सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 आदेश भाग 96: आदेश 20 नियम 8, 9, 10 के प्रावधान

Shadab Salim

22 Jan 2024 10:42 AM GMT

  • सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 आदेश भाग 96: आदेश 20 नियम 8, 9, 10 के प्रावधान

    सिविल प्रक्रिया संहिता,1908(Civil Procedure Code,1908) का आदेश 20 निर्णय और डिक्री है। इस आलेख के अंतर्गत नियम 8, 9 व 10 पर सागर्भित टिप्पणी प्रस्तुत की जा रही है।

    नियम-8 जहां न्यायाधीश ने डिक्री पर हस्ताक्षर करने से पूर्व अपना पद रिक्त कर दिया है वहां प्रक्रिया-जहां न्यायाधीश ने निर्णय सुनाने के पश्चात् किन्तु डिक्री पर हस्ताक्षर किए बिना अपना पद रिक्त कर दिया है वहां ऐसे निर्णय के अनुसार तैयार की गई डिक्री पर उत्तरवर्ती या यदि उस न्यायालय का अस्तित्व ही समाप्त हो गया है तो ऐसे किसी न्यायालय का न्यायाधीश जिसके अधीनस्थ ऐसा न्यायालय था, हस्ताक्षर करेगा।

    नियम-9 स्थावर सम्पत्ति के प्रत्युद्धरण के लिए डिक्री- जहां वाद की विषय वस्तु स्थावर सम्पत्ति है वहां डिक्री में ऐसी सम्पत्ति का ऐसा वर्णन अन्तर्विष्ट होगा जो उसकी पहचान करने के लिए पर्याप्त हो और जहां ऐसी सम्पत्ति सीमाओं द्वारा या भू-व्यवस्थापन या सर्वेक्षण के अभिलेख के संख्यांकों द्वारा पहचानी जा सके वहां डिक्री में ऐसी सीमाएँ या संख्यांक विनिर्दिष्ट होंगें।

    नियम-10 जंगम सम्पत्ति के परिदान के लिए डिक्री-जहां वाद जंगम सम्पत्ति के लिए है और डिक्री ऐसी सम्पत्ति के परिदान के लिए है वहां यदि परिदान नहीं कराया जा सकता है तो डिक्री में धन के उस परिणाम का भी कथन किया जाएगा जो अनुकल्पतः दिया जाएगा।

    उच्चतम न्यायालय के एक वाद में कहा गया है कि निर्णय सुनाने के पश्चात् किन्तु डिक्री पर हस्ताक्षर करने से पूर्व उच्च न्यायालय का न्यायाधीश सेवानिवृत्त हो गए। ऐसी डिक्री पर मुख्य न्यायामूर्ति या न्यायालय का कोई ऐसा अन्य न्यायाधीश हस्ताक्षर कर सकता है, जिसे मुख्य न्यायामूर्ति द्वारा मामला समनुदेशित किया गया हो।

    निर्णय पर हस्ताक्षर, जब न्यायाधीश बदल जाए- एक वाद में पारसी मुख्य वैवाहिक न्यायालय के न्यायाधीश ने खुले न्यायालय में निर्णय का श्रुतिलेख दिया, जब प्रतिनिधियों ने सर्वसम्मत अधिमत दिया; परन्तु वह निर्णय अहस्ताक्षरित रह गया। बाद में उस मामले को न्यायालय के सूचना पट्ट पर अर्द्ध सुना हुआ दिखाया गया, क्योंकि इसमें स्थायी निर्वाहिता का प्रश्न तय करना बाकी था। इसी बीच उस न्यायाधीश का स्थानान्तरण हो गया। अभिनिर्धारित कि उसके बाद में आया न्यायाधीश उस निर्णय पर, उस न्यायाधीश की ओर से जिसने खुले न्यायालय में वह निर्णय सुनाया था, हस्ताक्षर करने के लिए अधिकृत है और रजिस्ट्रार को यह निर्देश दे सकता है कि उक्त निर्णय के आधार पर विवाह-विच्छेद की डिक्री तैयार करे।

    नियम 9 में स्थावर संपत्ति के संबंध में डिक्री का उल्लेख है। स्थावर सम्पत्ति के प्रत्युद्धरण के लिए डिक्री विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम, 1963 की धारा 5 से 8 के उपबंधों के अधीन दी जाती है।

    स्थावर सम्पत्ति का वर्णन (नियम 1) डिक्री में स्थावर सम्पति का पूरा विवरण इस प्रकार दिया जावेगा कि उसकी सही सही पहिचान की जा सके। इसके लिए निम्न तरीके बताये गये हैं-

    सम्पत्ति की सीमायें बता कर-पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण में कौन सी व किस की सम्पत्ति है। चारों ओर का माप भी दिया जा सकता है, या भू-व्यवस्थापन या सर्वेक्षण अभिलेख के संख्यांकों का विवरण दिया जा सकता है। नगरपालिका या पंचायत द्वारा दिये गये संख्यांकों का उल्लेख भी किया जा सकता है।

    बल प्रयोग से आधिपत्य (कब्जा) लेना एक परिसर पर वादी ने अनुज्ञप्तिधारी के रूप में रेस्तरां का काम करने के लिए प्रवेश किया। इसके बाद अनुज्ञापक ने उसे अवैध रूप से उसकी पीठ पीछे बेकब्जा कर दिया। उसने आधिपत्य (कब्जे) की वापसी के लिए बाद किया। प्रीवि कौंसिल ने कहा है कि-भारत में लोगों को बल के प्रयोग से कब्जा लेने की अनुमति नहीं है। उनको न्यायालय के माध्यम से ऐसा कब्जा लेना चाहिए, जिसके लिए वे हकदार हैं। अभिनिर्धारित किया गया कि- वादिनी कब्जे की वापसी के लिए हकदार थी।

    भूमि के आधिपत्य के लिए डिक्री- भूमि के आधिपत्य की डिक्री अपने साथ लेखाबहियों तथा भूमि की व्यवस्था सम्बन्धी अन्य कागजात ले जाती है।

    जहां डिक्री में दो विवरणों के बीच कोई अन्तर है, तो जो प्रमुख विवरण है वह प्रभावी होगा।

    यह नियम 10 जंगम सम्पत्ति की डिक्री में सम्पत्ति का परिदान संभव न होने पर अनुकल्पतः बजाय दिये जाने वाले धन का उल्लेख करने का निर्देश देता है।

    जंगम सम्पत्ति की परिभाषा- धारा 2 (13) के अनुसार जंगम सम्पत्ति के अन्तर्गत उगती फसलें आती हैं। यह ध्यान देने योग्य बात है।

    जंगम सम्पत्ति के परिदान के लिए डिक्री-

    विनिर्दिष्ट सम्पत्ति के परिदान के लिए वाद के बारे में

    जंगम सम्पत्ति” की परिभाषा में परिसीमा अधिनियम, 1963 के अनुच्छेद 68 तथा 69 को इस नियम में समाविष्ट किया गया है। वाद को संस्थित करने की दिनांक को उस सम्पत्ति का मूल्य क्या था, यह उस डिक्री में अंकित किया जावेगा और इसका निर्धारण निष्पादन के लिए नहीं छोड़ना चाहिए। जब प्रतिवादी की ओर उस विनिर्दिष्ट सम्पत्ति के परिदान करने का दायित्व नहीं है, तो यह नियम लागू नहीं होगा। डिक्रीदार आदेश 21, नियम 31 में विहित तरीका अपनाये बिना डिक्री का निष्पादन नहीं करवा सकता। उसे यह विकल्प नहीं है कि उस सम्पत्ति का परिदान नहीं ले और डिक्री के उस भाग का सहारा ले, जिसमें सम्पत्ति की बजाय धन देने का निदेश दिया गया है। निर्णीत ऋणी को अपने विकल्प (इच्छा) के अनुसार कोई अधिकार नहीं है कि वह सम्पत्ति का परिदान करे या धनराशि का भुगतान करे।

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