सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 आदेश भाग 11: आदेश 4 के प्रावधान
Shadab Salim
31 Oct 2023 10:07 AM IST
सिविल प्रक्रिया संहिता,1908(Civil Procedure Code,1908) का आदेश 4 व्यवहारिक दृष्टिकोण से इतना महत्वपूर्ण नहीं है किंतु यह स्पष्ट करता है कि किसी भी वाद को संस्थित कैसे किया जाएगा। वास्तव में यह आदेश फाइलिंग की प्रक्रिया निर्धारित करता है। इस आलेख के अंतर्गत आदेश 4 पर चर्चा की जा रही है।
वाद संस्थित करने का तरीका धारा 26 तथा आदेश-4 में बतलाया गया है।
सिविल प्रक्रिया संहिता के संशोधन (2002) का स्वरूप व प्रभाव - धारा 26, आदेश 4, आदेश 6 नियम 15 में किए गए संशोधन प्रक्रियात्मक देरी को रोकने के उद्देश्य से किए गए हैं; परंतु ये प्रक्रियात्मक होने से निदेशात्मक हैं और इनकी पालना न करने से वादपत्र स्वतः ही अस्तित्वहीन (non-est) (खारिज) नहीं हो जायेगा।
वाद पत्र द्वारा वाद प्रारम्भ होगा - ( 1 ) हर वाद न्यायालय को या उसके द्वारा निमित्त नियुक्त किसी अधिकारी को [वादपत्र दो प्रतियों में] उपस्थित करके संस्थित किया जाएगा।
(2) हर वाद पत्र आदेश 6 और 7 में अन्तर्विष्ट नियमों का वहाँ तक अनुपालन करेगा जहाँ तक वे लागू किए जा सकते हैं।
[(3) वाद पत्र तब तक सम्यक् रूप से संस्थित किया गया नहीं समझा जाएगा, जब तक कि वह उपनियम (1) और उपनियम (2) में विनिर्दिष्ट अध्यपेक्षाओं का अनुपालन नहीं करता है।]
राज्य संशोधन
इलाहाबाद- आदेश 4 के नियम 1 में निम्नानुसार स्थापित किया जाये-
(क) उपनियम (1) के स्थान पर, निम्नानुसार प्रतिस्थापित किया जाए-
(1) प्रत्येक वाद न्यायालय को या उसके द्वारा इस निमित्त नियुक्त ऐसे अधिकारी को, प्रत्येक प्रतिवादी को समन की तामीली की सत्यप्रति सहित वादपत्र प्रस्तुत करके संस्थित किया जाएगा, जब तक न्यायालय ने दर्शाये गए उचित कारण से इन प्रतियों को प्रस्तुत करने का समय स्वीकृत न किया हो।
(2) ऐसी तामीली के लिए दी जाने वाली न्यायालय फीस उन वादों की स्थिति में संदत्त की जाएगी जय वादपत्र प्रस्तुत किया गया हो, और अन्य सभी कार्यवाहियों की स्थिति में, जब आदेशिका हेतु प्रार्थना की गई हो।
(ख) वर्तमान उपनियम (2) को उपनियम (3) के रूप में पुनः संख्यांकित किया जाए।
मध्यप्रदेश - आदेश 4 के नियम 1 में निम्नानुसार स्थापित किया जाये-
(क) उपनियम (1) के स्थान में निम्नानुसार स्थापित किया जाये-
(1) प्रत्येक वाद न्यायालय को या उसके द्वारा इस निमित्त नियुक्त ऐसे अधिकारों को वादपत्र उपस्थित करके संस्थित किया जायेगा जब तक न्यायालय ने दर्शाये गए उचित कारण से ऐसी प्रतिलिपि दी जाने के लिए समय नहीं देवें प्रत्येक वादपत्र के साथ जितने प्रतिवादी हों, उतने सादे कागज पर वादपत्र की सत्य प्रतिलिपि प्रत्येक प्रतिवादी को समन के साथ तामीली हेतु दी जायेगी।
(ख) वर्तमान उपनियम (2) को उपनियम (3) के रूप में पुनर्क्रमांकित कर निम्नानुसार नवीन उपनियम (2) अन्तःस्थापित किया जाये-
(2) ऐसी तामीली के लिए प्रभारित की जाने वाली न्याय फीस उन वादों की स्थिति में संदत्त की जायेगी जब वादपत्र प्रस्तुत किया गया हो और अन्य कार्यवाहियों की स्थिति में, जब आदेशिका के लिए प्रार्थना की गई हो।
(ग) वर्तमान उपनियम (2) को उपनियम (3) किया जावे।
राजस्थान- आदेश 4 के नियम 1 में उपनियम (1) में निम्नानुसार स्थापित किया जाये
(1) प्रत्येक वाद न्यायालय को या उसके द्वारा इस निमित्त नियुक्त ऐसे अधिकारी को प्रत्येक प्रतिवादी को समन की तामीली के साथ, जितने प्रतिवादी हों, उतनी संख्या में सादे कागज पर सत्य प्रतियों के साथ बाद पत्र प्रस्तुत करके संस्थित किया जाएगा, जब तक न्यायालय ने दर्शाये गये उचित कारणों से, इन प्रतियों को प्रस्तुत करने का समय स्वीकृत न किया हो।]
(2) वादों का रजिस्टर न्यायालय हर वाद की विशिष्टियों को, उस प्रयोजन के लिए रखी गई पुस्तक में जो सिविल वादों का रजिस्टर कहलाएगी प्रविष्टि कराएगा। ऐसी प्रविष्टियां हर वर्ष उसी क्रम में संख्यांकित होंगी जिसमें दादपत्र ग्रहण किए गए हैं।
आदेश 4 वादों के संस्थित करने की प्रक्रिया बताता है। इस आदेश में केवल दो नियम हैं- 1 साररूप में वाद के स्वरूप का वर्णन करता है, जबकि नियम 2 वादों के रजिस्टर का स्वरूप बताता है।
नियम धारा 26 – (1) वादों का संस्थित किया जाना - हर वाद वादपत्र उपस्थित करके, या ऐसे अन्य प्रकार से, जैसा विहित किया जाए, संस्थित किया जावेगा।
(2) प्रत्येक वाद पत्र में, तथ्य शपथपत्र द्वारा साबित किए जायेंगे।
उच्चतम न्यायालय का मत – परन्तु यह शपथ पत्र साक्ष्य के रूप में नहीं पढ़ा जावेगा और वाद में संशोधन करने पर नया शपथ पत्र देना होगा।
वाद का प्रारम्भ - ( नियम 1) – धारा 26 में निम्न प्रकार से उपबन्ध किये गये हैं-
इस प्रकार न्यायालय द्वारा वाद को प्राप्त करने के किसी अधिकारी को नियुक्ति की जावेगी, जो उच्च न्यायालय द्वारा बनाये नियमों के अनुसार होगी।
वाद की परिभाषा (धारा 26 सपठित आदेश 4, नियम 1 ) – सिविल प्रक्रिया संहिता में "वाद" (सूट) की कहाँ कोई परिभाषा नहीं दी गई, परन्तु धारा 26 को आदेश 4 के नियम 1 के साथ पड़ने से यह प्रकट होता है कि- "हर वाद वाद पत्र उपस्थित करके संस्थित किया जावेगा। अतः वाद पत्र दो परतों में प्रस्तुत करना, एक वाद को प्राथमिक एवं अनिवार्य शर्त है। वाद किसी वाद पत्र से प्रारम्भ होना चाहिए और उसका अन्त डिक्री के रूप में होना चाहिए।
वाद पत्र का प्रारूप हर वाद पत्र आदेश 6 और 7 में अन्तर्विष्ट (दिये गये) नियमों का पालन करेगा, जहाँ तक उनको लागू किया जा सकता है। [नियम 1 का उपनियम (2)] अतः वाद पत्र के प्रारूपण, अन्तर्वस्तु तथा उसके सत्यापन आदि के लिए आदेश 6 व 7 के नियमों का यथासंभव पालन करना आवश्यक है। वाद पत्र के बिना को गई कोई सिविल कार्यवाही "वाद" के अन्तर्गत नहीं आयेगी। अतः वाद का यह एक अनिवार्य लक्षण है। नया उपनियम (3) इसे स्पष्ट करता है।
उपस्थित करके (Presentation)" का अर्थ शब्द "Presentation" का अर्थ " उपस्थित करने, प्रस्तुत करने" से है। इस बारे में मतभेद है। वाद पत्र को उपस्थित करके शब्दावली से यह प्रकट होता है कि वाद संस्थित करने के लिए वाद पत्र स्वयं पक्षकार या उसका अधिवक्ता व्यक्तिगत रूप से न्यायालय को या उसके द्वारा इस निमित्त नियुक्त किसी अधिकारी को प्रस्तुत करे परन्तु दूसरे मत के अनुसार इस नियम में ऐसा कुछ भी नहीं है कि-वाद पत्र को वादी द्वारा या उसके द्वारा प्राधिकृत व्यक्ति या उसके अधिवक्ता द्वारा व्यक्तिगत रूप से उपस्थित प्रस्तुत किया जाए। परन्तु वाद पत्र डाक से नहीं भेजा जा सकता वाद सस्थित करने के दिनांक का परिसीमा समाप्त होने से गहरा सम्बन्ध है, अतः यदि वाद को परिसीमा समाप्त हो रही हो, तो वाद-पत्र (वाद) न्यायाधीश के निवास पर भी प्रस्तुत किया जा सकता है।
वादों का रजिस्टर (नियम 2 ) - सिविल वादों को विशिष्टियों (विवरण) को एक रजिस्टर में अंकित किया जावेगा और ऐसी प्रविष्टियों हर वर्ष उसी क्रम में संख्यांकित की जाएगी, जिसमें कि वाद पत्र ग्रहण किए गए हैं।
बिना संख्यांकित वाद में भी आवेदन फाइल किया जा सकता है। यह असामान्य नहीं है और इसमें कोई अनियमितता नहीं है।
सिविल वादों का रजिस्टर का प्रारूप यह प्ररूप (फार्म) संहिता के अंत में अनुसूची (ज) में संख्यांक 14 में दिया गया है, जिसमें हर वाद की प्रविष्टि की जायेगी, जिसमें निम्न विवरण दिया जाएगा- 1. वाद-पत्र सस्थित करने की तारीख 2. वाद संख्यांक 3. वादी का नाम, वर्णन, निवास स्थान 4. प्रतिवादी का नाम, वर्णन, निवास स्थान 5. दावा को विशिष्टियों और रकम का मूल्य।