँ ध्यान देना आवश्यक है कि वेतन में बोनस भी सम्मिलित होता है। कुशल और अर्धकुशल श्रमिक का बोनस कुर्क नहीं किया जा सकता है।

    केरल उच्च न्यायालय के अनुसार जब किसी के वेतन से प्राबोडेन्ट फन्ड, फेमिली पेंसन फंड और जीवन बीमा प्रीमियम के निमित्त कटौती की जाती है, तो ऐसी कटौती की पूरी रकम को कुर्की से छूट नहीं प्राप्त है अपितु उस रकम को छूट प्राप्त है जो कटौती के फलस्वरूप इकट्ठी की जाती है और हिताधिकारी के जमाखाता (credit) में धारित की जाती है।

    फ्लोरेन्स मैवेल आर जे बनाम स्टेट आफ केरल में केरल उच्च न्यायालय ने अभिनिर्धारित किया कि जहाँ प्रत्याभूति दाता ने ऋणों के भुगतान करने में असफल रहने पर किस्त के भुगतान के लिये संयुक्त रूप से और पृथक्-पृथक् दायी होना स्वीकार किया है, वहाँ प्रत्याभूति दाता के वेतन को ऐसी परिस्थितियों में कुर्क करना उचित है।

    किसी बैंक कर्मचारी का वेतन कुर्कों से मुक्त नहीं है। बैंक का कोई कर्मचारी इस नाते सरकारी कर्मचारी या सेवक नहीं हो जाता कि बैंक का स्वामित्व और नियंत्रण सरकार के हाथ में है।

    जहाँ बैंक कर्मचारों को पूरा वेतन जीवन निर्वाह भत्ता के रूप में दिया जाता है वहाँ ऐसे वेतन को मिथ्या नाम (misname) के आधार पर कुर्की से छूट नहीं प्राप्त है (5 धारा 60 (झ) का परन्तुक यह स्पष्ट रूप से कहता है कि जब एक बार एक कर्मचारी का वेतन लगातार 24 महीने तक कुर्की के अधीन रहा है, वहां उसी डिक्री के अन्तर्गत वेतन की पुनः कुर्की नहीं हो सकती।

    अतः पुनः कुर्की प्रतिबन्धित है। परन्तु दूसरी डिक्री के अन्तर्गत कुर्की एक वर्ष बीत जाने पर अनुज्ञेय है 17 (11) ऐसे व्यक्तियों के वेतन और भत्ते जिन पर वायुसेना अधिनियम, 1950 या सेना अधिनियम 1950 या नौसना अधिनियम, 1957 लागू है। दूसरे शब्दों में सेना, वायुसेना और नौसेना के सैनिकों के वेतन और भने कुर्की-मुक्त हैं।

    (12) सभी प्रकार के ऐसे निक्षेप या अन्य राशियाँ जो ऐसी निधि से प्राप्त को गई हैं या निधि में डाली गई हैं जिन पर भविष्य निधि अधिनियम, 1925 तत्समय लागू है : परन्तु ध्यान रहे जब भविष्य निधि की धनराशि कर्मचारों को प्राप्त हो जाती है तो वह कुर्कों से मुक्त नहीं है। जब भविष्य निधि कर्मचारी के खाते में (बैंक खाते में जमा हो जाती है तो डिक्री के निष्पादन में ऐसो रकम को कुर्क किया जा सकता है।

    (13) सभी प्रकार के ऐसे निक्षेप या अन्य राशियाँ जो ऐसी निधि से प्राप्त की गई हैं या उनमें डाली गई है जिस पर लोक भविष्य निधि अधिनियम, 1968 लागू होता है।

    (14) निर्णीत ॠणी के जीवन पर बोमा पालिसी के अधीन संदेय सभी धन

    (15) किसी निवास गृह के पट्टेदार का हित

    (16) किसी सरकारी सेवक को प्राप्त कोई भत्ता जो उसके वेतन का भाग है, अगर उपयुक्त या समुचित सरकार राजपत्र में अधिसूचना जारी करके घोषित करे कि ऐसे भत्ते को कुर्कों से छूट प्राप्त है। किसी सरकारी सेवक को निलम्बन काल में दिया गया जीवन निर्वाह अनुदान या भत्ता |

    (17) उत्तरजीविता (survivorship) द्वारा उत्तराधिकार को प्रत्याशा (expectancy of succession) अथवा अन्य मात्र सम्भावित या सम्भव अधिकार हित।

    (18) भावी भरण-पोषण के अधिकार को तो कुर्क नहीं किया जा सकता किन्तु भरण-पोषण की बकाया रकम (arrears of maintenance allowance) को कुर्क किया जा सकता है

    (19) ऐसा भत्ता, जिसके बारे में किसी भारतीय विधि ने यह घोषित किया है कि वह डिक्री के निष्पादन में कुर्की या विक्रय के दायित्व से छूट प्राप्त है।

    (20) जहाँ निर्णीत-ऋणी कोई ऐसा व्यक्ति है जो भूराजस्व संदाय के लिये दायी है, वहाँ कोई ऐसी जंगम सम्पत्ति जो ऐसे राजस्व की बकाया वसूलों के लिये किये जाने वाले विक्रय से किसी विधि के अन्तर्गत जो उस समय लागू है, छूट प्राप्त है।

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