सिविल प्रक्रिया संहिता,1908 आदेश भाग 12: आदेश 5 नियम 1 के प्रावधान

Shadab Salim

31 Oct 2023 12:48 PM GMT

  • सिविल प्रक्रिया संहिता,1908 आदेश भाग 12: आदेश 5 नियम 1 के प्रावधान

    सिविल प्रक्रिया संहिता,1908(Civil Procedure Code,1908) का आदेश 5 समन एवं समन की तामील से संबंधित है। इस आदेश के अंतर्गत सभी नियम समन एवं समन की तामील से संबंधित हैं। वाद संस्थित होने के ठीक बाद अदालत द्वारा समन निकाला जाता है, ऐसा समन प्रतिवादियों को जारी किया जाता है। इस आलेख के अंतर्गत आदेश 5 के नियम एक पर चर्चा की जा रही है।

    नियम 1 के प्रावधान संहिता में इस प्रकार दिए गए हैं-

    नियम-1 समन - [ ( 1 ) जब वाद सम्यक् रूप से संस्थित किया जा चुका हो तब उस प्रतिवादी पर, समन के तामील की तारीख से तीस दिन के भीतर उपसंजात होने और दावे का उत्तर देने तथा अपनी प्रतिरक्षा का लिखित कथन, यदि कोई हो, फाइल करने के लिए, समन निकाला जा सकेगा : परन्तु जब प्रतिवादी, वाद-पत्र के उपस्थित किए जाने पर ही उपसंजात हो जाए और वादी का दावा स्वीकार कर ले तब कोई समन नहीं निकाला जाएगा : परन्तु यह और कि जहाँ प्रतिवादी तीस दिन की उक्त अवधि के भीतर लिखित कथन फाइल करने में असफल रहता है, वहाँ उसे किसी अन्य दिन को फाइल करने के लिए अनुज्ञात किया जाएगा जो न्यायालय द्वारा उसके लिए कारणों को लेखबद्ध करके, विनिर्दिष्ट किया जाए, किन्तु जो समन के तामील की तारीख से नब्बे दिन के बाद का नहीं होगा ।]

    (2) वह प्रतिवादी जिसके नाम उपनियम (1) के अधीन समन निकाला गया है-

    (ख) ऐसे प्लीडर द्वारा, जो सम्यक रूप से अनुर्दिष्ट हो और वाद से सम्बन्धित सभी सारवान् प्रश्नों का उत्तर देने के लिए समर्थ हो, अथवा

    (क) स्वयं, अथवा

    (ग) ऐसे प्लीडर द्वारा, जिसके साथ ऐसा कोई व्यक्ति है जो सभी प्रश्नों का उत्तर देने के लिए समर्थ है, उपसंजात हो सकेगा।

    (3) हर ऐसा समन न्यायाधीश या ऐसे अधिकारी द्वारा, जो वह नियुक्त करे, हस्ताक्षरित होगा और उस पर न्यायालय की मुद्रा लगी होगी।

    समनों का निकाला जाना आदेश 5 के 1-8 नियमों में है। निश्चित दिन को दावे का उत्तर देने के लिए प्रतिवादी को समन संख्यांक 1 में निकाला जायेगा। यदि प्रतिवादी स्वयं उपस्थित होकर वाद को स्वीकार कर लेता है, तो उसे समन नहीं भेजा जायेगा, अन्यथा उसे लिखित कथन (दावे का उत्तर) देने के लिए समन भेजा जावेगा ( नियम 1) प्रतिवादी को समन के साथ वाद पत्र की प्रति भी भेजी जायेगी (नियम 2) तथा उस समन में निश्चित दिन व स्थान का उल्लेख होगा और उपस्थित होने के लिए तो दिन का समय दिया जावेगा जिसे 90 दिन तक बढ़ाया जा सकेगा (नियम 6)। नियम 1(3) के अनुसार समन न्यायालय द्वारा हस्ताक्षरित और मुद्रा सहित होगा। प्रतिवादों को स्वयं या प्लीडर द्वारा या प्लीडर के साथ तथ्यों को जानने वाले व्यक्ति के द्वारा उपस्थित होना होगा। नियम में बताये गये दो आधारों (क), (ख) 4 पर प्रतिवादी को स्वयं उपसंजाति (स्वयं उपस्थिति) के लिए समन प्ररूप संख्यांक 3 में जारी किया जायेगा। इस दिन वादी को भी स्वयं उपस्थित रहना होगा (नियम 3)। प्रतिवादी को नियम 1 सपठित नियम 7 के अधीन कोई दस्तावेज पेश करने के लिए समन जारी किया जा सकेगा संक्षिप्त वाद के मामले में प्रतिवादी को समन संख्यांक 4 में जारी होगा और लघुवाद न्यायालय के मामलों में यह अन्तिम निपटारे के लिए होगा(नियम 5)

    प्रतिवादी को विवाद्यक (वाद प्रश्न) स्थिर (निश्चित करने के लिए समन नियम 5 के अधीन प्ररूप संख्या 1 में जावेगा या मामले के अन्तिम निपटारे के लिए नियम 5 के अधीन समन भेजा जायेगा और नियम 8 के अनुसार प्रतिवादी उस दिन अपने साक्षियों को पेश करेगा। समन को अनुचित सामील व अभिवचन के अभाव में, बहस नहीं सुनी जावेगी, के आधार पर सुनवाई नहीं की जा सकती।

    निर्धन व्यक्ति के विरुद्ध वाद-

    जब वादी को निर्धन के रूप में वाद करने की अनुमति याचिका स्वीकार होकर वाद के रूप में पंजीकृत हो जाए, उसके बाद प्रतिवादी को समन किया जाता है।

    अवयस्क को समन-

    इस नियम में कोई मना नहीं है कि अवयस्क प्रतिवादियों तथा उनके संरक्षक को साथ-साथ समन जारी नहीं किये जा सकते है-

    नियम 1 का पहला परन्तुक - ऐसी स्थिति की अपेक्षा करता है, जब एक प्रतिवादी के विरुद्ध समन जारी किये बिना व तामील बिना हो उसके विरुद्ध डिक्री पारित की जा सकती है।

    समन पर दिनांक पेशी समन पर उस दिनांक की प्रविष्टि होनी आवश्यक है, जिसको प्रतिवादी को न्यायालय में उपस्थित होना है। परन्तु यदि उस दिन अवकाश हो, तो प्रतिवादी को दुबारा दूसरे दिनांक के लिए समन तामील कराना आवश्यक होगा। न्यायालय द्वारा स्वप्रेरणा से अन्तरण की शक्ति का प्रयोग करने पर प्रत्येक पक्षकार को नोटिस देना आवश्यक नहीं है।

    संशोधन, 2002 - आदेश 5 नियम 1 के उपनियम (1) को प्रतिस्थापित किया गया है, जिसमें प्रतिवादी द्वारा लिखित कथन प्रस्तुत करने की समय-सीमा तीस दिन रखी गई है, जिसे 90 दिन तक बढ़ाया जा सकेगा।

    न्यायालय की गलती-

    डिक्री शून्य न्यायालय के कार्यालय ने गलती से "यूनिवर्सल माइनिंग कम्पनी" के नाम से समन जारी कर दिये जब कि सही नाम 'यूनिवर्सल मशीनरी कम्पनी' था। समन के साथ वादपत्र की प्रति नहीं थी। प्रतिवादी ने यह कहते हुए कि समन उसके लिए नहीं थे, उस समन को लौटा दिया। प्रतिवादी के पत्र पर विचार किए बिना न्यायालय ने एकपक्षीय डिक्री पारित कर दी। बाद में प्रतिवादी को इस एकपक्षीय डिक्री का पता चला, तो उसने अपास्त करने का आवेदन किया, जिसे न्यायालय ने परिसीमा से वर्जित होने से खारिज कर दिया। अभिनिर्धारित कि उक्त एकपक्षीय डिक्री विधि की दृष्टि में शून्य थी। न्यायालय द्वारा इसे अपास्त करना आवश्यक था। इसके अतिरिक्त प्रतिवादी द्वारा बताये गये कारण देरी को क्षमा करने के लिए पर्याप्त थे।

    न्यायालय का अभिमत-

    आदेश 5 नियम 1 (1) के समान व्यवस्था आगे आदेश 8, नियम यह एक प्रक्रियात्मक उपबंध है जो आदेशात्मक न होकर निदेशात्मक है। अतः इसमें अपवाद के रूप में गंभीर अन्याय होने के मामलों में कारण लेखबद्ध करते हुए इस अवधि को 90 दिन से आगे भी बढ़ाया जा सकता है।

    समन और प्रकटीकरण की प्रक्रिया संहिता की धारा 27 से 32 में प्रतिवादी तथा साक्षियों को स्थिति हेतु समन और प्रकटीकरण के आधारभूत नियम दिये गये हैं, जिनके लिए प्रक्रिया नियमों में विहित की गई है।

    संहिता की पहली अनुसूची में निम्न आदेशों में ये नियम दिये गये हैं-

    (1) आदेश 5-समनों का निकाला जाना और उनकी तामील

    (2) आदेश 16 - साक्षियों को समन करना और उनकी हाजिरी

    (3) आदेश 16-क-कारागार में परिरुद्ध या निरुद्ध साक्षियों की हाजिरी

    (4) आदेश 48 प्रकीर्ण आदेशिका की तामील एवं खर्चे, आदेशों और सूचनाओं की तामील, - उच्च न्यायालय द्वारा बनाये गये नियम- धारा 122 125 तथा 128 के अनुसार उच्च न्यायालयों को धारा 128 (2) (ख) के अधीन "समनों, सूचनाओं और अन्य आदेशिकाओं की साधारणतः या किन्हीं विनिर्दिष्ट क्षेत्रों में डाक द्वारा या किसी अन्य प्रकार से तामील और ऐसी तामील के सबूत के बारे में नियम बनाने की शक्तियों दो गई हैं।

    सम्बन्धित प्ररूप (फार्म) संहिता की प्रथम अनुसूची के साथ दिए गए परिशिष्ट (ख) में आदेशिकाओं के रूप (फार्म) संख्यांक दिये गये हैं और परिशिष्ट (ग) में प्रकटीकरण आदि के लिए प्ररूप संख्यांक दिये गये हैं, जिनका प्रयोग किया जायेगा।

    प्रतिवादी को समन (धारा 27 तथा 28 ) - वाद सस्थित होने के बाद दावे का उत्तर देने के लिए। प्रतिवादियों को समन भेजे जायेंगे, जिसका तरीका (रीति) आदेश 5 के नियम 1 से 24 में दिया गया है। धारा 28 के अनुसार प्रतिवादी जब किसी अन्य राज्य में रहता है, तो उसे समन वहाँ के न्यायालय के माध्यम से वहाँ लागू नियमों के अनुसार तामील कराये जायेंगे।

    2क. प्रतिवादी पर तामील प्रतिवादी पर तामील पर्याप्त या अपर्याप्त अवधारित करने के लिये न्यायालय - को समनों की तामील के लिये निर्धारित प्रक्रिया को अनुपालना करना आवश्यक है। जब तक तामील के लिये निर्धारित सभी प्रक्रिया की पालना नहीं हो जाये तामील पर्याप्त नहीं मानी जायेगी।

    समन की आवश्यक बातें (शर्त) - एक समय में निम्नलिखित आवश्यक बातें पूरी होना उसकी वैधता के लिए आवश्यक है-

    1) समत निर्धारित प्ररूप (फार्म) पर होगा, जो परिशिष्ट (ख) में निहित किया गया हो।

    2) ऐसा समन न्यायाधीश या उसके द्वारा नियुक्त होता और उस पर न्यायालय की मुद्रा लगी होगी।

    3) प्रत्येक समन के साथ वाद-पत्र / आवेदन की प्रति संलग्न होगी।

    4) समन में उस पेशी का प्रयोजन बताया जावेगा।

    5) प्रतिवादी जो दस्तावेज प्रस्तुत करना चाहे और जिन पर वह निर्भर करता है, ऐसा दस्तावेज पेश करने का आदेश समन पर होगा।

    6) विशेष मामलों में स्वीय (निजी) उपस्थिति के लिए प्रतिवादी को समन इरा आदेश दिया जाएगा।

    7) समन में प्रतिबादी को निर्देश होगा (1) स्वयं (2) प्लीडर द्वारा या (3) प्लीडर के साथ मामले के जानकार व्यक्ति के साथ, यथास्थिति उपस्थित हो।

    8) समन में न्यायालय का नाम, स्थान, उपस्थित होने का समय दिनांक अंकित होगा।

    4 . समन के प्रयोजन के आधार पर कई रूप–

    1. प्रतिवादी को व्यक्तिशः या प्लीडर द्वारा उपस्थिति के लिए समन [नियम (2)-3]

    2. दावे का उत्तर देने के लिए या लिखित कथन फाइल करने के लिए।

    3. विवाद्यको के स्थिरीकरण के लिए (संख्यांक - 2)

    4. अन्तिम निपटारा के लिए (संख्यांक नियम 5)

    5. दस्तावेज प्रस्तुत करने के लिए (नियम 7) (परिशिष्ट (ग) का संख्यांक 7]

    6. प्रतिवादी के स्वयं उपसंजात होने के लिए समन (नियम 3 व 6) (संख्यांक-3)

    समन की तामील के तरीके (1999 व 2002 के संशोधन)-प्रतिवादी पर समन तामील करने संहिता के आदेश 5 में निम्नलिखित पांच तरीके विहित किए गए है-

    1) साधारण तामील - (आदेश 5) इसमें समन की एक प्रति प्रतिवादी को व्यक्तिगत रूप से या उसके एजेन्ट (अभिकर्ता) या किसी अन्य व्यक्ति को उसकी ओर से तामीलकर्ता द्वारा दी जाती है और उस समय की मूल प्रति के पीछे उसके हस्ताक्षर प्राप्ति-स्वीकार (रसीद) के रूप में प्राप्त किये जाते हैं।

    (2) आधुनिक साधनों से तामील-संशोधित नियम 9 के अनुसार, अब आधुनिक साधनों से न्यायालय द्वारा व्यक्तिगत तामील करवाने का तरीका अपनाया गया है, जिसमें पत्रवाहक सेवा (कुरियर सर्विस), रजिस्टर्ड पावती डाक इतगामी डाक (स्पीड पोस्ट), फैक्स संदेश, या इलेक्ट्रोनिक मेल में से किसी एक तरीके को अपनाया जा सकता है, जैसा उच्च न्यायालय के नियमों में दिया गया हो या जैसा न्यायालय निर्देश दे।

    (3) अतिरिक्त तामील (नियम 9क) वादी द्वारा प्रतिवादी पर अतिरिक्त तामील न्यायालय द्वारा तामील के साथ-साथ ऐसे तरीकों से करवाई जा सकती है जो ऊपर नियम 9 में बताये गये है।

    (4) समन को चस्पा करना-(आदेश 15 नियम 17 व 19 ) — नियम 17 में वर्णित मामलों में, न्यायालय के किसी आदेश के बिना, प्रतिवादी के सामान्य निवास स्थान, व्यापार या व्यक्तिगत लाभ प्राप्त करने के स्थान के बाहरी दरवाजे पर या किसी साफ दिखाई देने वाले दूसरे स्थान पर समन की एक प्रति चस्पा की जाती है (चिपका दी जाती है।)

    (5) प्रतिस्थापित तामील (आदेश 5 नियम 20 ) के अनुसार करवाई जायेगी।

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