सिविल प्रक्रिया संहिता,1908 आदेश भाग 36: आदेश 7 नियम 7 एवं 8 के प्रावधान

Shadab Salim

16 Dec 2023 11:31 AM IST

  • सिविल प्रक्रिया संहिता,1908 आदेश भाग 36: आदेश 7 नियम 7 एवं 8 के प्रावधान

    सिविल प्रक्रिया संहिता,1908(Civil Procedure Code,1908) का आदेश 7 वादपत्र है। आदेश 7 यह स्पष्ट करता है कि एक वादपत्र किस प्रकार से होगा क्या क्या चीज़े वादपत्र का हिस्सा होगी। आदेश 7 के नियम 7 एवं 8 वादपत्र में अनुतोष के संबंध में कथन से संबंधित हैं। अनुतोष वादपत्र का महत्वपूर्ण हिस्सा है। इस आलेख के अंतर्गत नियम 7 एवं 8 पर टिप्पणी की जा रही है।

    नियम-7 अनुतोष का विनिर्दिष्ट रूप से कथन - हर वादपत्र में उस अनुतोष का विनिर्दिष्ट रूप से कथन होगा जिसके लिए वादी सामान्यतः या अनुकल्पतः दावा करता है और यह आवश्यक नहीं होगा कि ऐसा कोई साधारण या अन्य अनुतोष मांगा जाए, जो न्यायालय न्यायसंगत समझे जो सर्वदा ही उसी विस्तार तक ऐसे दिया जा सकेगा मानो वह मांगा गया हो, और यही नियम प्रतिवादी द्वारा अपने लिखित कथन में दावा किए गए किसी अनुतोष को भी लागू होगा।

    नियम-8 पृथक् आधारों पर आधारित अनुतोष - जहां वादी कई सुभिन्न दावों या वाद-हेतुकों के बारे में जो पृथक् और सुभिन्न आधारों पर आधारित है, अनुतोष चाहता है वहां वे जहां तक हो सके पृथक्त: और सुभिन्नतः कथित किए जाएंगे।

    यह वादपत्र का अन्तिम, परन्तु सबसे महत्त्वपूर्ण भाग माना जाता है, जिसमें वादी अपने वाद के उद्देश्य की पूर्ति के लिए अनुतोष या सहायता की मांग करता है।

    आदेश 7, नियम 7 व 8 में इस बारे में निम्न प्रकार से व्यवस्था की गई है-

    (1) अनुतोष के अभिवचन के आवश्यक तत्त्व

    उपरोक्त नियमों के अनुसार अनुतोष का अभिवचन करने के लिए निम्न बातों को ध्यान में रखना चाहिए-

    (1) हर वाद पत्र में अनुतोष का कथन करना आज्ञापक है।

    (2) यह अनुतोष सामान्य रूप से मांगा जा सकता है, या आतुकल्पिक (वैकल्पिक) रूप से एक के बदले में दूसरे अनुतोष की मांग भी की जा सकती है।

    (3) साधारण या अन्य अनुतोष, जो न्यायालय न्यायसंगत या उचित समझे, मांगना आवश्यक नहीं है, क्योंकि ऐसा अनुतोष सर्वदा (सदा) ही उस सीमा तक दिया जा सकता है मानो उसकी माँग की गई हो।

    (4) प्रत्येक मांगे गये अनुतोष से सम्बन्धित दावों या वादहेतुकों के तथ्यों को अलग-अलग स्पष्ट रूप से वादपत्र के मुख्य भाग में कहा जायेगा।

    (5) उपरोक्त नियम 7 प्रतिवादी द्वारा चाहे गये अनुतोष के बारे में भी लागू होगा।

    अनुतोष या प्रार्थना खण्ड का अर्थान्वयन

    वाद पत्र में अनुतोष का कथन स्पष्ट तथा सही और नपे तुले शब्दों में मांगा जाना चाहिये। अनुतोष के साथ उसके आधार या कारणों का उल्लेख नहीं करना चाहिये। ऐसे आधार वाद-पत्र के कलेवर में दिये जाते हैं। प्रार्थना-खण्ड में केवल अनुतोष की मांग की जाती है। न्यायालय को इतनी कठोरता से इस खण्ड (या अभिवचन) का अर्थ नहीं लगाना चाहिये। उनको वाद पत्र को सम्पूर्ण रूप से पढ़कर उसका सार निकालना चाहिये कि वादी का क्या अर्थ है, यह क्या चाहता है।

    एक मामले में कहा गया है कि न्यायालय उस लिखी हुई सहायता (अनुतोष) का सारतत्व ही देखेगा। यह जानने के लिये कि किसी अनुतोष के लिए प्रार्थना की गई है या नहीं, न्यायालय सम्पूर्ण वादपत्र तथा उसका सारांश देखना चाहिये।

    अतः अनुतोष खण्ड के सार व सारांश को देखना चाहिये, न कि उसमें प्रयोग किये गये तकनीकी शब्दों के कठोर अर्थ व सही प्रयोग को। एक मामले में, वास्तविक और सारवान् वाद-प्रश्न पर आधारित अनुतोष को उचित ठहराया गया, जब कि कठोरता से वह प्रार्थना के अनुसार नहीं था।

    एक प्रकरण में विधि के गलत प्रावधान के अधीन मांगी गई सहायता (रिलीफ का प्रश्न) एक पक्षीय आदेश को अपास्त करने के लिए दिये गये आवेदन में गलती से आदेश नियम लिख दिया गया। इसे इसके सारतत्व के आपात्र पर आदेश 1 नियम 13 के अधीन माना जा सकता है।

    माध्यस्थ करार के विधमान होने की पुष्टि करने के लिए दिये गये आवेदन पत्र में धारा 13 लिख दी गई। इसके वाद इसे धारा 32 में मानने के लिये की गई प्रार्थना को नामंजूर नहीं करना चाहिये।

    वादी को केवल इसी कारण से अनुतोष प्रदान करने से मना नहीं करना चाहिये, क्योंकि वादी ने अनुतोष (सहायता) किसी गलत धारा के अधीन मांगा है।

    अनुतोष के किसी भाग का त्याग या छोड़ना (विखण्डीकरण)

    संहिता के आदेश 2 के नियम (3) में कई अनुतोषों में से एक के लिये वाद लाने के लिये उपबंध किया गया है, जिसके अनुसार "एक ही वादहेतुक के बारे में एक से अधिक अनुतोष पाने का हकदार व्यक्ति ऐसे सभी अनुतोषों या उनमें से किसी के लिये वाद ला सकेगा किन्तु यदि अनुतोषों के लिये वाद लाने का लोप न्यायालय की इजाजत के बिना करता है, तो उसके पश्चात् वह इस प्रकार के लोप किये गये (छोड़े गये) किसी भी अनुतोष के लिये (वाद में कोई दूसरा) वाद नहीं लायेगा। जो भी अनुतोष न्यायालय से किसी वाद हेतुक के आधार पर मिल सकते है, उनको वाद-पत्र से प्रार्थना-खण्ड में सम्मिलित करना चाहिए। यदि किसी अनुतोष को छोड़ना उचित हो और उसके लिये आगे दूसरा वाद लाया जा सकता हो, तो इस प्रकार के लोप या त्याग के लिये न्यायालय से इजाजत प्राप्त करनी होगी, जिसके लिये अलग से आवेदन करना होगा।

    वादी को यह छूट है कि यह अपने दावे के किसी भाग या अनुतोष के किसी भाग को किसी प्रतिवादी विशेष के विरुध्द छोड़ दे। न्यायालय उसको ऐसा नहीं करने के लिये बाध्य नहीं कर सकता, परन्तु उसे मांगे गये अनुतोष को प्रदान करना चाहिये, यदि वादी उसके लिये विधि के अनुसार हकदार है।

    अनुतोष का विनिर्दिष्ट रूप से कधन होगा

    यह नियम आज्ञापक है। वादी एक या अधिक अनुतोषों की सामान्य रूप से या आनुकल्पिक रूप से मांग कर सकता है, परन्तु जो कुछ वह चाहता है उसका विनिर्दिष्ट (स्पष्ट) रूप से वाद पत्र में कथन करना अनिवार्य है। वाद पत्र में उल्लिखित अनुतोष के अलावा अन्य अनुतोष की न तो मांग की जा सकती है और न न्यायालय को आससे अधिक अनुतोष देने की कोई शक्ति ही है।

    न्यायालय वादी द्वारा माँगे गये अनुतोष से अधिक प्रदान नहीं कर सकता, चाहे वादी अधिक सहायता पाने का हकदार क्यों न हो। यदि वादी वादपत्र में अधिक सहायता (अनुतोष) के लिए संशोधन करता है, तो वह अधिक अनुतोष प्राप्त कर सकता है, परन्तु संशोधन की अनुमति सम्बन्धित नियमों के अधीन ही दी जा सकती। उच्चतम न्यायालय ने एक मामले में अन्तः कालीन लाभ का अनुतोष जोड़ने की अनुमति दे दी, परन्तु संशोधन के आवदेन की तारीख से तीन वर्ष पहले के उपभोग और कब्जे के लिये ही उसे परिसीमित कर दिया। इसके विपरीत जहाँ वादी अधिक सहायता की मांग करता है, परन्तु साक्ष्य के आधार पर वह किसी कम सहायता पाने का हकदार है, तो न्यायालय वादी को उतनी ही सहायता दे सकेगा। केवल इसी कारण से वाद को निरस्त नहीं करना चाहिये।

    अतः यह आवश्यक हो जाता है कि वादपत्र के प्रार्थना खण्ड में जो भी अनुतोष उचित प्रतीत हो उसकी स्पष्ट से माँग की जावे।

    रूप आनुकल्पिक या वैकल्पिक अनुतोष की माँग-यदि किसी मामले में एक अनुतोष के स्थान पर दूसरे अनुतोष की बदले में माँग की जाती है, तो ऐसे अनुतोष एक दूसरे के आनुकल्पिक अनुतोष होते हैं और न्यायालय साक्ष्य के आधार पर उनमें से कोई एक प्रदान कर सकता है। यह अतिरिक्त अनुतोष न होकर वैकल्पिक है। अत: वाद- पत्र में ऐसे आनुकल्पिक अनुतोष की माँग करना आवश्यक है।

    उदाहरणार्थ-

    वादी को विवादग्रस्त भूमि का स्वामी (मालिक) घोषित किया जावे, या आनुकल्पिक रूप से सुखाधिकार के आधार पर उस विवादग्रस्त भूमि पर वादी के आधिपत्य (कब्जा) की घोषणा की जावे या प्रतिकूल कब्जे के आधार पर स्वामित्व की घोषणा की जाये।

    आनुकल्पिक अनुतोष (Alternative Relief)- कतिपय (कुछ) दशाओं में वादी अनुकल्पतः असंगत अनुतोष की प्रार्थना कर सकता है।

    वादी ने जो आनुकल्पिक अनुतोषों की माँग की उनमें से एक उसे मिल गया, तो वह अपील में उस बिना मिले अनुतोष की मांग नहीं कर सकता। आनुकल्पिक (वैकल्पिक) अनुतोष की प्रार्थना को अतिरिक्त अनुतोष की माँग में बदलने की स्वीकृति नहीं दी जा सकती। शब्द आनुकल्पिक का अर्थ कि सम्बन्धित व्यक्ति दो अनुतोषों में से अपनी इच्छा या पसन्द से किसी एक का वरण (चयन) करे। जहाँ वादी ने अपने वाद में आनुकल्पिक अनुतोष की मांग की और सम्पूर्ण विचारण के बाद उसे उनमें से एक प्रदान कर दी गई, तो वह अपील में दूसरे आनुकल्पिक अनुतोष की मांग नहीं कर सकता। ऐसा करना पक्षकार की धुन और मनमर्जी को प्रोत्साहन देना होगा।

    स्वामित्व (टाइटिल) की घोषणा के वाद में-वादी जब अपना आधिपत्य (कब्जा) बता कर स्वामित्व की घोषणा चाहता है, तो वह वैकल्पिक रूप से यह अनुतोष माँग सकता है कि यदि उसका आधिपत्य न पाया जाये, तो आधिपत्य भी दिलाया जावे। स्वत्व (स्वामित्व, हक) की माँग 12 वर्ष से अधिक अवधि के प्रतिकूल आधिपत्य के आधार पर भी की जा सकती है। अनन्य आधिपत्य के दावे में वैकल्पिक रूप से संयुक्त आधिपत्य की मांग की जा सकती है।

    एक घोषणा वाद में ये अनुतोष माँगे गये थे कि (1) प्रतिवादी का दत्तक पुत्र नहीं है और (व) वादी विवादग्रस्त सम्पत्ति का एक मात्र स्वामी है। इनमें से पहला अनुतोष परिसीमा से बाधित पाया गया, फिर भी दूसरा अनुतोष उसे प्रदान किया जा सकता है।

    वाद पत्र में कथित आधार से भिन्न किसी आधार पर भी वादी को अनुतोष दिया जा सकता है, परन्तु इससे प्रतिवादी को कोई प्रतिकूलता नहीं होनी चाहिये।

    जहाँ चाहा गया अनुतोष पक्षकारों के अभिवचनों से सुनिश्चित किया जा सकता है, और उस विवाद की विषय- सामग्री का उनको पता था, तो आनुकल्पिक आधार से अनुतोष दिया जा सकता है, चाहे वादपत्र का शाब्दिक अर्थ करने से वह वाद असफल हो जाना चाहिए था।

    वादी ने किसी भूमि पर अपने स्वामित्व की माँग की और आनुकल्पिक रूप से उस पर सुखाधिकार की माँग की। इस वाद को असंगत अनुतोष माँगने के कारण खारिज नहीं किया जा सकता।

    वाद पत्र में वर्णित साक्ष्य से सिद्ध हुए तथ्यों के आधार पर न्यायालय के पक्षकारों को अनुतोष अनुदत कर सकता है, जो वादपत्र में माँगा न गया हो किन्तु मामले के तथ्यों और परिस्थितियों में न्यायालय को न्याय संगत प्रतीत हो।

    आनुकल्पिक मामले को उत्पन्न करने वाले सभी तथ्य वादपत्र में दिये गये थे। वादी के दावे के उत्तर में प्रतिवादी ने उस आनुकल्पिक मामले को स्पष्ट रूप से प्रस्तुत किया है। ऐसी स्थिति में न्यायालय वादी को आनुकल्पिक अनुतोष दे सकता है, हालांकि ऐसा मामला वादपत्र में नहीं बनाया गया था।

    आनुकल्पिक अनुतोष वादपत्र में नहीं माँगा था। वादी माल में पुनर्विक्रय के आधार पर क्षतिपूर्ति माँग रहा था, तो उसे उस माल के संविदा-मूल्य और बाजार मूल्य के अन्तर के आधार पर क्षतिपूर्ति प्रदान की जा सकती है।

    न्यायालय की सामान्य शक्तियाँ और साधारण या अन्य अनुतोष की माँग, जो न्यायसंगत हो-

    नियम 7 में स्पष्ट रूप से यह कहा गया है कि यह आवश्यक नहीं होगा कि ऐसा कोई साधारण या अन्य अनुतोष माँगा जाए, जो न्यायालय न्याय संगत समझे, क्योंकि ऐसा अनुतोष न्यायालय द्वारा (बिना माँगे भी) सर्वदा हो उस विस्तार तक दिया जा सकेगा, मानो वह माँगा गया हो।

    इस प्रकार स्पष्ट कानूनी स्थिति के होते हुए भी वादपत्र में साधारण अनुतोष की मांग करना एक प्रथा बन गई है, जो संहिता के परिशिष्ट 'ग' में दिये गये संख्यांक 33 में भी सम्मिलित की गई है, जो इस प्रकार है-

    "ऐसा अतिरिक्त या अन्य अनुतोष दिया जाए, जैसा मामले की प्रकृति से अपेक्षित हो।" या-"अन्य अनुतोष, जो न्यायालय उचित समझे, प्रदान किया जावे।"

    जैसा कि ऊपर नियम 7 में स्पष्ट विधिक उपबन्ध किया गया है। यह सुनिश्चित है कि न्यायालय ऐसा कोई अनुतोष नहीं दे सकता, जो कि वादपत्र में दिये गये अधिकथनों पर आधारित नहीं हो। अत: इस प्रकार की प्रार्थना करने की कोई आवश्यकता नहीं है।

    साधारण या अन्य अनुतोष का अर्थान्वयन-इस शब्दावली के अर्थ में असंगत अनुतोष नहीं आता है। अनुतोष जो नहीं माँगा गया और जो पक्षकारों के अभिवचन से संगत नहीं है; स्वीकृत नहीं किया जा सकता। स्वामित्व के वाद में धन वसूली की डिक्री नहीं दी जा सकती, क्योंकि धन वसूली की डिक्री का अनुतोष अभिवचन से असंगत है।

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