सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 आदेश भाग 82: आदेश 18 नियम 2 से 3(क) के प्रावधान

Shadab Salim

13 Jan 2024 8:52 AM GMT

  • सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 आदेश भाग 82: आदेश 18 नियम 2 से 3(क) के प्रावधान

    सिविल प्रक्रिया संहिता,1908(Civil Procedure Code,1908) का आदेश 18 वाद की सुनवाई और साक्षियों की परीक्षा है। इस आदेश के अंतर्गत साक्षी की परीक्षा से संबंधित प्रावधान है। इस आलेख के अंतर्गत नियम 2,3(क) व 3 पर टिप्पणी प्रस्तुत की जा रही है।

    नियम-2 कथन और साक्ष्य का पेश किया जाना - (1) उस दिन जो वाद की सुनवाई के लिए नियत किया गया हो, या किसी अन्य दिन जिस दिन के लिए सुनवाई स्थगित की गई हो, वह पक्षकार जिसे आरम्भ करने का अधिकार है, अपने मामले का कथन करेगा और उन विवाद्यकों के समर्थन में अपना साक्ष्य पेश करेगा जिन्हें साबित करने के लिए वह आबद्ध है।

    (2) तब दूसरा पक्षकार अपने मामले का कथन करेगा और अपना साक्ष्य (यदि कोई हो) पेश करेगा और तब पूरे मामले के बारे में साधारणतया न्यायालय को सम्बोधित कर सकेगा।

    (3) तब आरम्भ करने वाला पक्षकार साधारणतया पूरे मामले के बारे में उत्तर दे सकेगा।

    नियम-3(क) कोई पक्षकार किसी मामले में मौखिक बहस कर सकेगा और वह मौखिक बहस, यदि कोई हो, समाप्त करने के पहले न्यायालय को यदि न्यायालय ऐसा अनुज्ञात करे, अपने मामले के समर्थन में संक्षिप्त रूप में और सुस्पष्ट शीर्षों के अधीन लिखित बहस प्रस्तुत कर सकेगा और ऐसी लिखित बहस अभिलेख का भाग होगी।

    3(ख) ऐसी लिखित बहस की एक प्रति विरोधी पक्षकार को भी साथ ही साथ दी जाएगी।

    3(ग) लिखित बहस फाइल करने के प्रयोजन के लिए कोई स्थगन तब तक मजूर नहीं किया जाएगा जब तक न्यायालय, ऐसे कारणों से, जो अभिलिखित किए जाएं, ऐसा स्थगन मंजूर करना आवश्यक न समझे।

    (3घ) न्यायालय, किसी मामले में दोनों पक्षकारों में से किसी पक्षकार द्वारा मौखिक बहस के लिए ऐसी समय सीमाएँ नियत करेगा जैसी वह ठीक समझे।

    नियम-3 जहाँ कई विवाद्यक हैं वहाँ साक्ष्य-जहाँ कई विवाद्यक हैं जिनमें से कुछ को साबित करने का भार दूसरे पक्षकार पर है वहाँ आरम्भ करने वाला पक्षकार अपने विकल्प पर या तो उन विवाद्यकों के बारे में अपना साक्ष्य पेश कर सकेगा या दूसरे पक्षाकार द्वारा पेश किए गए साक्ष्य के उत्तर के रूप में पेश करने के लिए उसे आरक्षित रख सकेगा और पश्चात् कथित दशा में, आरम्भ करने वाला पक्षकार दूसरे पक्षकार द्वारा उसका समस्त साक्ष्य पेश किए जाने के पश्चात् उन विवाद्यकों पर अपना साक्ष्य पेश कर सकेगा और तब दूसरा पक्षकार आरम्भ करने वाले पक्षकार के द्वारा इस प्रकार पेश किए गए साक्ष्य का विशेषतया उत्तर दे सकेगा, किन्तु तब आरम्भ करने वाला पक्षकार पूरे मामले के बारे में साधारणतया उत्तर देने का हकदार होगा।

    3(क), पक्षकार का अन्य साक्षियों से पहले उपसंजात होना- जहाँ कोई पक्षकार स्वयं कोई साक्षी के रूप में उपसंजात होना चाहता है वहाँ यह उसकी ओर से किसी अन्य साक्षी की परीक्षा किए जाने के पहले उपसंजात होगा, किन्तु यदि न्यायालय ऐसे कारणों से, जो लेखबद्ध किए जायेंगे, उसे पश्चात्वर्ती प्रक्रम में स्वयं अपने साक्षी के रूप में उपसंजात होने के लिए अनुज्ञात करे तो वह वाद में उपस्थित हो सकेगा।

    सुनवाई विचारण का मुख्य प्रक्रम (स्टेज) है, जिसमें दोनों पक्ष अपना साक्ष्य प्रस्तुत करते हुए अपने पक्ष का समर्थन करने के लिए न्यायालय को अपना कथन या सम्बोधन करते हैं। नियम 2 इसका तरीका प्रस्तुत करता है। संशोधन द्वारा नये उपनियम 3क, 3ख, 3ग और 3प जोड़े गये हैं, जिनमें मौखिक तर्क के साथ लिखित तर्क को मान्यता प्रदान की गई है। उपनियम (4) को लोपित कर दिया गया है।

    वाद का आरम्भ - (नियम 2 उपनियम 1)-

    (i) वाद की सुनवाई के लिए निश्चित दिन को या उसके स्थगित किये जाने पर अगले निश्चित दिन को वाद के आरम्भ की कार्यवाही होगी जिसमें-

    (ii) वाद को प्रारम्भ करने का अधिकारी पक्षकार

    (क) अपने मामले का कथन करेगा,

    (ख) उन विवाद्यकों के बारे में, जिनको साबित करने का भार उस पर है, अपनी साक्ष्य पेश करेगा- गवाहों को पेश करेगा और दस्तावेजों को साबित करवायेगा।

    (2) विपक्षी/प्रतिवादी का उत्तर- (उपनियम 2) - विपक्षी पक्षकार-

    (क) अपने मामले का कथन करेगा, विवरण देगा,

    (ख) अपना साक्ष्य, यदि कोई हो, पेश कर सकेगा।

    (ग) पूरे मामले के बारे में साधारणतया न्यायालय को सम्बोधित कर सकेगा।

    (3) आरम्भकर्ता पक्षकार द्वारा प्रत्युत्तर- (उपनियम 3) - इसके बाद वह पक्षकार जिसने वाद का आरम्भ किया है, पूरे मामले के बारे में उत्तर दे सकेगा।

    इस प्रकार वादी के कथन व साक्ष्य का प्रतिवादी अपने कथन व साक्ष्य से खण्डन करेगा और अन्त में वादी अपने मामले का खंडन करेगा। यह साधारण प्रक्रिया है। कई विवाद्यक होने पर जब उनको साबित करने का भार अलग-अलग पक्षकारों पर हो, तो नियम 3 में दिये गये तरीके को अपनाना होगा।

    नियम 3 में कई विवाद्यक होने पर साक्ष्य लेखबद्ध करने का तरीका इस नियम में बताया गया है।

    अनेक विवाद्यकों पर साक्ष्य का तरीका (नियम 3)- इस नियम में बताया गया तरीका इस प्रकार है- (1) किसी वाद में कई विवाद्यक हैं, जिनमें से कुछ को साबित करने का भार दूसरे पक्षकार (प्रतिवादी) पर है,

    ऐसी स्थिति में आरम्भ करने वाले पक्षकार (वादी) को विकल्प (चयन का अधिकार) दिया गया है कि- (क) या तो वह उन विवाद्यकों के बारे में अपना साक्ष्य पेश कर सकेगा या (ख) दूसरे पक्षकार (प्रतिवादी) द्वारा पेश किए गए साक्ष्य के उत्तर के रूप में अपना साक्ष्य आरक्षित रख सकेगा। इस प्रकार वादी को अपनी प्रतिरक्षा करने अर्थात्-साक्ष्य का खण्डन करने का अधिकार आरक्षित (रिजर्व) रखने का विकल्प दिया गया है।

    साक्ष्य को आरक्षित रखने का अधिकार- यह वादी को एक विकल्प के रूप में प्राप्त अधिकार है, जिसे नियम 3 के अनुसार इस प्रकार प्रयोग में लाया जा सकता है-

    (1) दूसरे पक्षकार (प्रतिवादी) ने जब अपना समस्त साक्ष्य पेश कर दिया हो

    (2) उसके बाद वादी उन विवाद्यकों पर (जिनको साबित करने का भार प्रतिवादी पर है) अपना साक्ष्य पेश कर सकेगा, जिसके द्वारा वह विरोधी की साक्ष्य का खण्डन करेगा।

    (3) तब दूसरा पक्षकार (प्रतिवादी) आरम्भ करने वाले पक्षकार (वादी) द्वारा पेश किये गये साक्ष्य का विशेष रूप से उत्तर दे सकेगा,

    (4) इसके बाद आरम्भ करने वाला पक्षकार (वादी) पूरे मामले पर साधारणतया उत्तर देने का हकदार होगा। यदि परिस्थिति ऐसी हो, तो प्रतिवादी भी अपने साक्ष्य को इस नियम के अधीन आरक्षित कर सकेगा। यह उपबंध दोनों पक्षकारों पर समान रूप से लागू होता है।

    आदेश 18 नियम 3 का परिक्षेत्र- जहां विभित्र विवाद्यक हो वहां यह बात साबित करने का भार उस पक्षकार पर होगा जो कि मामला प्रारम्भ करता है, और वह या तो उन विवाद्यकों पर साक्ष्य प्रस्तुत कर सकेगा अथवा उसे आरक्षित रख सकेगा। इस मामले में इसके अतिरिक्त यह आक्षेप किया जाना कि आवश्यक पक्षकारों का असंयोजन हुआ था जिसके परिणामस्वरुप इस विवाद्यक के सबूत का भार पिटीशनर पर है और इस नाते आदेश 18, नियम 3 लागू होता है।

    (क) साक्ष्य का तरीका- सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 18, नियम 3 में यह उपबंध किया गया है कि जहां अनेक विवाद्यक हों यहां यह साबित करने का भार कि उनमें से कौन से विवाद्यक दूसरे पक्षकार पर होंगे, प्रारम्भ करने वाला पक्षकार, अपने विकल्प के अनुसार, या तो उन विवाद्यकों पर साक्ष्य पेश कर सकेगा अथवा दूसरे पक्षकार द्वारा पेश किए गये साक्ष्य के विरुद्ध प्रत्युत्तर के रूप में उसे आरक्षित रख सकेगा, और पश्चात्वर्ती मामले में, प्रारम्भ करने वाला पक्षकार उन विवाद्यकों पर साक्ष्य तब पेश कर सकेगा जब कि दूसरे पक्षकार द्वारा अपना सम्पूर्ण साक्ष्य पेश कर दिया हो और तब दूसरा पक्षकार विशेष रूप से उस साक्ष्य का उत्तर देगा जो कि प्रारम्भ करने वाले पक्षकार द्वारा इस प्रकार पेश किया गया था, किन्तु प्रारम्भ करने वाला पक्षकार सामान्य रूप से सम्पूर्ण मामले के संबंध में उत्तर देने का हकदार होगा। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि यह उपबंध किसी ऐसे मामले को लागू होता है जिसमें कि विभिन्न विवाद्यक मौजूद हों और जिनमें से कुछ विवाद्यकों की बाबत सबूत का भार उस पक्षकार से भित्र पक्षकार पर हो जो कि साक्ष्य प्रारम्भ करता है।

    (ख) नियम 3 लागू होना- इस मामले में, जैसे कि पहले उल्लेख किया जा चुका है, सिविल पुनरीक्षण संख्या 487/83 के निपटाए जाने के पश्चात् न्यायालय द्वारा आवश्यक पक्षकारों के असंयोजन से संबंधित अतिरिक्त विवाद्यक विरचित किया गया था। यह स्वीकार किया गया है कि इस विवाद्यक को साबित करने का भार पिटीशनर पर है और इस नाते आदेश 18, नियम 3 लागू होता है। विचारण न्यायालय ने वादी विरोधी पक्षकार को यह इजाजत दे दी है कि वह इस विवाधक की बाबत अतिरिक्त साक्ष्य पेश कर सके और साथ ही साथ वह इस विकल्प का भी प्रयोग कर सके कि यह प्रतिवादी पिटीशनर के साक्ष्य के समान होने के पश्चात् अपने साक्षियों में से किसी भी साक्षी को पुनः बुला सके। अतः यह नहीं कहा जा सकता कि सिविल प्रक्रिया संहिता का आदेश 18 नियम 3 इस मामले को सर्वधा लागू नहीं होता है।

    (ग) पुनरीक्षण संभव नहीं इस आदेश में वादरत पक्षकारों के अधिकार अथवा बाध्यता का न्यायनिर्णयन अन्तलित नहीं होता है और इसलिए यह नहीं कहा जा सकता है कि यह 'विनिश्चित मामले की कोटि में आता है। हालांकि यह उपधारणा कर ली गई हो कि आदेश पद के विस्तृत अर्थ के अन्तर्गत आता है, यह सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 115 (1) के परन्तुक में अधिकथित शर्तों को पूरा नहीं करता क्योंकि यदि आदेश पिटीशनर के पक्ष में दिया गया होता और यदि आदेश को कायम रखा जाना अनुज्ञात किया जाता है तो इससे न तो न्याय की असफलता कारित होगी और न ही पिटीशनर को अपरिहार्य क्षति पहुंचेगी। प्रतिकूल प्रभाव के प्रश्न पर पिटीशनर की ओर से विद्वान काउन्सेल द्वारा जो एकमात्र निवेदन किया गया था वह यह है कि आदेश उसके मुवक्किल को उस अधिकार से वंचित करता है जिससे कि वाद में वह अपना अन्तिम कथन कर सके।

    (घ) नई सामग्री पेश करना सिविल प्रक्रिया संहिता का आदेश 18, नियम 3 इस बात को स्पष्ट कर देता है कि यदि प्रारम्भ करने वाला पक्षकार कतिपय विवाद्यकों पर ऐसी दशा में साक्ष्य पेश करने संबंधी अपने अधिकार को आरक्षित रखता हो जबकि दूसरे पक्षकार द्वारा साक्ष्य समाप्त कर दिया हो तो पश्चात्वर्ती पक्षकार विशेष रूप से प्रारम्भ करने बाले पक्षकार के द्वारा इस प्रकार पेश किए गये साक्ष्य का प्रत्युत्तर से सकता है। इसलिए, यदि विरोधी पक्षकार पिटीशनर द्वारा साक्ष्य के समाप्त किए जाने के पश्चात् कोई नई सामग्री पेश करता है तो उसे इस बात की स्वतन्त्रता है कि वह न्यायालय के समक्ष यह याचना कर सके कि उसे इस बात का अवसर दिया जाए कि वह इस प्रकार पेश किए गये साक्ष्य का प्रत्युत्तर दे पाये और यदि ऐसी याचना की जाती है तो इस पर विधि के अनुसार विचारण न्यायालय द्वारा विचार किया जाएगा।

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