सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 आदेश भाग 94: आदेश 20 नियम 5 व 5क के प्रावधान

Shadab Salim

20 Jan 2024 8:37 AM GMT

  • सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 आदेश भाग 94: आदेश 20 नियम 5 व 5क के प्रावधान

    सिविल प्रक्रिया संहिता,1908(Civil Procedure Code,1908) का आदेश 20 निर्णय और डिक्री है। इस आदेश के नियम 5 में स्पष्ट किया गया है कि न्यायालय इस विवाधक पर अपना विनिश्चय देगा। इस आलेख के अंतर्गत नियम 5 व नियम 5क पर टिप्पणी प्रस्तुत की जा रही है।

    नियम-5 न्यायालय हर एक विवाद्यक पर अपने विनिश्चय का कथन करेगा-उन वादों में, जिनमें विवाद्यकों की विरचना की गई है, जब तक कि विवाद्यकों में से किसी एक या अधिक का निष्कर्ष वाद के विनिश्चय के लिए पर्याप्त न हो, न्यायालय हरेक पृथक विवाद्यक पर अपना निष्कर्ष या विनिश्चय उस निमित्त कारणों के सहित देगा।

    नियम 5 न्यायालय द्वारा हरेक विवादग्रस्त प्रश्न का निर्णय कारण सहित देने के लिए उपबंध करता है। ऐसा ही समान उपबंध आदेश 14, नियम 2 में किया गया है कि न्यायालय द्वारा सभी विवाद्यकों पर निर्णय सुनाया जावेगा।

    निर्णय सभी बिन्दुओं पर होगा- भूमि अर्जन के मामले में धारा 4 को अधिसूचनाओं को अन्य कई आधारों पर चुनौती दी गई थी और उच्च न्यायालय ने उन आधारों का विनिश्चय नहीं किया। अतः मामला वापस भेजते हुए उच्चतम न्यायालय ने अवलोकन किया कि-" इस प्रकार के मामले में जिसमें कतिपय तथ्य संबंधी और विधिक दलीलों पर जोर दिया गया हो और जिसमें न्यायालय के विनिश्चय के विरुद्ध अपील किये जाने को गुंजाइश हो, जैसा कि बहुत पहले प्रिवी कौंसिल द्वारा कहा गया था, यह वांछनीय है कि विलम्ब और लंबी मुकदमेबाजी से बचा जाए और यह कि-न्यायालय को चाहिए कि वह किसी ऐसे मामले पर विचार करते समय वह समस्त मुद्दों (विवाद्यकों/वादप्रश्नों) का निपटान करे और अपने विनिश्चय को किसी एक मुद्दे पर हो आधारित न करे।

    निर्णय का उद्देश्य- अपील योग्य मामलों में प्रतिप्रेषण (रिमाण्ड) से बचने के लिए निम्नतर न्यायालय को तथ्य संबंधी सभी प्रश्नों का विनिश्चय करना होगा, जो विवाद्यकों के बारे में उत्पन्न होते हैं। न्यायालय को निर्णय प्रत्येक विवाद्यक पर देना चाहिए। विचारण न्यायालय ने ऐसा निर्णय देते समय प्रक्रिया का पालन नहीं किया। प्रकरण विचारण हेतु पुनः प्रतिप्रेषित किया जाना अपीलीय न्यायालय द्वारा सही था।

    नियम-5(क) जिन मामलों में पक्षकारों का प्रतिनिधित्व प्लीडरों द्वारा न किया गया हो उनमें न्यायालय द्वारा पक्षकारों को इस बात की इत्तिला दिया जाना कि अपील कहाँ की जा सकेगी-उस दशा के सिवाय जिसमें दोनों पक्षकारों का प्रतिनिधित्व प्लीडरों द्वारा किया गया है, न्यायालय ऐसे मामलों में जिनमें अपील हो सकती है, अपना निर्णय सुनाते समय न्यायालय में उपस्थित पक्षकारों को यह इत्तिला देगा कि किस न्यायालय में अपील की जा सकती है और ऐसी अपील फाइल करने के लिए परिसीमा काल कितना है और पक्षकारों को इस प्रकार दी गई इत्तिला को अभिलेख में रखेगा।

    नियम 5(क) 1976 में नया जोड़ा गया है।

    जिन मामलों में पक्षकारों को प्रतिनिधित्व वकीलों द्वारा नहीं किया गया हो, ऐसी दशा में उपस्थित पक्षकारों को निर्णय सुनाते समय न्यायालय दो सूचनाएँ देगा-

    (1) इस निर्णय की अपील किस न्यायालय में की जा सकेगी, और

    (2) अपील कब तक फाइल की जा सकेगी। (उसका परिसीमा काल कितना है)

    इस सूचना को अभिलेख पर रखा जाएगा।

    नियम का स्वरूप- नियम 5-क एक समर्थकारी उपबंध है और जब डिक्री तैयार हो, तब यह पक्षकार के अपील करने के अधिकार को ओवर राइड नहीं करती।

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