सिविल प्रक्रिया संहिता,1908 आदेश भाग 8: आदेश 3 नियम 3 से 1 तक प्रावधान
Shadab Salim
19 Oct 2023 5:33 PM IST
सिविल प्रक्रिया संहिता,1908(Civil Procedure Code,1908) प्लीडर से संबंधित है। सिविल प्रक्रिया संहिता का यह अध्याय विस्तृत अध्याय है जो किसी मुकदमे में एक वकील से संबंधित सभी प्रावधानों को स्पष्ट कर देता है। इस आलेख के अंतर्गत आदेश 3 के नियम 1 से लेकर 3 तक के सभी प्रावधानों पर सारगर्भित चर्चा की जा रही है।
आदेश 3 मान्यता प्राप्त अभिकर्ता तथा प्लीडर (अधिवक्ता वकील) सम्बन्धी नियमावली प्रदान कर है, जो उनके कार्य, अधिकार और कर्त्तव्यों पर प्रकाश डालती है। संहिता की धारा 2 में शब्द प्लीडर तथा "सरकारी प्लीडर" की परिभाषाएँ दी गई हैं, जो इस प्रकार है-
प्लीडर से न्यायालय में किसी अन्य व्यक्ति के लिए उपसंजात होने वाले और अभिवचन करने (प्लीड) का हकदार कोई व्यक्ति अभिप्रेत है और इसके अन्तर्गत अधिवक्ता, वकील और किसी उच्च न्यायालय का अटॉर्नी आता है।
सरकारी प्लीडर के अन्तर्गत ऐसा कोई अधिकारी आता है, जो सरकारी प्लीडर पर इस संहिता द्वारा अभिव्यक्त रूप से अधिरोपित कृत्यों का या उनमें से किन्हीं का पालन करने के लिए राज्य सरकार द्वारा नियुक्त किया गया है, और ऐसा कोई प्लीडर भी आता है, जो सरकारी प्लीडर के निर्देशों के अधीन कार्य करता है।
धारा 2(15) में प्लीडर की परिभाषा में अधिवक्ता भी आ जाता है और अधिवक्ता, वकील अथवा प्लीडर जहाँ तक अपने मुवक्किल की ओर से कार्य करने की उनकी शक्ति का सम्बन्ध है, समान आधार पर हैं।
इस आदेश में मान्यता प्राप्त अधिकर्ता प्लीडर (वकील) को नियुक्ति करने, उन पर आदेशिका (समन, नोटिस आदि) की तामील सम्बन्धी तथा उनके कार्यों की व्यवस्था की गई है। अधिवक्ताओं के बारे में "अधिवक्ता अधिनियम 1961 के अनुसार व्यवस्था की गई है तथा इनका नियन्त्रण बार कौंसिल द्वारा किया जाता है।
नियम -1 उपसंजातियाँ आदि स्वयं या मान्यताप्राप्त अभिकर्ता द्वारा या प्लीडर द्वारा की जा सकेगी-
किसी भी न्यायालय में या उससे कोई भी ऐसी उपसंजाति, आवेदन या कार्य, जिसे ऐसे न्यायालय में करने के लिए कोई पक्षकार विधि द्वारा अपेक्षित या प्राधिकृत है, वहाँ के सिवाय जहाँ तत्समय प्रवृत्त किसी विधि द्वारा अभिव्यक्त रूप से अन्यथा उपबन्धित हो, पक्षकार द्वारा स्वयं या उसके मान्यताप्राप्त अभिकर्ता द्वारा या उसकी ओर से [यथास्थिति उपसंजात होने वाले आवेदन करने वाले या कार्य करने वाले] उसके प्लीडर द्वारा किया जा सकेगा।
परन्तु यदि न्यायालय ऐसा निर्दिष्ट करे तो ऐसी उपसंजाति स्वयं पक्षकार द्वारा की जाएगी।
पैरवी का अधिकार एवं कार्य- न्यायालय में उपसंजाति (उपस्थित) होना स्वयं पक्षकार का कार्य है, परन्तु अपनी व्यस्तता के कारण वह न तो समय समय पर न्यायालय में उपस्थित हो सकता है और न आवेदन और पैरवी ही कर सकता है, अतः उसे अपना यह कार्य किसी विधि व्यवसायी (वकील, एजेन्ट आदि) को सौपना पड़ता है। अधिवक्ता (वकील), अधिवक्ता अधिनियम, 1961 के अधीन पैरवी करने व शुल्क या पारिश्रमिक लेने के लिए अधिकृत है।
इस प्रकार नियम 1 पक्षकार की न्यायालय में उपसंजाति (उपस्थिति), आवेदन या अन्य कार्यों के लिए निम्न प्रकार से व्यवस्था करता है-
(1) पक्षकार स्वयं पैरवी करे। यदि न्यायालय निर्दिष्ट करे (आदेश) दे तो पक्षकार को स्वयं उपसंजाति (उपस्थित) होना होगा या - (2) पक्षकार अपना मान्यता प्राप्त अभिकर्ता (एजेन्ट) नियुक्त कर सकता है, या (3) उस पक्षकार की ओर से उपसंजात होने वाले प्लीडर (वकील/अधिवक्ता) द्वारा पैरवी की जा सकती है।
(2) वकील की उपेक्षा का प्रभाव अपीलार्थी द्वारा नियुक्त वकील ने चार बार स्थगन लिया और फिर भी वह सुनवाई की दिनांक को अनुपस्थित रहा। अपील को अनुपस्थिति के कारण खारिज कर दिया गया। अपीलार्थी की उपस्थिति पेशी पर नहीं चाही थी। अतः अभिनिर्धारित कि अपीलार्थी को उसके वकील को उपेक्षा के लिए दण्डित नहीं किया जाना चाहिए।
(3) पक्षकार की व्यक्तिगत उपसंजाति -( परन्तुक ) - आदेश 3 नियम 1 का परन्तुक न्यायालय की अन्तर्निहित अधिकारिता को संहिताबद्ध करता है कि वह एक पक्षकार को व्यक्तिगत रूप से उपसंजाति के लिए निर्देश दे, - हालांकि इस अधिकारिता का प्रयोग बहुत कम या आपवादिक परिस्थितियों में ही करना होगा न्यायालय वादी एवं प्रतिवादी स्वयं को न्यायालय में उपस्थित होने के आदेश दे सकता है।
(4)मुख्तार नामे का प्रभाव - (आदेश 3, नियम 1 सपठित अधिवक्ता अधिनियम, 1961, धारा 32) किसी प्राइवेट व्यक्ति के पक्ष में दिए गए मुख्तारनामा के आधार पर किसी ऐसे व्यक्ति को इस न्यायालय के समक्ष दलील देने और अभिवचन करने की अनुमति नहीं दी जा सकती जो न तो विधिक व्यवसायी है और न हो मामले में ऐसी अनुमति देने के लिए कोई विशिष्ट कारण हो है।
(5) नियमावली का निर्वाचन (आदेश 3, नियम 1, सपठित बॉम्बे सिटी सिविल एण्ड सेशन्स कोट्र्स रूल्स, - 1948, नियम 360) नियमावली के उक्त नियम का निर्वाचन संहिता के उक्त आदेश के उक्त नियम के अधीन रहते हुए किया जाना चाहिए।
(6) सरकारी- प्लीडर का प्राधिकरण संविदा-भंग के एक वाद में समन स्थानीय सरकारी प्लीडर पर तामील - करा दिये गये, जिसने उपस्थित होकर लिखित कथन पेश करने के लिए समय मांगा। अगली पेशी पर उसने माध्यस्थम् अधिनियम की धारा 34 के अधीन वाद का स्थगन कर मामला मध्यस्थ को निर्देशित करने का आवेदन किया, जिसे विचारण-न्यायालय ने स्वीकार कर लिया। अपील में हाई कोर्ट ने निश्चय किया कि सरकारी प्लीडर का लिखित कथन पेश करने के लिए समय मांगने का कार्य कार्यवाही में कदम उठाना है। अतः अपीलार्थी (सरकार) वाद के विचारण को स्थगित करवाने के लिए अधिकृत नहीं है।
अपील में सुप्रीम कोर्ट में सरकार की ओर से तर्क दिया गया कि सरकारी प्लीडर को लिखित कथन कल करने के लिए समय मांगने के निर्देश नहीं थे, अतः उसकी यह कार्यवाही अपीलार्थी (सरकार) पर बाध्यकारी नही है।
सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय दिया कि जिला सरकारी प्लीडर आदेश 27 नियम 2 के अधीन सरकार की ओर से कार्य करने (act) के लिए अधिकृत था और उसे मान्यता प्राप्त एजेन्ट (प्रतिनिधि) माना गया, जो सरकार की ओर से उपस्थित होने, कार्यवाही करने व आवेदन देने के लिए अधिकृत था। उसे वादपत्र की एक प्रति तामील की गई थी। अतः इन परिस्थितियों में, सरकार को यह छूट नहीं है कि वह यह कथन (प्लीड) करे कि जिला सरकारी प्लीहर सरकार की ओर से पैरवी करने और स्थान प्राप्त करने के लिए अधिकृत नहीं था।
सरकार द्वारा भूमि-अर्जन (अवाति) के कुछ मुकदमे बिहार राज्य के सरकारी- प्लीडर (पिटीशनर) से वापस लेकर एक दूसरे सहायक सरकारी प्लीडर को दे दिये गये। सरकार अपने मुकदमे की पैरवी करने के लिए जितने चाहे उतने सरकारी प्लीडर रख सकती है और सरकार अन्य प्लांडरों पर किसी प्लीटर का एक मात्र नियन्त्रण नहीं सौंपी और विशिष्ट मामलों का प्रभार किसी विशेष सरकारी प्लीटर को सौंपने के लिए पूर्ण स्वतंत्र है।
तत्समय प्रवृत्त किसी विधि द्वारा अभिव्यक्त रूप से अन्यथा उपबंधित" - का अर्थ नियम में 1 प्रयुक्त इस शब्दावली के अर्थ पर मतभेद रहा है। पहले मत के अनुसार इस का अर्थ संहिता के अतिरिक्त अन्य विधि से है। जब कि दूसरे मत के अनुसार संहिता इसमें सम्मिलित है। अत: आदेश 33 नियम 3 तथा आदेश 44 नियम 1 इस नियम के अपवाद हैं।
नियम- 2 मान्यताप्राप्त अभिकर्ता पक्षकारों के जिन मान्यता प्राप्त अभिकर्ताओं द्वारा ऐसी उपसंजातियां, - आवेदन और कार्य किए जा सकेंगे वे निम्नलिखित हैं-
(क) ऐसे मुख्तारनामे धारित करने वाले व्यक्ति जिनमें उन्हें ऐसे पक्षकारों की ओर से ऐसी उपसंजातियां,आवेदन और कार्य करने के लिए प्राधिकृत किया गया है।
(ख) जहाँ कोई भी अन्य अभिकर्ता ऐसी उपसंजातियों, आवेदनों और कार्यों को करने के लिए अभिव्यक्त रूप से प्राधिकृत नहीं है वहां ऐसे व्यक्ति जो उन पक्षकारों के लिए और उनके नाम से व्यापार या कारबार करते हैं, जो पक्षकार उस न्यायालय की अधिकारिता की उन स्थानीय सीमाओं में निवास नहीं करते हैं जिन सीमाओं के भीतर ऐसी उपसंजाति, आवेदन या कार्य ऐसे व्यापार या कारबार की ही बाबत किया जाता है।
नियम- 3 मान्यताप्राप्त अभिकर्ता पर आदेशिका की तामील -
(1) जब तक न्यायालय अन्यथा निर्दिष्ट नहीं करता, किसी पक्षकार के मान्यताप्राप्त अभिकर्ता पर तामील की गई आदेशिकाएं वैसे ही प्रभावी होंगी मानो उनकी तामील स्वयं पक्षकार पर की गई हो।
(2) जो उपबन्ध वाद के किसी पक्षकार पर आदेशिका की तामील के लिए है वे उसके मान्यताप्राप्त अभिकर्ता पर आदेशिका की तामील को लागू होंगे।
नियम 2 मान्यता प्राप्त अभिकर्ता का वर्णन करता है और नियम 3 उस पर आदेशिक की तामील करने की व्यवस्था करता है। नियम 6 में आदेशिका की तामील का प्रतिग्रहण करने के लिए अतिरिक्त अभिकर्ता नियुक्त करने का उपबन्ध किया गया है। इस प्रकार अभिकर्ता सम्बन्धी विधि के प्रावधान नियम 2,3 तथा 6 में दिये गये हैं।
मान्यता प्राप्त अभिकर्ता - (नियम 2 ) — नियम 2 खण्ड (क) और (ख) में दो प्रकार के मान्यता प्राप्त अभिकर्ताओं का उल्लेख करता है- (क) मुख्तारनामे द्वारा प्राधिकृत व्यक्ति, जो पक्षकार की ओर से उपसंजात ( उपस्थित) होने आवेदन और कार्य करने के लिए प्राधिकृत किए गये हैं। (ख) जहाँ उपरोक्त पैरवी का कार्य करने के लिए कोई प्राधिकृत व्यक्ति नहीं है, वहाँ उन पक्षकारों के लिए (जो उस न्यायालय की अधिकारिता की सीमा में नहीं रहते हैं) और उनके नाम से व्यापार या कारबार करने वाले व्यक्ति जो उस न्यायालय की स्थानीय सीमाओं में जहाँ वे कारबार करते हैं। मान्यता प्राप्त अभिकर्ता द्वारा अधिकृत होने पर रिट पिटीशन प्रस्तुत की जा सकती है।
दूसरे शब्दों में जहाँ मुख्तारनामे द्वारा प्राधिकृत मान्यता प्राप्त अभिकर्ता नहीं है, वहाँ व्यापार या कारोबार करने वाले पक्षकारों के व्यापारिक एजेन्ट या प्रतिनिधि भी पैरवी कर सकेंगे।
मुख्तारनामें द्वारा प्राधिकृत व्यक्ति मुख्तारनामा देने वाले व्यक्ति के स्थान पर साक्ष्य नहीं दे सकता, यह केवल मुख्तारनामा देने वाले व्यक्ति की ओर से केवल साक्षी के रूप में उपस्थित हो सकता है विभाजन के वाद में स्वत्वधारी माता के स्थान पर जैव पुत्री बिना मुख्तारनामा, तथ्यों की जानकार होने के कारण साक्ष्य दे सकती है। मालिक की व्यक्तिगत जानकारी में होने वाले तथ्यों के लिये मुख्तार साक्ष्य नहीं दे सकता। मुख्तार की साक्ष्य को मालिक की साक्ष्य नहीं मानी जा सकती। मालिक की साक्ष्य बंद नहीं की जाने की स्थिति में वह साक्ष्य दे सकता है।
(1) मान्यता प्राप्त अभिकर्ता या प्लीडर मुख्य (वादी/प्रतिवादी) के स्थान पर बतौर साक्षी उपस्थित नहीं हो सकता। जहाँ तक आज्ञा प्रदान की जाती है, वहाँ तक उपस्थित हो सकते हैं, किन्तु मुख्य (वादी/प्रतिवादी) का स्थान नहीं ले सकते हैं।
(2) मान्यता प्राप्त अभिकर्ता, जिसके पक्ष में मुख्तारनामा लिखा हुआ है, वह मुख्य अर्थात् मुख्तारनामा देने वाले को स्वतन्त्र रूप से कार्य करने से नहीं रोक सकता एवं बिना मुख्तारनामा धारक को बताये राजीनामा हस्ताक्षरित कर सकता है।
मुख्तारनामा का निर्वचन— (आदेश 3, नियम 2) अटार्नी को निष्पादी को कार्यों के इच्छानुसार संचालित करने के लिए प्राधिकृत करने वाले विलेख के अधीन विशेष शक्तियाँ होती है। ऐसी शक्तियों में वाद फाइल करने के लिए अटॉर्नी की शक्ति विवक्षित है। यदि बिना प्राधिकार अटॉर्नी पत्र फाइल किये यदि कोई सिविल कार्यवाही संस्थित की गई है, तो वह एक सुधार योग्य अनियमितता है। एक प्लीडर आदेश 3 के नियम 2 तथा 3 के अर्थ में मान्यता प्राप्त अभिकर्ता नहीं है, जब तक कि उसका प्राधिकरणपत्र (पावर ऑफ अटॉर्नी) यह उपबंधित नहीं करे कि वह अपने पक्षकार (क्लाइन्ट) की ओर से तामील स्वीकार कर सकता है।
मान्यताप्राप्त अभिकर्ता तथा अधिकार के प्राधिकार में अन्तर-
मान्यता प्राप्त अभिकर्ता को दिया जाने वाला प्राधिकार-पत्र (पावर ऑफ अटॉर्नी) का मुख्तारनामा स्टाम्प अधिनियम के अनुच्छेद 48 में बताये अनुसार स्थापित किया जायेगा। जो अधिकार ऐसे मुख्तारनामे में दिये गये है, उन्हीं का वह मान्यता प्राप्त अभिकर्ता प्रयोग करेगा। परन्तु अधिवक्ता के अधिकार ऐसे अभिकर्ता में दिये गये हैं, जो वकालत या पैरवी के समस्त कार्य कर सकते हैं। मान्यताप्राप्त अभिकर्ता को अभिवचन (प्लीड) करने का अधिकार नहीं है। परन्तु मान्यताप्राप्त अभिकर्ता गवाहों की परीक्षा या प्रतिपरीक्षा कर सकता है।
शब्दावली उपसंजाति, आवेदन या कार्य जो आदेश 3, नियम में प्रयुक्त की गई है, इसमें अभिवचन करना व बहस करना सम्मिलित नहीं है। अतः एक मान्यताप्राप्त अभिकर्ता, जो साधारण मुख्तारनामे का धारक है, हाई कोर्ट में अभिवचन व बहस नहीं कर सकता।
नियम 2 में खण्ड (क) और (घ) में अधिवक्ता मान्यताप्राप्त अभिकर्ता नहीं है, अधिवक्ता के लिए अलग नियम 4 व 5 देखिये।
आदेशिका की तामील-नियम 3 के अनुसार नियम 2 में वर्णित मान्यताप्राप्त अभिकर्ता पर आदेशिकाएँ (सम्मन, नोटिस आदि) की तामील करवाई जा सकती है और ऐसी तामील उसी प्रकार प्रभावी होगी, मानो स्वयं पक्षकार पर तामील करवाई गई हो और पक्षकार पर आदेशिका की तामील के उपबंध अभिकर्ता पर भी समान रूप से लागू होंगे।