सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 आदेश भाग 90: आदेश 19 नियम 3 के प्रावधान
Shadab Salim
18 Jan 2024 2:08 PM IST
सिविल प्रक्रिया संहिता,1908(Civil Procedure Code,1908) का आदेश 19 शपथपत्र से संबंधित है। शपथपत्र का उदगम सीपीसी के इस ही आदेश के अंतर्गत हुआ है, यही आदेश शपथपत्र की जननी है। इस आलेख के अंतर्गत आदेश 19 के नियम 3 पर प्रकाश डाला जा रहा है।
नियम-3 वे विषय जिन तक शपथपत्र सीमित होंगे- (1) शपथपत्र ऐसे तथ्यों तक ही सीमित होंगे जिनको अभिसाक्षी अपने निजी ज्ञान से साबित करने में समर्थ है, किन्तु अन्तर्वर्ती आवेदनों के शपथपत्रों में उसके विश्वास पर आधारित कथन ग्राह्य हो सकेंगे:
परन्तु यह तब जब कि उनके लिए आधारों का कथन किया गया हो।
(2) जिस शपथपत्र में अनुश्रुत या तार्किक बातें या दस्तावेजों की प्रतियाँ या दस्तावेजों के उद्धरण अनावश्यक रूप से दर्ज किए गए हैं, ऐसे हर एक शपथपत्र के खर्चे (जब तक कि न्यायालय अन्यथा निदेश न करे) उन्हें फाइल करने वाले पक्षकार द्वारा दिए जाएँगे।
उपरोक्त नियम 3 के अनुसार शपथपत्र के विषय के बारे में उसको सीमित किया गया है, जिसकी सीमायें इस प्रकार हैं-
(1) शपथपत्र ऐसे तथ्यों के बारे में होंगे, जिनको अभिसाक्षी शपथकर्ता अपने निजी ज्ञान (जानकारी) से साबित करने के लिए समर्थ है। अतः शपथपत्र में उन तथ्यों का कथन और सत्यापन किया जाएगा, जो उस शपथकर्ता के निजी ज्ञान पर आधारित होंगे। यह शर्त सभी प्रकार के शपथपत्रों पर लागू होगी।
(2) अन्तर्वतों आवेदनों के शपथपत्रों में शपथकर्ता के विश्वास पर आधारित कथन भी ग्राह्य हो सकेंगे यदि उनमें उन तथ्यों के बारे में सही होने के विश्वास के आधारों का विवरण दिया गया हो।
(3) उपनियम (2) के अनुसार - (1) अनुश्रुत (सुनीसुनाई) बातें या (2) तार्किक बातें (बहस के रूप में) या (3) दस्तावेजों की प्रतियाँ या (4) दस्तावेजों के उद्धरण (अंश),
यदि कभी शपथपत्र अनावश्यक रूप से दिया जाता है, तो हर एक ऐसे शपथपत्र के खर्चे शपथपत्र देने वाले पक्षकार द्वारा दिये जायेंगे, जब तक कि न्यायालय इस बारे में कोई दूसरा निदेश न देवे। इस प्रकार के ये खर्च न्यायालय के विवेक पर आश्रित रहेंगे।
साक्ष्य अधिनियम की धारा 3 के अनुसार साक्ष्य नहीं है, किन्तु पर्याप्त कारणों के आधार पर आदेश 19 सीपीसी के अनुसार न्यायालय चाहे तो साक्ष्य के रूप में काम ले सकती है।
शपथपत्र का सत्यापन - शपथपत्र पर सत्यापन में दोष दूर करने के लिए एतराज करने के तुरन्त बाद न्यायालय से निवेदन किया गया। ऐसी स्थिति में धारा 151 सीपीसी के अधीन उस दोष को दूर करने का अवसर दिया जाना चाहिए।
शपथपत्र की वैधता - शपथपत्रों को नियम 3(1) के अनुसार अपने ज्ञान के आधार पर सही होना या प्राप्त सूचना के आधार पर सही होने का प्रतिज्ञान (Affirmation) करना आवश्यक है और ऐसी सूचना का स्रोत भी उसमें प्रकट करना होगा, या शपथगृहीता द्वारा सही होने के विश्वास का प्रतिज्ञान करना होगा, परन्तु उस विश्वास के कारण या आधार बताने होंगे। शब्दावली इस शपथपत्र को अन्तर्वस्तु मेरे श्रेष्ठतम ज्ञान और विश्वास से सही व सत्य है में कोई पवित्रता (Sanctity) नहीं हैं। इस प्रकार की घोषणा या प्रतिज्ञान आवश्यक नहीं है।
अन्तरिम व्यादेश के आवेदन के साथ प्रस्तुत किये गये शपथ-पत्र का सत्यापन करना आवश्यक है। नियम 3(1) में इस बारे में स्पष्ट उपबन्ध है कि- शपथगृहीता पक्षकारों को यह कहना आवश्यक होगा कि शपथगृहीता अपनो स्वयं को जानकारी से शपथपत्र में दिये गये तथ्यों को साबित कर सकता है। एक शपथपत्र का सत्यापन कठोरता से किये जाने का मुख्य कारण यह है कि शपथगृहीता को उसके द्वारा दिये गये कथनों के लिये उत्तरदायी बनाया जाए।
ऐसा कथन कि कहे गये तथ्य उसके स्वयं के ज्ञान पर आधारित है; जब अनुपस्थित होता है, तो शपथगृहीता यह कहकर कि यह तथ्य उसके विश्वास पर आधारित था झूठे बयान देने के दाण्डिक दायित्व से बच निकलता है। यह तर्क नहीं दिया जा सकता कि नियम 3(1) की दृष्टि में अन्तर्वती आवेदनों में फाइल किये गये शपथपत्रों में वर्णित तथ्य शपथगृहीता के निजी ज्ञान द्वारा साबित किये जाने वाले ही समझे जायेंगे, यदि उस शपथ-पत्र में यह नहीं दिया गया हो कि कुछ तथ्य उसके विश्वास से संबंधित है। शपथपत्र में शपथगृहीता की पहचान का उल्लेख होना चाहिये, जबकि शपथ दिलाने वाला उसे व्यक्तिगत रूप से नहीं जानता हों। परन्तु इस मामले में शपथपत्र एक वकील का है, अतः उसमें पहिचान का उल्लेख नहीं होने से वह अवैध नहीं माना गया।
उचित तरीके से सत्यापित नहीं किया गया शपथपत्र साक्ष्य नहीं समझा जा सकता। शपथ-पत्र में केवल यह कथन कि-मेरे श्रेष्ठतम ज्ञान से या मेरे विश्वास से ये तथ्य सत्य और सही है गलत है और ऐसा शपथपत्र ठीक प्रकार से सत्यापित नहीं किया जाने से वैध नहीं माना जा सकता। जहाँ कथन व्यक्तिगत जानकारी पर आधारित नहीं है, तो उस शपथपत्र में उसे सूचना का स्रोत बताना होगा जिस पर वह आधारित है। जो शपथपत्र आदेश 19, नियम 3(1) के अनुसार नहीं है, उस पर न्यायालय कोई कार्यवाही नहीं कर सकता।'
दुर्भावना के मामले में, जो शपथपत्र दिया गया है, यह यथाविधि सत्यापित नहीं है। उसमें केवल यह कहा गया है कि-तथ्य शपथकर्ता के सर्वोत्तम ज्ञान के अनुसार सही है। सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 19 के नियम 3 के अनुसार यह बताना आवश्यक है कि यह जानकारी किस स्रोत से प्राप्त हुई। वह न बताने के कारण शपथपत्र बेकार है।
शपथपत्र के सत्यापन के नियम का कठोरता से पालन करना आवश्यक है। एक वाद में कहा गया है कि सूचना के स्रोत को स्पष्ट रूप से कहा जाना चाहिए। शपथपत्र के सत्यापन का संशोधन करने की अनुमति नहीं दी जा सकती, पर सही रूप से सत्यापित शपथपत्र फाइल करने का अवसर दिया जावेगा।
उच्चतम न्यायालय में शपथपत्र - उच्चतम न्यायालय ने आदेश 19, नियम 3 तथा उच्चतम न्यायालय नियम के आदेश 11, नियम 5 व 13 के परिक्षेत्र पर विचार कर निर्णय दिया कि- (1) उच्चतम न्यायालय में पेश किए जाने वाले शपथपत्रों में उच्चतम न्यायालय के नियमों का कठोरता से पालन किया जावेगा।
विशेष रूप से जब कि उसमें दुर्भावना या न्यायालय को अवमानना के आरोप लगाए गए हो, (2) यदि सत्यापन में दोष है कि उसमें संकेत नहीं है कि कौनसे तथ्य व्यक्तिगत ज्ञान जानकारी पर आधारित है और कौनसे तथ्य सूचना और विश्वास पर कड़े गये हैं। तो उस शपथपत्र में कथित तथ्यों का कोई प्रमाणक मूल्य (प्रोबेटिव वेल्यू) नहीं है। अतः ऐसे शपथपत्र अस्वीकार कर देने चाहिए।
सत्यापन की गलती एक अनियमितता शपथपत्र का व्यक्तिगत ज्ञान के आधार पर सत्यापन - अनुच्छेद 226 के अधीन पिटीशन के मामलों में शपथपत्र का सत्यापन शासकीय अभिलेख पर आधारित विश्वास पर किया जाना चाहिए, व्यक्तिगत ज्ञान पर नहीं किन्तु सत्यापन की गलती एक अनियमितता' होती है अविधिमान्यता नहीं।