सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 आदेश भाग 168: आदेश 30 नियम 5 के प्रावधान

Shadab Salim

17 April 2024 5:02 AM GMT

  • सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 आदेश भाग 168: आदेश 30 नियम 5 के प्रावधान

    सिविल प्रक्रिया संहिता,1908(Civil Procedure Code,1908) का आदेश 30 फर्मों के अपने नामों से भिन्न नामों में कारबार चलाने वाले व्यक्तियों द्वारा या उनके विरूद्ध वाद है। जैसा कि आदेश 29 निगमों के संबंध में वाद की प्रक्रिया निर्धारित करता है इस ही प्रकार यह आदेश 30 फर्मों के संबंध में वाद की प्रक्रिया निर्धारित करता है। इस आलेख के अंतर्गत आदेश 30 के नियम 5 पर टिप्पणी प्रस्तुत की जा रही है।

    नियम-5 सूचना की तामील किस हैसियत में की जाएगी- जहां समन फर्म के नाम निकाला गया है और उसकी तामील नियम 3 द्वारा उपबन्धित रीति से की गई है वहां ऐसे हर व्यक्ति को जिस पर उसकी तामील की गई है, ऐसी तामील के समय दी गई लिखित सूचना द्वारा यह जानकारी दी जाएगी कि क्या उस पर तामील भागीदार की हैसियत में या भागीदार के कारबार का नियंत्रण या प्रबन्ध करने वाले व्यक्ति की हैसियत में या दोनों हैसियतों में की जा रही है और ऐसी सूचना देने में व्यतिक्रम होने पर उस व्यक्ति के बारे में जिस पर तामील की गई है, यह समझा जाएगा कि उस पर तामील भागीदार की हैसियत में की गई है।

    परिचय नियम 5 में तामीलकर्ता को हैसियत के बारे में सूचना देने की व्यवस्था की गई है।

    आवश्यक शर्तें नियम 5 की आवश्यक शर्तें इस प्रकार हैं-

    (1) समन फर्म के नाम से निकाला गया है और उसकी तामील नियम 3 में बताये तरीके से की गई है,

    (2) जिस पर यह तामील की गई है, उसे तामील के समय लिखित में यह सूचना भी दी जावेगी कि-उसे निम्न में से किस हैसियत में यह समन तामील कराया जा रहा है-

    (क) भागीदार की हैसियत में, या

    (छ) भागीदारी के कारबार का नियंत्रण या प्रबन्ध करने वाले व्यक्ति की हैसियत में या

    (ग) दोनों हैसियतों में।

    (3) यदि ऐसी सूचना नहीं दी जाती है, तो यह समझा (माना) जावेगा कि उस पर तामील भागीदार की हैसियत में की गई है।

    फर्म-नाम से फर्म के विरुद्ध वाद में समन की तामील का तरीका फर्म-नाम से फर्म के विरुद्ध फाइल वाद में 30 (1) समन फर्म के फर्म-नाम से सम्बोधित किया जाएगा, (2) समन को रजिस्टर्ड डाक से रसीद सहित भेजा जाना चाहिये, (3) समन के साथ लिखित में एक नोटिस एक विशेष व्यक्ति को सम्बोधित करते हुए होना चाहिये जो उसे सूचित करता हो कि क्या उसे भागीदार के रूप में या फर्म के व्यापार के प्रबंधक या नियन्त्रणकर्ता व्यक्ति के रूप में या दोनों प्रकार से तामील हो गई है और (4) समन तथा उक्त नोटिस एक लिफाफे में संलग्न रूप से उस व्यक्ति विशेष को सम्बोधित होने चाहिये, जिसे भागीदार या फर्म के व्यापार के नियंत्रक या प्रबंधक के रूप में या दोनों रूपों में सम्मन की तामील की जानी है, अन्यथा यह बताना असंभव होगा कि इसे किसके द्वारा प्राप्त करना है और कोन डाक की रसीद को हस्ताक्षरित करेगा, जो आदेश 5 नियम 21-क के अधीन प्रथम दृष्ट्‌या तामील का प्रभाव समझा जावेग।

    सूचना की तामील में प्रास्थिति (हैसियत) का प्रश्न जब किसी फर्म के विरुद्ध वाद उसके फर्म-नाम में लाया जाता है, तो आदेश 30 के नियम 3 के अनुसार दो तरीकों में से एक द्वारा या तो उस फर्म के एक या अधिक भागीदारों पर या उस फर्म के व्यापार पर नियन्त्रण रखने वाले व्यक्ति पर समन तामील कराये जा सकेंगे। परन्तु नियम 5 इसके आगे यह उपबन्ध करता है कि-जिस व्यक्ति को समन तामील हो गये हैं, उसे एक लिखित सूचना द्वारा तामील के समय सूचित किया जावेगा कि उसे एक भागीदार के रूप में या उस फर्म के व्यापार की व्यवस्था में लगे व्यक्ति के रूप में या दोनों प्रास्थितियों में उसे समय तामील करवाया गया है। इस प्रकार उस व्यक्ति को उसकी प्रास्थिति (हैसियत) की सूचना देना आवश्यक है।

    परन्तु यदि ऐसी सूचना नहीं दी जाती है, तो उस व्यक्ति को, जिसे तामील हुई है, उसे भागीदार के रूप में तामील समझी जावेगी। यह उपधारणा न होकर प्रकल्पित तामील होगी । अब यदि वह व्यक्ति यह एतराज उठाता है कि वह उस फर्म का भागीदार नहीं है, तो उसे आगे नियम 8 में बताये अनुसार अभ्यापत्तिपूर्ति उपस्थित होने का उचित मार्ग अपनाना चाहिये, जिसमें वह भागीदार होने से इन्कार करेगा। यदि वह ऐसा करने में असफल रहता है, तो उसका परिणाम यह होगा कि उसे आदेश 21, नियम 50 के उपनियन (1) के खण्ड (ग) के अर्थ में एक भागीदार के रूप में व्यक्तिगत तामील होना समझा जावेगा और उसके विरुद्ध व्यक्तिगत रूप से निष्पादन की स्वीकृति दी सकेगी।

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