सिविल प्रक्रिया संहिता,1908 आदेश भाग 39: आदेश 7 नियम 14 से 18 तक के प्रावधान

LiveLaw News Network

18 Dec 2023 4:48 AM GMT

  • सिविल प्रक्रिया संहिता,1908 आदेश भाग 39: आदेश 7 नियम 14 से 18 तक के प्रावधान

    सिविल प्रक्रिया संहिता,1908(Civil Procedure Code,1908) का आदेश 7 वादपत्र है। आदेश 7 यह स्पष्ट करता है कि एक वादपत्र किस प्रकार से होगा। आदेश 7 के नियम 14 से 18 तक दस्तावेज के संबंध में उल्लेख है, यह वह दस्तावेज हैं जिनपर कोई वादपत्र निर्भर करता है। इस आलेख के अंतर्गत इन्हीं नियमों पर संयुक्त रूप से विवेचना प्रस्तुत की जा रही है।

    नियम-14 उन दस्तावेजों की प्रस्तुति जिन पर वादी वाद लाता है या निर्भर करता है-(1) जहाँ वादी किसी दस्तावेज के आधार पर वाद लाता है या अपने दावे के समर्थन में अपने कब्जे या शक्ति में किसी दस्तावेज पर निर्भर करता है वहाँ यह उन दस्तावेजों को सूची में प्रविष्ट करेगा और उसके द्वारा वादपत्र उपस्थित किए जाने के समय वह उसे न्यायालय में पेश करेगा और उसी समय दस्तावेज और उसकी प्रति को वादपत्र के साथ फाइल किए जाने के लिए परिदत्त करेगा।

    (2) जहाँ ऐसी कोई दस्तावेज वादी के कब्जे या शक्ति में नहीं है वह यह कथन करेगा कि वह किसके कब्जे या शक्ति में है। वहाँ वह जहाँ तक संभव हो

    (3) ऐसा दस्तावेज जिसे वादी द्वारा न्यायालय में तब प्रस्तुत किया जाना चाहिए जब वादपत्र प्रस्तुत किया जाता है, या वादपत्र में जोड़ी जाने वाली या उपाबद्ध की जाने वाली सूची में प्रविष्ट किया जाना है, किंतु तदनुसार, प्रस्तुत या प्रविष्ट नहीं किया जाता है तो उसे न्यायालय की अनुमति के बिना वाद की सुनवाई के समय उसकी ओर से साक्ष्य में ग्रहण नहीं किया जाएगा।

    (4) इस नियम की कोई बात (वादी) के साक्षी की प्रतिपरीक्षा के लिए प्रस्तुत या किसी साक्षी को केवल उसकी स्मृति को ताजा करने के लिए दिए गए दस्तावेज को लागू नहीं होगी।

    वाद के समुचित न्याय निर्णयन के लिए सुसंगत आवश्यक दस्तावेजात को पेश किया जाने को अनुमति देना न्यायालय के लिए आदेश 7 नियम 14 (3) सपठित धारा 30 सि.प्र.सं. के तहत आवश्यक है। आमतौर पर न्यायालय द्वारा ऐसी आज्ञा दे दी जाती है।

    दावे के प्रारंभिक प्रक्रम पर होने एवं प्रारम्भ नहीं होने की दशा में सूचना के अधिकार के तहत प्राप्त दस्तावेजात अतिरिक्त दस्तावेजात के रूप में बिना देरी के प्रस्तुत होने पर अनुज्ञेय है। एक मामले में वादी द्वारा वाद प्रस्तुत कर प्रार्थना की गई कि उसे बिना विधिक प्रक्रिया अपनाये बेदखल नहीं किया जाने बाबत् स्थायी व्यादेश की प्रार्थना की।

    उसने दिनांक 18-2-16 को अपनी साक्ष्य पूर्ण होने के पश्चात् नगरपालिका द्वारा जारी पट्टा अभिलेख पर लिया जाने की प्रार्थना की। वाद के निस्तारण के लिये उक्त दस्तावेज अनावश्यक होने के साथ साथ आवेदन प्रस्तुत करने में हुई देरी के कारण आवेदन खारिज किया गया।

    अतिरिक्त दस्तावेज व साक्षी को पुनः बुलाना-वाद बाबत वसूली प्रस्तुत किया गया, वादी ने निर्माण सामग्री प्रतिवादी को उपलब्ध करवाया, किन्तु इससे सम्बन्धित बिल, जो कि वादी के एकमात्र कब्जे में थे, उनको प्रस्तुत नहीं किया गया। अन्तिम बहस के पश्चात् प्रार्थना-पत्र प्रस्तुत किया गया। प्रार्थना स्वीकार नहीं की जा सकती है, वाद, अभिवचन व साक्ष्य को खामी को पूरा नहीं किया जा सकता।

    नियम-15 लोपित। यह नियम हटा दिया गया है।

    नियम-16 खोई हुई परक्राम्य लिखतों के आधार पर वाद- जहाँ वाद परक्राम्य लिखत पर आधारित है और यह साबित कर दिया जाता है कि लिखत खो गई है और वादी ऐसी लिखत पर आधारित किसी अन्य व्यक्ति के दावों के लिए क्षतिपूर्ति, न्यायालय को समाधानप्रद रूप में कर देता है वहाँ न्यायालय ऐसी डिक्री पारित कर सकेगा जो वह पारित करता यदि वादी ने उस समय जब वादपत्र उपस्थित किया गया था, उस लिखत को पेश किया होता और उस लिखत की प्रति वादपत्र के साथ फाइल किए जाने के लिए उसी समय परिदत्त कर दी होती।

    नियम-17 दुकान का वही खाता पेश करना- (1) वहाँ तक के सिवाय जहाँ तक कि बैंककार बही साक्ष्य अधिनियम, 1891 (1891 का 18) द्वारा अन्यथा उपबन्धित है, उस दशा में जिसमें कि वह दस्तावेज जिसके आधार पर वादी वाद लाता है, दुकान के बही खाते या अन्य लेखे में की जो उसके अपने कब्जे या शक्ति में है, प्रविष्टि है, वादी उस प्रविष्टि की जिस पर वह निर्भर करता है, प्रति के सहित उस बहीखाते या लेखे को वादपत्र के फाइल किए जाने के समय पेश करेगा।

    (2) मूल प्रविष्टि का चिह्नांकित किया जाना और लौटाया जाना-न्यायालय या ऐसा अधिकारी जिसे वह इस निमित्त नियुक्त करे तत्क्षण दस्तावेज को उसकी पहचान के प्रयोजन के लिए चिह्नांकित करेगा और प्रति की परीक्षा और मूल से तुलना करने के पश्चात् यदि वह सही पाई जाए तो यह प्रमाणित करेगा कि वह ऐसी है और बहीखाता को लौटाएगा और प्रति को फाइल कराएगा।

    नियम-18 वादपत्र फाइल करते समय पेश न की गई दस्तावेज की अग्राह्यता-लोपित। यह नियम भी हटा दिया गया है।

    आदेश 7 के नियम 14 से 17 उन दस्तावेजों के बारे में व्यवस्था करते हैं, जिन पर उच्च न्यायालय के संशोधन वादपत्र में निर्भर किया गया है। इस प्रकार वादी के दस्तावेजों से सम्बन्धित बातें इन नियमों में दी गई हैं।

    संशोधन - (1999-2002) - नियम 14 को अब नया रूप देकर विस्तृत बना दिया है, किसमें नियम 15 को नियन 14(2) में तथा नियम 18 को नियम 14(3) में सम्मिलित कर लिया गया है।

    दस्तावेजों का प्रस्तुतीकरण (नियम 9 सपठित नियम 14) वादपत्र के साथ प्रस्तुत किए गए दस्तावेजों को एक सूची बनाकर नत्थी (संलग्न) करनी चाहिए। इस प्रकार जो दस्तावेज वादी के कब्जे में है, जनको वादपत्र के साथ प्रति के प्रस्तुत करना आवश्यक है।

    अन्य दस्तावेजों की सूची [नियम 14 (1)] - ऐसे दस्तावेज, जो वादी के कब्जे में या उसको शक्ति में हों या नहीं, परन्तु वादपत्र के साथ जोड़े जाने या संलग्न किये जाने हैं, उनकी सूची वादपत्र के साथ लगानी होगी, जो दस्तावेज वादी के कब्जे या शक्ति में नहीं है, वहाँ यदि सम्भव हो, तो यह बताया जायेगा कि वह किसके कब्जे या शक्ति में है।

    प्रस्तुत किये गये दस्तावेजों की अग्राह्यता- नियम 14 (3) के अनुसार वादपत्र के साथ संलग्न सूची के अलावा कोई दस्तावेज साक्ष्य में नहीं लिया जावेगा। कोई अन्य दस्तावेज प्रस्तुत करने के लिए न्यायालय को इजाजत लेनी होगी, परन्तु यह नियम (1) प्रतिवादियों के साक्षियों की प्रतिपरीक्षा करने, (2) साक्षी की स्मृति ताजा करने के लिए उसके हाथ में देने के लिए प्रस्तुत दस्तावेजों के बारे में लागू नहीं होगा।

    मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय द्वारा यह अभिनिर्धारित किया गया है कि-विभाजन के वाद में वादी को साक्ष्य समाप्त हो जाने के पश्चात् दान विलेख को अभिलेख पर नहीं लिया जा सकता, क्योंकि वाद में दान विषयक कोई प्रश्न था ही नहीं अर्थात् दान वाद की विषयवस्तु था ही नहीं।

    एक वाद में वादी की साक्ष्य पूर्ण हो गई थी तथा प्रतिवादी को साक्ष्य चल रही थी। तभी वादी द्वारा कुछ दस्तावेज पेश करने का आवेदन पत्र पेश किया गया। आवेदन पत्र खारिज किया गया क्योंकि इस स्टेज पर दस्तावेज ग्रहण करने का अभिप्राय विचारण को प्रारम्भ से चालू करना होगा।

    दस्तावेज फाइल करने का अधिकार- आदेश 7, नियम 18 (2), (1) आदेश 7, नियम 14, आदेश 7, नियम 18(1), (iii) आदेश 13, नियम 1 और (iv) आदेश 13, नियन 2 को अपवाद गठित करता है। इस प्रकार प्रतिवादी द्वारा बनाये गये मामले के उत्तर में जहाँ दस्तावेज प्रस्तुत किये गये हों, तो उपर्युक्त उपबन्ध लागू नहीं होते और पक्षकारों को दस्तावेज एक अधिकार के रूप में फाइल करने का हक है। एक पक्षकार, न्यायालय की अनुमति लिए बिना, प्रतिवादी द्वारा बनाये गये मामले का सामना करने के लिए कोई दस्तावेज प्रस्तुत कर सकता है।

    दस्तावेजों के प्रस्तुत करने के उपबन्ध सुपर्याप्त कारणों पर आधारित है। उनकी अनुपालना को मामूली नहीं समझना चाहिए, विशेष रूप से जब कि प्रतिवादी उस पर जोर दे रहा है। यदि वादी केवल कुछ दस्तावेज ही पेश करता है, तो प्रतिवादी को प्रतिवादपत्र फाइल करने का अनुदेश देने का आदेश न्यायोचित नहीं है। न्यायालय को ऐसे मामले में आदेश 11, नियम 21 के अधीन अपनी शक्तियों का प्रयोग करना चाहिए।

    वादपत्र से संलग्न दस्तावेज अभिवचन का अंग- एक मामले में कहा गया है कि आदेश 7, नियम 14 के अधीन वादपत्र के साथ पेश किया गया कोई दस्तावेज अभिवचनों का अंग माना जाना चाहिए। अतः बचाव पक्ष को दलील में कोई दम नहीं है कि बैंक के अनादरण के नोटिस की आवश्यकता समाप्त करने के सम्बन्ध में कोई अभिवचन का अभाव है। चूंकि प्रदर्श 3 अर्थात् चैक, जिस पर उसके अनादरण का पृष्ठांकन था, वादपत्र के साथ पेश किया गया था। अतः यह अभिवचन करने की अब कोई आवश्यकता नहीं रही है कि अनादरण का नोटिस आवश्यक नहीं है।

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