सिविल प्रक्रिया संहिता,1908 आदेश भाग 31: आदेश 6 नियम 18 के प्रावधान

Shadab Salim

13 Dec 2023 11:11 AM IST

  • सिविल प्रक्रिया संहिता,1908 आदेश भाग 31: आदेश 6 नियम 18 के प्रावधान

    सिविल प्रक्रिया संहिता,1908(Civil Procedure Code,1908) का आदेश 6 अभिवचन से संबंधित है जहां अभिवचन के साधारण नियम दिए गए हैं। आदेश 6 का नियम 18 न्यायालय द्वारा संशोधन का आदेश किये जाने के पश्चात संशोधन करने से संबंधित है। इस आलेख के अंतर्गत नियम 18 पर टिप्पणी प्रस्तुत की जा रही है।

    नियम- 18 आदेश के पश्चात् संशोधन करने में असफल रहना-यदि कोई पक्षकार, जिसने संशोधन करने की इजाजत के लिए आदेश प्राप्त कर लिया है, उस आदेश द्वारा उस प्रयोजन के लिए परिसीमित समय के भीतर या यदि उसके द्वारा कोई समय परिसीमित नहीं किया गया है तो, आदेश की तारीख से चौदह दिन के भीतर, तदनुसार संशोधन नहीं करता है तो उसे यथास्थिति, यथापूर्वोक्त परिसीमित समय के या ऐसे चौदह दिन के अवसान के पश्चात् संशोधन करने के लिए अनुज्ञात नहीं किया जाएगा, जब तक कि न्यायालय द्वारा समय न बढ़ाया जाए।

    संशोधन के लिए समय

    नियम 18 के अनुसार, संशोधन की इजाजत प्राप्त करने के बाद न्यायालय द्वारा दिये गये समय के भीतर या आदेश को तारीख से चौदह दिन के भीतर संशोधन नहीं करने पर ऐसा संशोधन अनुज्ञात नहीं किया जावेगा। परन्तु आवेदन करने पर न्यायालय इसके लिए समय बढ़ा सकता है। यहां धारा 148 लागू होगी और तीस दिन को अवधि बढ़ायी जा सकेगी।

    कालावधि बीत जाने पर न्यायालय को जब अधिकारिता नहीं- धारा 148 तथा धारा 151 के अधीन अन्तर्निहित शक्ति के प्रयोग में अवधि बढ़ाई गई - सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 6 नियम 18 के अधीन विहित कालावधि के समाप्त हो जाने के पश्चात् संशोधित वाद पत्र को अभिलेख पर लेने की निचले न्यायालय को अधिकारिता नहीं थी।

    रूपकुमार एवं अन्य बनाम जुगराज का निर्णय का आश्रय लिया गया है। यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि जब वाद पत्र को संशोधित करने की अनुज्ञा देने के पश्चात् यह केस विचारण न्यायालय को प्रतिप्रेषित किया गया था तब न्यायालय ने कोई ऐसा समय नहीं दिया था जिसके भीतर संशोधित वाद पत्र को विचारण न्यायालय में फाइल किया जाना अपेक्षित था।

    आदेश 6 नियम 18 के अधीन यह उल्लिखित किया गया है कि जब संशोधित वादपत्र को फाइल करने के लिए कोई समय परिसीमित नहीं किया गया हो तब समय आदेश को तारीख से 14 दिन तक का होगा। मेरा यह भी संप्रेक्षण है कि न्यायालय ने इस आदेश की तारीख से अधमास के भीतर खर्चा देने का वादी को निर्देश दिया था। अतः, या तो स्वयं आदेश से यह अनुमान लगाया जा सकता है कि संशोधित वादपत्र फाइल किये जाने को कालावधि अर्थमास थी अथवा यह समझा जायेगा कि सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 6 नियम 18 के आधार पर कालावधि आदेश को तारीख से 14 दिन थी।

    इस केस में दोनों पक्षकारों ने यह स्वीकार किया है कि संशोधित वादपत्र उक्त कालावधि के भीतर फाइल नहीं किया गया था। यह 4 माह के पश्चात् फाइल किया गया था। यह भी एक स्वीकृत तथ्य है कि न्यायालय ने वादी को संशोधित वादपत्र फाइल करने के लिए अनुज्ञात किया था। इस बिन्दु पर भी कोई विवाद नहीं है कि अपील न्यायालय से समय बढ़ाये जाने के लिए कोई निवेदन नहीं किया गया था।

    रूपकुमार बनाम जुगराज (उपरोक्त) का आश्रय लिया गया कि-जब अपील न्यायालय ने वादपत्र में एक विशेष समय के भीतर संशोधन करने की अनुज्ञा के निदेश के साथ केस को प्रतिप्रेषित कर दिया था तो विचारण न्यायालय द्वारा संशोधित वादपत्र को स्वीकार नहीं किया जाना चाहिए था क्योंकि विचारण न्यायालय को अपील न्यायालय द्वारा नियत समय को बढ़ाने को कोई अधिकारिता नहीं थी।

    यह सत्य है कि उस मामले में इस न्यायालय ने यह अभिनिर्धारित किया है कि संशोधित वादपत्र फाइल किये जाने के लिए अपील न्यायालय द्वारा नियत समय को बढ़ाने का प्राधिकार विचारण न्यायालय को नहीं था। इस सम्बन्ध में इस न्यायालय को खण्डपीठ ने निम्नलिखित सम्प्रेक्षण किया है-

    जहाँ तक इस तर्क का सम्बन्ध है कि विचारण न्यायालय समय को, अभिलेख के प्राप्त होने की तारीख से लेकर संशोधित वादपत्र के प्राप्त होने की तारीख तक बढ़ाने के लिए सशक्त है, हमारी राय है कि विचारण न्यायालय का यह दृष्टिकोण सही है कि वह उस समय को बढ़ाने के लिए प्राधिकृत नहीं था जो इस मामले में अपील-न्यायालय द्वारा नियत किया गया है।

    प्रतिवादी के विद्वान वकील ने इन तकों का प्रतिवाद करते हुए यह निवेदन किया है कि हालांकि विचारण न्यायालय को, प्रतिप्रेषण के आदेश से 14 दिन की कालावधि के पश्चात् प्रतिप्रेषण को आदेश पारित करने वाले न्यायालय द्वारा समय में वृद्धि किये जाने बिना संशोधित वादपत्र को स्वीकार करने को अधिकारिता नहीं थी, लेकिन इस न्यायालय को ऐसा करने की अधिकारिता है और इस मामले की परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए प्रतिवादी के हित में इस न्यायालय को अपने विवेक का प्रयोग करना चाहिए। उच्च न्यायालय ने धारा 148 तथा धारा 151 के अधीन अन्तर्निहित शक्ति के प्रयोग में समय बड़ा दिया तथा अपील खारिज कर दी।

    एक अन्य मामले में वादपत्र में संशोधन निर्धारित समय सीमा के भीतर नहीं किया गया क्योंकि अवकाश के दिन आ गए थे एवं पक्षकारों के घर गमी हो गई थी उपरोक्त दोनों कारण समुचित है एवं समय सीमा बढ़ाई जा सकती है।

    Tags
    Next Story