सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 आदेश भाग 92: आदेश 20 नियम 2 व 3 के प्रावधान

Shadab Salim

19 Jan 2024 7:34 AM GMT

  • सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 आदेश भाग 92: आदेश 20 नियम 2 व 3 के प्रावधान

    सिविल प्रक्रिया संहिता,1908(Civil Procedure Code,1908) का आदेश 20 निर्णय और डिक्री है। इस आदेश के नियम 2 में कोर्ट के पीठासीन अधिकारी को निर्णय सुनाने की शक्ति दी गई है अर्थात जो भी न्यायालय का तत्कालीन न्यायाधीश होगा उसके द्वारा निर्णय सुनाया जा सकता है एवं नियम 3 में निर्णय पर हस्ताक्षर किए जाने के प्रावधान हैं। इस आलेख के अंतर्गत इन दोनों ही नियमों पर संयुक्त रूप से टिप्पणी प्रस्तुत की जा रही है।

    नियम-2 न्यायाधीश के पूर्ववर्ती द्वारा लिखे गये निर्णय को सुनाने की शक्ति- [न्यायाधीश ऐसे निर्णय को सुनाएगा जो उसके पूर्ववर्ती ने लिखा तो है किन्तु सुनाया नहीं है।]

    नियम-3 निर्णय हस्ताक्षरित किया जाएगा-निर्णय सुनाये जाने के समय न्यायाधीश उस पर खुले न्यायालय में तारीख डालेगा और हस्ताक्षर करेगा और जब एक बार हस्ताक्षर कर दिया गया है तब धारा 152 द्वारा उपबंधित के सिवाय या पुनर्विलोकन के सिवाय उसके पश्चात् उसमें न तो कोई परिवर्तन किया जाएगा और न कोई परिवर्द्धन किया जाएगा।

    नियम 2 पूर्ववर्ती न्यायाधीश द्वारा लिखे गये निर्णय को सुनाने की शक्ति प्रदान करता है। वर्ष 1976 के संशोधन में शब्द में "में" (सुना सकेगा) के स्थान पर "शैल" (सुनाएगा) प्रतिस्थापित करने से यह उपबंध आज्ञापक हो गया है और बाद में आने वाला न्यायाधीश ऐसे निर्णय को सुनाएगा, यह अनिवार्य हो गया है।

    न्यायालय के पुराने मतभेद का अन्त-इस संशोधन से पूर्व न्यायालयों में मतभेद रहा है। एक मत के अनुसार, न्यायालय को विवेकाधिकार है कि वह ऐसे अघोषित निर्णय की घोषणा करे या पुनः सुनवाई करे। इसके विपरीत इस नियम को आज्ञापक माना गया और दुबारा सुनवाई का निषेध किया गया। इसी कारण इसे संशोधित कर आज्ञापक बना दिया गया है।

    नियम 3 न्यायाधीश द्वारा निर्णय पर हस्ताक्षर करने की व्यवस्था करते हुए उसका प्रभाव बताता है।

    2. नियम की शर्ते-नियम 3 के अनुसार-

    (i) हस्ताक्षर करना - न्यायाधीश खुले न्यायालय में निर्णय सुनाने के बाद उस निर्णय पर हस्ताक्षर करे। धारा 2(20) के अर्थ में हस्ताक्षरित की बजाय स्टाम्पित का यहाँ प्रयोग नहीं किया जायेगा। हस्ताक्षर की बजाय मुहर से काम नहीं चलेगा।

    (ii) हस्ताक्षर के बाद में परिवर्तन नहीं-एक बार हस्ताक्षर करने के बाद उस निर्णय में कोई फेरफार (परिवर्तन या परिवर्द्धन) नहीं किया जा सकेगा।

    आदेश 20, नियम 3 जब लागू नहीं - वाद में प्रारम्भिक डिक्री दी गई और उसमें एक पक्षकार पर कतिपय शर्तें अधिरोपित की गई। उक्त पक्षकार ने उन शर्तों को आदेश में दिये गये समय के भीतर पूरी नहीं की और उक्त समय के पश्चात् उनकी पूर्ति के लिए आवेदन किया। अधीनस्थ न्यायालय द्वारा ऐसे आवेदन को आदेश 20, नियम 3 के अधीन वर्जित माना गया। अभिनिर्धारित कि-अन्तिम डिक्री पारित की जाने से पूर्व आदेश 20, नियम 3 लागू नहींवहोगा और न्यायालय द्वारा दिया गया आदेश प्रक्रिया संबंधी आदेश होगा।

    हस्ताक्षर से पहले निर्णय अन्तिम नहीं न्यायाधीश द्वारा खुले न्यायालय में आशुलिपिक को बोला गया कोई निर्णय अनिम नहीं होता है। निर्णय तब अन्तिम होता है जब न्यायाधीश उस पर हस्ताक्षर कर देता है। हस्ताक्षर करने के पूर्व न्यायाधीश निर्णय का पुनरीक्षण कर सकता है। इसमें न्यायालय किसी प्रार्थना के वापस लिए जाने की अनुमति भी दे सकता है।

    हालांकि निर्णय में ऐसा कोई परिवर्तन जो निष्कर्ष को तात्विक रूप में बदल देता हो तब तक नहीं किया जाना चाहिए जब तक कि मामले की फिर से सुनवाई न की गई हो और काउंसिल या पक्षकार को मामले में न्यायालय के समक्ष और बहस करने का अवसरर दिया गया हो।

    इसके बाद बदला नहीं जाएगा का अर्थ एक निर्णय जब खुले न्यायालय में सुना दिया गया, हस्ताक्षरित कर दिया गया और न्यायालय की मुद्रा अंकित कर दी गई, तो फिर उसे बदला नहीं जा सकता।

    स्वयमेव पुनर्विलोकन के लिए न्यायालय की शक्ति-

    एक पार्टीशन सूट में, विचारण न्यायालय ने निष्कर्ष दिया कि-विचारार्थ अभिवृति (टिनेन्सी) का कोई प्रश्न इस वाद में नहीं उठा, अतः राजस्व न्यायालय को निर्देश करने की प्रार्थना अस्वीकार कर दी गई। इसके बाद दस्तावेजी साक्ष्य की परीक्षा करने पर उस निष्कर्ष का स्वयमेव पुनर्विलोकन करना अधिकारिता के बाहर है।

    एक रिट याचिका में रिट याचिका में पुनर्विलोकन निरस्त याचिका को इसलिए खारिज कर दिया गया कि उस पर जोर नहीं दिया गया। आदेश खुले न्यायालय में सुनाया गया, पर उस पर हस्ताक्षर नहीं किये गये। नये लगाये गये वकील को सुनने के बाद ही यह आदेश सुनाया गया था। यह तथ्य कि पिछले वकील की सहमति नहीं ली गई थी, पुनर्विलोकन के लिए कोई आपवादिक कारण नहीं है। अतः आदेश पर पुनर्विचार करना अनुज्ञेय नहीं माना गया।

    एक अन्य वाद में अभिनिर्धारित किया गया है कि पुनरीक्षण चलने योग्य है या नहीं इस कथन पर विचार नहीं करने का प्रश्न आदेश 20, नियम 1 या धारा 151, 152 के अधीन नहीं उठाया जा सकता। जब कि एक बार निर्णय पर हस्ताक्षर कर दिये गये हैं।

    Next Story