सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 आदेश भाग 86: आदेश 18 नियम 17 के प्रावधान

Shadab Salim

16 Jan 2024 9:05 AM GMT

  • सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 आदेश भाग 86: आदेश 18 नियम 17 के प्रावधान

    सिविल प्रक्रिया संहिता,1908(Civil Procedure Code,1908) का आदेश 18 वाद की सुनवाई और साक्षियों की परीक्षा है। इस आलेख के अंतर्गत आदेश 18 के नियम 17 पर विवेचना प्रस्तुत की जा रही है।

    नियम-17 न्यायालय साक्षी को पुनः बुला सकेगा और उसकी परीक्षा कर सकेगा-

    न्यायालय वाद के किसी भी प्रक्रम में ऐसे किसी भी साक्षी को पुन: बुला सकेगा जिसकी परीक्षा की जा चुकी है और (तत्समय प्रवृत्त साक्ष्य की विधि के अधीन रहते हुए) उससे ऐसे प्रश्न पूछ सकेगा जो न्यायालय ठीक समझे।

    यह नियम न्यायालय को किसी साक्षी को दोबारा बुलाने की शक्ति प्रदान करता है जिसके अंतर्गत न्यायालय किसी ऐसे साक्षी को जिसकी पहले परीक्षा हो चुकी है इसे दोबारा बुला कर परीक्षा ले सकता है।

    (1) किसी भी साक्षी को, जिसकी परीक्षा हो चुकी है, न्यायालय उसे किसी भी प्रक्रम में वापस बुला सकेगा और

    (2) उसे ऐसे प्रश्न पूछ सकेगा जो न्यायालय ठीक समझे, पर यह उस समय लागू साक्ष्य की विधि के अनुसार हो किया जा सकेगा।

    इस प्रकार न्यायालय को व्यापक अधिकार दिये गये हैं। न्यायालय स्वेच्छा से या किसी पक्षकार के आवेदन पर किसी साक्षी को पुनः बुलाने की कार्यवाही कर सकते हैं।

    कर्नाटक उच्च न्यायालय द्वारा यह प्रतिपादित किया गया है कि आदेश 18 नियम 17 के अन्तर्गत साक्षी को पुनः बुलाने का एक अधिकार के रूप में दावा नहीं किया जा सकता है। यह न्यायालय की विवेकाधीन शक्ति है।

    प्रतिवादी द्वारा नियुक्त वरिष्ठ अधिवक्ता को अनुपलब्धता के कारण यथेष्ट जिरह नहीं करपाने के आधार पर अतिरिक्त प्रतिपरीक्षा किये जाने के लिये गवाह को वापिस बुलाये जाने को माँग, कमी पूरी करने के कारण स्वीकार नहीं की जा सकती। कुछ मुद्दों पर गवाह से प्रतिपरीक्षा करने में असफल रहने के आधार पर गवाह को वापिस नहीं बुलाया जा सकता। अनेक वर्ष पूर्व में स्वत्व दर्शाते हुये प्रस्तुत दस्तावेजात में कथित अनियमितताओं को प्रमाणित करने के लिये वादी ने कई लोक सेवकों को बुलाने के लिये साक्ष्य पुनः खोलने को प्रार्थना आवेदन अत्यधिक देरी का होने के आधार पर अस्वीकार किया गया।

    आदेश 18, नियम 17 के अधीन आवेदन को रद्द करने वाला सकारण आदेश मात्र इस कारण दूषित नहीं हो जायेगा कि विचारण न्यायालय ने अपने विवेक का प्रयोग करते हुए जो कार्यवाही की थी, वह अन्य न्यायालय द्वारा भिन्न दृष्टिकोण अपनाये जाने के आधार पर पक्षपातपूर्ण पाई गई।

    एक मामले में कहा गया है कि गवाहों को वापस बुलाने और उसकी परीक्षा करने के लिए आदेश 18, नियम 17 के अधीन न्यायालय को शक्तियाँ प्रदान की गई हैं, जिनका प्रयोग आपवादिक परिस्थितियों में किया जाना चाहिये।

    इस मामले में प्रत्यर्थी-वादी द्वारा ऐसी कोई आपवादिक परिस्थिति सिद्ध नहीं की गई थी क्योंकि यह दस्तावेज उसके द्वारा साक्षी की प्रतिपरीक्षा प्रारंभ करने से पूर्व उसे उपलब्ध हो सकती थी। हो सकता है कि- अपने विवेक का प्रयोग करते हुए किसी न्यायालय द्वारा भिन्न दृष्टिकोण अपनाया जाये और ऐसे आवेदन को मंजूर कर लिया जाये। किन्तु जब तक कि विद्वान् विचारण-न्यायाधीश द्वारा जो कारण (आवेदन को रद्द करने के लिए) बताये गये थे उनके बारे में यह नहीं कहा जा सकता कि वे मात्र अनापशनाप, तुच्छ या विवेकहीन थे, तब तक आवेदन के रद्द किये जाने को यह कहकर खण्डित नहीं किया जा सकता कि यह उसकी ओर से गैर-न्यायिक प्रवृत्ति अथवा पक्षपात अथवा तरफदारी का सुझाव देता है।

    विचारण न्यायाधीश द्वारा प्रयोजन में लिये गये विवेकाधिकार में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिये, जब तक कि उसके द्वारा दिये गये कारण धुंधले, भद्दे या अयुक्तियुक्त न हों।

    गवाहों को वापस बुलाने की वैधता- एक वाद में पक्षकारों के बीच समझौता तो हो गया, परन्तु उस पर कार्यवाही नहीं को गई, न यह उन पर बाध्यकारी रहा। उस समझौते में की गई स्वीकृतियों को साक्ष्य के रूप में अभिलेख पर लाने का उन पक्षकारों का कोई अभिप्राय नहीं था।

    ऐसी परिस्थिति में, गवाहों को वापस बुलाने और उनमें की गई स्वीकृतियों को अभिलेख पर लाना साक्ष्य अधिनियम की धारा 23 के विपरीत है। अतः अवैध है। छूटे हुए बिन्दुओं पर व्याख्या के लिए गवाह को प्रतिवादी को प्रार्थना पर वापिस बुलाने का आदेश विधि में अनुज्ञेय है।

    गवाह को वापस बुलाने का प्रक्रम- जब बहस सुन ली गई और मामले का निर्णय सुरक्षित कर दिया गया, तो इसके बाद एक गवाह को वापस बुलाने के आवेदन को स्वीकार नहीं किया जा सकता। इस प्रयोजन के लिए न्यायालय की अन्तर्निहित शक्ति का प्रयोग भी नहीं किया जा सकता।।

    गवाहों को वापस बुलाना-

    एक वाद किराया नियंत्रण कानून के अधीन एक मामले में वादी का वकील न्यायालय को आते हुए दुर्घटनाग्रस्त हो गया। उसी दिन दूसरे वकील ने गवाहों की परीक्षा की, परन्तु उसने मकान मालिक की स‌द्भाविक आवश्यकता पर प्रश्न नहीं पूछा। उसी दिन उन गवाहों की प्रतिपरीक्षा भी पूरी हो गई। ऐसी स्थिति में गवाहों की मुख्य परीक्षा की पूरक परीक्षा करने के लिए आवेदन धारा 151 में दिया गया। अभिनिर्धारित कि- इस मामले में उचित आदेश यह होगा कि प्रतिपरीक्षा की समाप्ति पर न्यायालय वादी को वापस बुलावे और वादपत्र में दिये गये सद्भाविक आवश्यकता पर उसे प्रश्न पूछे और बाद में उसकी प्रतिपरीक्षा करने की अनुमति देवे। अन्तर्निहित शक्ति के प्रयोग में वादी के वकील को गवाहों की परीक्षा पुनः करने की अनुमति संहिता के उपबन्धों की योजना को बदलने के लिए नहीं दी जा सकती।

    किसी भी प्रक्रम का अर्थ-

    ऐसा प्रक्रम न्यायालय द्वारा निर्णय घोषित करने के पहले होगा।

    गवाहों को बुलाने की सीमा-वादी के गवाह को प्रतिरक्षा के गवाह के रूप में न्यायालय की अनुमति लेकर बुलाया जा सकता है। विशेष परिस्थिति में प्रतिवादी को वादी के गवाह के रूप में भी बुलाया गया है।

    (1) वादी की पुनःप्रति परीक्षा-बेदखली के वाद में तथ्यात्मक स्थिति के बारे में विवाद था। अतः वादी ने वादपत्र में संशोधन चाहा। प्रतिवादी ने वादी का आगे प्रतिपरीक्षा तथा गवाहों की पुनःपरीक्षा चाही, जो युक्तियुक्त है। प्रार्थना नामंजूर करना इस आधार पर उचित नहीं था। वादी की साक्ष्य पहले ही बन्द कर दी गई थी।

    (2) दस्तावेज प्रस्तुत करने की अनुमति-धन वसूली के वाद में, प्रतिवादी की साक्ष्य की स्टेज पर, प्रतिवादी ने एक दस्तावेज प्रस्तुत करने की इजाजत के लिए आवेदन पेश किया और आगे प्रार्थना की कि-उक्त दस्तावेज को साबित करने के लिए वादी और एक अन्य व्यक्ति को समन किया जाए। परन्तु उक्त दस्तावेज को अभिलेख पर प्रस्तुत नहीं किया। अभिनिर्धारित कि उस दस्तावेज को प्रस्तुत करने की अनुमति/इजाजत नहीं दी जा सकती, क्योंकि दस्तावेज प्रस्तुत करना आदेश 18, नियम 17 के उपबन्धों से आवृत नहीं होता और 2002 के संशोधन द्वारा आदेश 18, नियम 17क के उपबन्ध को लोपित कर दिया गया है।

    (3) प्रतिपरीक्षा के लिए गवाह को वापस बुलाना- दिल्ली उच्च न्यायालय के एक वाद में जब एक बार गवाह को प्रतिपरीक्षा के लिए वापस बुलाने का आदेश पारित कर दिया गया तो इसके बाद उस पर आगे पुनरीक्षण में उपरिका शर्त लगाने का आदेश अपास्त किया गया, जिसमें उन पत्रों और हस्ताक्षरों के बारे में कोई प्रश्न नहीं पूछ सकने की उपरिका (शर्त) थी। आदेश अपास्त किया गया।

    (4) एक मामले में प्रतिपरीक्षा के लिए गवाह को वापस बुलाने के लिए आवेदन-याची ने आवेदन में कुछ प्रश्न बताये जो वह उस गवाह से पूछना चाहता था। इनमें से कुछ प्रश्न स्पष्ट रूप से इंगित नहीं किये गये जो अस्पष्ट कथन थे। इस प्रकार आवेदन में कोई आपवादिक परिस्थिति प्रदर्शित नहीं की गई। आवेदन चलने योग्य नहीं है। आवेदन को नामंजूर करने के आदेश में कोई अवैधता नहीं है।

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