सिविल प्रक्रिया संहिता,1908 आदेश भाग 9: आदेश 3 नियम 4 में प्लीडर की नियुक्ति से संबंधित प्रावधान
Shadab Salim
23 Oct 2023 9:47 AM IST
सिविल प्रक्रिया संहिता,1908(Civil Procedure Code,1908) के आदेश 3 के नियम 4 में प्लीडर की नियुक्ति से संबंधित प्रावधान हैं। एक प्लीडर की नियुक्ति कैसे होगी और उसके द्वारा किस प्रकार कार्य किया जाएगा यह प्रावधान इस नियम में दिए गए हैं। यह नियम इस आदेश का महत्वपूर्ण नियम है। इस आलेख के अंतर्गत नियम 4 पर विस्तृत चर्चा की जा रही है।
यह संहिता में नियम चार के दिए गए शब्द हैं-
नियम-4 प्लीडर की नियुक्ति
(1) कोई भी प्लीडर किसी भी न्यायालय में किसी भी व्यक्ति के लिए कार्य नहीं करेगा जब तक कि वह उस व्यक्ति द्वारा ऐसी लिखित दस्तावेज द्वारा इस प्रयोजन के लिए नियुक्त न किया गया हो जो उस व्यक्ति द्वारा या उसके मान्यता प्राप्त अभिकर्ता द्वारा या ऐसी नियुक्ति करने के लिए मुख्तारनामे द्वारा या उसके अधीन सम्यक् रूप से प्राधिकृत किसी अन्य व्यक्ति द्वारा हस्ताक्षरित है।
(2) हर ऐसी नियुक्ति 50 (न्यायालय में फाइल की जाएगी और उपनियम (1) के प्रयोजनों के लिए] तब तक प्रवृत्त समझी जाएगी जब तक वह न्यायालय की इजाजत से ऐसे लेख द्वारा पर्यवसित न कर दी गई हो जो यथास्थिति, मुवक्किल या प्लीडर द्वारा हस्ताक्षरित है और न्यायालय में फाइल कर दिया गया है या जब तक मुवक्किल या प्लीडर की मृत्यु न हो गई हो या जब तक बाद में की उस मुवक्किल से संबंधित समस्त कार्यवाहियों का अन्त न हो गया हो।
[स्पष्टीकरण - इस उपनियम के प्रयोजनों के लिए, निम्नलिखित को वाद में की कार्यवाही समझा जाएगा- (क) वाद में डिक्री या आदेश के पुनर्विलोकन के लिए आवेदन, (ख) वाद में की गई डिक्री या आदेश के सम्बन्ध में इस संहिता की धारा 144 या धारा 152 के अधीन आवेदन (ग) वाद में की किसी डिक्री या आदेश की अपील, और (घ) वाद में पेश की गई या फाइल की गई दस्तावेजों की प्रतियां या उन दस्तावेजों की वापसी अभिप्राप्त करने या वाद के सम्बन्ध में न्यायालय में जमा किए गए धन का प्रतिदाय अभिप्राप्त करने के प्रयोजन के लिए आवेदन या कार्य।
[ (3) उपनियम (2) की किसी बात का यह अर्थ नहीं लगाया जाएगा कि वह
(क) प्लीडर और उसके मुवक्किल के बीच उस अवधि का विस्तार करती है जिसके लिए प्लीडर मुकर्रर किया गया है, या (ख) उस न्यायालय से भिन्न जिसके लिए प्लीडर मुकर्रर किया गया था, किसी न्यायालय द्वारा जारी की गई किसी सूचना या दस्तावेज को प्लीडर पर उस दशा को छोड़कर तामील करना प्राधिकृत करती है जिसमें मुवक्किल उपनियम (1) में निर्दिष्ट दस्तावेज में ऐसी तामील के लिए अभिव्यक्त रूप से सहमत हो गया है।
(4) उच्च न्यायालय साधारण आदेश द्वारा यह निदेश दे सकेगा कि जहां वह व्यक्ति जिसके द्वारा प्लीडर नियुक्त किया जाता है, अपना नाम लिखने में असमर्थ है वहां प्लीडर को नियुक्त करने वाली दस्तावेज पर उसका चिह्न ऐसे व्यक्ति के द्वारा और ऐसी रीति से अनुप्रमाणित किया जाएगा जो उस आदेश द्वारा विनिर्दिष्ट की जाए।
(5) जो कोई प्लीडर केवल अभिवचन करने के प्रयोजन से मुकर्रर किया गया है वह किसी पक्षकार की ओर से तब तक अभिवचन नहीं करेगा जब तक उसने स्वहस्ताक्षरित और निम्नलिखित का कथन करने वाला उपसंजाति का ज्ञापन न्यायालय में फाइल न कर दिया हो. -
(क) वाद के पक्षकारों के नाम, (ख) उस पक्षकार का नाम, जिसके लिए वह उपसंजात हो रहा है, तथा (ग) उस व्यक्ति का नाम जिसके द्वारा वह उपसंजात होने के लिए प्राधिकृत किया गया है।
परन्तु इस उपनियम की कोई भी बात ऐसे किसी प्लीडर को लागू नहीं होगी जो किसी पक्षकार की ओर से अभिवचन करने के लिए ऐसे किसी अन्य प्लीडर द्वारा मुकर्रर किया गया है जिसे ऐसे पक्षकार की ओर से न्यायालय में कार्य करने के लिए सम्यक रूप से नियुक्त किया गया है।
आदेश 3 के नियम 4 में अधिवक्ता (प्लीडर) की नियुक्ति और नियम 5 में प्लीडर पर आदेशिका को तामील की व्यवस्था की गई है। शब्द प्लीडर की परिभाषा धारा 2 (15) में दी गई है।
अधिवक्ता की नियुक्ति
अधिवक्ता एक विधि व्यवसायी होता है, जो पक्षकारो का केवल प्रतिनिधि या अभिकर्ता हो नहीं होता, वह न्यायालय का अधिकारी भी होता है, जो न्याय प्रशासन में न्यायालय की सहायता करता है। वकालतनामा में प्रयुक्त शब्द पैरवी में अभिवचन तथा कार्य करना (act & plead) दोनों सम्मिलित हैं। अधिवक्ता पर की गई आदेशिका की तामील पक्षकार पर तामील मानी जाती है।
एक अधिवक्ता की नियुक्ति वकालतनामा पर पक्षकार द्वारा या मान्यता प्राप्त अभिकर्ता द्वारा, या मुख्तारनामा द्वारा ऐसी नियुक्ति करने के लिए प्राधिकृत व्यक्ति द्वारा हस्ताक्षर करके की जाती है। (उपनियम 1) ऐसे अधिकार पत्र या वकालतनामा को न्यायालय में प्रस्तुत किया जावेगा, जो अभिलेख में सम्मिलित किया जावेगा। (उपनियम 2) जहाँ प्लीडर नियुक्त करने वाला व्यक्ति वकालतनामा पर हस्ताक्षर कर अपना नाम नहीं लिख सकता, वहाँ उच्च न्यायालय द्वारा एक साधारण आदेश से उस पर कोई चिह्न (अंगुल चिह्न) लगाने की व्यवस्था हो सकेगी। (उपनियम 4) विद्यमान अधिवक्ता के बिना अनापत्ति प्रमाण पत्र के नये अधिवक्ता की नियुक्ति नहीं की जायेगी।
अधिवक्ता के कार्य - कार्य करने और अभिवचन करने में अन्तर- (to act and plead) [उपनियम (1) तथा (5)]-
इस बारे में दो मत हैं- (1) पहले मत के अनुसार न्यायालय में उपसंजात होने, न्यायालय को सम्बोधित करने और गवाहों की परीक्षा और प्रतिपरीक्षा करने के सभी कार्य अभिवचन (प्लीडिंग) के भाग हैं और आदेश 3 इनके बारे में नहीं है।
दूसरे मतानुसार गवाहों को परीक्षा और प्रतिपरीक्षा करना कार्य करना (एक्टिंग) है, न कि अभिवचन (प्लॉडिंग) करना है परन्तु ये मत एक एजेण्ट के कार्य के बारे में प्रकट किये गये थे।
उपनियम 4(1) के अनुसार प्लीडर की नियुक्ति केवल कार्य करने (to act) के लिए है, जबकि उपनियम (5) के अधीन यह केवल अभिवचन" (to plcad) के लिए की जाती है। परन्तु हाई कोर्ट के अनुसार "पैरवी" (practise) में कार्य करना व अभिवचन दोनों सम्मिलित है और एक अधिवक्ता दोनों कार्य करने के लिए अधिकृत है।।
बार एसोसिएशन में सदस्यों का कर्तव्य- बार एसोसिएशन द्वारा हाई कोर्ट के मुख्य न्यायमूर्ति के विरुद्ध अवमानपूर्ण संकल्प का पारित किया जाना इस बात का द्योतक है कि बार एसोसिएशन ने गरिमा के साथ कार्य नहीं किया।
आदेश 3, नियम 4 (1) तथा (5), 19 में प्रयुक्त शब्दावली "ऐक्टिंग" (कार्य) तथा "प्लीडिंग" (अभिवचन) शब्दों का अर्थ और उनके बीच प्रभेदसाक्षियों की परीक्षा या प्रतिपरीक्षा कार्य शब्द के अन्तर्गत आती है या अभिवचन के अन्तर्गत।
धारणाधिकार का प्रयोग केवल तब किया जा सकता है जब नियुक्ति समाप्त कर दी गई हो-विधि व्यवसायी की नियुक्ति की समाप्ति का प्रश्न।
व्यतिक्रम के कारण खारिज किए गए वाद के प्रत्यावर्तन के लिए पक्षकार के अधिवक्ता की ओर से आवेदन - वाद में फाइल किए गए मुख्तारनामे पर अधिवक्ता के हस्ताक्षर न होना— प्रत्यावर्तन आवेदन के साथ एक नया मुख्तारनामा भी फाइल करना इसके फाइल करने से पूर्व अधिवक्ता द्वारा की गई कार्यवाहियाँ अविधिमान्य नहीं होंगी और यह ऐसी अनियमितता मात्र है जिसका प्रतिकार किया जा सकता है।
सोसाइटी के विरुद्ध किसी वाद में सोसाइटी का प्रतिनिधित्व करने के लिए सक्षमता केवल वही विधि व्यवसायी सोसाइटी का प्रतिनिधित्व करने के लिए सक्षम है जिसके पक्ष में मुख्तारनामा स्वयं प्रधान अथवा उसके सम्यकृत: प्राधिकृत अभिकर्ता ने लिखित रूप में इस प्रयोजनार्थ निष्पादित किया हो। उक्त प्राधिकार से रहित विधि व्यवसायी न्यायालय द्वारा मान्य नहीं ठहराया जाएगा। कार्यसूची (काज लिस्ट) में वकील का नाम-जब एक अपील में प्रत्यर्थी की ओर से वकालतनामा फाइल किया गया है, तो कार्यालय को उस संबंधित वकील से पूछना चाहिये कि अपील ग्रहण करने तथा परिसीमा क्षमा करने के बाद क्या मुख्य अपील में वह उपस्थित होगा। यदि वह इसके विपरीत सूचना नहीं देता है, तो उसका नाम सूची में आना चाहिये।
खर्चे का औचित्य -जब न्यायालय के आदेश होने पर भी सही वकालतनामा प्रस्तुत नहीं किया गया और इसके दोष को सही नहीं किया गया, तो ऐसी परिस्थिति में न्यायालय द्वारा खर्चे लगाना न्यायोचित है।
एकपक्षीय डिक्री - यदि प्रतिवादी अपीलार्थी अनुपस्थित है और उसका पैरोकार तथा वकील उपस्थित है, परन्तु वे कोई निर्देश नहीं (नो इन्स्ट्रक्शन्स) की सूचना देते हैं, तो ऐसी स्थिति में पारित डिक्री तकनीकी रूप से एकपक्षीय डिक्री है।
वकील द्वारा अभिवचन करना - (आदेश 3, नियम 4)
आदेश 3 में प्रयुक्त शब्द "कार्य करना" (act) में वकील का वादी की और से गवाह के रूप में उपस्थित होने का act' (कार्य) सम्मिलित नहीं होता है।
कार्य करना- परिधि तथा अर्थान्वयन- मुवक्किल के हित में किन्तु उनकी सम्मति के बिना उसकी ओर से मामले में सद्भावपूर्वक समझौता करने की प्लीडर की विवक्षित शक्ति है। मकान से बेदखली या अन्य किसी सिविल वाद में बगैर किसी स्पष्टतः दी गई सम्मति के भी प्लीडर को न्यायालय में समझौता कर लेने की शक्ति होती है। अपीलार्थी बेदखली वाद में प्लीडर द्वारा किए गए ऐसे समझौते से आबद्ध होगा। काउन्सेल को वहाँ राजीनामा नहीं करना चाहिए जहाँ उसे कोई आशंका हो और जहाँ ज्येष्ठ अधिवक्ता भी नियुक्त किया गया हो। जहाँ पक्षकार से सलाह की जा सकती हो वहाँ उसके प्लीडर को समझौते से पूर्व अवश्य सलाह कर लेनी चाहिए अन्यथा वह प्लीडर के समझौते से आबद्ध नहीं होगा सरकार द्वारा छूट प्रदान की गई। यह इसके खण्डों पर लागू नहीं होगी क्योंकि इसका अलग वैधानिक अस्तित्व है।
वकील की नियुक्ति का पर्यवसान (समाप्ति) - [ उपनियम – 2 – उपनियम (2) के अनुसार वकालतनामा तब तक लागू रहेगा, जब तक -
(1) न्यायालय की इजाजत से उसे समाप्त न कर दिया गया हो और प्लीडर या पक्षकार द्वारा हस्ताक्षरित लेख (आवेदन) न्यायालय में प्रस्तुत न कर दिया गया हो, या
(2) पक्षकार (मुवक्किल / वादार्थी) या वकील की मृत्यु न हो गई हो, या
(3) उस पक्षकार से संबंधित उस वाद की समस्त कार्यवाहियाँ समाप्त न हो गई हो। इन कार्यवाहियों को "स्पष्टीकरण" द्वारा स्पष्ट कर खण्ड (क) से (घ) में वर्णित कार्यवाहियों को इसमें सम्मिलित कर लिया गया है।
न्यायालय की अनुमति - किसी प्लीडर की नियुक्ति को समाप्त करने के लिए न्यायालय की अनुमति आवश्यक है। ऐसी अनुमति केवल औपचारिकता नहीं है। वकील की नियुक्ति की समाप्ति न्यायालय की इजाजत से ही की जा सकती है-मुवक्किल और अधिवक्ता के बीच सम्पूर्ण मामले को पैरवी करने का करार-अधिवक्ता को ओर से कोई अवसर न होते हुए मुवक्किल द्वारा उसकी नियुक्ति को समाप्त किया जाना-ऐसी दशा में न्यायालय अधिवक्ता को तय की गई सम्पूर्ण फीस के संदाय किए जाने का आदेश कर सकता है।
अपील न्यायालय के समक्ष अपील के उपस्थित किए जाने से लेकर उसके अन्तिम रूप से निपटारा किए जाने तक उसकी सम्पूर्ण प्रक्रिया आदेश 3 के नियम (4) में सम्मिलित है और आदेश 41 के नियम 19 में यथावति व्यतिक्रम के लिए खारिज की गई अपील भी उसमें सम्मिलित है।
संहिता के आदेश 3 के नियम 4 में उस न्यायालय से भिन्न, जिसके लिए सम्बद्ध प्लीडर नियुक्त किया गया हो, न्यायालय द्वारा जारी किए गए किसी भी नोटिस आदि की तामील प्लीडर पर करने का उपबन्ध नहीं है, अतः अन्तरितो न्यायालय द्वारा जारी किए गए नोटिस को स्वीकार करने के लिए ऐसा प्लीडर बाध्य नहीं है।
उपनियम ( 2 ) का अर्थ लगाना - [ उपनियम (3)] उपनियम (2) की बातों का यह अर्थ नहीं लगाया जाएगा कि - (क) प्लीडर और मुवक्किल के बीच यदि कार्यावधि तय है, तो वह बढ़ जायेगी, या
(ख) तामील के बारे में उसके प्राधिकार (अधिकार) को बढ़ाती है।