सिविल प्रक्रिया संहिता,1908 आदेश भाग 40: आदेश 8 लिखित कथन

Shadab Salim

18 Dec 2023 8:19 AM GMT

  • सिविल प्रक्रिया संहिता,1908 आदेश भाग 40: आदेश 8 लिखित कथन

    सिविल प्रक्रिया संहिता,1908(Civil Procedure Code,1908) का आदेश 7 जैसे ही समाप्त होता है वैसे ही आदेश 8 में लिखित कथन दिए हैं। वादपत्र वादी का अभिवचन होता है अभिवचन क्या है और इसके सिद्धांत क्या हैं यह आदेश 6 में समझा जा चुका है, प्रतिवादी का अभिवचन लिखित कथन या मुजरा कहलाता है। इस आदेश 8 के अंतर्गत ऐसे ही प्रतिवादी के अभिवचन अर्थात लिखित कथन के संबंध में नियम दिए गए हैं। इस आलेख के अंतर्गत आदेश 8 पर सारगर्भित टिप्पणी प्रस्तुत की जा रही है।

    आदेश 8 में 10 नियम है, जो लिखित कथन, मुजरा और प्रतिदावा संबंधी प्रक्रिया बताते हैं। इस आदेश में नियमों क्रम थोड़ा आगे पीछे है।

    (1) नियम 1 तथा नियम 1-क-दस्तावेजों तथा लिखित का प्रस्तुतीकरण।

    (2) नियम 2, 7, व 8-नए तथ्यों तथा प्रतिरक्षा के नये आधारों का अभिवचन।

    (3) नियम 3, 4 व 5-विनिर्दिष्ट प्रत्याख्यान तथा वाछलपूर्ण प्रत्याख्यान स्वीकृतियों व अस्वीकृतियां।

    (4) नियम् 6 तथा 6-क से 6-छ तक-मुजरा और प्रतिदावा।

    प्रतिवादपत्र (लिखित-कथन)-जिस प्रकार वादी का अभिवचन -"वादपत्र" उसके संविवाद के महल की नींव है, उसी प्रकार प्रतिवादी का प्रतिवादपत्र उसके संविवाद की नींव है, परन्तु "प्रतिवाद- पत्र" शब्द का स्वरूप दोहरा है, जिसके दो उद्देश्य होते हैं-

    (1) वादी के वादपत्र में दिये गये कथनों का उत्तर देना, तथा

    (2) जहां आवश्यकता हो, अपने स्वयं के पक्ष का समर्थन व उसकी स्थापना करना। अतः प्रतिरक्षा का स्वरूप भी दोहरा हो जाता है। सिविल प्रक्रिया संहिता में प्रतिवादी के अभिवचन का लिखित कथन नामकरण किया गया है, परन्तु वादपत्र के साथ प्रतिवाद-पत्र शब्द का प्रयोग उचित लगता है। संहिता में "लिखित कथन" शब्द को "प्रतिवाद-पत्र" के रूप के अलावा अन्य रूपों में भी प्रस्तुत किया गया है, जिनके लिए भी आदेश 8 के नियम लागू किये गये हैं।

    अब संहिता में 1976, 1999 व 2002 में संशोधन कर प्रतिवादी द्वारा प्रतिवाद-पत्र प्रस्तुत करना आदेश 8 नियम (1) के द्वारा अनिवार्य कर दिया गया है, अतः प्रतिवाद-पत्र प्रस्तुत न करने पर प्रतिवादी को आदेश 8 के नियम 10 सपठित नियम 5(2) से (4) तथा 10 के अधीन इस चूक के परिणाम भुगतने होंगे।

    लिखित-कथन के भेद (1) सिविल प्रक्रिया संहिता के विभिन्न उपबंधों के अनुसार चार प्रकार के लिखित-कधन होते हैं। प्रतिवादी द्वारा आदेश 8, नियम 1 के अधीन प्रस्तुत किये जाने वाले लिखित- कथन को प्रतिवाद-पत्र या प्रतिवाद का लिखित कथन कहते हैं।

    जब प्रतिवादी अपने प्रतिवाद-पत्र में मुजरा या प्रतिदावे की मांग करता है, तो उसकी प्रतिरक्षा में वादी लिखित-कथन या "प्रत्युत्तर" पेश करता है। आदेश 8 नियम (3) तथा नियम 6(3)

    आदेश 8 के नियम 9 के अधीन उपर्युक्त दोनों प्रकार के लिखित कधनों के अलावा न्यायालय द्वारा अपेक्षित (मांगे गये) लिखित कथन या अतिरिक्त लिखित कथन क्रमशः वादी या प्रतिवादी द्वारा पेश किये जाते हैं।

    जब वादपत्र या प्रतिवाद पत्र में आदेश 6 के नियम 17 के अधीन कोई संशोधन किया जाता है तो वादी लिखित कथन, मुजरा और प्रतिदावा के 'संशोधित वादपत्र' के उत्तर में प्रतिवादी 'संशोधित प्रतिवाद पत्र' प्रस्तुत करता है। इस प्रकार 'लिखित-कथन' के उपर्युक्त कई भेद हैं, जिनके लिए आदेश 8 के नियम समान रूप से लागू होते हैं। लिखित कथन (प्रतिवाद पत्र) के उत्तर या स्पष्टीकरण में वादी प्रत्युत्तर भी न्यायालय की अनुमति से प्रस्तुत कर सकता है। ऐसा प्रत्युत्तर भी प्रतिवादपत्र की भांति ही तैयार किया जाता है।

    लिखित कथन का किसी भी सिविल वाद में वादपत्र की तरह ही महत्व है। जैसे वादी के वाद बुनियाद वादपत्र पर रखी होती है उस ही प्रकार प्रतिवादी के बचाव की बुनियाद उसके प्रतिवाद पत्र पर रखी होती है। विवाधक भी इस प्रतिवाद पत्र को देखकर ही निश्चित होते हैं एवं विचारण भी इस प्रतिवाद पत्र की बुनियाद पर चलता है। आगे के आलेखों में आदेश 8 के सभी नियमों पर विस्तारपूर्वक चर्चा प्रस्तुत की जाएगी।

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