सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 आदेश भाग 87: आदेश 18 नियम 18 व 19 के प्रावधान
Shadab Salim
17 Jan 2024 10:15 AM IST
सिविल प्रक्रिया संहिता,1908(Civil Procedure Code,1908) का आदेश 18 वाद की सुनवाई और साक्षियों की परीक्षा है। इस आलेख के अंतर्गत आदेश 18 के नियम 18 एवं 19 पर विवेचना प्रस्तुत की जा रही है।
नियम-18 निरीक्षण करने की न्यायालय की शक्ति-यायालय ऐसी किसी भी सम्पत्ति या वस्तु का निरीक्षण वाद के किसी भी प्रक्रम में कर सकेगा जिसके सम्बन्ध में कोई प्रश्न पैदा हो। और जहाँ न्यायालय किसी सम्पति या वस्तु का निरीक्षण करता है वहाँ वह यथासाध्य शीघ्र, ऐसे निरीक्षण में देखे गए किन्हीं सुसंगत तथ्यों का ज्ञापन बनाएगा और ऐसा ज्ञापन वाद के अभिलेख का भाग होगा।
नियम-19 आयोग द्वारा कथन (बयान) लेखबद्ध कराने की शक्ति-इन नियमों में किसी बात के होते हुए भी, न्यायालय खुले न्यायालय में साक्षियों की परीक्षा करने के बजाए, आदेश 26 के नियम 4(क) के अधीन उनके कथन को कमीशन पर अभिलिखित किए जाने के लिए निदेश दे सकेगा।
न्यायालय द्वारा किसी सम्पत्ति या वस्तु का निरीक्षण करने की व्यवस्था इस नियम द्वारा की गई है। 1976 में इसमें संशोधन कर निरीक्षण के ज्ञापन को अभिलेख का भाग बना दिया गया है. जिससे न्यायालयों का पुराना मतभेद समाप्त कर दिया गया है।
नियम की संवैधानिकता को चुनौती- एक प्रकरण में इस नियम की संवैधानिकता को चुनौती दी गई थी। तब उस याचिका के निर्णय में कहा गया कि आदेश 18, नियम 18 के अधीन मौके का निरीक्षण करने के लिए जो उपबन्ध किया गया है, वह न्याय के उद्देश्य को अग्रसर करने के लिए है। न्यायालय इस शक्ति का प्रयोग करते हुए स्वच्छंदता (मनमानी) से कार्य नहीं करेगा। अतः नियम 18 संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन नहीं करता और विधिमान्य है।
नियम 18 न्यायालय को निरीक्षण की शक्ति प्रदान करता है।
इसके अनुसार-
(1) ऐसी किसी भी सम्पत्ति या वस्तु का न्यायालय निरीक्षण कर सकेगा, जिसके सम्बन्ध में कोई प्रश्न वाद के किसी भी प्रक्रम में उत्पन्न होता है, और
(2) यथा शीघ्र ऐसे निरीक्षण में देखे गए किन्हीं सुसंगत तथ्यों का ज्ञापन बनाएगा, जो वाद में अभिलेख का एक भाग होगा।
न्यायालय निर्णयों पर आधारित सिद्धान्त-न्यायालय द्वारा बस्ती का निरीक्षण-ऐसे निरीक्षण की टिप्पणी को साक्ष्य के रूप में तभी प्रतिस्थापित किया जा सकता है, जब पक्षकार उसके लिए सहमत हों, परन्तु जब यह स्पष्ट नहीं है कि प्रतिवादी निरीक्षण के परिणाम को निश्चयपूर्वक मानने को सहमत हो गया था, तो ऐसी टिप्पणी (ज्ञाप) को पक्षकारों की साक्ष्य के रूप में प्रतिस्थापित नहीं किया जा सकता। मौका-निरीक्षण के समय किए गए अवलोकन को साक्ष्य के मूल्यांकन में काम में लिया जा सकता है पर उसे साक्ष्य का एक भाग नहीं माना जा सकता। ऐसा करने पर न्यायाधीश भी साक्षी बन जावेगा। अतः निरीक्षण पर मामले को आधारित नहीं किया जा सकता।
सन 1999 में नियम 19 नया जोड़ा गया है; जिसके साथ आदेश 26 में नियम 4क जोड़ा गया है और आदेश 26 के नियम 16, 16क, 17 व 18 को यथासंभव लागू करने के लिए आदेश 18, नियम 4 के उपनियम 8 में संदर्भ दिया गया है। आदेश 18 का नियम 4 भी नया प्रतिस्थापित किया गया है जिससे ताकि कमीशन द्वारा साक्षियों के बयान लेने का तरीका तथा आयोग/आयुक्त/ कमीशन की सम्पूर्ण व्यवस्था स्पष्ट हो सके।
आदेश 26, नियम 4क के संहिता में दिए शब्द इस प्रकार है-
4(क). न्यायालय की अधिकारिता की स्थानीय सीमा के भीतर निवासी किसी व्यक्ति की परीक्षा के लिए कमीशन-इन नियमों में किसी बात के होते हुए भी, कोई न्यायालय न्याय हित में या किसी मामले का शीघ्र निपटारा करने के लिए या किसी अन्य कारण से, अपनी अधिकारिता की स्थानीय सीमा के भीतर निवासी किसी व्यक्ति की किसी वाद में प्रश्नावली पर या अन्यथा परीक्षा के लिए कमीशन जारी कर सकेगा और इस प्रकार से अभिलिखित साक्ष्य को साक्ष्य में पढ़ा जावेगा।" "प्रश्नवाली पर या अन्यथा परीक्षा" शब्दावली में आदेश 18, नियम 4 में वर्णित आयुक्त द्वारा साक्षी का साक्ष्य (प्रतिपरीक्षा और पुनः परीक्षा) लेना भी सम्मिलित है। धारा 75 में आयुक्त/आयोग की शक्तियाँ बताई गई हैं।